शनिवार, अप्रैल 02, 2011

मध्यप्रदेश की दुर्दशा : अभाव से या अव्यवस्था से ?


मध्य प्रदेश की दुर्दशा: अभाव से या अव्यवस्था से?
वीरेन्द्र जैन
मध्यप्रदेश में रामभक्त होने का दावा करने वाली पार्टी की सरकार ने प्रदेश को स्वर्णिम मध्य प्रदेश बनाने की घोषणा की हुयी है। यह बात अलग है कि जिस राम कथा से वे अपने सारे मुखौटे बनाते हैं उस रामकथा में सोने की तो रावण की लंका थी। इसी कथा के अनुसार अयोध्या में तो रामराज्य आने के बाद की स्तिथि- दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज्य नहिं काहुई व्यापा- वाली थी जहाँ – सब नर करें परस्पर प्रीती, चलहिं सुधर्म नेक और नीती- वाला मामला था।
आइए देखें कि इस रामभक्ति का दिखावा करने वाली सरकार में प्रदेश की दशा कैसी है, जिससे तय करें कि यहाँ राम राज्य चल रहा है या रावण राज्य चल रहा है। हाल ही में प्रकाश में आई ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2010 की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि यह प्रदेश अफ्रीकी देशों से भी ज्यादा भूखा है। पिछले वर्ष भी भारत के कुपोषित 17 प्रदेशों में मध्य प्रदेश की हालत सबसे अधिक चिंता जनक थी। इस प्रदेश ने अंतर्राष्ट्रीय नक्शे पर अपनी बदनामी को चमकाया है। इस प्रदेश में 50% बच्चे औसत से कम वजन के पैदा हो रहे हैं इनमें पाँच साल तक के 48% प्रतिशत बच्चे गम्भीर रूप से कुपोषित हैं। बचपन में ही मौत के मुँह में समा जाने वाले बच्चों में से 30% की मौत का कारण यह कुपोषण ही है। संसद में महिलाओं के लिए जितने प्रतिशत आरक्षण की माँग की गयी है वह कब पूरी होगी यह तो पता नहीं किंतु प्रदेश की 33% महिलाओं में कुपोषण पाया गया है।
सबसे बड़ा सवाल यह है क्या यह प्रदेश अपनी गरीबी के कारण इस दशा को पहुँचा है या प्रदेश के शासन प्रशासन में ही कोई दोष है। इस प्रदेश की सरकार सदैव ही केन्द्र सरकार के सामने कटोरा लिए खड़ी रहती है और इतनी असंगत माँग करती है जो किसी भी मापदण्ड से स्वीकार योग्य नहीं होती किंतु जो पैसा उसे केन्द्र सरकार की योजनाओं के रूप में मिलता है उसे वह पूरी तरह खर्च ही नहीं कर पाती। इस सरकार ने वित्तीय वर्ष 2009-10 में 3000 करोड़ और वर्ष 2010-11 के लिए 3090 करोड़ उपयोग न कर पाने के कारण सरेंडर किये हैं। जिस प्रदेश में तीन सौ से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हों उस प्रदेश ने राष्ट्रीय कृषि योजना के लिए मिले 1109 करोड़ में से कुल 363 करोड़ ही खर्च कर पाये। विकास मिशन के लिए प्राप्त 34 करोड़ में से कुल 14 करोड़ ही खर्च कर पाये। ग्रामीण विकास विभाग को 2421 करोड़ रुपये मिले जिसमें से कुल 1830 करोड़ ही खर्च कर पाये। सिंचाई विभाग को 1861 करोड़ रुपये मिले जिसमें से 1421 करोड़ ही खर्च कर पाये। महिला बाल विकास को 1622 करोड़ मिले जिसमें से 1340 करोड़ ही खर्च हुये। नगरीय प्रशासन विभाग को मिले 880 करोड़ में से 655 करोड़ ही खर्च किये गये। जहाँ शिक्षा के लिए मिली राशि में से 930 करोड़ रुपये लेप्स हुये वहीं ऊर्जा के लिए मिली राशि में से 271 करोड़ लेप्स हुये। राजनीतिक दबाओं से त्रस्त नौकरशाही की उदासीनता के कारण प्रदेश को 3400 करोड़ की हानि हुयी है। विभिन्न विभाग प्रदेश में 2618 करोड़ की वसूली नहीं कर पाये। विभिन्न विभागों में चल रही अनियमतताओं और लापरवाही के कारण 34 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ। वाणिज्यिक कर, राज्य उत्पाद शुल्क, मोटर वाहन कर, स्टाम्प ड्यूटी एवं रजिस्ट्रेशन फीस, मनोरंजन कर आदि में 3366 करोड़ की राजस्व हानि अनुमानित की गयी है। प्रदेश की नौकरशाही जिस तरह से काम कर रही है उससे स्थानीय निधि आडिट में ही 289 करोड़ के घपले सामने आये हैं। लगभग 46लाख के गबन, दो करोड़ चालीस लाख से अधिक के दुहरे भुगतान, तेइस करोड़ से अधिक के अनियमित भुगतान, तीन करोड़ सोलह लाख से अधिक के सन्दिग्ध खर्चे, बीस करोड़ छियानवे लाख से अधिक की आर्थिक क्षतियां, दो करोड़ तिरेपन लाख से अधिक की निर्माण कार्य में अनियमितताएं, 58 करोड़ से अधिक की अपेक्षित वसूली, 173 करोड़ से अधिक की अन्य अनियमितताएं और पाँच करोड़ से अधिक के अनियमित भुगतान के प्रकरण सामने आ चुके हैं। सब जानते हैं कि लम्बी जाँच के बाद इनको दाखिल दफ्तर कर दिया जायेगा। प्रदेश की सरकार की केवल दो चिंताएं हैं, पहली तो यह कि सरकार के रहते किस तरह संघ परिवार के संगठनों को और नेताओं को माला माल कर दिया जाये, और दूसरी कि किस तरह से तरह तरह के भावनात्मक मुद्दे उछाल, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कर के विभिन्न चुनावों में मतदाताओं से वोट निकलवा लिया जाये। पिछले दिनों इस सरकार ने लगभग मुफ्त के भाव संघ परिवार से जुड़ी संस्थाओं को बेशकीमती जमीनें सौंप दी हैं जिनमें से अधिकांश में दुकानें बनवा कर संस्थाओं की आय को सुनिश्चित किया जा रहा है तथा प्राप्त पगड़ी की राशि से पूरा भवन बन कर तैयार हो जाता है। भोपाल के सबसे कीमती स्थल शाहपुरा में ग्राम भारती शिक्षा समिति मध्य भारत को 8.375 हेक्टेयर और सेवा भारती समिति मध्यभारत आनन्दधाम को 51680 वर्गफीट जमीन आवंटित की गयी। सेवा भारती को ही उमरिया में 4000 वर्गफीट, अनूपपुर में 11745 वर्गफीट, जमीन आवंटित की गयी है। शाजापुर के मदाना में बप्पा रावल शिक्षा समिति को 0.418 हेक्टेयर, राजगड़ के पिप्ल्याकुर्मी में ग्रामभारती शिक्षा समिति को 0.325 हेक्टेयर, बलाघाट के बैहर में आदिवासी विकास परिषद को 5000 वर्गफीट, श्योपुर में सेवाभारती को 5बीघा 6 डिसिमल, जबलपुर के सुभाषनगर जैसे क्षेत्र में विद्यार्थी परिषद को 6983 वर्गफीट, उज्जैन के सरदारपुरा में हेडगेवार जन्म शताब्दी स्मृति समिति को 450 वर्गफीट, तथा आष्टा में माधव स्मृति शिक्षा समिति को 130680 वर्गफीट जमीन आवंटित की गयी है। जमीनों की लूट का यह सिलसिला कहीं भी रुकने का नाम नहीं ले रहा। अकेले सरस्वती शिशु मन्दिर को ही धमनार मन्दसौर में एक हेक्टेयर, शिवाजी नगर भोपाल में साथ एकड़, नौगाँव छतरपुर में 0.672 हेक्टेयर, उम्हेल उज्जैन में 0.40 हेक्टेयर, बालागुड़ा मन्दसौर में 10000 वर्गफीट, चन्देरी अशोकनगर में 1.04 हेक्टेयर पृथ्वीपुर टीकमगढ में 0.609 हेक्टेयर, मोहगाँव मंडला में 0.10 हेक्टेयर, सोनारा सतना में 7.14 एकड़, हरदा में 14350 वर्गफीट, मल्हारगढ मन्दसौर में 0.819 हेक्टेयर, अनूपपुर में 1.54 एकड़, जयेन्द्र नगर ग्वालियर में 96125 वर्गफीट, बर्डिया मन्दसौर में 1.10 हेक्टेयर, होशंगाबाद में 2 एकड़, अमरकंटक रीवा में 7.5 एकड़, मलिया खेरखेड़ा मन्दसौर में 2 हेक्टेयर, बनीखेड़ा मन्दसौर में 95538 वर्गफीट,रहेली सागर में 86111 वर्गफीट, पिप्ल्या मंडी मन्दसौर में 1000 वर्गफीट, और राजेन्द्र ग्राम अनूपपुर में 1.54 एकड़ जमीन आवंटित की गयी है।
प्रदेश का ढेर सारा पैसा राजनीतिक कामों में खर्च हो रहा है, विभिन्न कार्य व्यापार करने वालों की पंचायतें, किसान सम्मेलन, मुख्यमंत्री के पाँच साल पूरे होने पर बड़ा तमाशा, आदिवासी कुम्भ आदि में करोड़ों रुपया फूंका गया है। इतना ही नहीं सन्दिग्ध इतिहास के नायक राजा भोज की मूर्ति लगाने, भोपाल के बड़े ताल का नाम भोजताल करने और भोपाल का नाम बदल कर भोजपाल करने के प्रयास और उसके आधार पर समाज में ध्रुवीकरण पैदा करने के लिए भी सरकारी पैसा फूंका जा रहा है जबकि कभी सौ आदमियों के प्रतिनिधि मण्डल ने भी राजा भोज का पुतला लगाने या भोपाल का नाम बदलने के लिए आवेदन नहीं दिया। मुख्यमंत्री के विज्ञापन, पोस्टर और होर्डिंग लगवाने में जन सम्पर्क का पूरा बजट फूंक दिया जाता है किंतु सरकार स्वतंत्र प्रैस को विकसित करने या ईमानदार पत्रकारिता को प्रोत्साहित करने की कोई कोशिश नहीं करती जबकि केन्द्रीय सरकार तो रेल किराये में राहत देकर कुछ मदद भी करती है। दूसरी ओर चापलूस और दलाल कोटि के पत्रकारों को समाचारों को दबाने के लिए सरकार का खजाना खुला रहता है।
प्रदेश बीमार है किंतु यह कहने वाली कोई अवाज शेष नहीं है। विपक्ष है ही नहीं। प्रैस मालिकों के मुँह या तो बन्द कर दिये गये हैं, या सिल दिये गये हैं। केवल अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के आंकड़े सरकारी प्रचार का मुँह चिढा रहे हैं।


वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

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