राजनीतिक सामाजिक और साहित्यिक रंगमंच के नेपथ्य में चल रही घात प्रतिघातों का खुलासा
गुरुवार, मार्च 03, 2011
एक जनाकांछा को हथियाता अपात्र नेतृत्व
एक जनाकांक्षा को हथियाता अपात्र नेतृत्व
वीरेन्द्र जैन
आज भ्रष्टाचार हमारे देश की प्रमुख समस्याओं में से एक की तरह पहचाना जा रहा है, क्योंकि इसी के कारण हमारी दूसरी प्रमुख जन समस्याओं को हल करने वाली योजनाएं निष्फल होती जा रही हैं। भ्रष्टाचार के कारण ही किसानों को उनके लिए घोषित लाभ नहीं मिल पाते, और अनुदान हड़प लिया जाता है। भ्रष्टाचार के कारण ही सशक्तिकरण योजनाओं के लाभ कमजोर वर्ग तक नहीं पहुँच पाते। भ्रष्टाचार के कारण ही निर्माण कमजोर बनते हैं और विकृत सामानों की सरकारी खरीद हो जाती है। कहा जाता है कि हमारे यहाँ के योजनाकार और योजनाएं किसी भी दूसरे विकासशील देश की योजनाओं से दोयम नहीं है, किंतु ईमानदारी से उनका अनुपालन नहीं हो पाने के कारण वे निरर्थक हो जाती हैं और कमजोर न्याय व्यवस्था के कारण दोषियों को सजा नहीं हो पाती। भ्रष्टाचार से लाभ कमाकर स्वयं को सशक्त करने वाले अनेक धन्धेबाज लोग सदनों में पहुँचकर लोक सेवकों का स्थान छीन रहे हैं और उन्होंने जनतंत्र को धनतंत्र में बदल दिया है। यही कारण है कि आज देश की जनता व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध है और इस विरोध में वे लोग भी सम्मलित हैं जो खुद भी कहीं कहीं छोटा मोटा भ्रष्टाचार करके बड़े भ्रष्टाचार से राहत पाने का शार्टकट अपनाये हुये हैं। यदि टीवी कार्यक्रमों की लोकप्रियता को सर्वेक्षण का आधार बना कर देखें तो पता चलता है कि स्वस्थ मनोरंजन के कार्यक्रमों में से गत वर्षों में सीरियल “आफिस-आफिस” “कक्काजी कहिन” और “रजनी” बहुत लोकप्रिय हुये थे जो राजनीति व नौकरशाही के भ्रष्टाचार पर तीखे कटाक्ष करते थे। यही कारण है कि वर्षों पुराने योग के नये कार्यक्रमों से अचानक लोकप्रिय हो गये अतिमहात्वाकान्क्षी बाबा रामदेव ने राजनीति में प्रवेश करने के लिए इसी मुद्दे को पकड़ा और यथा अनुमानित जनसमर्थन प्राप्त किया। इस जनसमर्थन से उत्साहित रामदेव ने जल्दी ही अपनी पार्टी बनाने की घोषणा कर डाली।
उनके इस अभियान में समाज सेवा से जुड़े दूसरे लोकप्रिय नाम, जैसे अन्ना हजारे, स्वामी अग्निवेश, किरन बेदी, गोबिन्दाचार्य, अरविन्द केजरीवाल, राम जेठमलानी आदि भी सम्मलित हैं किंतु इसके नेतृत्व करने का अवसर अपेक्षित कम शिक्षित बाबा रामकिशन, अर्थात रामदेव को ही मिल रहा है क्योंकि वे अपने टीवी कार्यक्रमों और योग शिविरों द्वारा स्वयं को अधिक लोकप्रिय बताकर आगे आये हुये हैं। दुर्भाग्य से सच यह भी है कि वे [रामदेव] नेतृत्व करने के लिए इन सब से कम सक्षम हैं, और उनका इतिहास भी उनको इस अभियान का नेतृत्व करने की नैतिक इजाजत नहीं देता। अब यह जग जाहिर हो चुका है कि जिन रामकिशन यादव के पास साइकिल का पंचर जुड़वाने के भी पैसे नहीं होते थे, वे आज 1115 करोड़ की ट्रस्ट को संचालित कर रहे हैं। इस बात में कोई दम नहीं कि कि उनके नाम से एक भी पैसा जमा नहीं है, और सारा पैसा ट्रस्ट का है। आज जो कोई भी अपनी आमदनी का वित्तीय प्रबन्धन कराना चाहता है तो सीए यही सलाह देता है कि कोई ट्रस्ट बना डालो जिसमें अपना और अपने परिवारियों को ही सदस्य बना लो। यह सारा पैसा रामदेव के शिविरों, टीवी कार्यक्रमों से प्राप्त रायल्टी, किताबों, सीडी पत्रिकाओं तथा आयुर्वेदिक दवाओं के बिक्री आदि से ही नहीं प्राप्त हुआ अपितु उन्हें अघोषित दानदाताओं से दान में भी बहुत बड़ी बड़ी राशियां मिली हैं। कई राज्य सरकारों ने भी उन्हें बड़ी बड़ी जमीनें मुफ्त के भाव दी हैं। आज 903 करोड़ की पूंजी वाला उनका दिव्य योग मन्दिर ट्रस्ट और 212 करोड़ की पूंजी वाला पतंजलि योगपीठ हरिद्वार एक हजार एकड़ से भी ज्यादा जमीन में फैले हुये हैं। हिमाचल प्रदेश में भी उनका 90 करोड़ का एक ट्रस्ट है जो फ्लैट्स बना कर बेच रहा है। दिव्य फार्मेसी प्रति वर्ष 50 करोड़ कमा रही है और अभी हाल ही में हरिद्वार में 100 करोड़ की लागत से पतंजलि विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी है। मध्य प्रदेश सरकार भी उन्हें 1618 एकड़ की जमीन जबलपुर में देने वाली है। 2009 में रामदेव ने स्काटलैंड में 310 एकड़ का टापू 14.7 करोड़ में खरीदा था। मुम्बई के उनके रियल स्टेट का कारोबार करने वाले एक भक्त ने उन्हें एक इमारत भेंट की जिसमें कभी दीपा लेडीज बार चला करता था। इस जगह उन्होंने आश्रम खोला और इस आश्रम का उद्घाटन भी उन्होंने खुद किया था। इतनी बड़ी बड़ी राशियाँ दान करने वाले इस भ्रष्टाचारी दौर में ये दानदाता साफ सुथरे होंगे यह केवल एक सद्भावना भर ही हो सकती है।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि घरों में रंगीन टीवी और डिस्क कनेक्शन रखने वाले मध्यमवर्गीय लोगों को उनके घरों में ही योग सिखा कर बाबा ने बहुत ही अच्छा काम किया है, जिसे सभी ने श्रद्धापूर्वक स्वीकारा भी है। उनके आयुर्वेदिक दवा उद्योग को भी लोगों के स्वास्थ से जोड़कर स्वीकारा जा सकता है, किंतु जब पैसे और सम्पत्ति के लिए अन्धी हवस जब शुरू होती है तो वह समाज की नैतिक मान्यताओं को ताक पर रख देती है। रामदेव ने न केवल ज्यादा से ज्यादा जमीनें हथियाने की कोशिशें कीं अपितु हस्तगत की इन फैक्टरियों को अपने भाई रामभरत और बहनोई यशवीर शास्त्री को ही सौंपी ताकि हिसाब का रहस्य, रहस्य ही रहे। उनके मंच पर उत्तर प्रदेश की एक बदनाम चिट फंड की कम्पनी का मालिक और उसके अधिकारी ही नजर आते रहे हैं। उन्होंने हरिद्वार और रांची में किसी कुशल व्यापारी की तरह मेगा हर्बल फूड पाई की दो कम्पनियों का प्रारम्भ किया है जिसमें एक तो केन्द्र सरकार के एक मंत्री की पार्टनरशिप में है।
समाजसेवा के ढेर सारे आयाम हैं, जिनमें से राजनीति भी एक है। आमतौर पर राजनीति के माध्यम से समाज सेवा करने वालों के लिए एक उम्र कम पड़ती है, इसलिए इस क्षेत्र में हर उम्र के लोग मिल जायेंगे। तब यह कैसे सम्भव है कि कोई व्यक्ति यदि एक क्षेत्र विशेष में अपनी सेवाएं दे रहा हो तो वह उतने ही दूसरे महत्वपूर्ण क्षेत्र में काम करने के लिए दूसरों से आगे आने की कोशिश करे। यदि रामदेव चाहते तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध काम करने वाले संगठनों या दलों को अपना समर्थन देकर भी अपना काम कर सकते थे किंतु इसकी जगह उन्होंने न केवल स्वयं नेतृत्व हथियाने अपितु अपना एक अलग दल बनाने के नाम पर भी जोड़ तोड़ शुरू कर दी। रामदेवजी के पूरे जीवन पर दृष्टिपात करने पर उनके अति महात्वाकांक्षी होने का पता चलता है। वे एक निर्धन परिवार में पैदा हुए थे और आर्य समाज की संस्था गुरुकुल कांगड़ी में शिक्षा प्राप्त करते थे। इसी दौरान अपने गुजारे के लिए उन्होंने आर्य समाज की शिक्षण संस्थाओं, महिला महाविद्यालयों और दूसरी जगहों में हवन कराना शुरू कर दिया था। इसी दौरान उन्होंने अपने दो साथियों कर्मवीर और आचार्य बाल्कृष्ण के साथ कनखल के गंगा नहर के किनारे बने कृपालु बाग दिव्य योग मन्दिर में रहने के लिए कमरा लिया और इसके संचालक स्वामी शंकर देव को अपना गुरू बनाया और धीरे धीरे इस आश्रम पर अपना कब्जा कर लिया। रामदेव व कर्मवीर तो योग सिखाने लगे और बालकृष्ण ने वैद्यगिरी प्रारम्भ कर दी। जल्दी ही अपने लक्ष्य में बाधक मानकर रामदेव ने कर्मवीर को अलग कर दिया, और बाद में कर्मवीर को आश्रम में घुसने तक नहीं दिया। रामदेव ने इस मामले में अपने गुरु स्वामी शंकरदेव की बात ही नहीं मानी, और उनकी नाराजी की फिक्र ही नहीं की। पिछले दिनों स्वामी शंकरदेव रहस्यमय ढंग से गायब हो गये और उनका पता अभी तक नहीं चला है। योग के बहाने वे अपनी फार्मेसी की दवाइयाँ भी बिकवाने लगे। उन्होंने योग की लोकप्रियता को अपनी लोकप्रियता के लिए स्तेमाल किया। योग शिविर लगा कर उन्होंने लाभ पाने वाले अफसरों और नेताओं से उन्होंने भरपूर सुविधाएं प्राप्त कीं। अपने लिए सरकार से मिली एक्स श्रेणी की सुरक्षा को वाय श्रेणी की सुरक्षा में बदलने के लिए एक झूठा आतंकवादी बनवाया जो सुतली बम लेकर उनके साथ हैलीकाप्टर में बैठ गया और अपने आप को पकड़वा दिया। बाद में पुलिस द्वारा कड़ी पूछताछ के बाद उसने राज खोल दिया कि उससे ऐसा किसने और क्यों करवाया था।
उन्होंने अखबारों में समाज सुधारों वाले लेख लिखे, टीवी पर इंटरव्यू दिये जिनमें कोका-कोला और ऐलोपैथी आदि के खिलाफ सोचे समझे ढंग से विवादास्पद बयान दिये, जिससे चर्चा में आ सकें। बड़े बड़े नेताओं को अपने यहाँ बुलवाया, सीपीएम कार्यालय पर हमला करवाया, दिग्विजय सिंह द्वारा उनकी सम्पत्ति की जाँच की माँग किये जाने पर सीधे कांग्रेस अध्यक्ष पर आरोप लगा दिये आदि आदि। कुल मिला कर ये अति महात्वाकांक्षी व्यक्ति के अतिरंजित प्रयास हैं, जो चर्चित होने के लिए चर्चित होती हुयी वस्तु से स्वयं को जबरदस्ती जोड़ लेने का प्रयास करता है। वैसे अभी तक उन्होंने काले धन के बारे में सारे के सारे आरोप हवाई लगाये हैं, एक भी आरोप किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ सप्रमाण नहीं लगाये गये हैं, यह वैसा ही है कि उन्होंने अभी उत्तराखण्ड के एक मंत्री द्वारा उनसे दो लाख की रिश्वत माँगने का आरोप लगा दिया था किंतु अभी तक उसका नाम उजागर नहीं किया। आखिर उन्हें ऐसा क्या भय है कि वे उसका नाम उजागर नहीं कर सकते। भ्रष्टाचार के खिलाफ जनान्दोलन की सम्भावनाओं को निजी महात्वाकांक्षाओं के लिए शगूफे पैदा करने वाले रामदेव जैसे लोगों से बचाना चाहिए।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629
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baba ramdev ki janmkundli prastut karne ke liye sukriya. takleef is baat se hote hai ki aam janta ko ise kaise samjhai?
जवाब देंहटाएंye badaa nek kaam kiyaa aapne...ab sab kuchh-jyaadaatar padhane ke liye ek hi jagah mil jaayaa karegaa...15 din me ek khuraak kum thi...shubhkaamanaayen. badal
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