अरविन्द केजरीवाल के
नाम खुला खत
वीरेन्द्र जैन
प्रिय अरविन्द
तुम्हें
वह कविता बहुत पसन्द है- कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। दिल्ली की अधूरी
सत्ता छोड़ कर जाने के बाद तुमने हताश हुये बिना जो अथक कोशिश की थी विधानसभा
चुनावों में मिली जबरदस्त विजय उसी का परिणाम है। यह विजय, केवल सीटों की जीत के
लिए अधिकतम मतों के प्रबन्धन की ही जीत नहीं है जैसी कि गत लोकसभा चुनाव में मोदी
को मिली थी अपितु यह आम आदमी पार्टी के पक्ष में जनता से मिले स्वस्फूर्त समर्थन
की जीत है। यह जीत लोकतंत्र की मूल भावना के अधिक आस पास है। इस जीत की अन्य
विशेषताएं यह भी हैं कि सत्तारूढ दल द्वारा अपशब्दों की बौछार करने, लगातार अनर्गल
आरोप लगाने, तुम्हारे खिलाफ स्तेमाल करने के लिए तुम्हारी पार्टी और काँग्रेस के
सदस्यों को सिद्धांतहीन ढंग से अपनी पार्टी में सम्मलित करने और उनमें से अनेक को
पद, महत्व, व टिकिट देने जैसे षड़यंत्र रचने पर भी तुम्हारे लोगों ने संतुलन नहीं
खोया। उससे निखरी छवि का लाभ भी तुम्हें मिला है। तुम्हारी पार्टी की विजय इसलिए
भी महत्वपूर्ण है कि तुमने यह चुनाव न्यूनतम संसाधनों, न्यूनतम अपव्यय, तथा बाहुबल
और मीडिया के दुरुपयोग के बिना जीता है। अहर्निश चलने वाले मीडिया ने जिसमें से
बहुत सारे भाजपा के मलिकों द्वारा संचालित हैं, चुनावों के दौरान हमेशा ही तुम्हें
मिलने वाले समर्थन को कम करके आंका और उससे भी कम करके दिखाया। इसके विपरीत चुनाव
के मुख्य विरोधी, केन्द्र में सत्तारूढ भाजपा ने हर हथकंडा अपनाया और असत्य,
अर्धसत्य, समेत अभद्र संवाद किया। परम्परा और गरिमा के विपरीत स्वयं प्रधानमंत्री
ने सभाएं और रैलियां कीं तथा उन रैलियों में पद की मर्यादा के विपरीत शब्दावली का
प्रयोग करते हुए छवियों को गलत तरह से गढने की कोशिश की। लोकसभा चुनावों के दौरान भी
कभी मारपीट से और कभी स्याही फेंक कर तुम्हारे ऊपर हमले होते रहे थे, पर तुमने
उनका जबाब हमेशा गाँधीवादी तरीके से दिया था। हमारे देश में सत्य अहिंसा और
अपरिग्रह के प्रति हमेशा से सम्मान रहा है। राम, महावीर, बुद्ध, के त्याग, शिव,
नानक और कबीर की सादगी व स्पष्टवादिता, को पसन्द किया जाता रहा है। तुम्हारे चुनाव
प्रचार अभियान में लोगों को सादगी, समर्पण, त्याग और ईमानदारी की झलक मिली। इस
चुनाव में तुम्हारे ज्यादातर प्रत्याशियों की जीत इतने अधिक अंतर से हुयी है कि
उसमें छिद्रान्वेषण और सतही आधार पर नुक्ताचीनी की गुंजाइश भी नहीं रही। यही कारण
है कि न केवल दिल्ली में अपितु पूरे देश में इन चुनाव परिणामों ने ध्यान खींचा है,
तथा भारत में रुचि रखने वाले दूसरे देशों में भी इसकी धमक सुनायी दे रही है।
ये आचरण बताते हैं कि तुम्हारा लक्ष्य केवल
चुनाव जीत कर सत्तारूढ हो जाना भर नहीं है अपितु अपनी तरह से देश में कुछ सार्थक
परिवर्तन लाना भी है। मैंने तुम्हें दुष्यंत की वह गज़ल गाते हुये सुना है जिसका एक
शे’र कहता है कि सिर्फ हंगामा खड़ा करना मिरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत
बदलनी चाहिए। मुझे लगता है कि सूरत बदलने के लिए काम करने का यह सही समय है।
अंग्रेजी में एक कहावत है कि हिट द आयरन व्हैन इट इज हाट। हमारा देश मूर्तिपूजकों
का देश है और हमारे लोकतंत्र में बामपंथी पार्टियों के अपवाद को छोड़ कर सभी दल क्रमशः
नेता केन्द्रित होते गये हैं। नेहरू, इन्दिरा गाँधी, अटल बिहारी से प्रारम्भ होकर
मोदी तक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में तो शेख अब्दुल्ला, देवीलाल, चरण सिंह, मुलायम
सिंह, काँशीराम, मायावती, शरद पवार, बाल ठाकरे, रामाराव, चन्द्रबाबू नाइडू, वाय एस
आर रेड्डी, चन्द्र शेखर राव, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, एमजी रामचन्द्रन,
करुणानिधि, जयललिता, एच डी देवेगोड़ा, आदि के व्यक्ति केन्द्रित दल राज्य स्तर पर सफल
होते रहे हैं। दुर्भाग्य से तुम्हारा नाम भी इसी क्रम में आने जा रहा है, और ऐसा
होने पर नई तरह की राजनीति का तुम्हारा घोषित दावा पिछड़ सकता है। आज आम आदमी
पार्टी केजरीवाल की पार्टी के नाम से जानी जा रही है। तुम्हारी पार्टी को छोड़ कर
जाने वालों सहित पार्टी की स्थापना के प्रमुख सदस्य शांति भूषण ने भी तुम्हारे ऊपर
व्यक्तिवादी होने का आरोप लगाया था। यद्यपि एक अच्छी डिग्री और एक अच्छी नौकरी को
छोड़ कर तुम्हारा समाज सेवा में लगना, मदर टेरेसा के आश्रम में सेवा का काम करना,
आरटीआई के लिए लगातार सक्रिय होकर उसके लिए मेगसाय्से सम्मान प्राप्त करना, इंडिया
अगेंस्ट करप्शन के लिए मूलभूत काम करना आदि तुम्हारे पक्ष में जाता है। तुम भारतीय
राजनीति के उपरोक्त व्यक्तिवादी नेताओं जैसे नहीं होना चाहते इसलिए तुम्हें और
अधिक लोकतांत्रिक होना ही नहीं अपितु दिखना भी चाहिए। जब कोई दल व्यक्तिवादी दिखने
लगता है तो उसके विपक्ष का प्रयास रहता है उसके व्यक्तित्व को कलंकित किया जाये,
जिससे उसके डूबने के साथ पूरा दल ही डूब जाये।
किसी
लोकतांत्रिक दल के लिए स्पष्ट कार्यक्रम, घोषणा पत्र तथा संगठन की रूप रेखा जरूरी
होती है। बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने एक स्पष्ट लक्ष्य को ध्यान
में रख कर चलाये गये आन्दोलन को एक दल में बदला था किंतु दलीय लोकतंत्र के अभाव
में आज बहुजन समाज पार्टी कहाँ है? स्मरणीय है कि कुछ ही वर्षों में अपनी पार्टी
को राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त पार्टी तक पहुँचाने वाले काँसीराम कहते थे कि हमारा
कोई संविधान नहीं है, हमारे यहाँ कोई चुनाव नहीं होते, हमारे पास कोई हिसाब किताब
नहीं रखा जाता, हमारे पास कोई फाइल नहीं है, जिसका परिणाम यह हुआ कि उनके दल में
लूट मच गयी और उन्हें अपना उत्तराधिकार ऐसे व्यक्ति को सौंपना पड़ा जिसने आन्दोलन
को समाप्त कर दल को दुकान में बदल दिया, तथा जिससे टूट कर अनेक जातियों के नेताओं
ने अपनी जातियों के वोटों का सौदा करने के लिए अलग अलग वैसे ही दल बना लिये । तुम्हारे
यहाँ भी अभी शिखर नेतृत्व तक पहुँचने और टिकिट वितरण की कोई साफ नीति नहीं है
जिसके अभाव में पुरानी तरह की राजनीति करने वाले लोग जल्दी ही असंतुष्ट हो सकते
हैं, क्योंकि उन्हें तुम तक सीमित नई राजनीति का ब्लू प्रिंट सिखाया ही नहीं गया ।
भले ही तुम
मंचों से इन्कलाब ज़िन्दाबाद का नारा लगाते हो किंतु अभी तुम्हारे दल का स्वरूप
केवल प्रशासनिक सुधारों वाले समूह के रूप में ही नजर आता है जो इसी व्यवस्था में
से लोकपाल द्वारा भ्रष्टाचारियों को दण्डित
करके भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहता है, बिजली चोरी रोक कर उसकी दरों में
कमी करना चाहता है, व्यापारियों आदि के सिर से इंस्पेक्टर राज खत्म करके उनसे सही
कर वसूल करना चाहता है और उसी आधार पर नागरिकों की तात्कलिक सुविधाएं बढाना चाहता
है। क्या यही अलग तरह की राजनीति है जिसके लिए तुम किसी भी दूसरे पूर्वस्थापित दल
के साथ सहयोग करने से इंकार करते हो? अलग
तरह की राजनीति का ब्लू प्रिंट न केवल बनाना ही पड़ेगा अपितु उसे जनता के सामने
लाना भी होगा। अभी कुछ क्षेत्रों में प्रशासनिक सुधार को छोड़ कर देश की सबसे
ज्वलंत समस्याओं और नीतियों पर तुम्हारी पार्टी का कोई दृष्टि पत्र सामने नहीं है।
दल
की नीतियों की स्पष्टता भले ही बाँधने का काम करती हो किंतु अस्पष्टता अराजकता का
आरोप आमंत्रित करती है और अनुशासन को कमजोर करती है। पूरे देश का ध्यान किये बिना
दिल्ली को माडल राज्य बनाने का सपना देखना दिवास्वप्न हो सकता है जबकि अभी तो
दिल्ली पूर्ण राज्य ही नहीं है व सारे महत्वपूर्ण और मुख्य समस्याओं वाले विभाग
केन्द्र के पास ही हैं। केन्द्र सरकार में जो दल सत्तारूढ है वह कुछ अधिक चतुर सुजान
संगठित व षड़यंत्रकारी है और चुनावों में पराजित होने पर उनका स्वाभिमान बहुत आहत
हुआ है। वे न केवल असहयोग ही करेंगे अपितु किसी भी नैतिक अनैतिक ढंग से तुम्हारी
असफलता के लिए काम करेंगे व मीडिया का दुरुपयोग कर हर कमजोरी से फायदा उठाने की
कोशिश करेंगे। इसकी झलक चुनाव के दौरान मिल चुकी है। तुम्हारे विधायक दल में से भी
कई को अटूट दौलत के सहारे सत्तारूढ दल द्वारा ‘बिन्नी’ बनाया जा सकता है। जरूरी है
कि पार्टी के यथार्थवादी संविधान के साथ प्रवेश व प्रमोशन के लिए सदस्यता की गहरी
जाँच परख और कठोर अनुशासन सुनिश्चित किया जाये। जब सही कार्यक्रम और नीतियां
होंगीं तो अपनी शर्तों पर अच्छे चरित्र वाले स्वाभाविक सहयोगी दलों से समझौता भी
हो सकता है, जो भाजपा जैसे दल से टकराने के लिए जरूरी होगा। सभी दल उतने बुरे नहीं
हैं जितने कि बता दिये गये हैं।
तुमने
सही समय, और सही जगह पर अश्वमेघ का घोड़ा रोका है जिस कारण उम्मीद छोड़ चुके लोगों
में भी उम्मीद की किरण जागी है। यही किरण तुम्हारी पूंजी है, इस किरण से सौर्य
ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इसे बरबाद होने से रोकने के लिए केवल दिल्ली तक
सीमित होने की जिद छोड़नी होगी। पकिस्तान के साथ टकराव के समय तत्कालीन राष्ट्रपति
डाक्टर राधाकृष्णन ने कहा था- सम टाइम अटैक इज द बैस्ट वे आफ डिफेंस। आमीन।
वीरेन्द्र जैन
2 /1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल म.प्र. [462023]
मोबाइल 9425674629
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