शनिवार, अक्तूबर 30, 2010

क्या भगवा आतंकवाद भी आस्था का मामला है?


क्या भगवा आतंकवाद भी आस्था का मामला है
वीरेन्द्र जैन

अयोध्या के राम जन्मभूमि मन्दिर – बाबरी मस्जिद मालिकाना विवाद का फैसला आने से पहले जब संघ परिवार के लोगों को लग रहा था कि न्यायिक सम्भावनाओं के अनुसार उनके पक्ष के लोग मुकदमा हार जायेंगे तब उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया था कि आस्था के सवालों को अदालत में हल नहीं किया जा सकता। यह वे तब कह रहे थे जब लगातार साठ सालों से मुकदमा चल रहा था और उनके पक्ष के लोग भी अदालत की कार्यवाही में भाग ले रहे थे। इतना ही नहीं मस्जिद को तोड़े जाने के बाद आडवाणी ने कहा था कि फैसले में होने वाली देरी से नाराज होने के कारण लोगों ने उस विवादित ढांचे के मस्जिदनुमा स्वरूप को तोड़ दिया जिसे वे मन्दिर मानते थे और जिसमें 1949 से रामलला की मूर्ति विराजमान थी। यही लोग उस विवादित स्थल के दो तिहाई भाग को मिल जाने पर अदालत के फैसले को स्वीकार करके खुशी व्यक्त कर रहे थे। कुछ दिनों बाद जब दूसरे पक्ष द्वारा सुप्रीम कोर्ट जाने का निर्णय किया गया तो वे फिर आस्थावानों को उकसाने वाले बयानों पर उतरने के लिए साधु संतों को आगे कर दिया। चित भी मेरी, पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का।
पद पर आने के लिए संविधान की शपथ लेने वाले इस दक्षिणपंथी दल को लोकतंत्र के स्तम्भों पर कितना भरोसा है यह उसके बयानों से पता चलता है। जब देश में आतंकवादी घटनाएं घटती थीं तब त्वरित और सबसे पहले होने की दौड़ में मीडिया खबरों की जगह अनुमानों के आधार पर जिम्मेवारी डाल देता था जिसके अनुसार प्रत्येक आतंकी घटनाओं के लिए मुस्लिम आतंकियों का हाथ बता दिये जाने से संघ परिवार के साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कार्यक्रम को बल मिलता था। जाँच एजेंसियों के काम की गोपनीयता के कारण आम जन को भी वे लगभग उसी बहुप्रचारित दिशा में कार्य करती हुयी महसूस होती थीं। किंतु मालेगाँव, मडगाँव, कानपुर आदि में समयपूर्व या अपने निर्माण स्थल में ही फट गये बमों के कारण जो सच सामने आया उसने कहानी ही बदल दी। वहाँ न केवल गैर मुस्लिम आतंकी ही दुर्घटना के मृतकों में थे अपितु उनके निवास से मुस्लिम पहनावे के वस्त्र और् नकली दाढियाँ भी बरामद हुयीं। जाँच के दौरान जो लोग चिन्हित हुये उनसे पूछ्ताछ के आधार पर प्राप्त सबूतों से जो लोग सन्देह के घेरे में आये वे संघ परिवार से जुड़े हुये लोग थे। आजकल मोबाइल की काल डिटेल से अपराधियों के सम्पर्कों और घटनाओं के समय उनकी उपस्तिथि के स्थलों की पुष्टि आसान हो जाती है। इस तरह के मामलों में जाँच एजेंसियां बहुत सावधानी पूर्वक काम करती हैं और पर्याप्त प्रमाण मिलने से पूर्व संदिग्ध की निगरानी करती हैं।
आतंकी घटनाओं का उद्देश्य केवल अपने शत्रु की हत्या करना नहीं होता अपितु अनेक बार वे समाज में उपस्थित साम्प्रदायिक विद्वेष को साम्प्रदायिक दंगों में बदलने के लिए की जाती हैं। साम्प्रदायिक दल अफवाहों के द्वारा लोगों को भड़काते हैं। आतंकी कार्यवाहियां करने वाले कई बार अपने ही समुदाय के लोगों को उकसाने के लिए अपने ही धार्मिक समारोहों की भीड़ के बीच ही बम विस्फोट करके उन्हें उत्तेजित करने की कोशिश करते हैं। मडगाँव में साइकिल पर रख कर बम ले जाने वाले हिन्दू आतंकी अपने ही समुदाय के धार्मिक आयोजन के बीच बम विस्फोट कराने के लिए ले जा रहे थे जो बीच में ही फट गया। समाज में पूर्व से ही फैलायी गयी साम्प्रदायिकता आतंकी घटनाओं के लक्ष्य के लिए आधार भूमि का काम करती है किंतु जब समाज में समझदारी होती है तो लोग आतंकियों का आशय समझ कर अपने प्रतिद्वन्दी वर्ग के प्रति उत्तेजित नहीं होते। पिछले वर्षों में मुम्बई लोकल ट्रेन बम विस्फोट, दिल्ली सदर बाजार में दीवाली के अवसर पर हुआ विस्फोट, वाराणसी में एक मन्दिर समेत अनेक स्थलों पर किये गये बम विस्फोटों के बाद भी लोगों का शांत बने रहना साम्प्रदायिकता के निष्प्रभावी होने की सूचना है। जब अजमेर की दरगाह में हुए विस्फोटों की जाँच में मिले सबूतों के आधार पर खोजबीन की गयी तो उसमें संघ के कार्यकर्ताओं के सम्मलित होने के साफ संकेत मिले। पर अब आरएसएस और संघ परिवार का राजनीतिक मुखौटा भाजपा के लोग इन सन्दिग्धों के बचाव में अनाप शनाप बयान देने में लग गये हैं जिनमें से यह भी एक है कि यह उन्हें बदनाम करने की कोशिश है। स्मरणीय है कि समय समय पर संघ और भाजपा यह कहने से नहीं चूकते कि दोनों अलग संगठन हैं और संघ एक सांस्कृतिक संगठन है तथा उसका भाजपा के दैनिन्दिन कार्यों से कुछ भी लेना देना नहीं है। यदि यह सच है तो कोई राजनीतिक बदले के लिए संघ के पदाधिकारी को क्यों फँसाने की कोशिश करेगा। हमारे यहाँ एक स्वतंत्र न्यायपालिका है और यदि कोई जाँच एजेंसी अदालत के सामने पर्याप्त सबूत नहीं प्रस्तुत कर पाती तो वह आरोपी को ससम्मान बरी कर देती है और आवश्यकता होने पर जाँच एजेंसियों के खिलाफ भी टिप्पणी करती है। जिस आतंकवाद के विरोध में संघपरिवार सबसे अधिक मुखर है और जब पर्याप्त प्रमाणों के आधार पर सन्दिग्धों से पूछ्ताछ की जाती है तो वे जाँच एजेंसी के खिलाफ तरह तरह के आरोप लगा कर उसका मनोबल गिरा रहे हैं। यही काम उन्होंने करकरे के खिलाफ भी किया था जिनकी 26\11\2008 को मुम्बई में किये गये हमलों के दौरान मृत्यु हो गयी थी। असल में संघ परिवार का जो दोहरा चरित्र है वही उन्हें परेशानी में डालता है। यह कतई जरूरी नहीं है कि भाजपा और संघ सिद्धांत रूप से उन आतंकी गतिविधियों में सम्मलित हों किंतु वे जिन कुतर्कों और इतिहास की गलत व्याख्या के आधार पर अपने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करते हैं उससे किसी अतिउत्साही कार्यकर्ता के हिंसक आन्दोलन में कूद पड़ने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। जरूरी होता है कि कार्यकर्ताओं की गतिविधियों और कार्यप्रणाली पर निगाह रखी जाये और उसके सिद्धांतों से विचलित होने की दशा में उसके निष्कासन की कार्यवाही की जाये। यदि उच्च पदाधिकारियों को उसकी गतिविधियों का संज्ञान बाद में होता है तो यह काम एक क्षमा के साथ बाद में भी किया जा सकता है। किंतु संघ परिवार का इतिहास यह रहा है कि वे कभी भी अपनी गलतियों के लिए क्षमा नहीं माँगते तथा दुनिया की आँखों देखी सच्चाई को भी ढीठ बयानों से झुठलाने की कोशिश करते हैं। महात्मा गाँधी की हत्या से लेकर बाबरी मस्जिद तोड़ने और गुजरात में निर्दोष मुसलमानों का नरसंहार करने तक उन्होंने कभी भी भूल नहीं स्वीकारी। झूठ का सहारा भले ही कभी तात्कालिक लाभ दिला दे, किंतु सार्वजनिक जीवन में वह व्यक्ति को अन्दर से कमजोर करता है। इसी कमजोरी को ढकने के लिए वह कठोरता अपनाते अपनाते हिंसक हो जाता है। ये लोग दलबदल करने, करवाने, संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने, सांसदनिधि बेचने, सदन न चलने देने से लेकर अनियंत्रित भ्रष्टाचार के द्वारा विधायिका को तो पर्याप्त नुकसान पहुँचाते ही रहे हैं, अब कार्यपालिका को काम न करने देने और न्यायपालिका के आदेशों को आस्था के नाम पर नकारने की बात करके पूरे तंत्र को नष्ट करने की सतत कोशिश कर रहे हैं।
सवाल उठता है कि इनका यह काम नक्सलवादियों, अलगाववादियों और आतंकवादियों से किस तरह भिन्न है? क्या भगवा आतंकवाद भी इनकी आस्था का सवाल है जिस पर अदालत विचार नहीं कर सकती।

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

2 टिप्‍पणियां:

  1. आप ऐसा फर्जी लिख सकते है क्यों की आप हिंदुस्तान में है .क्या किसी मुस्लिम देश का पत्रकार ऐसा लिख सकता है ????????????????????
    सारी पत्रकारिता धरी की धरी रह जाती .
    जब भी भाजपा और संघ को कोसना होता है आप लोगो को गुजरात का दंगा जरुर याद आता है पर उस का कारण गोधरा जिस में ५९ हिन्दू जिन्दा जला दिए गए उस का जिक्र तक करने में नानी मंरती है .नरेन्द्र मोदी का गुजरात में लगातार तीसरी बार जितना आप लोगो के मुख पर करार तमाचा है और अब अमित शाह के मामले में सुप्रीम कोर्ट की c.b.i. को कड़ी फटकार आप लोगो का षड़यंत्र उजागर करती है .
    वैसे बहुत से पत्रकार विदेशी पैसे पर पल रहे है ...........
    जिस प्रकार आप गाँधी की हत्या का आरोप संघ पर लगा रहे है बिना किसी आधार के मेरा विश्वास पक्का हो गया है की आप को पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी के कुछ न कुछ जरुर लिंक है .
    जैन जी कांग्रेस का भ्रष्टाचार पूरी दुनिया देख रही है एक भ्रष्टाचार का ठीक से खुलासा तक नही हो पता की दूसरे की परते खुलने लगती है .
    आप का संघ पर आरोप चोर की दाढ़ी में तिनका है .अन अपनी दाढ़ी मत टटोलने लगना.
    हमारी सनातन संस्कृति का प्रतीक है भगवा रंग इस का नाम जो भी आतंकवाद से जोड़ता है वो जूते खाने वाला काम करता है . किसी संगटन की आढ में आप ये जो सनातन संसकृति का अपमान कर रहे है आप का बौद्धिक दिवालियापन दर्शाता है .

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  2. @प्रिय अभिषेक
    आम तौर पर में ऐसी भावुक टिप्पणियों को इग्नोर करता हूं, किंतु तुमने इतनी बड़ी टिप्पणी की है इससे ऐसा लगता है कि तुम्हें शायद सत्य की तलाश है। टिप्पणी जो कहा गया है उस पर होना चाहिए न कि कहने वाले पर आरोप लगाने वाले पर। कुछ लोग बौखलाकर गालियां बकने लगते हैं। तुम्हारी टिप्पणी के अनुसार अगर कोई पत्रकार बेईमान या दलाल है तो पूरी पुष्टि होने पर उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही होना चाहिए भले ही वो आरएसएस का पक्ष ले रहा हो। आप अगर इस काम में मददगार होंगे तो यह देश हित में होगा। पता नहीं आपने संघ के खिलाफ लेख लिखने वालों को छोड़कर कितनों कानून विरोधी लोगों के खिलाफ कार्यवाही में शयोग दिया है? कांग्रेस के भ्रष्टाचार को भी पत्रकार ही उजागर कर रहे हैं। किसी रंग से मुझे कोई आपत्ति नहीं है किंतु किसी चीज में अन्ध आस्था होने से शातिर लोग उसी भेष को ओढकर आस्थावानों को ही चूना लगाते हैं जैसे रामकथा में रावण सीताहरण के लिए साधु के भगवे भेष में आया था।
    हिंसा की धमकी किसी विचार को समाप्त नहीं करती अपितु उसका प्रचार करती है। विचार का उत्तर विचार ही हो सकता है। मैं साबरमती एक्सप्रेस की बोगी संख्या 6 में लगी आग और उसमें जल गये दो कारसेवकों समेत 59 लोगों के मारे जाने पर दोषी लोगों के खिलाफ कठोर कार्यवाही के पक्ष में हूं किंतु इस दुर्घटना पर पूरे गुजरत में तीन हजार निरीह और कमजोर मुसलमानों को सरकारी मदद से मारे जाने के भी खिलाफ हू|... happy diwaalee

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