बुधवार, फ़रवरी 25, 2015

निर्मम शल्य चिकित्सा ही काँग्रेस का सर्वोत्तम उपचार है



निर्मम शल्य चिकित्सा ही काँग्रेस का सर्वोत्तम उपचार है
वीरेन्द्र जैन
       2014 के आम चुनावों में अपनी सबसे बड़ी पराजय के बाद भी काँग्रेस सबसे बड़ा विपक्षी और इकलौता राष्ट्रव्यापी दल है जो देश के प्रत्येक राज्य में अपनी उपस्थिति रखता है और उसका वहाँ संगठन मौजूद है। इस आम चुनाव में भी उसे देश के हर कोने से लगभग दस करोड़ मत प्राप्त हुये हैं। काँगेस वह इकलौता दल है जो देश की सांस्कृतिक विविधिता को ही नहीं अपितु राजनीति की विभिन्न धाराओं के बीच समन्वय बना सकने में सफल रहा है। जो लोग भी सच्चे दिल और साफ समझ से राष्ट्र की चिंता करते हैं वे इस कालखण्ड में काँग्रेस की पक्ष या विपक्ष में कम या ज्यादा उपस्थिति की अनिवार्यता समझते हैं और समतुल्य विकल्प के बिना काँग्रेस मुक्त भारत के नारे को सबसे बड़ा राष्ट्रद्रोही नारा समझते हैं।
       राम मनोहर लोहिया को श्रद्धांजलि देते हुए श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा ने मासिक पत्रिका कादम्बिनी में एक लेख लिखा था। तारकेश्वरी जी नेहरू मंत्रिमण्डल में उप वित्तमंत्री थीं और शायरी की ह्रदयस्पर्शी भाषा में अपनी बात कहने के कारण बहुत ही लोकप्रिय चित्ताकर्षक युवा और मुखर मंत्री थीं। उन दिनों डा, लोहिया विपक्ष के सबसे प्रखर नेता हुआ करते थे और नेहरू जी की आलोचना का कोई अवसर नहीं छोड़ते थे। इस आलोचना में वे नेहरू जी के कुत्ते पर ही नहीं अपितु टायलेट के खर्च को भी विषय बना देते थे। इस लेख में तारकेश्वरी जी लिखती हैं कि मैंने जब एकांत में लोहिया जी से पूछा कि आप इतने बड़े चिंतक और सुलझे हुये व्यक्ति हैं तो देश के ह्रदय सम्राट नेहरूजी की इतने निम्न स्तर पर आलोचना क्यों करते हैं तो उन्होंने बहुत गम्भीरता से उत्तर देते हुए कहा था कि तारकेश्वरी यह मूर्तिपूजकों का देश है और लोगों ने नेहरूजी की भी मूर्ति बना ली है। नेताओं की यह मूर्तिपूजा देश के लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है और मैं इस मूर्ति को तोड़ना चाहता हूं। मैं चाहता हूँ कि राजनेता जनता की भाषा के साथ देशवासियों के बीच में अपने गुणों अवगुणों के साथ उपस्थित हों। मैं नेहरू की जनता से दूरी को तोड़ना चाहता हूं।  
       देश में सत्तारूढ होने के बाद काँग्रेस के पास में दुहरा काम था। एक ओर तो उसे एक अहिंसक आन्दोलन के रास्ते साम्राज्यवाद और सामंती प्रभाव से निकली जनता की चेतना को जागृत करना था तो दूसरी ओर अनेक तरह की रूढियों से ग्रस्त इसी जनता से जनादेश भी प्राप्त करना था। इसी के साथ उसे एक लोक कल्याणकारी शासन भी चलाना था। लोकतंत्र के शैशवकाल वाले नेहरूजी के शासन में जमींदारी उन्मूलन और हिन्दू कोड बिल लाने समेत सैकड़ों प्रगतिशील काम हुये। जनहित में किये जा रहे ये काम बच्चे की बीमारी को दूर करने के लिए उसे कढवी दवा खिलाने जैसे थे। प्रतिगामी शक्तियों के उभरने के साथ श्रीमती इन्दिरा गाँधी के शासन काल से यह जिम्मेवारी और बढ गयी इसलिए उन्होंने जहाँ एक ओर समाजवाद व गरीबी हटाओ का नारा देते हुए पूर्व राजा महाराजाओं के प्रिवी पर्स व विशेष अधिकारों की समाप्ति के साथ बैंकों व बीमा कम्पनियों के राष्ट्रीयकरण जैसा बड़ा कदम उठाया तो दूसरी ओर अपनी छवि को पार्टी के केन्द्र में लाकर कथित मूर्तिपूजकों के बीच अपने माध्यम से काँग्रेस की लोकप्रियता को बनाये रखा। किताबी राजनीति करने वाले आलोचक इसे काँग्रेस की कमजोरी का प्रारम्भ मानते हैं। सिद्धांतों वाली राजनीति की बहस के बीच यह सच भी हो सकती है किंतु जब निराट निरक्षर और राजनीतिक चेतना से कमजोर नागरिक का एक वोट भी उतना ही महत्व रखता हो तब हर वोट कीमती होता है और यह भी देखना होता है कि चुनावी मुकाबला किसके साथ है, सो उसने दोनों जहान साधने की साधना की। यह समन्वय ही काँग्रेस का गुण रहा है जिसने उसे लम्बे समय तक सत्ता में बनाये रखा।
       श्रीमती गाँधी के सत्ता सम्हालते ही विरोधियों ने काँग्रेस पर खानदानी शासन का आरोप लगाना शुरू कर दिया था जबकि सचाई यह है कि खानदानी शासन तब होता है जब किसी जैविक वारिस को क्रमशः सत्ता मिलती रहे। नेहरू जी की मृत्यु के बाद शासन श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने नहीं अपितु काँग्रेस के सच्चे सरल गाँधीवादी लाल बहादुर शास्त्री ने सम्हाला था। शास्त्रीजी के असामायिक निधन के बाद भी शासन उनके किसी पुत्र को न मिल कर श्रीमती इन्दिरा गाँधी को मिला था और जिसके लिए श्री मोरारजी देसाई और श्रीमती गाँधी के बीच कड़ा मुकाबला हुआ था व फैसला मतदान से हुआ था। 1977 में काँग्रेस की पराजय के बाद पार्टी छोड़ कर गये वरिष्ठ गाँधीवादी नेता मोरारजी प्रधानमंत्री बने और श्रीमती गाँधी सत्ता से बाहर रहते हुए कड़े टकराव के बीच जनता से मिले व्यापक समर्थन के साथ चुन कर आयी थीं। राष्ट्रविरोधी अलगाववादी शक्तियों के हाथों उनकी दुखद हत्या से जन्मी परिस्थितियों के बीच से श्री राजीव गाँधी के सिर पर ताज रख दिया गया जिनके बारे में कहा जाता रहा कि वे राजनीति और शासन में नहीं आना चाहते थे किंतु काँग्रेस की एकता बनाये रखने के लिए आम सहमति से लाये गये थे। उस समय काँग्रेस में अन्य अनेक प्रतिभाशाली व सक्षम नेता होने के बाद भी उन्हें व्यापक आम सहमति बनाने के लिए लाना पड़ा था क्योंकि एकता के लिए एक प्रिय मूर्ति को आधार बनाना जरूरी था। लोहिया जी जिस मूर्ति पूजा को कमजोरी मानते थे वह काँग्रेस को अपनी नीतियां लागू करने के लिए जरूरी होने लगी। उनके चयन का समर्थन आम चुनाव में एतिहासिक जीत देकर जनता ने भी किया। राजीव गाँधी के बाद श्री वीपी सिंह, चन्द्र शेखर, नरसिम्हाराव, इन्द्र कुमार गुजराल जैसे काँग्रेस संस्कृति के नेता और उनके बाद देवगौड़ा, अटलबिहारी जैसे गैर काँग्रेसी नेता प्रधानमंत्री बने। 2004 में श्रीमती सोनिया गाँधी द्वारा काँग्रेस की छवि को बनाये रखने के लिए पूर्ण समर्थन मिलने के बाद भी श्री मनमोहन सिंह को नेता बनाया था। उल्लेखनीय है कि श्रीमती सोनिया गाँधी भी राजनीति में नहीं आना चाहती थीं और जब नरसिम्हाराव की अध्यक्षता से लेकर सीताराम केसरी की अध्यक्षता तक काँग्रेस निरंतर कमजोर होती रही तब बेचैन काँग्रेसियों द्वारा श्रीमती गाँधी से एकमत होकर अनुरोध करने पर ही उन्होंने अध्यक्ष पद स्वीकार किया था और काँग्रेस की नैतिक छवि बचाने के लिए अपने सिर की टोपी श्री मनमोहन सिंह के सिर पर रख दी थी। जहाँ पदों के प्रति इतनी निरपेक्षता हो और जब हर स्तर पर लोकतांत्रिक ढंग से निर्विवाद चुने जाकर ही पदों का परिवर्तन हो रहा हो, उसे खानदानी शासन कैसे कहा जा सकता है।                     
मूर्ति को आगे रख कर संगठन चलाने के कारण काँग्रेस की सांगठनिक प्रक्रिया कमजोर होती गयी। कमजोर सांगठनिक प्रक्रिया और लगातार सत्ता से जुड़े रहने के कारण उसमें नेतृत्व का स्वाभाविक विकास कमजोर हुआ और सत्ता के दोष पैदा होते गये। पद और पैसे के लिए राजनीति करने वालों ने संघर्ष और वैचारिकी से जुड़े लोगों को पीछे कर दिया क्योंकि जन समर्थन तो मिल ही रहा था। यह पार्टी परम्परागत दलित वोट और संघ परिवार की साम्प्रदायिक हरकतों से भयभीत अल्पसंख्यकों को बँधुआ वोट समझ कर व किसी भिन्न कारणवश लोकप्रियता रखने वाले लोगों को आगे रख नई उम्मीदें पालने वाले कार्पोरेट जगत पर निर्भर होती चली गयी। किंतु जब दलित वोटों को बहुजन समाज पार्टी जैसे, और पिछड़ों को मण्डल कमीशन से निकले दलों ने लुभा लिया तो अल्पसंख्यक नकारात्मक वोट भी जीत की सम्भावना वाले क्षेत्रों में इन दलों की ओर खिसकने लगे। भाजपा तो वैसे भी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण पर निर्भर थी जिसको और बढा कर उसने व्यापारिक उदारता के बड़े बड़े दावों और कुशल प्रबन्धन के द्वारा अपना लगातार विस्तार किया। गठबन्धन सरकारों के कारण काँग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकारों के भ्रष्टाचार सम्बन्धी कई प्रकरण सामने आये जिसे प्रचार कुशल भाजपा ने अतिरंजित कर प्रचारित किया। इसका नुकसान बड़ा घटक होने के कारण काँग्रेस को हुआ और भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से आम आदमी जैसी पार्टियां जन्मीं। बामपंथी और क्षेत्रीय दल अपनी अपनी जगह घटते बढते रहे। किसी पुराने किले जैसी काँग्रेस पर लगातार अतिक्रमण हुआ, व किला जर्जर होता रहा।
       सत्ता की आदतों के कारण काँग्रेस के बहुत सारे नेता उसके प्रति बफादार नहीं रहे व निरंतर सत्तामुखी होते गये। आज के वे ढेर सारे नेता सत्ता बदलने की सम्भावना देखते ही काग्रेस को छोड़ गये हैं, जिन्हें केन्द्रीय मंत्रिमण्डल व संगठन में स्थान दिया गया था । कुछ ने तो युद्धभूमि में धोखा देने का काम किया। राज्यों में पार्टी की सरकारें कम हो रही हैं व संसाधन घट रहे हैं। आपसी द्वेष चरम पर है और नेता अपने अहं के लिए पार्टी को होने वाले नुकसान की भी परवाह नहीं करते। काँग्रेस जिन पायों पर टिकी थी उसके बहुत सारे लोग छोड़ कर जा चुके हैं व चुनावी समीकरण बदल चुके हैं इसलिए काँग्रेस को आगे बढने के लिए नये प्रबन्धन की जरूरत है। अगर काँग्रेस का कोई नेता आमूलचूल परिवर्तन चाहते हुए नई इमारत खड़ी करना चाहता है और उसके लिए जर्जर खण्डहर को ध्वस्त करना चाहता है तो वह एक सार्थक कदम है। यह काम भावनात्मक रूप से कुछ लोगों को तकलीफदेह हो सकता है और कुछ दीमकों, चमगादड़ों की विदाई करते समय कबूतरों को भी डेरा बदलना पड़ सकता है, पर अब यही इकलौता उपाय शेष बचा है जिस पर काँग्रेस के स्वीकार्य नेता को कठोरता से अमल करना चाहिए। यही काँग्रेस के हित में है और यही देश के हित में है।
वीरेन्द्र जैन                                                                          
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मंगलवार, फ़रवरी 17, 2015

अरविन्द केजरीवाल के नाम खुला खत



अरविन्द केजरीवाल के नाम खुला खत
वीरेन्द्र जैन

प्रिय अरविन्द
       तुम्हें वह कविता बहुत पसन्द है- कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। दिल्ली की अधूरी सत्ता छोड़ कर जाने के बाद तुमने हताश हुये बिना जो अथक कोशिश की थी विधानसभा चुनावों में मिली जबरदस्त विजय उसी का परिणाम है। यह विजय, केवल सीटों की जीत के लिए अधिकतम मतों के प्रबन्धन की ही जीत नहीं है जैसी कि गत लोकसभा चुनाव में मोदी को मिली थी अपितु यह आम आदमी पार्टी के पक्ष में जनता से मिले स्वस्फूर्त समर्थन की जीत है। यह जीत लोकतंत्र की मूल भावना के अधिक आस पास है। इस जीत की अन्य विशेषताएं यह भी हैं कि सत्तारूढ दल द्वारा अपशब्दों की बौछार करने, लगातार अनर्गल आरोप लगाने, तुम्हारे खिलाफ स्तेमाल करने के लिए तुम्हारी पार्टी और काँग्रेस के सदस्यों को सिद्धांतहीन ढंग से अपनी पार्टी में सम्मलित करने और उनमें से अनेक को पद, महत्व, व टिकिट देने जैसे षड़यंत्र रचने पर भी तुम्हारे लोगों ने संतुलन नहीं खोया। उससे निखरी छवि का लाभ भी तुम्हें मिला है। तुम्हारी पार्टी की विजय इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि तुमने यह चुनाव न्यूनतम संसाधनों, न्यूनतम अपव्यय, तथा बाहुबल और मीडिया के दुरुपयोग के बिना जीता है। अहर्निश चलने वाले मीडिया ने जिसमें से बहुत सारे भाजपा के मलिकों द्वारा संचालित हैं, चुनावों के दौरान हमेशा ही तुम्हें मिलने वाले समर्थन को कम करके आंका और उससे भी कम करके दिखाया। इसके विपरीत चुनाव के मुख्य विरोधी, केन्द्र में सत्तारूढ भाजपा ने हर हथकंडा अपनाया और असत्य, अर्धसत्य, समेत अभद्र संवाद किया। परम्परा और गरिमा के विपरीत स्वयं प्रधानमंत्री ने सभाएं और रैलियां कीं तथा उन रैलियों में पद की मर्यादा के विपरीत शब्दावली का प्रयोग करते हुए छवियों को गलत तरह से गढने की कोशिश की। लोकसभा चुनावों के दौरान भी कभी मारपीट से और कभी स्याही फेंक कर तुम्हारे ऊपर हमले होते रहे थे, पर तुमने उनका जबाब हमेशा गाँधीवादी तरीके से दिया था। हमारे देश में सत्य अहिंसा और अपरिग्रह के प्रति हमेशा से सम्मान रहा है। राम, महावीर, बुद्ध, के त्याग, शिव, नानक और कबीर की सादगी व स्पष्टवादिता, को पसन्द किया जाता रहा है। तुम्हारे चुनाव प्रचार अभियान में लोगों को सादगी, समर्पण, त्याग और ईमानदारी की झलक मिली। इस चुनाव में तुम्हारे ज्यादातर प्रत्याशियों की जीत इतने अधिक अंतर से हुयी है कि उसमें छिद्रान्वेषण और सतही आधार पर नुक्ताचीनी की गुंजाइश भी नहीं रही। यही कारण है कि न केवल दिल्ली में अपितु पूरे देश में इन चुनाव परिणामों ने ध्यान खींचा है, तथा भारत में रुचि रखने वाले दूसरे देशों में भी इसकी धमक सुनायी दे रही है।   
 ये आचरण बताते हैं कि तुम्हारा लक्ष्य केवल चुनाव जीत कर सत्तारूढ हो जाना भर नहीं है अपितु अपनी तरह से देश में कुछ सार्थक परिवर्तन लाना भी है। मैंने तुम्हें दुष्यंत की वह गज़ल गाते हुये सुना है जिसका एक शे’र कहता है कि सिर्फ हंगामा खड़ा करना मिरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। मुझे लगता है कि सूरत बदलने के लिए काम करने का यह सही समय है। अंग्रेजी में एक कहावत है कि हिट द आयरन व्हैन इट इज हाट। हमारा देश मूर्तिपूजकों का देश है और हमारे लोकतंत्र में बामपंथी पार्टियों के अपवाद को छोड़ कर सभी दल क्रमशः नेता केन्द्रित होते गये हैं। नेहरू, इन्दिरा गाँधी, अटल बिहारी से प्रारम्भ होकर मोदी तक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में तो शेख अब्दुल्ला, देवीलाल, चरण सिंह, मुलायम सिंह, काँशीराम, मायावती, शरद पवार, बाल ठाकरे, रामाराव, चन्द्रबाबू नाइडू, वाय एस आर रेड्डी, चन्द्र शेखर राव, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, एमजी रामचन्द्रन, करुणानिधि, जयललिता, एच डी देवेगोड़ा, आदि के व्यक्ति केन्द्रित दल राज्य स्तर पर सफल होते रहे हैं। दुर्भाग्य से तुम्हारा नाम भी इसी क्रम में आने जा रहा है, और ऐसा होने पर नई तरह की राजनीति का तुम्हारा घोषित दावा पिछड़ सकता है। आज आम आदमी पार्टी केजरीवाल की पार्टी के नाम से जानी जा रही है। तुम्हारी पार्टी को छोड़ कर जाने वालों सहित पार्टी की स्थापना के प्रमुख सदस्य शांति भूषण ने भी तुम्हारे ऊपर व्यक्तिवादी होने का आरोप लगाया था। यद्यपि एक अच्छी डिग्री और एक अच्छी नौकरी को छोड़ कर तुम्हारा समाज सेवा में लगना, मदर टेरेसा के आश्रम में सेवा का काम करना, आरटीआई के लिए लगातार सक्रिय होकर उसके लिए मेगसाय्से सम्मान प्राप्त करना, इंडिया अगेंस्ट करप्शन के लिए मूलभूत काम करना आदि तुम्हारे पक्ष में जाता है। तुम भारतीय राजनीति के उपरोक्त व्यक्तिवादी नेताओं जैसे नहीं होना चाहते इसलिए तुम्हें और अधिक लोकतांत्रिक होना ही नहीं अपितु दिखना भी चाहिए। जब कोई दल व्यक्तिवादी दिखने लगता है तो उसके विपक्ष का प्रयास रहता है उसके व्यक्तित्व को कलंकित किया जाये, जिससे उसके डूबने के साथ पूरा दल ही डूब जाये।
       किसी लोकतांत्रिक दल के लिए स्पष्ट कार्यक्रम, घोषणा पत्र तथा संगठन की रूप रेखा जरूरी होती है। बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने एक स्पष्ट लक्ष्य को ध्यान में रख कर चलाये गये आन्दोलन को एक दल में बदला था किंतु दलीय लोकतंत्र के अभाव में आज बहुजन समाज पार्टी कहाँ है? स्मरणीय है कि कुछ ही वर्षों में अपनी पार्टी को राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त पार्टी तक पहुँचाने वाले काँसीराम कहते थे कि हमारा कोई संविधान नहीं है, हमारे यहाँ कोई चुनाव नहीं होते, हमारे पास कोई हिसाब किताब नहीं रखा जाता, हमारे पास कोई फाइल नहीं है, जिसका परिणाम यह हुआ कि उनके दल में लूट मच गयी और उन्हें अपना उत्तराधिकार ऐसे व्यक्ति को सौंपना पड़ा जिसने आन्दोलन को समाप्त कर दल को दुकान में बदल दिया, तथा जिससे टूट कर अनेक जातियों के नेताओं ने अपनी जातियों के वोटों का सौदा करने के लिए अलग अलग वैसे ही दल बना लिये । तुम्हारे यहाँ भी अभी शिखर नेतृत्व तक पहुँचने और टिकिट वितरण की कोई साफ नीति नहीं है जिसके अभाव में पुरानी तरह की राजनीति करने वाले लोग जल्दी ही असंतुष्ट हो सकते हैं, क्योंकि उन्हें तुम तक सीमित नई राजनीति का ब्लू प्रिंट सिखाया ही नहीं गया ।
भले ही तुम मंचों से इन्कलाब ज़िन्दाबाद का नारा लगाते हो किंतु अभी तुम्हारे दल का स्वरूप केवल प्रशासनिक सुधारों वाले समूह के रूप में ही नजर आता है जो इसी व्यवस्था में से लोकपाल द्वारा भ्रष्टाचारियों को दण्डित  करके भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहता है, बिजली चोरी रोक कर उसकी दरों में कमी करना चाहता है, व्यापारियों आदि के सिर से इंस्पेक्टर राज खत्म करके उनसे सही कर वसूल करना चाहता है और उसी आधार पर नागरिकों की तात्कलिक सुविधाएं बढाना चाहता है। क्या यही अलग तरह की राजनीति है जिसके लिए तुम किसी भी दूसरे पूर्वस्थापित दल के साथ सहयोग करने से इंकार करते हो?  अलग तरह की राजनीति का ब्लू प्रिंट न केवल बनाना ही पड़ेगा अपितु उसे जनता के सामने लाना भी होगा। अभी कुछ क्षेत्रों में प्रशासनिक सुधार को छोड़ कर देश की सबसे ज्वलंत समस्याओं और नीतियों पर तुम्हारी पार्टी का कोई दृष्टि पत्र सामने नहीं है।          
       दल की नीतियों की स्पष्टता भले ही बाँधने का काम करती हो किंतु अस्पष्टता अराजकता का आरोप आमंत्रित करती है और अनुशासन को कमजोर करती है। पूरे देश का ध्यान किये बिना दिल्ली को माडल राज्य बनाने का सपना देखना दिवास्वप्न हो सकता है जबकि अभी तो दिल्ली पूर्ण राज्य ही नहीं है व सारे महत्वपूर्ण और मुख्य समस्याओं वाले विभाग केन्द्र के पास ही हैं। केन्द्र सरकार में जो दल सत्तारूढ है वह कुछ अधिक चतुर सुजान संगठित व षड़यंत्रकारी है और चुनावों में पराजित होने पर उनका स्वाभिमान बहुत आहत हुआ है। वे न केवल असहयोग ही करेंगे अपितु किसी भी नैतिक अनैतिक ढंग से तुम्हारी असफलता के लिए काम करेंगे व मीडिया का दुरुपयोग कर हर कमजोरी से फायदा उठाने की कोशिश करेंगे। इसकी झलक चुनाव के दौरान मिल चुकी है। तुम्हारे विधायक दल में से भी कई को अटूट दौलत के सहारे सत्तारूढ दल द्वारा ‘बिन्नी’ बनाया जा सकता है। जरूरी है कि पार्टी के यथार्थवादी संविधान के साथ प्रवेश व प्रमोशन के लिए सदस्यता की गहरी जाँच परख और कठोर अनुशासन सुनिश्चित किया जाये। जब सही कार्यक्रम और नीतियां होंगीं तो अपनी शर्तों पर अच्छे चरित्र वाले स्वाभाविक सहयोगी दलों से समझौता भी हो सकता है, जो भाजपा जैसे दल से टकराने के लिए जरूरी होगा। सभी दल उतने बुरे नहीं हैं जितने कि बता दिये गये हैं।
       तुमने सही समय, और सही जगह पर अश्वमेघ का घोड़ा रोका है जिस कारण उम्मीद छोड़ चुके लोगों में भी उम्मीद की किरण जागी है। यही किरण तुम्हारी पूंजी है, इस किरण से सौर्य ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इसे बरबाद होने से रोकने के लिए केवल दिल्ली तक सीमित होने की जिद छोड़नी होगी। पकिस्तान के साथ टकराव के समय तत्कालीन राष्ट्रपति डाक्टर राधाकृष्णन ने कहा था- सम टाइम अटैक इज द बैस्ट वे आफ डिफेंस। आमीन।
वीरेन्द्र जैन                                                                           
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गुरुवार, फ़रवरी 12, 2015

क्या आआपा इस ज्वाला को ज्योति बना सकेगी?

क्या आआपा इस ज्वाला को ज्योति बना सकेगी?
वीरेन्द्र जैन 

       जब दिल्ली विधान सभा चुनाव 2015 के बारे में चारों ओर भाजपा के औंधे मुँह गिरने की बातें कही जा रही हों तब आपको यह कथन चौंका सकता है कि दिल्ली के चुनावों में उसे भी एक बड़ी सफलता मिली है और वह है काँग्रेस मुक्त भारत की ओर बढने की दिशा में एक और कदम आगे पहुँचना। इसी क्रम में अगर ढीले ढाले संगठन वाली आम आदमी पार्टी को कभी असम में आसू [आल असम स्टूदेंट यूनियन] को मिली सामायिक सफलता के साथ तौलें तो अनुमान लगाते देर नहीं लगेगी कि देर सबेर आम आदमी पार्टी को मिले समर्थन का विचलन  भाजपा में ही विलीन होने तक जा सकता है। किरण बेदी, विनय कुमार बिन्नी, शाजिया इल्मी, एस के धीर, या अन्य दर्जनों नेता हों वे सब अन्ना आन्दोलन और आम आदमी पार्टी से निकल कर अपने अपने लक्ष्य की प्रत्याशा में बंगारुओं, येदुरप्पाओं, व्यापम आदि घोटालों और निरंतर अनैतिक राजनीति करने वाली भाजपा में ही गिरे। वहीं उन्होंने अनुकूलता महसूस की।  दिल्ली विधानसभा के इस चुनाव में भाजपा को भले ही लोकसभा चुनाव में मिले 46 प्रतिशत मतों की तुलना में कम वोट मिले हों किंतु पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में कम वोट नहीं मिले हैं जबकि काँग्रेस के मतों का प्रतिशत 24 से घट कर 09 तक पहुँच गया है और विधानसभा में शून्य पर आने के साथ साथ उसके 70 में से 63 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी, जो इस क्षेत्र में उसके इतिहास में अभूतपूर्व है। यह पार्टी पिछले 15 साल से यहाँ सत्तारूढ थी। अगर आम आदमी जैसी मध्यम वर्ग में लोकप्रिय होकर उभरी पार्टी अपने सांगठनिक आधार को नहीं सुधार पाती तो काँग्रेस की लोकप्रियता में आयी गिरावट का लाभ अंततः भाजपा तक ही पहुँचेगा।
       जल्दी और ज्यादा खुशफहमियां पाल लेने वाले लोग आम आदमी पार्टी की झाड़ूमार चुनावी सफलता को एक नई क्रांति या एक नई तरह की पार्टी के उदय के रूप में देख सकते हैं जबकि सच यह है कि नई पार्टी का विकास सकारात्मकता में ही सम्भव है नकारात्मकता में नहीं। चुनावी वालंटियरों का जुड़ जाना और तात्कालिक उत्तेजना के सहारे पहले भी कम ज्यादा सीटों की सफलता के साथ ऐसे ही चुनाव जीते जाते रहे हैं, जिन्हें झाड़ूमार जीत कहा जाता रहा है। 1971 में श्रीमती इन्दिरा गाँधी के नेतृत्व में ‘नई काँग्रेस’ जिसे बाद में बहुत दिनों तक काँग्रेस [आई] कहा गया की झाड़ूमार सफलता, 1977 में जनता पार्टी को मिली सफलता सहित असम में आसु, आँध्र में रामाराव की तेलगु देशम पार्टी, बिहार में जेडी-यू सहित अनेक बार लगभग ऐसी ही घटनाएं होती रही हैं। जब तक आम आदमी पार्टी राजनीति के नये कार्यक्रम, संगठन, और उस संगठन को लम्बे समय तक चलाने की व्यवस्था के साथ प्रकट होकर एक निश्चित समायावधि तक अथक काम करके नहीं दिखाती तब तक वह भाजपा के लिए भावी भोजन बनने को ही अभिशप्त है।
       दिल्ली विधानसभा के इन चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी के शिखर नेतृत्व के बयान और व्यवहार भी परखने लायक है। उल्लेखनीय है कि इन नेताओं ने अपने किसी भी प्रचार अभियान में भाजपा की नीतियों और उसके नेतृत्व की कोई तीखी आलोचना नहीं की। इस व्यवहार को उनकी शालीनता और विनम्रता के खाते में डालकर ही नहीं छोड़ा जा सकता क्योंकि उसके नेताओं के साक्षात्कार और बयान उनकी आर्थिक नीतियों के खिलाफ नहीं जाते, जो देश में भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण है। इस चुनाव में आप पार्टी ने ढाल बन कर भाजपा के खिलाफ जन्मे असंतोष को वैसे ही बीच में ही लपक लिया है जैसे कोई अच्छा फील्डर क्रिकेट के खेल में बाउंड्री पार जाने वाली गेंद को लपक ले ताकि बालर को वापिस कर सके। दूसरी ओर योगेन्द्र यादव और कुमार विश्वास जैसे लोगों ने खुल कर बामपंथी दलों और विचार को कालातीत बताने की भरपूर कोशिश की जबकि ये दल अपने कर्मचारी, मजदूर, किसान संगठनों के द्वारा अभी भी भारतीय राजनीति में सक्रिय हस्तक्षेप रखते हैं और जिन पर सैद्धांतिक समझौतों या भ्रष्टाचार के आरोप नही हैं। काँग्रेस को छोड़ कर बामपंथी किसी भी दूसरे दल की तुलना में अधिक राष्ट्रव्यापी हैं और आआपा के स्वाभाविक सहयोगी हो सकते थे पर उनके साथ ही दूरियां बनाना उन्हें सन्देहास्पद बनाता है।  त्याग और सादगी के नाम पर अपनी धाक जमाने वाले नेता की आम आदमी पार्टी ने ओबामा यात्रा समेत मोदी के मँहगे और हजारों तरह के फूहड़ रंगों वाले पहनावे को कभी विषय नहीं बनाया। चुनावों के दौरान मिले इमाम बुखारी द्वारा बिना मांगे दिये गये समर्थन को समय से इंकार करके भले ही उन्होंने सफल कूटनीति की हो किंतु पूरे चुनावों के दौरान उन्होंने संघ परिवार की साप्रदायिकता का तीखा विरोध नहीं किया जबकि इसी दौरान उनके साधु साध्वियों के भेष में रहने वाले प्रमुख नेताओं ने जानबूझ कर बेहद भड़काऊ बयान दिये जिसके लिए मोदी और उनकी पार्टी बदनाम है। स्मरणीय है कि उत्तर प्रदेश में उप चुनावों के दौरान खास योजना से योगी आदित्यनाथ को प्रभारी नियुक्त किया गया था, व उनसे बिना किसी तात्कालिक सन्दर्भ के उत्तेजक बयान दिलाये गये थे। त्रिलोकपुरी और बवाना के दंगे भाजपा द्वारा साम्प्रदायिक कार्ड खेलना उनकी नीति के बेपर्द उदाहरण थे।
आम आदमी पार्टी ने निरंतर निराश होती जा रही जनता के लिए एक झरोखा खोले जाने का आभास देकर भले ही इंकलाब ज़िन्दाबाद का नारा लगाया हो किंतु उनके कार्यक्रम केवल प्रशासनिक सुधारों तक ही सीमित हैं, जो इस बात के संकेत हैं कि वे व्यवस्था नहीं बदलना चाहते। हर ज्वलंत सवाल के उत्तर में बार बार ऊपर वाले का नाम लेकर उस सवाल को टाल देने वाले अरविन्द या तो इंकलाब जिन्दाबाद का गलत अर्थ लगा रहे हैं, या उसे बन्दे मातरम  जैसे नारे की तरह स्तेमाल  कर रहे हैं। बिजली सस्ती होने को वे परिचालन रिसाव [ट्रांजीशन लौस] के नाम पर चल रहे घपले से जोड़ कर देखते हैं जबकि कठोर प्रशासनिक सुधारों और सजग कार्यकर्ताओं के संगठन के बिना विद्युत वितरण में चल रहे भ्रष्टाचार को नहीं रोका जा सकता। पूर्ण राज्य का दर्जा पाने के लिए बहुत संघर्ष करना होगा और बिना पुलिस की सहायता के किसी भी तरह की चोरी और स्त्री विरोधी अपराध रोकना सम्भव नहीं है। उसके बाद भी एक उबाऊ और कमजोर न्यायिक प्रक्रिया है जिसमें सम्पन्न अपराधियों के बच निकलने की बड़ी सम्भानाएं छुपी हैं। नौ महीने में मोदी सरकार से निराश हो जाने वाली जनता अब शीघ्र कार्यवाही चाहती है, जो इस शिथिल न्याय व्यवस्था में सम्भव नहीं। पता नहीं मोदी ने उन्हें नक्सली बता कर और जंगल जाने की सलाह देकर उनको कमजोर करना चाहा था या बल देना चाहा था पर इस सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि जल्दी सार्थक परिणाम चाहने वाली जनता ने आआपा को शायद इसी कारण व्यापक समर्थन दे दिया हो। दिल्ली स्थित देश के एक सबसे प्रमुख विश्वविद्यालय के माहौल को देखते हुए यह भी नहीं कहा जा सकता कि देश के निराश जन मानस के बीच अब नक्सली होना एक गाली है या उम्मीद का नाम है।
       एक परिवर्तनकारी राजनीतिक दल के लिए बेहद जरूरी होता है अपने स्पष्ट लक्ष्य और कार्यक्रम की साफ समझ वाला नेतृत्व और समर्पित अनुशासित कार्यकर्ताओं का संगठन। आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से सदस्यता अभियान चलाया तथा जीत और लोकप्रियता के आधार पर टिकिट और पद दिये उसका परिणाम उन्होंने शाजिया इल्मी एम एस धीर अशोक चौहान, शकील अंजुम चौधरी और विनोद कुमार बिन्नी के निःसंकोच भाजपा में सम्मलित होने से समझा जा सकता है।  विधान सभा लम्बे समय तक स्थगित ही इसीलिए रही क्योंकि इनके कई विधायकों को सौदे के लिए तैयार किया जा रहा था, जिनमें से कई तो तैयार भी हो गये थे। अभी भी विपुल संसाधनों और नैतिकता शुचिता की परवाह न करने वाली भाजपा के हाथों बिकने से नये विधायकों और पदाधिकारियों को रोकने की दल के अन्दर कोई उचित व्यवस्था नहीं है।
किसी भी राजनीतिक पार्टी में समुचित संख्या में पूर्णकालिक कार्यकर्ता होने ही चाहिए और उन कार्यकर्ताओं को अगर जीवन यापन भत्ता नहीं दिया जाता तो या तो पार्टी सम्पन्न स्वार्थी घरानों से आये लोगों के हाथों में चली जाती है या उसका कार्यकर्ता भ्रष्ट होने को मजबूर हो जाता है। काँग्रेस और भाजपा इसी कमजोरी की शिकार हैं। किसी परिवर्तनकामी दल के लिए जरूरी है कि वह सदस्यों से उनकी आय के अनुरूप नियमित लेवी लेने, पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को समय से सुनिश्चित भत्ता देने के नियम बनाये। दिल्ली में मिले व्यापक जनसमर्थन को अगर आन्दोलन में नहीं बदला जाता तो इस बात को पहचाने जाने में अब बहुत देर नहीं होगी कि आम आदमी पार्टी भी एक और काँग्रेस या भाजपा आदि का नया नामकरण है।  
वीरेन्द्र जैन                                                                          
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गुरुवार, फ़रवरी 05, 2015

इनका बलिदान क्या बेकार जायेगा? वैलंटाइन डे पर सवाल !



इनका बलिदान क्या बेकार जायेगा? वैलंटाइन डे पर सवाल !
वीरेन्द्र जैन

       चाहे आईएसआईएस द्वारा येज़दियों की हत्याएं हों, बोकोहराम में एक साथ दो हजार हत्याएं हों,  पेशावर में बच्चों के स्कूल में की गयी नृशंस हत्याएं हों, या पेरिस में कार्टून पत्रिका शार्ली एब्दो के कार्यालय में एक साथ की गयी हत्याएं हों, इन पर सारी दुनिया के साथ हमारी संवेदनाएं जागना भी स्वाभाविक हैं। ये हमारी मानवीयता की परिचायक हैं, और इन्हीं संवेदनाओं के रहते हुये ही दुनिया रहने लायक बनती है, हम इन समस्याओं के हल खोजने के लिए सक्रिय होते हैं, एकजुट होने की कोशिश करते हैं। दूसरी ओर कुछ घटनाओं के प्रति हमारी असम्वेदनशीलता देखते हुए सवाल उठता है कि क्या हम केवल सामूहिक हत्याओं के प्रति ही सम्वेदनशील होने लगे हैं व क्रमशः हो रही इकहरी मौतों के प्रति असम्वेदनशील होते जा रहे हैं, भले ही ये अलग अलग मौतें एक ही तरह की प्रवृत्तियों के कारण हो रही हों। मैंने घर पर आने वाले दो-तीन हिन्दी समाचार पत्रों में से प्रेम सम्बन्धों के कारण पिछले दो तीन सालों में हुयी असमय मौतों की कुछ कतरनें एकत्रित कर रखी हैं जो न तो पूरे देश की घटनाओं को कवर करती हैं और न किसी युग की। पर अगर एक सीमित क्षेत्र में इतने युवा लगातार मारे जा रहे हैं तो पूरे देश का आंकड़ा कितना होगा! क्या ये आंकड़े हमारी संवेदनहीनता पर हमें पुनर्विचार करने को विवश नहीं करते! 
·         सिवनी/बालाघाट/10/1/15/ बालाघाट में तीन युवकों को ज़िन्दा जलाया, इन्दौर के एक छात्र के साथ लड़की से मिलने आए थे युवक- दैनिक भास्कर भोपाल
·         गाज़ियाबाद/29/11/14/ प्रेमी जोड़े की हत्या, लड़की का भाई फरार- जनसत्ता दिल्ली
·         मेरठ/26/11/14/ झूठी शान की खातिर बहन की ह्त्या- जनसत्ता दिल्ली
·         विदिशा/16/11/14/ शताब्दी के आगे कूद कर युवक-युवती ने दी जान – दैनिक भास्कर भोपाल
·         बड़वानी/12/9/14/ बेटे के प्यार की सजा पिता को दी, दो घंटे पेड़ से बांधकर पीटा- दैनिक भास्कर भोपाल 
·         कानपुर/8/9/14/ कानपुर में पिता ने बेटी के प्रेमी की हत्या की- जनसत्ता दिल्ली
·         देवबन्द[सहारनपुर] 1/9/14/ प्रेमीयुगल ने ट्रेन से कटकर खुदकुशी की- जनसत्ता दिल्ली
·         भिंड/18/8/14/ पहले प्रेमी को मारा, फिर बहन की भी करा दी हत्या। 23 जून की घटना का खुलासा –दैनिक भास्कर भोपाल
·         कानपुर/17/8/14/ ट्रेन के आगे कूद कर प्रेमिका की मौत, प्रेमी घायल- जनसत्ता दिल्ली
·         मुज़फ्फरनगर/5/8/14/ झूठी शान की खातिर हत्या में युवक गिरफ्तार- जनसत्ता दिल्ली
·         इन्दौर/11/7/14/ मौसेरे भाई-बहन ने होटल के कमर में की खुदकुशी- दैनिक भास्कर भोपाल
·         पटना/30/6/14/ सिपाही ने बेटी के प्रेमी को पीटा, आंखें फोड़ीं, फिर 5 गोलियां मारीं- दैनिक भास्कर भोपाल
·         बुलन्दशहर/28/6/14/ बुलन्दशहर में पेड़ से लटके मिले प्रेमीयुगल के शव –जनसत्ता दिल्ली
·         मुज़फ्फरनगर/1/6/14/ पिटाई कर प्रेमी युगल को अपमानित किया लोगों ने- जनसत्ता दिल्ली
·         बरेली/24/5/14/ झूठी शान के चलते किशोरी की हत्या- जनसत्ता दिल्ली
·         बहादुरपुर/मुंगावली/12/5/14/ प्रेमविवाह के चार साल बाद युवक और उसके दो भाइयों की हत्या- दैनिक भास्कर भोपाल
·         मुज़फ्फरनगर/8/5/14/ झूठी शान के नाम पर युवक की हत्या- जनसत्ता दिल्ली
·         मुरादाबाद/22/4/14/ युवती की झूठी शान के लिए हत्या- जनसत्ता दिल्ली
·         उन्नाव/19/3/14/ होली के जश्न के दौरान बेटी और दामाद की हत्या- जनसत्ता दिल्ली
·         खंडवा/17/3/14/ विवाहिता ने प्रेमी के साथ पिया जहर- दैनिक भास्कर भोपाल
·         नई दिल्ली/16/3/14/ बेटी के प्रेमविवाह करने पर माँ ने की खुदकुशी- जनसत्ता दिल्ली
·         सागर/6/4/14/जंगल में मिले युगल के शव, सिर में गोली लगने से हुई दोनों की मौत- दैनिक भास्कर भोपाल
·         नई दिल्ली/5/5/14/ प्रेमी प्रेमिका के शव पेड़ से लटके मिले-जनसत्ता दिल्ली
·         हरिद्वार/17/12/13/परिजनों ने शादी करने से इंकार किया तो प्रेमी जोड़ों ने दी जान- जनसत्ता दिल्ली
·         गुना/10/12/13/ ब्यना गांव के प्रेमी युगल ने हाथ बांध कर खुद्कुशी की- दैनिक भास्कर
·         नोएडा/1/12/13/ व्यापारी पिता पुत्र की हत्या में अलीगढ निवासी युवक द्वारा प्रेमविवाह करने पर लड़की के परिवार वालों ने युवक और उसके पिता की 12 फरबरी 13 को हत्या कर दी। -जनसत्ता दिल्ली
·         22/1/13 भोपाल- दैनिक भास्कर- आरक्षक की बेटी ने फाँसी लगाने से पहिले अपने प्रेमी से शादी कर ली थी  
·         13/1/13 मेरठ- दैनिक भास्कर ओएनजीसी के सुपरिंडेंट इंजीनियर ने अपनी बेटी को बाठरूम्के टब में डुबो कर मार डाला
·         11/1/13 राजकोट दिव्य भास्कर – भावनगर जिले के सादरिका गाँव में 24 वर्षीय अमराबेन को प्रेमी के साथ जाने पर उसके परिजनों ने मार डाला
·         26/12/12 मुज़फ्फरनगर –दैनिक भास्कर बुढाना कस्बे में पिता ने अपनी बेटी और उसके प्रेमी की गोला मार कर हत्या कर दी
·         26/12/12 कौशाम्बी- दैनिक भास्कर- पिता ने रात्रि में प्रेमी से मिलने गयी पुत्री की कुल्हाड़ी मार कर हत्या की
·         21/12/12 शिवपुरी दैनिक भास्कर, -प्रेम विवाह करने पर बेटी को गोली मारी
·         21/12/12 नई दिल्ली- पत्रिका- गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह ने कहा कि चालू वित्तीय वर्ष में पीड़ित की शिकायत पर आनर किलिंग के 333 मामले दर्ज किये गये।
·         9/12/12 कोलकता- दैनिक भास्कर दक्षिण परगना में बड़े भाई ने अपनी छोटी बहिन को मार डाला और कटा सिर लेकर थाने पहुँचा, उसकी बहिन अपने प्रेमी के साथ रह रही थी।
·         2/12/12- शाजापुर- दैनिक भास्कर बड़ौद में प्रेमिका के भाइयों ने बहिन को मार डाला और प्रेमी की हत्या की। दोनों ने विवाह कर  लिया था।
·         अक्टूबर 12-  इटारसी- दैनिक भास्कर, आनर किलिंग में युवक की हत्या गोली मार कर जलाया शव
·         15-9-12 डीबी स्टार- भोपाल- भोपाल- पहले उन्होंने अपनी बेटी को मार डाला फिर मेरे बेटे को मरवा दिया और एक्सीडेंट बता दिया। प्रेमी की माँ ने की शिकायत।
·         नवम्बर 12- पत्रिका- अम्बाह – मुरैना- नखती गाँव- किशोरी को जला कर मारा
·         9-9-12 जनसत्ता- इन्दौर हीरानगर थाना क्षेत्र-इन्दौर में भाई ने बड़ी बहिन को जिन्दा जलाया
·         19-6-12 दैनिक भास्कर  सूरत- पैट्रोल छिड़क बेटी को ज़िन्दा जलाया
·         10-5-12 दैनिक भास्कर  –सहारनपुर – डीआइजी ने कहा कि भागने वाली लड़की अगर मेरी बहिन होती तो मैं उसे मार डालता
·         2012-  दैनिक भास्कर  रांची – प्रेमी प्रेमिका चौथी मंज़िल से कूदे, प्रेमिका मरी
·         2012-  दैनिक भास्कर  हरियाणा –रोड़ी- सिरसा- प्रेमी और प्रेमिका दोनों एक साथ जले , सिरसा के शमशान घाट में युवती की जलती चिता पर कूद कर युवक ने किया आत्मदाह
·         25-4-12-दै भा.- मुम्बई- आनर किलिंग में पिता ने बेटी की हत्या की
·         18-4-12- दैनिक भास्कर  सागर जिले के बीना में आनर अटैक – युवक को पैट्रोल डाल कर जला दिया- प्यार की सजा, हालत गम्भीर,
·         4-1-12- जनसत्ता दिल्ली मेरठ- गाँव- हर्रा- प्रेम प्रसंग से नाराज भाई ने बहन की जान ली
·         26-11-11-जनसत्ता दिल्ली मुरादाबाद- मवई ठुकरान इलाके में नाराज पिता ने बेटी को मार डाला
·         12-11-11-जनसत्ता दिल्ली बुलन्द शहर- प्रेमिका और प्रेमी के भाई का शव मिला
·         00-11-11 पत्रिका- भोपाल- दो छात्राओं ने ट्रैन से कटकर दी जान- घटनास्थल से बरामद किया
·         6-11-11-जनसत्ता दिल्ली मुज़फ्फरनगर बागपत जिला- दार्कवदा गाँव- झूठी शान के लिए बेटी की हत्या
·         5-11-11 जन. स. मुज़फ्फरनगर किशोरी की झूठी शान के लिए उसके दो भाइयों द्वारा की गयी हत्या के बाद परिवार वालों ने शव भी स्वीकार करने से मना कर दिया
·         10-11-11-पत्रिका-भिंड बरासों थाना क्षेत्र ग्राम गोपालपुरा- बेटी की गोली मार कर हत्या, शव नदी में बहाया
·         28-10-11 दैनिक भास्कर  टीकमगढ- दिगौड़ा- प्रेमी युगल की हत्या कर शव फाँसी पर लटकाए
·         24-10-11 दैनिक भास्कर  मुरैना ग्राम लहर- दिमनी थाना क्षेत्र- दो बार पेड़ पर लटकाया, डंडों से पीटा, केरोसिन डाला... फिर चिता पर लिटाकर ज़िन्दा जला दिया, दलित के साथ प्रेम करने की सजा
·         12-8-11- जनसत्ता दिल्ली नोएडा- सूरजपुर थाना क्षेत्र में भाई ने प्रेम करने के आरोप में अपनी बहिन की जान ले ली और गंग नहर में लाश बहा दी
·         2011- पीपुल्स समाचार  मथुरा- कोलाहर गाँव- प्रेमीयुगल को गांव वालों ने खेत में ही फूंका
·         2011- पीपुल्स समाचार  मुजफ्फरनगर- 48 घंटों में आनर किलिंग में तीन लड़कियों की हत्या कर दी गयी
·         00-8-11- दैनिक भास्कर  नासिक – भद्रकाली पुलिस स्टेशन परिसर ने प्रेम सम्बन्धों के सन्देह में एक माँ ने अपनी 18 वर्षीय लड़की को ज़िन्दा जला दिया
·         00-8-11- पीपुल्स समाचार  कानपुर घाटमपुर इलाके में एक व्यक्ति ने प्रेम प्रसंग के चलते आपनी दसवीं  में पढ रही लड़की की हत्या कर दी और शव को खेत में गाड़ दिया।
·         27-8-11-पीपुल्स समाचार  सीहोर युवक को जिन्दा जलाया, मामला प्रेम प्रसंग का
·         18-8-11-मुरैना- महुआ थाना क्षेत्र के बड़ापुरा गांव में झूठी शान के लिए भतीजी की हत्या
·         29-7-11 पी.समा-दतिया- पलवल हरियाणा के प्रेमी युगल ने दी ट्रैन से कट कर जान दी
·         13-11-11-दैनिक भास्कर  कांगड़ा ग्राम नगरौटा बगवाँ- 20 वर्षीय युवक की हत्या कर शव पेड़ से लटका दिया गया
·         2011- पीपुल्स समाचार  भिंड देहात क्षेत्र-प्रेमी की आत्महत्या के बाद प्रेमिका ने लगायी फाँसी
·         2011- पीपुल्स समाचार  गाजियाबाद- मोदीनगर क्षेत्र में प्रेम सम्बन्धों के सन्देह में बाप ने बेटी की जान ले ली
·         2011- पीपुल्स समाचार -भोपाल छोला मन्दिर इलाके में बहिन के प्रेमी की हत्या
·         2011 -पीपुल्स समाचार -भोपाल बैरसिया तहसील में प्रेम प्रसंग के चलते एक युवक की बस से उतार कर नृशंस ह्त्या कर दी गयी
·         2011- पीपुल्स समाचार -मुम्बई-विरार- एक महिला ने अपनी 21 साल की बेटी के तीन टुकड़े कर दिये फिर उसे जलाने की कोशिश की
·         2011-पीपुल्स समाचार  सिरसा-फुलकन गाँव-रुई के खेतों में एक युवक और युवती का शव मिला
·         2010 पीपुल्स समाचार  बरेली-यूपी- पेमी युगल ने खाया जहर, लड़की की मौत- लड़का गम्भीर्
·         2010 पीपुल्स समाचार  भोपाल- कोलार क्षेत्र बहन के नाबालिग प्रेमी की बेरहमी से हत्या- पीटा फिर डेम में फेंक दिया
·         7-11-10- पीपुल्स समाचार  भटनी देवरिया जिला- तीन छात्राओं को मारकर खेत में गाड़ा  और फिर उनकी हत्या, मामले को रफा दफा करने की कोशिश
·         20-9-10 दैनिक भास्कर  विदिशा- ग्राम मिर्ज़ापुर- विदिशा में प्रेमी प्रेमिका ने की खुदकुशी
·         2010- दैनिक भास्कर  बिजनौर जिला-हल्दौर थाना- ग्राम खासपुरा पहले प्रेमी की हत्या की, फिर बेटी को जलाया
ये युवाओं की अकाल मृत्यु पर देश में पल रही असम्वेदनशीलता की केवल संकेतक हैं। जब से जातियां और सम्प्रदाय वोट बैंक बनने लगे हैं तब से जातियों के नाम पर पल रही हर तरह की विकृत्तियों को राजनीतिक दल सहलाने लगे हैं। आखिर क्या कारण है युवाओं के समर्थन की अपेक्षा रखने वाला कोई राजनीतिक दल या समाजसेवी संस्था युवाओं की इन हत्याओं के खिलाफ आवाज नहीं उठा रही। एक आवाज आमिरखान के शो ‘सत्यमेव जयते’ में उठायी गयी थी पर वह केवल एक टीवी शो बन कर ही रह गयी थी। कोई नानक, कबीर, कोई राजा राममोहन राय, ज्योतिबा फुले, महात्मा गाँधी, अम्बेडकर क्यों नहीं निकल रहा!
वीरेन्द्र जैन                                                                          
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