शनिवार, जून 12, 2010

यह उसका जन्म दिन था जो अब नहीं है


12 जून उसका जन्म दिन था जो अब नहीं है
वीरेन्द्र जैन
आज 12 जून है
आज उसका जन्म दिन है।
है नहीं था, क्योंकि वह अब इस दुनिया में नहीं है। वैसे जो लोग दुनिया में नहीं रहते उनका भी जन्म दिन मनाया जाता है, पर इस मामले में ऐसा नहीं है। यह जन्म दिन उसके जाने के साथ ही चला भी गया।
यह एक पहेली नहीं है, एक सच्चाई है, एक कठोर सच्चाई। और यह सच्चाई इस तरह है कि यह तारीख मेरे स्कूल सार्टिफिकेट में लिखी हुयी है, मेरी जन्म तिथि के रूप में। पर मुझे उसका पता ही नहीं था। अब ऐसा भी नहीं है कि बिल्कुल पता नहीं था, जब भी कभी कोई फार्म भरना होता जिसमें जन्म तिथि का कालम होता तो यह तिथि याद आ जाती। वैसे नौकरी की आपाधापी में यह तिथि जाने कब निकल जाती पता ही नहीं चलता। हाँ कभी उम्र गिनना होती तो उस तिथि का निकल जाना याद आता था।
पर जबसे उससे दोस्ती हुयी उसे यह तिथि याद रहती थी। ऐसा नहीं कि उसने अपने मोबाइल में फीड कर रखी हो और सुबह सुबह उसकी घंटियाँ उसे याद दिला जाती हों, अपितु ऐसा भी होता था कि हफ्तों पहले उसके पास कोई 12 जून की किसी दावत या कार्यक्रम का निमंत्रण लेकर आता तो उसे याद रहता कि उस शाम वह फ्री नहीं है, उस शाम उसे मेरे साथ बाहर डिनर पर जाना है।
सुबह सुबह फोन की बजने वाली घंटी उसकी ही होती थी और औपचारिक ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ चुहलबाजी भी होती थी जिसमें इतनी उम्र दराज़ होने की बातें होती थीं जिस उम्र और दशा में जीना बोझ लगने लगता है। फिर शाम का प्रोग्राम तय होता जिसमें मैं उसकी पत्नी और वह मिला कर कुल तीन लोग होते। तीनों लोग मिल कर साथ शाकाहारी खाना खाते और फिर उसके बाद आइसक्रीम खाते थे। जाते जाते वह एक बार फिर गले मिल कर बधाई देता और हम अलग हो जाते। उसने पहले से तय कर रखा था कि मेरा साठवाँ जन्म दिन किस साल पड़ेगा और उस साल बड़ा जश्न होना चाहिए। मेरे जैसे संकोची जीव के लिए वह सचमुच असहज था किंतु उसके द्वारा तय किया हुआ कार्यक्रम असफल नहीं हो सकता था। मेरे मना करने पर उसने कहा भई ज़िन्दगी में आदमी एक बार ही साठ साल का होता है हर साल तो नहीं होता। सो उसने मुझ पर केन्द्रित एक पत्रिका का विशेषांक निकलवाया, हाल बुक किया, एक संस्था को आयोजन की ज़िम्मेवारी सौंपी, सभी साहित्यिक बिरादरी को आमंत्रित किया तथा भोपाल के पूरे मीडिया को सूचित करने के लिए अपने स्टेनो को लगाया और एक साधारण सा आयोजन एक भव्य आयोजन में बदल गया।
शायद उसे आभास भी नहीं रहा होगा कि यह अंतिम जन्म दिन है। गत 19 अप्रैल को वह अपने रिटायर्मेंट से पहले वाली आखिरी एल टी सी में शेष रह गये देश को देखने निकला था और हरिद्वार से टिहरी की ओर जाते हुये उसकी कार एक हजार फीट गड्ढे में गिरी जिसमें पति पत्नी दोनों ही नहीं बचे। जन्म दिन की कथा उसी से शुरू हुयी थी और उसी के साथ ही खत्म भी हो गयी तो मैं कैसे कह दूं कि यह मेरा जन्म दिन है, यह तो उसका जन्म दिन था जो उसी के साथ ही खत्म भी हो गया, जो अब कभी नहीं आयेगा।
उस दोस्त का नाम था ज़ब्बार ढाकवाला जो एक वरिष्ठ आई ए एस ही नहीं एक कवि व्यंगकार कथाकार भी था और जो अपनी पत्नी तरन्नुम ढाकवाला के साथ रिटायरमेंट से पहले वाली आखिरी एल टी सी में देखने को शेष बचे रह गये देश का भ्रमण करने निकले थे व उत्तरपूर्व के यात्रा के बाद उत्तरांचल में टिहरी के पास एक हज़ार फीट गहरी खाई में कार के गिर जाने पर एक साथ जीने मरने का वादा निभाते हुए चल बसे।
असल में 12 जून, मेरा नहीं, उसका जन्म दिन था जो उसी के साथ चला गया।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629








3 टिप्‍पणियां:

  1. जैन साहब, जब्बार भाई का जाना निःसंदेह दुखदाई रहा एक-डेढ़ वर्ष पूर्व हम लोग U A E गये थे जहाँ वे एक स्थानीय कार्यक्रम कें पति-पत्नी दोनों मेरे साथ नाच रहे थे [विडिओ अब भी मेरे पास है ] तब मैंने और राजुरकर राज ने कहा कि मत नाचो वर्ना फोटो खींच कर भोपाल नें दिखाऊंगा, सस्पेंड हो जाओगे वे बोले डराओ मत यार नाच लेने दो खुला वातावरण,दोस्तों का साथ और सुकून भरा वक्त कम मिलता है नाचने दो .और वाह नियति अब वो हमारे बीच नहीं हैं .

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  2. कष्टप्रद! स्नेही आत्मीय का जाना और उन्हें खोने की पीड़ा बड़ी भयावह होती है।
    उनकी आत्मा की सद्‍गति के लिए आकांक्षी हूँ।

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