मंगलवार, अगस्त 23, 2022

फिल्म लाल सिंह चड्ढा – इसके बायकाट पर हतप्रभ दर्शक

 

फिल्म लाल सिंह चड्ढा – इसके बायकाट पर हतप्रभ दर्शक

वीरेन्द्र जैन


जब खबर मिली की फिल्म लाल सिंह चड्ढा के बायकाट का प्रभाव हुआ है और टिकिट खिड़की पर पिट जाने के कारण सिनेमा घरों में यह आगे उपलब्ध नहीं होगी तो गुरुवार को अपनी व्यस्तता में से समय निकाल कर देखने जाना पड़ा। दिन में पौने बारह बजे जिस राज टाकीज में शो था उसने दर्शकों के अभाव में शो चलाने में असमर्थता व्यक्त कर दी। भागे भागे बारह बजे के शो वाले संगम सिनेमा हाल में गये तो उसने हम दो दर्शकों के होते हुए भी शो चलाने की सहमति दी। बाद में क्रमशः पाँच दर्शक और जुड़े जिनमें से भी दो किशोर किशोरी थे जो फिल्म देखने की जगह कम भीड़ वाले शो में एकांत का सुख लेने आये प्रतीत होते थे क्योंकि शो शुरू होते ही वे हमारे आगे की सीट से उठकर किसी कोने वाली सीट पर जाकर बैठ गये थे।

फिल्म समाप्त होने के बाद मेरे साथ गये दर्शक के मुँह से बायकाट कराने वालों के लिए एक भद्दी सी गाली निकली जो इस बात के लिए थी कि इस फिल्म में उन्हें बायकाट के लायक कुछ भी नजर नहीं आया जबकि पिछले दशक की दर्ज़न भर उन सफल फिल्मों के नाम और दृश्य उन्हें याद आ रहे थे जिनका कोई विरोध नहीं हुआ था। इस बायकाट के पीछे उन्हें इसे चर्चित करने के हथकण्डे की आशंका भी नजर आयी। सबसे ज्यादा गुस्सा उन्हें उन मूर्ख लोगों पर आया जिन्होंने बिना जाँचे परखे इस बायकाट का समर्थन करते हुए फिल्म से दूरी बनाये रखी। पूरी फिल्म बहुत शांत भाव से साहिर की युद्ध विरोधी नज़्म का पाठ सा करती नजर आती है, जिसमें नायक के नाना, परनाना, और पड़नाना क्रमशः पहले दूसरे विश्वयुद्ध और फिर पकिस्तान के साथ हुये युद्ध में शहीद हुये थे।  

यह आज़ादी के दो दशक बाद सिख परिवार में पैदा हुये उस मन्द बुद्धि कैलीपर्स के सहारे चलने वाले बच्चे की कहानी है जिसे अपनी शारीरिक और मानसिक कमजोरी के कारण समाज में अपनी माँ को छोड़ कर हर तरफ से नफरत झेलने को मिलती है तो दूसरी ओर घर से बाहर कहीं कहीं से मिली सहानिभूति की किरणों के सहारे वह अपनी कमजोरियों पर विजय पाता है और सन्देश देता है कि नफरत की तुलना में प्रेम ज्यादा शक्तिशाली होता है। इसमें उसकी माँ द्वारा जगाया गया यह आत्मविश्वास भी प्रेरक शक्ति बनता है कि वह किसी से कम नहीं है। आत्मविश्वास की जिस कमी के कारण उसे कैलीपर्स पहिनने पड़ते थे किंतु एक संकट के समय जब वह बचकर भागता है तो न केवल कैलीपर्स से मुक्त हो जाता है, अपितु वह अपने स्कूल कालेज की रेस में भी अव्वल नम्बर पर  आने लगता है। इसी प्रतिभा के सहारे उसे उसकी सहपाठी लड़की की ओर से न केवल सहानिभूति व प्रोत्साहन मिलता है अपितु अपने नानाओं के कदमों का अनुशरण करते हुए फौज में जाने का मौका मिलता है। फौज में उन अनुशासित लोगों को बहुत पसन्द किया जाता है जो यंत्रवत अपने कमाण्डर के दिमाग से काम करते हैं। वे निर्भय होते हैं और चालाकी उन्हें नहीं आती। बच्चे सबको इसीलिए तो अच्छे लगते हैं क्योंकि वे निश्छल होते हैं। लाल सिंह चड्ढा भी निश्छल और साहसी है। वह दिये गये आदर्शों से प्रेरित है और निस्वार्थ भाव से लोगों और अपने साथियों की सहायता करता है। जहाँ अन्याय देखता है वहाँ बिना आगा पीछे देखे भिड़ जाता है।

बचपन से जवान होने तक देश में घटी कुछ घटनाओं से वह प्रभावित है जिसमें खालिस्तानी आन्दोलन के दौरान अमृतसर के स्वर्ण  मन्दिर में छुपे आतंकियॉं पर गोलीबारी भी एक है, संयोग से उस समय वह वहीं पर होता है, दूसरी घटना श्रीमती इन्दिरा गाँधी की हत्या के विरोध में दिल्ली में सिख समुदाय के खिलाफ घटित हिंसा में फंस जाने के कारण बचने के लिए उसे केश कटवाना पड़े थे। बाबरी मस्ज़िद तोड़ने का माहौल बनाने के लिए अडवाणी की रथयात्रा, मस्ज़िद टूटने के बाद मुम्बई के साम्प्रदायिक दंगे, मण्डल कमीशन लागू करने के बाद आरक्षण के विरोध का सवर्ण छात्रों का आन्दोलन आदि उसकी स्मृतियों में दर्ज होते हैं और वह घर से बाहर नहीं आता क्योंकि उसकी माँ ऐसे अवसरों पर कहती थी कि बाहर मत निकलना, बाहर मलेरिया फैला हुआ है।

 सेना के प्रशिक्षण के दौरान उसकी दोस्ती ऐसे ही एक दक्षिण भारतीय सैनिक से होती है जिसके दिमाग में एक चड्ढी बनियान बनाने की फैक्ट्री डालने का सपना है जिसे वह रिटायरमेंट के बाद मिले पैसे से पूरा करना चाहता है। इसके लिए वह लाल सिंह को पार्टनर बनने का प्रस्ताव देता है जिसे वह स्वीकार करके पूरा करने का वचन देता है। इसी बीच कारगिल में घुसपैठ हो जाती है जिसका पता सुरक्षा बल को बकरियां चराने वालों से मिलता है। लाल सिंह और उसके सिपाही मित्र को फ्रंट पर भेजा जाता है जहाँ वह पूरी मुस्तैदी से न केवल अपना काम पूरा करता है अपितु युद्ध में घायल सिपाहियों को इतने सेवा भाव से बचाता है कि उसमें अपनी सेना के सिपाहियों और दुश्मन देश के सिपाही में भेद नहीं करता। लड़ाई में उसका सिपाही मित्र बाला शहीद हो जाता है।

बचपन से ही उसके साथ सहानिभूति रखने वाली लड़की एक गरीब परिवार से आती है जिसके पिता ने उसकी माँ को कुछ रुपयों के लिए मार डाला होता है। अनाथ लड़की अपनी एक रिश्तेदार के यहाँ शरण लेने को मजबूर होती है और वह रिश्तेदार लाल सिंह के परिवार में काम करने वाली बाई होती है जिस कारण लाल सिंह उसके साथ ही बड़ा होता है। गरीबी के दारुण अनुभवों से दुष्प्रभवित सुन्दर लड़की के मन में किसी भी तरह धनी बनने की महात्वाकांक्षा है, इसलिए वह मन्दबुद्धि लालसिंह के व्याह रचाने के प्रस्ताव पर ध्यान केन्द्रित करने की जगह, माडल से अभिनेत्री बनने की राह पर है जिसके लिए वह अपराधी माफिया की रखैल बन कर रहती है।

कहानी का समापन इस तरह से होता है कि रिटायरमेंट के बाद लाल सिंह अपने गाँव लौट आता है और अपने दोस्त बाला को दिये वचन के अनुसार चड्ढी बनियान का काम शुरू कर देता है, जिसमें बाद में वह पकिस्तानी सिपाही भी जुड़ जाता है जिसके इलाज के दौरान दोनों पैर कट जाते हैं और उसके देश की सेना उसे अपना मान कर वापिस ले जाने से इंकार कर चुकी है।

      इस बीच में जिस माफिया सरगना ने नायिका को रखैल बना कर रखा हुआ था, उसके पीछे पुलिस है इसलिए वह लाल सिंह के पास आकर रहने लगती है। बाद में वह माफिया पकड़ा जाता है और नायिका को भी पुलिस पकड़ने आती है तो वह लालसिंह को बिना बताये पुलिस के साथ चली जाती है। जब दोबारा उसे उसकी प्रेमिका मिल कर बिछुड़ जाती है व उसकी माँ की मृत्यु हो चुकी होती है तो वह देश भर की सड़्कों पर निरुद्देश्य दौड़ लगाना शुरू करता है। राष्ट्रपति से शौर्य पुरस्कार प्राप्त सैनिक के लगातार निरुद्देश्य दौड़ से वह देश के मीडिया के आकर्षण का केन्द्र बनता है। इस बीच नायिका कुछ महीने की सजा काट कर वापिस आती है तो उसे मीडिया से उसके दौड़ने की खबर मिलती है, पर निश्चित पता ठिकाना नहीं मिलता। जेल जाने से पहले लाल सिंह के साथ बिताये कुछ दिनों के परिणाम स्वरूप जेल से बाहर आने के बाद वह एक बच्चे को जन्म दे चुकी होती है, जिसका नाम वह अमन चड्ढा रखती है। देश भर की परिक्रमा पूरी कर एक दिन थक कर जब लाल सिंह वापिस लौटता है तब उसे उसका नौकर उसकी प्रेमिका द्वारा भेजी गयी ढेर सारी चिट्ठियां देता है। उनके सहारे वह नायिका तक पहुंचता है, जहाँ उसे उसके पिता बनने की जानकारी मिलती है। नायिका बीमार है और कुछ दिनों बाद उसकी मृत्यु हो जाती है।

राजकपूर के स्कूल को आगे बढाने वाले आमिरखान ने पीके और तारे जमीं पर की तरह श्रेष्ठ अभिनय किया है। कहानी में कुछ कुछ ‘उसने कहा था’ की झलक भी मिलती है। फिल्म में इस सिरे से उस सिरे तक कहीं भी ऐसा कुछ नहीं था कि दक्षिणपंथी हिन्दूवादी संगठन इसके बायकाट का आवाहन करें। उन्होंने और उनके अन्ध समर्थकों ने उनकी बात मान कर अपनी मूर्खता का ही परिचय दिया है, जिसके लिए उन्हें माफी मांगना चाहिए।   

वीरेन्द्र जैन

2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023