बुधवार, अगस्त 19, 2009

क्षमावाणी पर्व दस्ताने पहिन कर हाथ छूने से मुक्त हो

परम्परा
क्षमावाणी पर्व - दस्ताने पहिन कर र्स्पश के अन्दाज से मुक्त हो
वीरेन्द्र जैन
जैन धर्माबलम्बियों द्वारा भाद्र मास में किये जाने वाले दस लक्षण व्रतों के बाद क्षमावाणी पर्व मनाया जाता है तथा एक दूसरे से गत वर्ष किये गये ज्ञात अज्ञात अपराधों के लिए क्षमा मांगी जाती है। जो रिश्तेदार और परिचित नगर से बाहर होते हैं उन्हें क्षमावाणी कार्ड भेज कर यह दस्तूर निभाया जाता है।
क्रोध और क्षमा, किसी धर्म समाज विशेष तक सीमित रहने वाले व्यवहार नहीं हैं। क्षमा किसी न किसी रूप में प्रत्येक धर्म समाज में स्वीकारी गयी है। उत्तर भारत के हिंदुओं में इसे 'गंगास्नान करना' कहा गया है जिसका अर्थ होता है कि आपने अपनी भूल स्वीकारी, प्राशचित के रूप में गंगा स्नान किया व पूजा पाठ आदि करने के बाद दान दिया जिसे आत्म दण्ड कह सकते हैं। ईसाई समुदाय में तो स्वीकरोक्ति के (कनफैसन) और प्रायशचित की विधियां प्रचलित ही हैं तथा इसके लिए प्रत्येक चर्च में एक अलग कक्ष भी होता है। क्षमा याचना, सामाजिक नैतिकता की मान्यता के साथ साथ उससे विचलन के अपराध की भी स्वीकरोक्ति भी होती है जिसका अर्थ है कि - हाँ हमसे भूल हो गयी और उसका हमें दुख है। यदि इस भाव का विकास किया जा सके तो समाज में अपराधों की संख्या आधी हो सकती है क्योंकि अपराधों की श्रंखला 'खून के बदले खून' या 'बदला लेने की भावना के कारण विस्तार पाती है। यदि हम निर्मल मन से अपनी भूल स्वीकारेंगे तो सामने वाले को भी क्षमा करने में कोई अधिक संकोच नहीं होगा। इससे समाज में तनाव कम होंगे। कुछ ही दिनों पूर्व हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1984 के दंगों के लिए सिख समाज से माफी मांगी थी तो पिछले दिनों पुलिस के धोखे में ग्रामीणों की जीप को विष्फोटों से उड़ा देने की भूल के प्रति हिंसक माने जाने वाले नक्सलवादियों ने जनता से माफी मांगी थी। आस्ट्रेलियाई पादरी स्टेन्स की पत्नी ने उसके पति और बच्चों को जिन्दा जला देने वाले विश्व हिंदू परिषद वाले दारासिंह को अपनी ओर से क्षमा कर देने की घोषणा कर दी थी, तो श्रीमती सोनिया गांधी ने भी राजीव गांधी के हत्यारों को क्षमा कर देने की घोषणा की थी।
खम्मामि सव्वे जीवाणु
सव्वे जीवाणु खमंतु मे
( अर्थात, मैं सारे जीवों को क्षमा करता हूँ और सारे जीव मुझे क्षमा करें)
जब हम लोग पश्चिमी बाजार के झांसे में आकर मदर्सडे, फादर्सडे, हस्बैंडडे, वेलेन्टाइन डे, आदि मनाने लगे हैं तो हमें अपने देश में मनाये जाने वाले क्षमा दिवस व भाई बहिन दिवस (रक्षाबंधन) को क्यों प्रचारित नहीं करना चाहिये ।इन दिवसों को यदि हम धार्मिक बंधनोें से मुक्त कर सकें तो ये महत्वपूर्ण दिवस अधिक विस्तार पा सकेंगे। क्षमा की जरूरत प्रत्येक धर्म पालन करने वाले समाज को है तथा भाई बहिन के स्नेहिल संबंधों को आदर देना किस धर्म के लोगों को बुरा लगेगा! पश्चिम से आये दिवस तो बाजार उत्प्रेरित दिवस हैं पर क्षमा दिवस या भाई बहिन दिवस तो हमारी संस्कृति के स्वाभाविक आयोजन हैं जो बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
प्रत्येक परंपरा में समय के साथ साथ कुछ विकृत्तियां घर करने लगती हैं। जैन समाज में क्षमा पर्व का भी रूढियों की तरह लकीर पीटने जैसे काम की तरह निर्वहन किया जाने लगा है। धार्मिक रूढि पालने की मजबूरी के अंर्तगत मन में क्षमाभाव लाये बिना अस्पष्ट लक्ष्य से क्षमा मांगने वाले शब्द उच्चारित कर दिये जाते हैं और वैसे ही क्षमा देने की घोषणा भी कर दी जाती है। इस पर्व का सच्चे मन से अनुपालन तब ही हो सकेगा जब हम व्यक्ति विशेष से की गयी भूल का उल्लेख करते हुये क्षमा मांगेंगे और उसी तरह से क्षमा भी करेंगे। यह अहंकार के नाश का प्रथम चरण है।
इस पर्व के परिपालन में दूसरी भूल यह हो रही है कि नववर्ष दीपावली आदि पर्वों की भांति क्षमावाणी कार्ड भेजे जाने लगे हैं जो कई बार तो बड़े लोगों के कर्मचारी ही सूची देख कर भेज देते हैं व सेठजी को पता ही नहीं होता कि उन्होंने किस किस से लिखित में क्षमा याचना की है और किस किस को क्षमादान दिया है। ये मुद्रित क्षमावाणी कार्ड देख कर दुष्यंत कुमार की वे पक्तिंयां याद आती हैं-
आप दस्ताने पहिन कर छू रहे हें हाथ को-
दर असल ऐसे कार्डों का पर्व की मूल भावना से कोई सरोकार नहीं है। क्षमावाणी कार्ड स्वयं के हाथों से लिखा हुआ होना चाहिये जिससे उनमें भावना का समावेश हो सके।
जैन समाज साफसुथरी जीवनशौली वाला एक सम्पन्न समाज है और वह विभिन्न तरह के धार्मिक कर्मकांडों में अपने अतिरिक्त अर्जित धन का हिस्सा लगाता रहता है।यदि वह इसी धन का एक बड़ा हिस्सा क्षमापर्व के प्रचार में कुछ इस तरह से व्यय करे कि यह धार्मिक प्रचार न लगे तो सचमुच दुनिया में एक स्वस्थ परंपरा का विकास हो सकेगा।

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

3 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय विरेन्द्रजी
    पर्युषण पर्व पर आपने जो बताया वो आजके प्रसग मे बडा ही उपयोगी है दुनिया मे अगर ईस महापर्व को समझा जाए तो बहुत सी समस्याओ के हल स्वत ही समाहीत हो जाएगे....आप जैन धर्म पर लिखते रहे....
    आत्म दर्शन का पर्व है पर्यूषण
    शुक्रिया
    हे प्रभू द्वारा शुभ मगल!
    आभार
    मुम्बई टाईगर
    हे प्रभू यह तेरापन्थ

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  2. यदि आपको अच्छा लगा तो कृपया अपने ब्लॉग पर सूचना डालें

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  3. एक परम्परा का निर्वहन भले ही लगे, मगर समाज व परिवारों में इस दिन बहुत से मनमुटाव खत्म होते देखे गए हैं. इसलिए मुझे यह पसन्द है. एक दिन हमें मौका मिलता है. चाहें तो रस्म अदायगी कर लें चाहे तो लाभ उठा लें....

    आपकी पोस्ट देख प्रसन्नता हुई.

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