रविवार, मई 17, 2020

समय पूर्व प्रसव से धर्मस्थलों की स्वर्ण सदुपयोग योजना पर प्रभाव


समय पूर्व प्रसव से धर्मस्थलों की स्वर्ण सदुपयोग योजना पर प्रभाव  
वीरेन्द्र जैनसरकार की तैयारीः उत्तराखंड के ...
राजनीति ऐसी पेंचदार होती है, कि इसमें जो दिखता है वह होता नहीं और जो होता है वह दिखता नहीं। जब गुजरात में आनन्दी बेन पटेल की जगह नये मुख्यमंत्री की ‘नियुक्ति’ होनी थी और देश विदेश का पूरा मीडिया नितिन भाई पटेल के नाम की लगभग घोषणा कर चुका था,  तब एक टीवी चर्चा में गुजरात के एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा था कि मोदी के फैसले चौंकाने वाले होते हैं और उनका पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता। हुआ भी यही था और उनकी जगह विजय रूपाणी को मुख्यमंत्री की शपथ दिलायी गयी थी। नितिन पटेल को उपमुख्यमंत्री के रूप में संतोष करना पड़ा था।
हाल ही में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने कोरोना के अभूतपूर्व संकट से निबटने के लिए मन्दिरों में जमा अटूट सोने के सदुपयोग से आर्थिक संकट का हल निकालने का सुझाव दिया है। इस सुझाव की अच्छाई बुराई से भिन्न, सुझाव देने वाले की हैसियत व समय महत्वपूर्ण है। श्री चौहान दिग्विजय सिंह, शशि थरूर, जयराम रमेश आदि की तरह निरंतर बयान देने वाले नेता की तरह नहीं जाने जाते रहे हैं। यह भी तय था कि भाजपा काँग्रेस के बीच जो राजनीतिक रिश्ता है उसमें अगर एक सूरज के पूरब से उगने की बात करता है तो दूसरा सीधे नहीं मानेगा अपितु कम से कम विचार के बाद उत्तर देने की बात करेगा। इसलिए भाजपा के लम्पट छुटभैयों द्वारा उनके बयान का सीधा विरोध प्रत्याशित था। विश्व हिन्दू परिषदियों, बजरंगियों, और भगवाभेषधारी राजनेताओं द्वारा तुरत प्रतिक्रिया प्रत्याशित थी और ऐसा हुआ भी। उन्होंने तुरंत ही इसे हिन्दू विरोधी काँग्रेसियों, विशेष रूप से विदेशी और ईसाई का विशेषण का प्रयोग करते हुए सोनिया गाँधी पर अभद्र भाषा में शाब्दिक हमला शुरू कर दिया। पहले भाजपा की और अब काँग्रेस व एनसीपी की सहयोगी शिवसेना हतप्रभ होकर रह गयी। ऐसा ही हाल भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का भी हुआ जो अर्थ व्यवस्था में दखल रखते हैं और जानते हैं कि पैसा वहीं से निकलेगा जहाँ गया है। जिन मतदाताओं के समर्थन से सत्ता मिलती है उनकी भावनाओं को दुलराते हुए कैसे पैसा निकलवाया जा सकता है यह नेतृत्व का कौशल होता है।
हमारे देश में धन को लक्ष्मी कहा गया है और लक्ष्मी को चंचल माना गया है। इसको अर्थशास्त्र के इस सिद्धांत से समझा जा सकता है कि “ एक व्यक्ति का खर्च, दूसरे की आमदनी बनता है” अर्थात धन के चलायमान होने से ही प्रगति के रथ को गतिमान बनाया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि हिन्दुओं के धर्मस्थल ही वे स्थान रहे हैं, जहाँ इस्लाम की जकात या ईसाइयों के स्कूल अस्पताल जैसे मिशनरी कार्यों की परम्परा नहीं रही है। यही कारण रहा कि उनके धर्मस्थलों में धन के भंडार रहे व इन्हीं भंडारों की लूट के लिए उन पर विधर्मी राजाओं के हमले होते रहे। इन्हीं हमलों के बारे में साम्प्रदायिकता से लाभांवित होने वाली राजनीति धर्म आधरित हमले लिखवा कर अपना हित साध रही है। किसी के धर्मस्थल को तोड़ कर उसे भावनात्मक चोट तो पंहुचायी जा सकती है किंतु उसके धर्म पर विजय नहीं पायी जा सकती। इसके उलट चोटिल व्यक्ति अपने धार्मिक विश्वासों के प्रति और अधिक कट्टर होता जाता है।   
भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी और नरेन्द्र मोदी दोनों ही सरकारों की निगाह मन्दिरों के धन पर रही है। यह निगाह गैर भाजपा सरकारों की भी रही होगी किंतु वे इसको छेड़ने के अधिकारी नहीं थे क्योंकि ऐसा करने पर भाजपा तुरंत ही साम्प्रदायिक पलटवार करके न केवल योजना को असफल करा सकती थी अपितु उसका राजनीति में साम्प्रदायिक लाभ भी ले सकती थी। सबसे पहले अटल जी की सरकार 1999 में स्वर्ण जमा योजना 1999’ लेकर आयी जिसका लक्ष्य अनुपयोगी सोने को अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में लाना और जमाकर्ता को लाभ व सुरक्षा देना घोषित किया गया था। इससे आयात घटाने में देश का लाभ होता। इसका प्रमुख लक्ष्य भी मन्दिरों में जमा सोना ही था। इसके बाद 2015 में नरेन्द्र मोदी की सरकार गोल्ड मोनेटाइजेशन योजना लेकर आयी जो सोने को मुद्रा में बदल कर उस पर दो प्रतिशत ब्याज भी दे रही थी व समय पर सोने में ही वापिसी का आश्वासन भी दे रही थी। ये दोनों ही योजनाएं अच्छी योजनाएं थीं किंतु वांछित सफलता नहीं पा सकीं।
मन्दिरों के स्वर्ण भंडार को देश हित में लगाने का इससे अच्छा अवसर दूसरा नहीं हो सकता। नरेन्द्र मोदी की सरकार न केवल पूर्ण बहुमत वाली सरकार है अपितु पूरी तरह एक ऐसे व्यक्ति की सरकार है जिसके कार्यकर्ता से लेकर नेता तक मोदी की इच्छा के खिलाफ बोलने का साहस नहीं रखते। उनका शब्द ही अंतिम शब्द होता है। उन्होंने सभी वरिष्ठ नेताओं को किनारे बैठा दिया है। पत्रकार लोग मजाक में यह भी कहते हैं कि आज अगर मोदी कह दें तो भाजपा के 90 प्रतिशत लोग इस्लाम स्वीकार करने को भी तैयार हो सकते हैं। इसका एक संकेत आसाराम बापू की गिरफ्तारी के समय दिखा था। सामान्य तौर पर हिन्दू साधु संतों के नाम पर अपनी रोटियां सेंकने वाले भाजपा नेता इनकी गिरफ्तारी के समय उत्तेजक बयान देने लगे थे जिनमें उमा भारती, कैलाश विजयवर्गीय और रमन सरकार के गृहमंत्री जैसे अनेक लोग सम्मलित थे। किंतु मोदी के एक इशारे पर सारे लोग भीगी बिल्ली की तरह चुप हो कर दुबक गये थे। यदि मोदी ने इशारा नहीं किया होता तो आज आसाराम जेल में नहीं होते। उल्लेखनीय है कि अहमदाबाद की एक अतिक्रमण विरोधी घटना में वे मोदी से टकरा चुके थे।
उल्लेखनीय है कि जब श्रीमती इन्दिरा गांधी पोखरण में बम विस्फोट करने वाली थीं, जिसकी भनक अटल बिहारी वाजपेयी को लग गयी थी। उन्होंने तब से ही देश की सरकार से परमाणु शक्ति का देश बनने की मांग शुरू कर दी थी। राजनीति में श्रेय लेने के खेल बहुत चलते हैं। पृथ्वी राज चौहान ने शायद ऐसे ही समयपूर्व खुलासे की राजनीति की हो। कोरोना संकट तो अप्रत्याशित है किंतु सीमा पर टकराव या राफेल जैसे मंहगे हथियारों की खरीद के लिए धर्मस्थलों से सहयोग प्राप्त किया जा सकता है। जब बिना किसी योजना के धन एकत्रित है तो उसका इससे बेहतर उपयोग क्या होगा कि उसे संकट काल में देश के हित में उपयोग में लाया जाये। जब विपक्ष के नेता पहले ही कह चुके हों तो सराकारे पक्ष को और आसानी होगी।   
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629


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