सर्दी से मौतें और बेतरतीब फैले धर्म स्थलों में जमा पैसा
वीरेन्द्र जैन
गत दिनों से लगातार समाचार आ रहे हैं कि उत्तर भारत में पड़ रही जबरदस्त ठंड से सैकड़ों मौतें हो गयीं हैं और यह सिलसिला लगातार ज़ारी है। यह कोई ऐसी आपदा नहीं है कि जिसका कोई उपाय नहीं हो। अगर ऐसा होता तो किसी भी नगर के अधिकांश लोगों को काल के गाल में समा जाना चाहिये था, किंतु मौतें उन्हीं की हुयीं हैं जिनके पास न तो रहने के लिये कोई सुरक्षित स्थान था ना पहनने ओड़ने, बिछाने के लिये कपड़े थे, और ना ही सर्दी से प्राकृतिक रूप से मुक़ाबला करने के लिये पेट में भोजन था। दूसरी ओर देश में दिन प्रति दिन कुकरमुत्तों की तरह धर्म स्थल फैलते जा रहे हैं और इन धर्मस्थलों के पास अटूट पैसा जुड़ता जा रहा है जिस कारण इन धर्म स्थलों में मुफ्त में माल मलाई चर रहे हरामखोरों के व्यभिचार की कहानियाँ दिन प्रति दिन प्रकाश में आ रही हैं, और इसी पैसे के कारण कई बार हत्यायें तक होती रहती हैं। प्राकृतिक आपदाओं के समय इन धर्म स्थलों के दरवाज़े क्यों नहीं खुल जाते और भूख और मौसम के प्रकोप से मरते लोगों के लिये धर्मस्थलों के नाम पर ज़मा धन क्यों उपयोग में नहीं आता। आखिर उक्त धन काहे के लिये जोड़ कर रखा जा रहा है। एक विद्वान के कथन के अनुसार पुजारी, साधु, सन्यासी वही है जिसे ईश्वर पर विश्वास है और जिसे ईश्वर पर विश्वास है वह शाम के खाने को नहीं जोड़ता क्योंकि उसे भरोसा होता है कि अगर वह सच्चा भक्त है तो उसके शाम के खाने का इंतज़ाम भी हो ही जायेगा। यही कारण है कि सच्चे पुजारी और सन्यासी संग्रह नहीं करते, और जो संग्रह करते हैं उनका सन्यास झूठा है। किसी समाज में अगर भूख और मौसमों के प्रकोप से मौतें हो रही हैं तो उस समाज में स्थापित धर्म स्थल और उसके कर्ता धर्ता अधार्मिक और पाखण्डी हैं। अगर धर्म स्थल मौसम के प्रकोप से मरते हुये लोगों को आश्रय नहीं दे सकते तो या तो वह धर्म गलत है या उसके ठेकेदार कहीं उसके साथ धोखा कर रहे हैं। इन मौतों का हिसाब सम्बन्धित क्षेत्र के धर्म स्थलों के प्रबन्धकों से लिया जाना चाहिये क्योंकि वे धर्म के घोषित और पवित्र उद्देश्यों के नाम पर अटूट सुविधायें पा रहे हैं जबकि व्यवहार में वे उस धर्म के घोषित सिद्धांतों को कलंकित कर रहे हैं। रामकथा के अनुसार साधु का झूठा भेष बनाकर सीता हरण करने वाला रावण भी अंततः राम के तीर का शिकार बनता है अर्थात झूठे भेष के कारण अपराधी क्षमा का पात्र नहीं हो सकता। जो लोग प्रत्येक अस्वाभाविक मृत्यु में मरने वाले की जाति और धर्म पूछते है वे गरीबी की मार से मारे गये इन लोगों का धर्म पूछने के लिये नहीं आये कि मृतक किस धर्म के थे, क्योंकि इससे उनकी और उनके धार्मिक संस्थानों की ज़िम्मेवारी सामने आती है।
इस निर्मम दौर में पाखण्डियों की नक़ाबें नोंची जाना चाहिये तब ही सच्चा और मानवीय धर्म सामने आ सकेगा। जितने लोगों की मौतें हुयीं हैं कम से कम उतने धर्म स्थलों को दरिद्र नारायणों के निवासों में परिवर्तित हो जाना चाहिये तभी सच्चा प्राश्चित होगा। इंगलेंड में निरंतर चर्च घट रहे हैं, तो हमारे यहाँ धर्म स्थल क्यों नहीं हट सकते।
वीरेन्द्र जैन
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सही बोल रहे हैं आप |
जवाब देंहटाएंअरे भाईसाहब भाई लोग पहले ही घोषणा कर चुके हैं-- देवो दुर्बलः घातकः!!
जवाब देंहटाएंइस निर्मम दौर में पाखण्डियों की नक़ाबें नोंची जाना चाहिये तब ही सच्चा और मानवीय धर्म सामने आ सकेगा। जितने लोगों की मौतें हुयीं हैं कम से कम उतने धर्म स्थलों को दरिद्र नारायणों के निवासों में परिवर्तित हो जाना चाहिये तभी सच्चा प्राश्चित होगा।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लिखा आपने !!