बराक के दोस्त
नरेन्द्र उर्फ पाँचवां सवार कथा
वीरेन्द्र जैन
हमारे यहाँ
एक मुहावरा प्रचलित है- पाँचवां सवार। यह मुहावरा इस बोध कथा पर आधारित है कि चार
घुड़सवार दिल्ली की ओर जा रहे थे कि रास्ते में दिल्ली की ओर जाने वाला खच्चर पर
सवार एक व्यक्ति मिल गया जिसके साथ चलने के अनुरोध को उन्होंने स्वीकार कर लिया। अब
पूरे रास्ते जब भी कोई पूछता कि आप लोग कहाँ जा रहे हैं तो किसी भी अन्य के बोलने
से पहले वह खच्चर पर सवार व्यक्ति बोल उठता कि हम पाँचों सवार दिल्ली जा रहे हैं।
स्वयं आगे बढ कर आत्मस्तुति करने की प्रवृत्ति पर हमारे यहाँ नारद मोह से लेकर कई
कथाएं और अपने मुँह मियां मिट्ठू बनने जैसे कई मुहावरे प्रचलित हैं ताकि ऐसे लोगों
को दर्पन दिखा कर सावधान किया जा सके। खेद है कि पौराणिक कथाओं में विज्ञान से
ज्यादा भरोसा रखने वाले हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका के
राष्ट्रपति बराक ओबामा के आने पर ऐसी ही वृत्ति का परिचय देकर खुद को हास्यास्पद
स्थिति में पहुँचाया।
उल्लेखनीय
है कि श्री मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही उनके जीवन से सम्बन्धित विभिन्न चित्र और
घटनाएं चर्चा में आयी थीं व सोशल मीडिया के कारण वे कुछ ही क्षणों में विश्वव्यापी
हो गयी थीं। उनके पुराने चित्रों में से ही एक वह चित्र भी था जब श्री मोदी ने
अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान व्हाइट हाउस के बाहर खड़े होकर फोटो खिंचवा लेने में
गौरव महसूस किया था और उनके मित्रों ने उस यादगार क्षण को सम्हाल कर रखा था। यह
उनके अमेरिका मोह को प्रदर्शित करता है। कहा जाता है कि इमरजैंसी के दौरान
गिरफ्तारी से बचने के लिए वे अज्ञातवास पर हिमालय में साधु बन कर रहे थे तो कुछ
लोग यह भी कहते हैं कि इस दौरान भी वे विदेश में कुछ दिन रहे थे। एक समाचार पत्र
में प्रकाशित समाचार के अनुसार उन्होंने अमेरिका से बिजनिस मैनेजमेंट और मास कम्युनिकेशन
से सम्बन्धित तीन महीने का कोई कोर्स भी अमेरिका से किया था और उसमें डिप्लोमा
प्राप्त किया था। जब गुजरात में गोधरा की घटना के बाद हुये नरसंहार के बाद श्री
नरेन्द्र मोदी को कई देशों ने वीजा देने से इंकार कर दिया गया तब अमरीका द्वारा
बीजा देने से इंकार करना ही सर्वाधिक चर्चा में रहा था क्योंकि श्री मोदी ने अपने
मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी अमेरिका की यात्रा करना चाही थी। वे हमेशा से ही
भारत अमेरिका सम्बन्धों के सुधार से बड़ी सम्भावनाएं देखते आये हैं। एब्रौड
फ्रैंड्स आफ बीजेपी नामक संस्था की सदस्य संख्या भी अमेरिका में ही अधिक है जिनमें
समुचित संख्या में गुजराती हैं और भाजपा को सर्वाधिक सहयोग भी वहीं से मिलता रहा
है।
अमेरिका
का राष्ट्रपति कोई भी हो उसे भारत में विकसित होते बाज़ार को देखते हुये अच्छे
सम्बन्ध बनाना जरूरी हैं। 2014 के आम चुनावों के बाद अगर अमरीकी
राष्ट्रपति ने भारत के चुने हुए प्रधानमंत्री को व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया था
तो यह श्री नरेन्द्र मोदी के प्रति उनके विचारों में बदलाव का स्ंकेत नहीं अपितु
कूटनीतिक मजबूरी थी। जब श्री मोदी ने बराक ओबामा को बार बार सार्वजनिक रूप से उनके
पहले नाम से सम्बोधित किया तो उनके इस बदलाव ने दुनिया भर के सारे टीवी दर्शकों को
चौंकाया। काश अमरीकी राष्ट्रपति भारत के प्रधानमंत्री को सचमुच अपना दोस्त समझा
होता तो अच्छा होता। जाते जाते उन्होंने जब यह कहा कि अगर भारत धार्मिक आधार पर
नहीं बंटा तो बहुत उन्नति करेगा तो उसका साफ और सही संकेत ग्रहण किया गया। देश को
धार्मिक आधार पर बांटने के सारे खतरे केवल और केवल श्री मोदी की पार्टी और उस
पार्टी के पितृ संगठन की ओर से हैं। जिस दूसरे धार्मिक संगठन से यह खतरा हो सकता
था वह पहले ही एक बार देश का बंटवारा करा के अल्पसंख्यक में बदल चुका है और वह
केवल रक्षात्मक टकराव ही मोल लेता है। भाजपा के केन्द्र में आने के बाद कश्मीर में
चल रहे आन्दोलन के हल होने के आसार बढ गये हैं क्योंकि उसके हल में आ रही प्रमुख
अड़चनों में से एक भाजपा द्वारा सत्ता के लिए भावनात्मक राजनीति करना भी था। आज
राष्ट्रीय सहमति के साथ जो समझौते भाजपा कर सकती है वह किसी दूसरे सत्तारूढ दल को नहीं
करने देती। यही कारण रहा कि बराक ओबामा के विदाई संदेश का सीधा निशाना श्री नरेन्द्र मोदी और उनकी
पार्टी ही रही है। इस सन्देश के बाद मोदी जी का ओबामा को पहले नाम से पुकारना अधिक
विडम्बनापूर्ण लगने लगा था।
मोदी
जी का बार बार कपड़े बदलना, चटख रंगों वाले मंहगे ऐसे सूट का पहिनना जिसकी धारियों
पर उनका नाम लिखा हो बहुत ही बचकाना हो गया। गणतंत्र दिवस की परेड में वे यह
प्रोटोकाल भी भूल गये कि परेड की सलामी केवल राष्ट्रपति ही लेते हैं। इससे भी
ज्यादा दुखद यह हो गया कि साम्प्रदायिक कटुता से सोचने वाली उनकी प्रचार टीम ने
उपराष्ट्रपति द्वारा परम्परा और प्रोटोकाल का पालन करने पर उनकी राष्ट्रभक्ति पर
ही सवाल खड़ा कर दिया क्योंकि वे मुस्लिम परिवार में जन्मे हैं। इसे देखते हुए
ओबामा का विदाई सन्देश अधिक संकेतक महसूस हुआ। दुनिया भर के देशों और सरकारों पर
गहन दृष्टि रखने वाले अमरीका के राष्ट्रपति ने बहुत वर्षों बाद आयी पूर्ण बहुमत
वाली सरकार की प्रमुख कमजोरी पर उंगली रख दी।
ओबामा
की इस यात्रा से मोदी सरकार का प्रभाव देश की विदेशमंत्री की सीमित भूमिका, वित्त
और गृहमंत्री के आपसी सम्बन्ध तथा सत्तारूढ संगठन का अल्पसंख्यक ईसाइयों के साथ
व्यवहार के अनुसार भी पड़ा होगा। पाकिस्तान का मददगार अमरीका हमें अपने ग्रुप में
शामिल किये बिना कभी भी सशक्त. संगठित, और पूर्ण स्वतंत्र नहीं देखना चाहता
क्योंकि यही उसकी साम्राज्यवादी सोच के हित में है। ओबामा ने इसी प्रभव में परमाणु
रियेक्टरों की सम्भावित दुर्घटनाओं के बारे में कोई भी जिम्मेवारी लेने से साफ
इंकर कर दिया और हमें ही झुकना पड़ा। अच्छी
दोस्ती बराबर वालों में ही सम्भव हो पाती है। हमारे प्रधानमंत्री को अगर अमरीका
अपने प्रति अतिरिक्त मोहग्रस्त समझेगा तो वह ऐसा ही बनाये रखने के लिए हमारा सशक्त
होना पसन्द नहीं करेगा। फिल्म ‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है’ का एक रूपक
है जिसमें नसरुद्दीन शाह एक कार मैकेनिक की भूमिका में हैं और एक सम्पन्न परिवार
का युवक अपनी कार की अच्छी सर्विसिंग के लिए उसे अपना दोस्त होने का भ्रम देता है।
गलतफहमी का शिकार नसरुद्दीन जब उसकी कार में विशेष मेहनत करके सुधारने के बाद कार
की डिलीवरी करने उसकी कोठी में जाता है और उसके नाम से बुलाते हुये उसकी माँ को
उसे अपना दोस्त बतलाता है तो उसकी माँ उसे सौ रुपया बख्शीस देते हुए उसकी औकात
बतला देती है।
काश
अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा सचमुच ही हमारे प्रधानमंत्री के यार होते, पर ऐसा है
नहीं।
वीरेन्द्र जैन
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