बुधवार, मार्च 14, 2018

समीक्षा निमकी मुखिया सीरियल दूसरा राग दरबारी है


समीक्षा
निमकी मुखिया सीरियल दूसरा राग दरबारी है

वीरेन्द्र जैन
हिन्दी टीवी चैनल स्टार भारत पर इन दिनों  ‘निमकी मुखिया’ नाम से एक सीरियल चल रहा है। इस सीरियल के लेखक निर्देशक है ज़मा हबीब जो वैसे तो थियेटर आर्टिस्ट से लेकर अनेक चर्चित भोजपुरी फिल्मों और सीरियलों के लेखक रहे हैं किंतु उक्त सीरियल के बाद उनकी ख्याति बहुत फैलने वाली है। मैं बहुत जिम्मेवारी के साथ कह रहा हूं कि इस सीरियल की कहानी को दूसरी राग दरबारी कहा जा सकता है और 48 वर्षीय ज़मा हबीब को मनोहर श्याम जोशी की तरह का पटकथा लेखक माना जा सकता है। ‘बुनियाद’ ‘हमलोग’ और ‘कक्काजी कहिन’ जैसे सीरियलों में जो स्थानीयता के सहारे देश व व्यवस्था के दर्शन हुये हैं, वही गुण ‘निमकी मुखिया’ में विद्यमान हैं।
इस सीरियल में यथार्थ के साथ ऐसे घटनाक्रमों से कहानी आगे बढती है जो कल्पनातीत हैं और दर्शक की जिज्ञासा को एपीसोड दर एपीसोड बढाते रहते हैं। कहानी का विषय तो अब अज्ञात नहीं है किंतु उस पर कथा का विषय मोड़ दर मोड़ ऐसे बुना गया है कि रागदरबारी उपन्यास की तरह पेज दर पेज व्यंग्य आता रहता है। कहानी एक ऐसी लड़की को केन्द्रित कर के बुनी गयी है जिसकी मां किसी के बहकावे में आकर अपने तीन छोटे बच्चों को छोड़ कर फिल्मों में गाने के लिए मुम्बई चली जाती है, और असफल हो जाने पर आत्महत्या कर लेती है। लड़की का भावुक और भला पिता रामवचन जो छोटी मानी जाने वाली जाति का है, उन जातियों के हासिये पर बनाये गये मुहल्ले में रहता है व किराये से यूटिलिटी वाहन चलाने का काम करता है। वह अपने बच्चों को बेहद प्यार से पालता है जिसमें बड़ी बेटी निमकी तो बहुत ही लाड़ली है जिसकी हर इच्छा पूरी करने में वह कोई कोर कसर नहीं छोड़ता। आज के युवाओं की तरह निमकी के सपने भी हिन्दी फिल्मों से प्रभावित होकर बने हैं और वह खुद को दीपिका पाडुकोण समझती है व किसी सम्पन्न परिवार के इमरान हाशमी जैसे सुन्दर युवा से शादी का हैसियत से बाहर का सपना पालती रहती है। शोले की बसंती की तरह मुँहफट और मुखर निमकी बीमारू राज्यों की शिक्षा व्यव्स्था की तरह नकल और सिफारिश से डिग्री अर्जित करती है, व अपने मुहल्ले के गरीब पड़ौसी सहपाठी से अपने काम निकलवाती है किंतु अपनी महात्वाकांक्षाओं के कारण उसे प्रेम के योग्य नहीं समझती।
पंचायती राज आने के बाद आम गांव की तरह क्षेत्र के मुखिया पद के दो दावेदार है जिनमें एक वर्तमान मुखिया तेतर सिंह और दूसरा नाहर सिंह। भूमिहार जाति के तेतर सिंह पूर्व जमींदार जैसे परिवार से हैं व बड़ी कोठी में समस्त आधुनिक सुख सुविधाओं के साथ दबंगई से रहते हैं। वे अपनी कम शिक्षा के कारण अपने वकील दामाद को घर जमाई बना कर सरकारी लिखा पड़ी का काम करवाने के साथ विधायक बनने की महात्वाकांक्षा पूरी करने के इंतज़ाम में भी लगाये हुए हैं। उनके तीन लड़के हैं जिनमें से एक जो विवाहित है ईमानदारी से कोई धन्धा करना चाहता है किंतु अनुभवहीन होने के कारण असफल रहता है इसलिए तेतर सिंह उसे कोई भाव नहीं देते। दूसरा लड़का बब्बू सिंह ऐसे परिवारों में विकसित होने वाले आज के युवाओं की तरह ही लम्पट और गुस्सैल है व अपनी पारिवारिक परम्परा के अनुसार सारा काम बन्दूक व पिस्तौल से हल होने में भरोसा करता है। राजधानी के नेता से संकेत मिलता है कि विधायक का पद उसे ही मिलेगा जिसके पास मुखिया का पद होगा इसलिए वे बब्बू सिंह को मुखिया बनवा कर खुद विधायक का पद जुगाड़ना चाहते हैं। अपनी सम्पन्नता, दबंगई, ऊंची जाति, और वर्षों से जमींदारी व मुखिया पद भोगते वे इसे सहज भी समझते हैं। चुनाव घोषित होने से पहले ही वे क्षेत्र में बब्बू सिंह के बड़े बड़े पोस्टर और कट आउट लगवाते हैं जिसे देख कर निमकी उनमें अपनी कल्पना के नायक की छवि देखती है।
दूसरी ओर तेतर सिंह के विरोधी गुट का नाहर सिंह इस बार मुखिया पद हथियाने के प्रयास में जुटा हुआ है और वह राजनीतिक कौशल से मुखिया बनना चाहता है, इसलिए छोटी जाति के मुहल्ले में भी अपने सम्पर्क बनाये हुए है। इसी बीच एक विधुर बीडीओ जिसके एक छोटी बच्ची है, गाँव में पदस्थ होता है व रामवचन के वाहन को कार्यालय हेतु स्तेमाल करने के अहसान के बदले अपने घर का इंतजाम करने की सेवाएं लेता है। इसमें खाना पहुंचाने का काम निमकी को करना होता है। वह एक ओर तो आधुनिक सुख सुविधाओं वाले घर में जाकर अपने सपनों को दुलराती है तो दूसरी ओर बीडीओ की छह सात वर्ष की मासूम अकेली बच्ची के साथ परस्पर स्नेह बन्धन में बँध जाती है।
घटनाक्रम इस तरह आगे बढता है कि मुखिया का पद छोटी जाति की महिला के लिए आरक्षित हो जाता है और तेतर सिंह अपनी घरेलू नौकरानी को पद के लिए उम्मीदवार बना देता है। दूसरी ओर उसका विरोधी नाहर सिंह अपनी ओर से निमकी को मुखिया पद के लिए उम्मीदवार बनवा देता है व अपनी ओर से पैसा खर्च करता है। उसे छोटी जाति के घाट टोला के लोग एकमुश्त समर्थन देते हैं व बीडीओ भी उनका साथ देता है। परिणामस्वरूप निमकी मुखिया बन जाती है व तेतर सिंह के सपनों को ठेस लगती है और वह लगभग विक्षिप्त सा हो जाता है क्योंकि उसके टिकिट मिलने की सम्भावनाएं भी थम जाती हैं। आवेश में वह मुखिया पद घर में बनाये रखने के लिए अपने बेटे बब्बू सिंह की शादी निमिकी से करने का फैसला कर लेता है जिसका भरपूर विरोध उसके घर के सारे सदस्य करते हैं किंतु बन्दूक के जोर पर वह अपनी बात इस आधार पर मनवा लेता है कि निमकी केवल मुखिया पद को घर में रखने व विधायक का टिकिट लेने भर के लिए बहू बना रहे हैं। निमकी और उसके परिवार को यह कह कर बहला देता है कि बब्बू सिंह को निमकी से प्यार हो गया है, व वे जिद कर रहे हैं इसलिए वह छोटी जाति में शादी कर रहे हैं व शादी का पूरा खर्च भी उठा रहे हैं।
सीरियल में हर घटनाक्रम चौंकाता है, व हँसाता है। पात्रों के अनुरूप कलाकारों का चयन और उनके द्वारा भूमिका का निर्वहन इतना परिपूर्ण है कि कथा यथार्थ नजर आती है। भोजपुरी भाषा, मधुबनी की शूटिंग, पात्रों का चयन, पारिवारिक सम्बन्धों, प्रशासन व व्यवस्था की सच्चाइयां, क्रोध, जुगुप्सा, और हास्य तीनों पैदा करती हैं। बीडीओ की छोटी बच्ची समेत सबका अभिनय इतना मंजा हुआ है कि किसी कलाकार विशेष की प्रशंसा की जगह निर्देशक की प्रशंसा ही बार बार उभरती है। इतना जरूर है कि केवल हिन्दी फिल्मों के प्रभाव में गाँव को कुछ अधिक ही चमकीला प्रस्तुत कर दिया गया है जहाँ पर गरीबी और बेरोजगारी दिखायी नहीं देती। सीरियल देखने लायक है और इसमें फिल्म के रूप में रूपांतरण की सम्भावनाएं मौजूद हैं।  
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग, रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 09425674629


                   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें