मंगलवार, दिसंबर 28, 2010

बिहार में विधायक निधि की समाप्ति- फैसला जेडी[यू[ का या एनडीए का

बिहार में विधायक निधि की समाप्ति
ये फैसला जेडी[यू] का है या एनडीए का?
वीरेन्द्र जैन
बिहार में नितीश कुमार ने सत्ता में वापिस लौटते ही चुनावों के दौरान किये गये वादे के अनुसार विधायक निधि समाप्त करने का फैसला ले लिया। इस क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को देखते हुए इस फैसले की व्यापक सराहना हुयी है। यह विषय उस समय भी चर्चा में आया था जब तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने भी सांसद निधि समाप्त करने पर विचार करने के लिए कहा था। स्मरणीय यह भी है कि जब वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में गठित द्वित्तीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने सरकार से यह सिफारिश की थी कि वह सांसद विधायक निधि को समाप्त कर दे, तब इस सिफारिश का समर्थन करते हुए भाकपा के महासचिव ए.बी. बर्धन ने कहा था कि बामपंथी दल तो शुरू से ही इस योजना के विरोधी रहे हैं। इस तरह देखा जाये तो इस निधि के दुरुपयोग को देखते हुए देश के अधिकांश दल सैद्धांतिक रूप से इस निधि के खिलाफ मुखर रहे हैं किंतु इसकी समाप्ति के साहस करने का श्रेय नितीश कुमार को जाता है।
बिहार में विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद जहाँ सारे समाचार पत्र और टिप्पणीकार इसे नितीश की जीत बता रहे थे वहीं भाजपा इसे एनडीए की जीत बता रही थी और वह मानती है कि बिहार में नितीश के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी है। यदि इसे सच माना जाये तो बिहार में विधायक निधि समाप्त करने का फैसला एनडीए का हुआ न कि जेडी[यू] का। एनडीए में सबसे बड़ा दल भाजपा है जिसे राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है। इस तर्क से गुजरात, छत्तीसगढ, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, झारखण्ड और पंजाब में भी एनडीए की सरकारें हैं। जब एक राज्य में विधायक निधि समाप्ति करने के बाद सभी ओर से साधुवाद मिलता है तो इस नीति को दूसरे एनडीए शासित राज्यों तक भी फैलाया जाना चाहिए। पर क्या कारण है कि उपरोक्त राज्यों को तो छोड़ ही दीजिए बिहार में भी इस नीति को लागू करवाने का श्रेय भाजपा को नहीं मिल रहा है। क्या भाजपा बिहार में सचमुच इस नीति को लागू करवाने के पक्ष में रही या यह नितीश कुमार का एक पक्षीय फैसला था? यदि यह एनडीए का फैसला है और भाजपा अपने को एनडीए में सम्मलित दलों का नेता मान कर चलती है तो उसे अपने द्वारा शासित राज्यों में भी इसे तुरंत ही लागू करवाना चाहिए अन्यथा यह केवल नितीश कुमार का ही फैसला माना जायेगा। पिछले दिनों जब सांसद निधि बेचने वाले सांसदों को स्टिंग आपरेशन में पकड़ा गया था तब उसमें छह में से तीन फग्गन सिंह कुलस्ते, चन्द्रप्रताप सिंह, और राम स्वरूप कोली तो भाजपा के थे। फग्गन सिंह कुलस्ते तो उस दौरान भाजपा के सचेतक और अनुसुचित जाति मोर्चे के अध्यक्ष भी थे। यदि यह तर्क दिया जाये कि उनके इस काम में पार्टी की जिम्मेवारी नहीं बनती है तो वह इसलिए गलत होगा क्योंकि उसके बाद भाजपा ने उन्हें फिर से टिकिट देकर यह सन्देश दिया कि उनका काम पार्टी की निगाह में गलत नहीं है। श्री फग्गन सिंह कुलस्ते तो परमाणु विधेयक पर बहस के दौरान फिर से चर्चा में आये थे जब उन्हें भाजपा के अन्य दो सांसद अशोक अर्गल, और महावीर भगौरा के साथ सदन में एक करोड़ रुपयों को लहराते देखा गया। यह जिज्ञासा सहज ही हो सकती है कि अगर यह रकम सचमुच ही यूपीए के किसी घटक ने दी थी तो उसने इसके लिए श्री फग्गन सिंह कुलस्ते का चुनाव ही क्यों किया। उल्लेखनीय यह भी है जिस दृष्य को देश के चालीस लाख लोग देख रहे थे उस घटना के बारे में कोई भी जाँच अभी तक नहीं हो पायी है कि वो एक करोड़ रुपये सचमुच किसने दिये थे और वे कहाँ से आये थे। आज भ्रष्टाचार के बारे में बहुत बातें हो रही हैं किंतु यह कोई पता नहीं लगाना चाहता कि पूरे एक करोड़ की रकम को खर्च करने के पीछे किसका क्या हित हो सकता था और चारे की तरह डाल दी गयी इस रकम को खर्च करने वाले ने उसके पीछे अपना कितना हित साधा होगा। यह मामला तो देश की सुरक्षा और दूसरे महत्वपूर्ण मुद्दों से भी जुड़ा हुआ था। इसी तरह पैसे लेकर सवाल पूछने के लिए किये गये स्टिंग आपरेशन में भाजपा सांसद प्रदीप गान्धी को भाजपा ने छतीसगढ में चुनावों का प्रभारी बनाया था। जब स्वयं उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष रंगे हाथों देश की रक्षा के लिए उपकरण सप्लाई के नाम पर किये गये स्टिंग में पकड़े गये थे तो उनकी गैर राजनीतिक पत्नी को राजस्थान के सुरक्षित क्षेत्र से सांसद चुनवा कर उनके पद त्याग की भरपाई की थी। जब भाजपा ने स्पेक्ट्रम घोटाले में जेपीसी जाँच की माँग पर पूरा सत्र नहीं चलने दिया तो यह जरूरी हो जाता है कि वह भ्रष्टाचार के बारे में अपने पत्ते साफ साफ खोले अन्यथा यह भ्रष्टाचार का खुलासा नहीं, अपितु प्रतियोगिता का हिस्सा हो कर रह जायेगा।

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

सोमवार, दिसंबर 20, 2010

उमा भारती का प्रदेश निकाला


उमाभारती का प्रदेश निकाला वीरेन्द्र जैन
राष्ट्रभक्ति का त्रिपुण्ड लगाये फिरने वाला संघ परिवार देश की गम्भीर से गम्भीर परिस्तिथि में भी सत्ता की राजनीति के सस्ते हथकण्डे अपनाने से बाज नहीं आता। कश्मीर में विदेशी घुसपैठियों और अलगाववादी तत्वों ने अपने मिशन को पाने के लिए वहाँ जो साम्प्रदायिक तनाव पैदा किया था उसके दुष्परिणाम स्वरूप कुछ हजार कश्मीरी पण्डितों को घाटी छोड़कर प्रदेश के दक्षिणी हिस्से जम्मू और कुछ को दिल्ली में शरण लेनी पड़ी थी। इस दुखद स्तिथि को संघ परिवार एक हथकण्डे की तरह से लगातार भुनाने में लगा है और इस सम्वेदनशील राज्य में अलगाववादियों के मंसूबों को पूरा करने में मददगार हो रहा है। इन विस्थापित नागरिकों को गत दो दशक से सरकार की ओर से प्रतिमाह आर्थिक मदद दी जाती है जो चार हजार रुपये प्रतिमाह, नौ किलो गेंहूँ, दो किलो चावल, और एक किलो चीनी तक सीमित है। धरती की जन्नत छोड़कर आने वालों को दस गुणा बारह का टीन की छत वाला एक आश्रय उपलब्ध कराया गया है। भले ही देश के नागरिकों की औसत आमदनी से यह सहायता दुगुनी होती है, किंतु अपने वतन से विस्थापित हुओं के लिए इस राशि को कितना भी बड़ा दिया जाये पर उनके जबरन विस्थापन के दर्द का मुआवजा नहीं बन सकता। केन्द्र में किसी भी दल की सरकार रही हो वह यह चाहती रही है कि शरणार्थियों की तरह रह रहे इन विस्थापितों को अपने स्थान पर वापिस लौटने का मौका मिले। यह स्थिति केन्द्र में भाजपा के शासन काल में भी नहीं बदल सकी थी। अंतर केवल इतना है कि जब केन्द्र में भाजपा सरकार नहीं होती तब वे इस दुखद स्थिति पर गैरजिम्मेवाराना राजनीति करते हुए इसे साम्प्रदायिक भेदभाव फैलाने का आधार बना लेते हैं इससे स्थिति और कठिन हो जाती है और सुधार की सम्भावनाओं को ठेस लगती है।
इसी संघ परिवार की राजनीतिक शाखा भाजपा, अपनी एक वरिष्ठ नेता उमा भारती को उनके अपने प्रदेश से निकाला दे रही है, जबकि उमा भारती को उसी तरह मध्य प्रदेश पसन्द है जिस तरह तस्लीमा नसरीन को बंगाल की धरती पसन्द है। सुश्री उमाभारती बचपन से ही जनता के प्रिय काव्य रामचरित मानस को कंठस्थ करने के लिए लोकप्रिय हो गयी थीं। भाजपा ने जब सत्ता पाने के लिए अयोध्या में रामजन्म भूमि मंदिर के बहाने राजनीतिक अभियान छेड़ा था तो सभी तरह की उपलब्ध लोकप्रियता को वोटों में भुनाने की जुगत भिड़ाई थी। सुश्री भारती की लोकप्रियता का राजनीतिक लाभ लेने के लिए उन्हें उनके धार्मिक कार्य से विमुख करके पार्टी में सम्मलित कर लिया गया था और लोकसभा का टिकिट दे दिया गया था। स्मरणीय है कि सुश्री भारती भाजपा के पास टिकिट माँगने नहीं गयी थीं अपितु भाजपा की नेता विजया राजे ने आगे आकर उन्हें उसी तरह टिकिट दिया था, जिस तरह बाद में हेमा मलिनी, स्मृति ईरानी, दीपिका चिखलिया, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना, दारा सिंह, नवजोत सिंह सिद्धू, चेतन चौहान, धर्मेन्द्र, अरविंद त्रिवेदी,आदि आदि को दिया गया था। कहा जाता है कि औपचारिक शिक्षा कम लेने के कारण उनके जन्म वर्ष का उचित रिकार्ड उपलब्ध नहीं था और उनकी उम्र उस समय लोकसभा सदस्य हेतु उम्मीदवार के लिए तय उम्र की सीमा से कम थी, पर इस पर कोई ध्यान ही नहीं गया। उन्हें उनकी लोकप्रियता, प्रवचन कला में प्रवीणता, वाक पटुता और भगवा वस्त्रों के प्रभाव के कारण बाबरी मस्जिद ध्वंस अभियान में आगे आगे रखा गया था, जिसमें वे अभी भी अभियुक्तों की सूची में हैं। उन्होंने अपनी लोकप्रियता के कारण चुनाव में लगातार विजयश्री प्राप्त की और कभी लोकसभा में दो की संख्या तक सिमिट गयी भाजपा की सीटों की बढोत्तरी में अपना अतुल्य योगदान दिया व दूसरी कई सीटों के लिए भी प्रचार कार्य किया। जब केन्द्र में भाजपा की सरकार बनी तो भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को उन्हें मंत्री बनाना पड़ा। किंतु केन्द्र में मंत्री बनने के लिए तो वे लोग सबसे आगे लगे थे जो चुनाव जितवाने में सबसे पीछे रहते हैं, इसलिए उमाभारती को मंत्री पद से मुक्त करके मध्य प्रदेश में भेज दिया गया क्योंकि उस समय प्रदेश में विधानसभा चुनाव में जीत दिला सकने की जिम्मेवारी लेने वाला कोई नहीं था। वे केन्द्र का मंत्री पद छोड़ना नहीं चाहती थीं उन्होंने पहले तो इंकार किया तथा उसके बाद अपनी अस्वीकार्य योग्य शर्तें रख दीं। परिस्तिथि का तकाजा था कि वे शर्तें भी भाजपा नेतृत्व द्वारा स्वीकार कर ली गयीं, जिनमें टिकिट बाँटने का अधिकार और जीतने की स्तिथि में मुख्यमंत्री पद की पुष्टि की शर्त भी सम्मलित थी। संयोग से चुनाव जीत लिया गया था और वचन बद्धता में अनचाहे उमाजी को मुख्यमंत्री का पद देना पड़ा था। किंतु लोकप्रियता को केवल सत्ता हथियाने के लिए उपयोग करने वाले भाजपा नेतृत्व को यह हजम नहीं हो सका व उन्हें स्वतंत्र रूप से काम नहीं करने दिया गया। सलाहकारों के नाम पर चार व्यक्तियों का घेरा डाल दिया गया और बाद में तो एक बहाने से उनका स्तीफा ले ही लिया गया और वह कारण समाप्त हो जाने के बाद भी नहीं लौटाया गया। उन्होंने लाख कहा कि यह सरकार उनके बच्चे की तरह है जिसे जबरन छीन लिय गया है, उन्होंने अपने समर्थन में विधायकों के बहुमत होने का परीक्षण कराने को कहा किंतु किसी बात पर ध्यान नहीं दिया गया। सत्ता की ताकत और लालच से उनके जनान्दोलनों को गति नहीं पकड़ने दी गयी। चुनावों में उन्हें हरवाने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया गया, यहाँ तक कि उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री पर उनकी हत्या करवाने के प्रयास का आरोप भी लगाया था। उनकी वापिसी के विचार पर भाजपा हमेशा दो फाड़ रही और एक पक्ष ने उनका आँख मूंद कर विरोध किया जिस कारण उनके लिए भाजपा का दरवाजा सुई के छेद से भी छोटा होता गया। पर जो दल कुछ कूटनीतियों के आधार पर विकसित होते हैं उनको अपनी योजनाओं के भागीदारों को दूर कर पाना सम्भव नहीं होता। जो दबाव अमर सिंह का मुलायम सिंह पर बना हुआ है लगभग वैसा ही दबाव उमाभारती का बाबरी मस्जिद ध्वंस के सहअभियुक्तों पर बना हुआ है। इसलिए उनको वापिस लेने पर अडवाणीजी तैयार हो गये हैं, किंतु वे उन्हें मध्यप्रदेश में कदम नहीं रखने देना चाहते। इस शर्त को उन्हें उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाने के नाम पर छुपाया जा रहा है। एक सन्यासी की कोई जाति नहीं होती इस कारण से उमाभारती की लोधी या पिछड़ीजाति के नेता के रूप में कोई पहचान नहीं है, जब भी वे कल्याण सिंह के सामने खड़ी होंगीं तो यूपी में उन्हें पीछे ही रखा जायेगा। यूपी में पहले से ही पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह, कार्यरत हैं तो कलराज मिश्र, लालजी टंडन समेत, महंत अवैद्यनाथ समेत दर्जन भर बड़े स्थानीय नेता पूर्व से ही हैं, जो भाजपा को चौथे नम्बर पर बमुश्किल बनाये हुये हैं, ऐसे में उमाभारती से कुछ आशा करके जिम्मेवारी सौंपी जा रही है यह मानना हास्यास्पद ही होगा। दर असल उन्हें अपने प्रदेश, मध्यप्रदेश से निकाला दिया जा रहा है क्योंकि उन्होंने प्रदेश भाजपा में जो गुट विकसित कर दिया है वह शिवराज सरकार के लिए खतरा बनता जा रहा है। स्मरणीय है कि पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, बाबूलाल गौर, उद्योगमंत्री कैलाश विजयवर्गीय,वरिष्ठ सांसद सुमित्रा महाजन जैसे कद के नेता उनकी वापिसी का समर्थन कर चुके हैं। दूसरी ओर शिवराज सिंह, और प्रभात झा जैसे लोग उन्हें पास भी फटकने नहीं देना चाहते। कहा जाता है कि शिवराज सिंह ने तो उन्हें प्रवेश देने की स्तिथि में स्तीफा देने की धमकी दे दी थी। यही कारण है कि उमाभारती को भाजपा में पुनर्प्रवेश देने के लिए प्रदेश से निकाला जा रहा है और उनके समर्थक यह कह रहे हैं कि एक बार प्रवेश हो जाने के बाद प्रदेश में नेता तो वही रहेंगीं, आवाज उनकी ही रहेगी भले ही वह कहीं से लगायी जाये। प्रदेश के मुख्यमंत्री आतंकित होकर अडवाणीजी के सामने दया की गुहार कर रहे हैं, और अडवाणीजी कह रहे हैं कि वे [उमाजी] राष्ट्रीय नेता नहीं हैं उनका “उपयोग” तो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों तक ही किया जायेगा, जहाँ उनका कोई महत्व नहीं है। यदि भाजपा नेता के रूप में उनका मध्यप्रदेश में प्रवेश रोका गया तो यह स्तिथि कश्मीरी पंडितों की स्तिथि से भिन्न नहीं होगी।
वीरेन्द्र जैन
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मो. 9425674629

गुरुवार, दिसंबर 16, 2010

पारदर्शी समय ---आर पार दिखता है


पारदर्शी समय
वीरेन्द्र जैन


हमारे समय को सूचना क्रान्ति के युग की तरह पहचाना जा रहा है। यह नई तकनीक के कारण ही सम्भव हो सका है। भूमण्डलीकरण का विचार इसी कारण विस्तार पा सका है क्योंकि अब पुरानी तरह की सीमाबन्दी और गोपनीयता सम्भव नहीं रह गयी है। अमेरिका के सैटेलाइट आज एशिया के देशों के बाजारों के साइनबोर्ड तक पढ सकते हैं।
आज अपने देश में ही सैकड़ों चैनलों और हजारों अखबारों के लाखों सम्वाददाता व कैमरामैन चौबीसों घन्टे किसी सामान्य असामान्य गतिविधि को कैमरे में कैद करने और उसे समाचार बना दुनिया भर में प्रसारित करने के लिए सक्रिय हैं। मोबाइलों में ही नहीं पैनों में भी कैमरे लगे हुये हैं और मोबाइल फोनों की संख्या पैंसठ करोड़ का आंकड़ा पार गयी है। इससे राजनीति का स्वरूप भी बदल रहा है। गत वर्षों में इन समाचार चैनलों के सम्वाददाताओं ने देश की एक सत्तारूढ पार्टी के अध्यक्ष को रक्षा सौदों के लिए सिफारिश करने हेतु नोटों की गिड्डियां दराज में डालते व डालरों में मांगते दिखा कर अपना पद छोड़ने के लिए व तत्कालीन रक्षामंत्री को त्यागपत्र देने के लिए को विवश कर दिया था। इन्हीं संवाददाताओं ने संसद सदस्यों को सवाल पूछने और सांसद निधि से धन आवंटन के लिए रिश्वत लेते दिखा कर पद छोड़ने को मजबूर कर स्वयं को लोकतंत्र में सचमुच चौथा पाया होने के प्रमाण दिये थे। एक सांसद कबूतरबाजी के लिये रंगे हाथ दबोचे गये थे। स्टिंग आपरेशनों में सैकड़ों भ्रष्टाचारी जनता के सामने लाये जा चुके हैं और अनेकों के पकड़े जाने की सम्भावनाएं पैदा की जा चुकी हैं। पुलिस के अधिकारियों को हत्या की सुपारी लेते और उसे कानूनी रूप देने की तरकीब स्पष्ट करते हुये कैमरों में दिखाया गया है। जेल के कैदियों को अवैध सुविधाएं पहुंचाने वाले डाक्टर भी कैमरों की कैद में आकर निलंबित हो चुके हैं। सेना में व्याप्त भ्रष्ट्राचार को भी न्यूज चैनल दिखा ही चंके हैं। एक स्वयं सेवक के अंतरंग संबन्ध तो देश भर ने सीडी द्वारा देखे ही थे धर्म परिवर्तन के बहाने राजनीति करने वाले एक मंत्री तो जाम उठा कर पैसे को खुदा बताते और रिश्वत की गिड्डियां लेते देश भर में मीडिया के द्वारा देखे गये थे। देश के एक प्रभावशाली नेता की सीडी और टेलीफोन पर सौ घन्टों से अधिक की बातचीत के टेप भी चर्चित रहे हैं। उन टेपों को ट्रम्प कार्ड की तरह स्तेमाल करने के उद्देश्यवश उसी दल में विरोधी गुट के नेता लिये घूमते रहे। एक प्रदेश के मुख्यमंत्री की पत्नी को नोट गिनने की मशीन बेचने वाले ने ही मशीन खरीदते समय वीडियो रिकार्डिंग करा के उनके प्रदेश के एक मंत्री को बेच दी थी, जो मुख्यमंत्री को ब्लेकमेल करता रहा।
आयकर विभाग वालों ने गत वर्ष में पिछले वर्ष से डेढ गुना अधिक राजस्व वसूली की है जिसमें सेवा कर की भी बड़ी राशि सम्मिलित है। आज सरकारों में बैठे लोग भले ही अपने स्वार्थों के कारण काला धन निकलवाने में विलंब कर रहे हों पर सच तो यह है कि आज के समय में सरकार चाहे तो काले सफेद सभी तरह के धन के प्रवाह को देख सकती है और उचित नियंत्रण कर सकती है। चाहे तो स्विस बैंकों में जमा धन के बारे में पता कर सकती है।
अब चुनाव आयोग पहले जैसा औपचारिक ढंग से काम निबटाने वाला संस्थान नहीं है अपितु वह मन और वचन दोनों से ही नियमों की घोषित भावनाओं के पालन हेतु भरसक प्रयत्न रत है। न्याय भी अब आगे बढ कर प्रकरणों को दुबारा खुलवा कर सुनवाई करवा रहा है और सरकारों पर सख्त टिप्पणियां कर रहा है। सरकारों को मजबूर होकर जनता को सूचना का अधिकार देना पड़ा है, जो अभी भले ही वांछित गति नहीं पकड़ पाया हो पर इरादा होने पर इस दौर में उसे देर नहीं लगेगी। इससे नौकरशाही में एक दहशत सी है, भले ही भ्रष्टाचार के नितप्रति उद्घाटनों से वह बड़ा हुआ महसूस हो रहा हो।
यह पारदर्शी समय है। जिन मोबाइल फोनों ने अपराधियों को अनेक सुविधायें दी हैं उन्हीं में दर्ज रिकार्ड के कारण अपराधियों और उनके सम्पर्कों तथा सन्देहास्पदों की पिछली गतिविधियों का पता चल जाता है। मंत्रालयों, बैंकों, एटीएमों, पेट्रोलपम्पों, प्रमुख मार्गों और रेलवे स्टेशनों पर कैमरे लगे हैं। अब इंटरनेट से सारी दुनिया के नक्शे ही नहीं सड़कें और बाजार भी देखे जा सकते हैं। दुनिया के अरबों लोगों के प्रोफाइल इंटरनेट पर उपलब्ध हैं जिसकी विभिन्न साइटों पर लोग प्रतिदिन अपने मनोभाव उगलते रहते हैं। यह खुलने का समय है और जो खुद नहीं भी खुलना चाहते उन्हें समय खोल रहा है। कार्यालयों में आने जाने और हाजिरी व छुट्टियों के हिसाब का काम कम्प्यूटर से होने लगा है। मोबाइल पर फील्ड के अधिकारियों की लोकेशन समझी जा सकती है। कम्प्यूटर और नेट इस बात का स्थायी रिकार्ड रखते हैं कि आपने कब कब कितने बजे कितने समय तक कौन सी साइट देखी या किस फाइल पर काम किया। आज दुनिया वालों के दिलों और दिमागों को भी पढे और समझे जाने की ओर तेजी से प्रगति हो रही है। विकीलीक्स ने जिन रहस्यों से पर्दा उठाया है उससे अमरीका समेत दुनिया भर के नेता और सरकारें हिल गयी हैं।
यह आश्चर्यजनक है कि इस पारदर्शी समय में भी हमारे देश के राजनीतिक नेता सरेआम नंगा झूठ बोलने से गुरेज नहीं करते। ढीठतापूर्वक झूठ बोलते हैं और उस झूठ को एक कुलीन भाषा में पिरोने के लिए जाने माने वकीलों को प्रवक्ता बनाते हैं। लाखों लोगों द्वारा देखे गये अपराध को भी भाषायी कौशल से छुपाने की कोशिश करते हैं। ये लोग धर्म ग्रन्थों की शपथ लेकर जैसा सच बोलते हैं वह ''अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो'' जैसा सच होता है।
अब हम जितनी जल्दी यह स्वीकार लें उतना ही अच्छा होगा कि यह समय नंगे यथार्थ का समय है तथा भविष्य में कुछ भी ढका मुँदा नहीं रह जाने वाला है। कोई नहीं जानता कि कौन सा कैमरा किसे शूट कर रहा है, कौन सा टेप किसकी आवाज रिकार्ड कर रहा है, किसके खातों की नकल किसके पास है और तो और अब नारको टैस्ट से भी सच उगलवाया जा सकता है। महापुरुषों ने सदियों से जिस सत्य को बोलने के लिए उपदेश दिये हैं पर फिर भी मानव जाति जिस पर अमल नहीं कर रही थी आज तकनीक उस पर अमल कराने के की ओर बढ रही है।

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल म.प्र.
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बुधवार, दिसंबर 08, 2010

यह ब्लेकमेलरों की भाषा है language of blackmailers


यह ब्लैकमेलरों की भाषा है

वीरेन्द्र जैन
कभी अपने आप को मुलायम सिंह का हनुमान और कभी टेलर बताने वाले अमर सिंह ने अब कहना शुरू कर दिया है कि अगर उन्होंने मुँह खोल दिया तो सपा नेता जेल में होंगे।
इन दिनों कोई एमरजैंसी नहीं लगी हुयी है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है और संघ के पूर्व सर संघ चालक समेत कोई भी कुछ भी बोल रहा है, तब फिर समाजवादी पर्टी के पूर्व महासचिव अमर सिंह को मुँह खोलने से कौन रोक रहा है? जहाँ तक मुलायम सिंह से उनकी पुरानी मित्रता का सवाल है तो उसे तो वे वैसे भी कब की तिलांजलि दे चुके हैं। वे भूल चुके हैं कि ठाकुर अमर सिंह के राजनीतिक उत्थान और उसके सहारे हुये उनके आर्थिक उत्थान में यादव जाति के समर्थन से नेता बने मुलायम सिंह यादव का समुचित योग दान रहा था, और मुलायम सिंह को राजनीति में अर्थजगत के महत्व को उन्होंने ही पहलवान मुलायम सिंह को समझाया था। इस दौरान वे मुलायम सिंह यादव को दो जिस्म एक जान कहते थे। इस अहसान फरामोशी का प्रमाण तो उनके निम्नांकित बयानों से ही मिल जाता है जिनका ना तो उन्होंने कभी खण्डन किया और ना ही ये कहा कि ये प्रैस ने तोड़ मरोड़ कर छाप दिये हैं-
-मुम्बई। अमर सिंह ने कहा कि सपा का अर्थ मुलायम सिंह और उनका परिवार है और कुछ नहीं।[पीपुल्स समाचार] -इलाहाबाद। समाजवादी पार्टी के पूर्व महा सचिव अमर सिंह ने रविवार को सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव पर अब तक का सबसे करारा हमला बोला है। अमर ने कहा है कि उनके जीने से ज्यादा जरूरी है मुलायम सिंह यादव का मरना। मुलायम सिंह ने मुसलमानों को हमेशा धोखा दिया है। [दैनिक भास्कर 10 अगस्त 2010]
-रायबरेली। सोनिया के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में दंगल प्रतियोगिता के उद्घाटन में शामिल होने आये समाजवादी पार्टी के निष्कासित नेता अमर सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गान्धी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जम कर तारीफ की साथ ही सोनिया गान्धी को अच्छे व्यक्तित्व वाली दुनिया की सबसे बेहतर नेता भी बताया। [पीपुल्स समाचार 1 सितम्बर 2010]
लखनउ। अमर सिंह ने यहाँ आयोजित “ देश के मौजूदा हालात और मुसलमान” विषय पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि चौदह साल तक जिनकी जबान को कुरान की आयत और गीता का श्लोक समझा उन्हीं ने हमें रुसवा किया। मुलायम सिंह ने ही कल्याण सिंह को सपा में शामिल किया। व्यक्तिगत रूप से में कल्याण सिंह को मुलायम सिंह से बेहतर व्यक्ति मानता हूं क्योंकि वे साफ बात करते हैं और अपने कार्यों को स्वीकार करते हैं। कभी हमारे बगलगीर रहे मुलायम वर्ष 2003 में जनादेश की वजह से नहीं बल्कि मेरी कलाकारी से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने रह सके थे। राज बब्बर को समाजवादी पार्टी में लाने और विश्व हिन्दू परिषद के वरिष्ठ विष्णु हरि डाल्मियाँ के बेटे संजय डाल्मियाँ को पार्टी का कोषाध्यक्ष और सांसद बनाने वाले मुलायम सिंह ही हैं। [जनसत्ता 19 अक्टूबर 2010] नई दिल्ली। मुलायम सिंह मेरे घर पर कब्जा किये हुये हैं और खाली नहीं कर रहे हैं। महारानी बाग का यह घर मैंने ही मुलायम सिंह को दिया था जिसका किरायानामा राम गोपाल के नाम से बना हुआ है जो मुलायम सिंह के निकट के रिश्तेदार हैं [डीबी स्टार नवम्बर 2010] कभी सोनिया गान्धी को प्रधानमंत्री न बनने देने के लिए विदेशी मूल का मुद्दा उछालने वाले अमर सिंह आज कल प्रति दिन मुलायम सिंह को कोसते रहते हैं। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब वे मुलायम सिंह और उनके रिश्तेदारों, भाई भतीजों के खिलाफ असंसदीय भाषा में कुछ न कुछ नहीं कहते हों। अपने ताज बयान में वे कहते हैं “आजम खान यह समझ लें कि अगर मैंने मुँह खोल दिया तो मुलायम सिंह यादव मुश्किल में पड़ जायेंगे, उनको जेल जाना पड़ सकता है, जो आजम खान मुझे दलाल कह रहे हैं, पहले वे जरा यह बताएं कि मैंने उन्हें क्या क्या दिया है। मुझे सप्लायर कहने वाले समाजवादी पार्टी के अन्य नेता भी आगे आकर बताएं कि मैंने उन्हें या मुलायम सिंह को क्या सप्लाई किया है,”।
इतना सब कुछ कह लेने के बाद वे अब और क्या छुपाना चाहते हैं। यह राजनीतिज्ञों की भाषा नहीं अपितु ब्लेकमेलरों की भाषा है। वे सार्वजनिक रूप से पूर्व मित्र हो चुके जिन मुलायम सिंह यादव के मरने तक की कामना करते हैं उन्हें जेल जाने से वे क्यों बचाना चाहते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि ऐसी कोई बात कहने पर वे खुद किसी अधिक बड़े अपराध में सम्मलित पाये जायें और उसी से बचने के लिए वे गोलमाल भाषा में धमकी दे रहे हैं। अमर सिंह जैसे जनाधार विहीन नेता हमारे लोकतंत्र के लिए एक बड़े अभिशाप की तरह हैं जो जनता को निरी मूर्ख और स्मृतिहीन मानते हैं। ऐसे लोग ही लोकतंत्र को जोड़तोड़ और जनसमर्थन को कारपोरेट घरानों के यहाँ गिरवी रखवाने का काम करते हैं। लायजिनिंग का जो काम नीरा राडिया राजनीति में आये बिना करती रहीं वही काम अमर सिंह जैसे लोग राज्यसभा की सदस्यता से मिल चुकी विशिष्ट स्तिथि का दुरुपयोग करते हुये करते रहे हैं। देश के रक्षामंत्री पद पर रह चुके किसी नेता ने यदि जेल जाने लायक अपराध किया है तो उसे छुपाना और उसकी ओट में अपने राजनीतिक हित साधना भी अपराध है, जो अमर सिंह जैसे लोग डंके की चोट पर करते रहते हैं।
अपनी सामाजिक जिम्मेवारी समझते हुए सुप्रीम कोर्ट जिस तरह से राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों को कटघरे में खड़ा कर रहा है, तब देश की सुरक्षा से जुड़े रहे किसी व्यक्ति कथित अपराध को छुपाने का अपराध करने वाले उसकी दृष्टि से अलक्षित क्यों हैं? जरूरत तो इस बात की है कि देश के सारे जनप्रतिनिधियों और उसकी पेंशन लेने वाले भूतपूर्व जनप्रतिनिधियों से यह शपथ पत्र लिया जाये कि कानून विरोधी किसी भी गतिविधि का पता चलते ही वे शीघ्रातिशीघ्र कानून की निगाह में लायेंगे और दोषी को सजा दिलाये जाने में कानून की भरपूर मदद करेंगे। ऐसा न करने पर वे स्वयं भी अपराध छुपाने के अपराधी माने जायेंगे।

वीरेन्द्र जैन
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