शनिवार, जून 18, 2016

फिल्म समीक्षा उड़ता पंजाब – सेंसर बोर्ड विवाद से पूर्ण हुयी फिल्म

फिल्म समीक्षा
उड़ता पंजाब – सेंसर बोर्ड विवाद से पूर्ण हुयी फिल्म
वीरेन्द्र जैन

विवाद से प्रचार का ऐसा नाता जुड़ गया है कि फिल्मों से जुड़े अनेक विवाद सन्देहास्पद और नकली लगते हुए उसके व्यापार का एक हिस्सा लगते हैं। किंतु अनुराग कश्यप की फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ का विवाद पूर्व नियोजित नहीं था। फिल्मी दुनिया के साथ साथ बाहर के लोगों को भी लगा, और सही लगा कि अपनी पद स्थापना से ही कमतरी का आरोप झेल रहे सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष ने अपने राजनीतिक आकाओं के हित में एक बड़ी समस्या पर बनी फिल्म की रिलीज में अड़ंगा लगाने की कोशिश की है। इसी विवाद के बीच सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रह्लाद निहलानी ने इस बहस में खुद को नरेन्द्र मोदी का चमचा होने का आरोप स्वीकारते हुए इस आशंका को बल दिया कि फिल्म में दिखायी गई सच्चाई से भाजपा-अकाली दल की आगामी चुनावी सम्भावनाएं प्रभावित हो सकती हैं। फिल्म के काटे गये हिस्सों को दिखाने की अनुमति देकर न्यायालय ने विवाद को समाप्त कर दिया। पीड़ित के पक्ष में न्याय के साथ खड़े होने वाले बहुत सारे लोगों ने अपना समर्थन व्यक्त करने के लिए फिल्म को पहले दिन ही देखने का फैसला किया जिनमें से मैं भी एक हूं।
 सच तो यह है कि फिल्म में ऐसा कुछ भी नया उद्घाटित नही किया गया है जिसका विभिन्न मीडिया माध्यमों द्वारा पहले से खुलासा नहीं किया जा चुका हो। फिल्म की जिम्मेवारी थी कि उन जानकारियों को एक कथा के माध्यम से प्रस्तुत कर के संवेदनाओं से जोड़े। खेद है कि इस फिल्म में सूचनाएं तो हैं किंतु उन सूचनाओं को देने के लिए रची गयी कथा बालीवुड की चालू फिल्मों की तरह है। जरूरत यह थी कि इस विषय पर कलात्मक फिल्म बनायी जाती। कथा में इतने फूहड़ संयोग हैं जिनसे विषय को बल मिलने की जगह वह कमजोर होता है। यह तो ठीक रहा कि न्यायालय ने इसे बिना किसी कट के जारी करने का आदेश दे दिया बरना फिल्म कथा की सारी कमजोरियों का दोष भी सेंसर बोर्ड की कटौतियों के सिर जाता।
पंजाब में कृषि क्रांति के बाद आई सम्पन्नता से जन्मा अतिरिक्त धन नशे की भेंट चढ गया। शराब पर लगने वाले टैक्स साल दर साल बढते गये जिससे नशे के आदी हो चुके कमजोर आर्थिक वर्ग ने अपेक्षाकृत सस्ते नशों का उपयोग प्रारम्भ किया और इस चक्कर में हेरोइन जैसे किस्म किस्म के नशे वाले रासायनिक पदार्थ समाज में आने लगे। ये सब पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों से स्मगल हो कर आते हैं जिसके बदले में उन्हें अवैध हथियारों की सप्लाई आदि की व्यवस्थाएं भी की जाती हैं जिसके लिए देश हित को नुकसान पहुँचाने वाला एक बड़ा तंत्र स्थापित हो चुका है। इस तंत्र में सत्तारूढ दल के मंत्री, नेता, पुलिस आदि सुरक्षा एजेंसियां भी भागीदार बन चुकी हैं। इस नशे की तासीर ऐसी होती है कि जल्दी ही इसका सेवन करने वाला इसका आदी बन जाता है व इस एडिक्शन की गुलामी में वह कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। इस तरह से जुझारू कौम की एक पूरी पीढी के तेवरों को ढीला कर उन्हें गुलाम बना लिया गया है। कहा जाता है कि पंजाब में खालिस्तानी आन्दोलन के दुष्प्रचार से भटके नौजवानों को एक दूसरे भटकाव में धकेलने के लिए तत्कालीन सरकार के जिम्मेवार लोगों ने इसे प्रारम्भ में ही रोकने की गम्भीर कोशिशें नहीं कीं। बाद में लाभान्वित पुलिस आदि सुरक्षा बलों के लोगों की दाढों में खून  लग चुका था जिन्होंने अगली सरकारों को भी उसी रंग में रंग दिया। कुछ दिनों बाद तो वे पिछलों से बहुत आगे निकल गये।
फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ में तीन अध्याय हैं। एक में पुलिस की मिली भगत से राजनीतिक संरक्षण पाये हुए एक माफिया से एक सोशल एक्टविस्ट लेडी डाक्टर के टकराने की कहानी है। यह लेडी डाक्टर [करीना कपूर] नशे के उन्मूलन के लिए चिकित्सकीय सेवायें दे रही है, पर वह इस रैकिट का खुलासा कर उसका खात्मा भी चाहती है। नशे के कारोबार से ऊपरी कमाई करने वाले पुलिस के एक असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर का छोटा भाई नशे का एडिक्ट हो जाता है तब उसे इसकी गम्भीरता का पता चलता है और वह उस लेडी डाक्टर का सहयोगी हो जाता है। दूसरा अध्याय एक राक स्टार [शाहिद कपूर] के नशे की गिरफ्त में आने का है जो गिरफ्तार होने के बाद नशा छोड़ने के साथ अपनी कलात्मकता भी खो देता है और कभी युवाओं की आँखों का सितारा रहा होने के बाद उनके आक्रोश का शिकार होता है। तीसरे अध्ययाय में बिहार में कभी हाकी खिलाड़ी रही एक लड़की [आलिया भट्ट] को मजदूरी करने के लिए पंजाब में आना पड़ता है जिसके हाथ नशे के पाउडर की एक थैली लग जाती है और उसे बेचने के चक्कर में वह नशे के माफिया की गिरफ्त में आ जाती है जो उसको न केवल कैद रखते हैं अपितु उसे नशे का इंजैक्शन दे दे कर उसका दैहिक शोषण भी करते हैं। बाद में इन तीनों अध्यायों को बालीवुड अन्दाज में बेतरतीब ढंग से जोड़ दिया गया है व रक्त रंजित अंत दिखा कर फिल्म निबटा दी गई है। अनुभवी कलाकारों ने अपनी भूमिका का यथोचित निर्वाह किया है क्योंकि कथा में ज्यादा कुछ करने की गुंजाइश ही नहीं थी।
पुलिस, राजनेता, के कारनामे सहित नशे की भयावहता के एक अंश को संकेत के रूप में दिखाने का काम तो फिल्म ने किया है पर उसकी व्यापकता और गम्भीरता को उससे पहले उठे सेंसर बोर्ड के विवाद ने कर दिया जिसे फिल्म का ही एक हिस्सा माना जा सकता है। इस विवाद के बिना यह बहुत साधारण फिल्मों में ही गिनी जाती।   
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग, रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 09425674629