मंगलवार, अप्रैल 26, 2011

क्या देश के 'अमर सिंह' भारतीय विक्कीलीक्स' बनना पसन्द करेंगे?



क्या देश के ‘अमर सिंह’ ‘भारतीय विकीलीक्स’ बनना पसन्द करेंगे
वीरेन्द्र जैन
जब भ्रष्टाचार से त्रस्त देश अन्ना हजारे के नेतृत्व में प्रकाश की एक क्षीण सी किरण देख रहा था और अपने गिने चुने सहयोगियों के सहारे सत्तारूढों को नये लोकपाल विधेयक पर सरकार को झुकी हुयी दिखने में कामयाब हो चुके थे उसी समय यथास्तिथि से लाभांवित लोगों द्वारा उनके सहयोगियों पर तरह तरह के मामलों पर हमले शुरू कर दिये गये। इन हमलों में सबसे प्रभावी हमला अमर सिंह की ओर से किया गया जिन्होंने न केवल शांतिभूषण की बातचीत की एक सीडी ही पेश की अपितु नोइडा में बेहद कीमती प्लाट्स के एलाटमेंट में उनके प्रति किये गये पक्षपात का आरोप लगाते हुए उसे अवैध सौदा बतलाया।
अमर सिंह की छवि एक कूटनीतिज्ञ की छवि है जो किसी को सत्ता दिलाने या सत्ता से हटाने, सत्तारूढों को कारपोरेट जगत से जोड़ने और इस जोड़ से दोनों ही पक्षों को लाभान्वित होने का अवसर दिलाने, दलबदल कराने या रोकने, किसी के पक्ष में न्याय कराने के लिए यथासम्भव व्यवस्थाएं कराने आदि के रूप में पहचानी जाती है। वे वाक्पटु हैं और तीखा कटाक्ष करते हैं। उनकी प्रत्युन्मति विलक्षण है। उन्होंने अपनी इन्हीं क्षमताओं से न केवल मुलायम सिंह को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री ही बनवाया अपितु अल्पमत में आने के बाद भी बनाये भी रखा था। उन्होंने ही एक समय विदेशीमहिला का नारा गढ कर श्रीमती सोनिया गान्धी को प्रधानमंत्री के रूप में चुने जाने के लिए बहुमत नहीं बनने दिया था और उनकी पार्टी से बिना पूछे हुये ज्योति बसु का नाम उछाल दिया था। बाद में उन्होंने ही मुलायम सिंह से मनमोहन सिंह सरकार को समर्थन दिलवाया और परमाणु विधेयक पर बामपंथियों द्वारा यूपीए की गठबन्धन सरकार से समर्थन वापिसी की घोषणा से उत्पन्न संकट के समय समाजवादी पार्टी को यू टर्न दिलाकर सरकार बचा दी थी जिसके बदले में वे मुलायम सिंह को गृह मंत्री बनवाना चाहते थे, पर काम निकलने के बाद उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया गया। इसी दौरान भाजपा के कुछ संसद सदस्यों ने सदन के पटल पर एक करोड़ रुपये पटक कर उन्हें दलबदल के लिए अमर सिंह द्वारा दी गयी राशि बतलाया था।
पहले कांग्रेस और बाद में समाजवादी पार्टी से होते हुए अब अपनी अलग पार्टी बनाने वाले जनाधारहीन अमर सिंह ने राजनीति में कभी भी विचार सिद्धांत या शुचिता को महत्व नहीं दिया। वे सब कुछ किसी व्यापारिक सौदों की तरह निबटाते रहे। समाजवादी पार्टी से निकाले जाने के बाद सोनिया गान्धी और राहुल की प्रशस्ति गाकर कांग्रेस का दरवाजा खटखटाने वाले, अचानक ठाकुर होकर पूर्वांचल राग छेड़ देने वाले, व कभी भाजपा को पानी पी पी के कोसने वाले अमर सिंह अब कहने लगे हैं कि उन्हें भाजपा से भी गुरेज नहीं है। कभी कोई आम चुनाव नहीं जीत पाने वाले अमर सिंह शिखर की राजनीति पर बड़े बड़े चुने हुओं को नचाने की क्षमता रखते हैं, और बहुत सारे तो उन्हीं के दिये पैसे से चुनाव जीतते रहे हैं। पिछले कई महीनों से वे मुलायम सिंह के राज खोल देने की धमकियां दे कर उन्हें समझौते की मेज पर बुलावा भेजते रहे हैं। इस समय उन्हें राज्यसभा में पुनर्निर्वाचन की व्यवस्था जमानी है जिसके लिए वे भाजपा समेत किसी भी सक्षम दल को मदद करने के लिए उतावले बैठे हैं।
भारत की समकालीन राजनीति में ऐसे वे अकेले नहीं हैं अपितु कई छोटे मोटे अन्य अमर सिंह भी पड़े हैं, जो राज नेताओं के बीच फैले भयानक भ्रष्टाचार से परिचित हैं और अपने स्वार्थ में उक्त भ्रष्टाचार की जानकारी को छुपाये रख कर अपने हित साधते रहते हैं या कोई और लक्ष्य पाना चाहते हैं। विचारों और सिद्धांतों से विहीन राजनीति में सांसद और विधायक बनने के लिए करोड़पतियों में जो अन्धी लालसा देखी जा रही है उसके पीछे अपनी कमाई हुयी अवैध दौलत की सुरक्षा और सत्ता के सहारे सरकारी सुरक्षा में लूट के अवसर तलाशने के लक्ष्य रहते हैं। बहुत सारे ऐसे लोग इसमें सफल भी हो चुके हैं। सरकारी जमीनों, बंगलों, औद्योगिक क्षेत्रों करोड़ों की वस्तु कोड़ियों में हथियाने अपनी संतति और रिश्तेदारों को प्रशासनिक मशीनरी में फिट कराने, लाइसेंस कोटा आदि को नियम विरुद्ध हस्तगत करने तथा स्थापित धन्धों में श्रम, राजस्व आदि कानूनों की अवहेलना करने के लिए ही ऐसे लोग राजनीति में आते हैं, सत्तामुखी दलों की सदस्यता लेते हैं और मंत्री सांसद विधायक अदि बनना चाहते हैं। इन सारे कामों के लिए जो विचलन करने होते हैं वे अकेले नहीं किये जा सकते इसलिए उनके निकट के लोग राजदार हो जाते हैं। ‘अमर सिंह’ ऐसे अवसरों को भुनाने वाले कुशल कारीगर होते हैं जो इस बात से भी प्रकट है कि उक्त ठाकुर अमर सिंह ने शांतिभूषण-प्रशांतभूषण वाले कथित सौदे की सीडी बना कर रखी हुयी थी। सीडी के असली नकली होने का फैसला तो होता रहेगा किंतु यह बात तो तय हो चुकी है कि अमर सिंह जैसे लोग इस तरह के कामों के रिकार्ड भी रखते हैं ताकि वक्त जरूरत काम आये। यह बिल्कुल ऐसा ही है जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के कार्यालय में काम करने वाली लड़की मोनिका ने उनके साथ अपने अंतरंग सम्बन्धों में गन्दी हुयी चड्ढी भी प्रमाण के लिए सम्हाल कर रखी हुयी थी।
आज सारी दुनिया विक्कीलीक्स के खुलासों के द्वारा अज्ञात सूचनाओं, आशंकाओं, अफवाहों आदि के पुख्ता प्रमाण प्राप्त कर रही है तब इस बात की उम्मीद करने में क्या बुराई है कि हमारे देश के राजनीति में चुक चुके ‘अमर सिंह’ जो प्रत्येक बड़ी पार्टी और बड़े नेता के आसपास रह रहे होंगे वे भारतीय राजनीति की विक्कीलीक्स प्रारम्भ कर दें। हमारे देश में भी 1957 में केरल की पहली गैरकांग्रेसी सरकार गिराने से लेकर दलबदल कराने, राजनीतिक हितों के लिए साम्प्रदायिक दंगे कराने, विधायकों को कैद करके उन्हें पर्यटन कराने, अविश्वास प्रस्ताव पर विश्वास प्राप्त करने आदि की हजारों शर्मनाक और आँखें खोल देने वाली गाथाएं दबी पड़ी हैं। इलेक्ट्रोनिक संसाधनों के विकास के बाद न जाने ऐसे कितने प्रमाण कितने अमर सिंहों के पास दबे पड़े होंगे या स्मृतियों में होंगे। जब भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आवाहन पर जनता ने अपना समर्थन दे अपनी पसन्दगी जाहिर कर दी है तब अपनी अपनी किडनियां खो चुके इन सारे अमर सिंहों को अपनी अपनी विक्कीलीक्स एक साथ खोल देना चाहिए ताकि यह देश देख सके कि हमारे कर्णधारों में कौन कौन किस किस गड्ढे में पड़ा हुआ है। अगर वे इस उचित समय पर ऐसा नहीं करेंगे तो बहुत सम्भव है कि कल के दिन कोई जाँच एजेंसी नार्को टेस्ट के द्वारा इनका खुलासा करवाये। यह नहीं भूलना चाहिए कि परमाणु विधेयक पर आये विश्वास के संकट के समय जब भाजपा सांसदों ने एक करोड़ रुपये संसद के पटल पर रखे थे तब तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री श्री लालू प्रसाद यादव ने सच्चाई जानने के लिए उनके नार्को टेस्ट का सुझाव दिया था।
जनता की बेहद माँग पर केन्द्र के उन केबिनेट मंत्री के सुझाव को मानने का अवसर भी आ सकता है।



वीरेन्द्र जैन
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