सोमवार, फ़रवरी 21, 2022

कुमार विश्वास का विश्वासघात

 

कुमार विश्वास का विश्वासघात



वीरेन्द्र जैन

पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान अनुकूल संयोगों के कारण जब आम आदमी पार्टी पंजाब में कुछ बेहतर करने की स्थिति में दिख रही थी तब खराब कवि सम्मेलनों के एक अच्छे संचालक कुमार विश्वास ने एक बयान देकर उसे नुकसान पहुंचाने और अरविन्द केजरीवाल की छवि खराब करने की कोशिश की। आम आदमी पार्टी की ओर से भी उनकी बात का जबाब दिया गया। इस अनावश्यक घटनाक्रम में न केवल भाजपा और काँग्रेस पार्टी को तनाव में खुश होने का अवसर मिला भले ही उन्हें चुनावी लाभ मिलना सन्दिग्ध है। 

अतिमहात्वाकांक्षी कुमार विश्वास ने यह सोच कर बोला कि उनका कुछ भी दांव पर नहीं लगा है, और इस तरह वे केजरीवाल से उन्हें राज्यसभा में न भेजने का बदला ले लेंगे। दूसरी ओर वे काँग्रेस की राजस्थान सरकार द्वारा उनकी पत्नी को लोक सेवा आयोग की सदस्य बनाये जाने का अहसान चुका देंगे।

रोचक यह है कि इस घटनाक्रम में दोनों ही पक्ष अर्धसत्य बोल रहे हैं। यह सत्य है कि कुमार विश्वास अन्ना आन्दोलन में जुड़ते समय मंच के एक लोकप्रिय संचालक व कवि थे और अरविन्द केजरीवाल से अधिक लोकप्रिय थे। लगातार मंच संचालन और कालेज में पढाने के अनुभव से वे धाराप्रवाह रूप से बोल सकने में सक्षम थे, उनका सामान्य ज्ञान भी अच्छा है और प्रत्युन्मति [हाजिर जबाबी] भी अच्छी है। इसी आधार पर वे आन्दोलन के प्रभावी नेता के रूप में उभरे थे। आन्दोलन के एक राजनीतिक पार्टी में बदल जाने के बाद इसी आधार पर वे दल के नेतृत्व में आगे आये व जहाँ अरविन्द केजरीवाल ने भाजपा के प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा तो कुमार विश्वास को काँग्रेस के प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी राहुल गाँधी को उतारा गया था।

पारदर्शिता की बात करने वाले इस दल में बाद में न जाने क्या हुआ कि शांति भूषण, प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, कुमार विश्वास सहित ज्यादातर नेतृत्वकारी लोग अलग होते गये और पहली बार हाथ आये अवसर पर दिल्ली के दो वैश्य समाज के लोगों को राज्य सभा में भेज दिया गया जिन्होंने कुछ ही दिन पहले पार्टी ज्वाइन की थी। उल्लेखनीय है कि विधानसभा में भरपूर बहुमत लाने वाली पार्टी लोकसभा में सातों सीटें भाजपा से हार गयी थी।

कुमार विश्वास धीरे धीरे केजरीवाल के खिलाफ बोलने में मुखर होते गये और निरंतर कवि सम्मेलनों के मंचों पर अवसर पाने के कारण उनकी सार्वजनिक आलोचना में कटुता भी बढती गयी। उनकी आपत्तियां भी उचित जैसी ही थीं क्योंकि दूसरे पक्ष की ओर से कुछ भी सुनने को नहीं मिल रहा था जिससे लग रहा था कि ‘कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है’।

पिछले दिनों कुमार विश्वास ने जो कुछ कहा, उसके बारे में वे शपथ उठा कर कह सकते हैं कि वह सच है व केजरीवाल ने ऐसा ही कहा होगा, किंतु उन्होंने जब जिस सन्दर्भ के साथ कह कर जो व्याख्या की और करवायी वह बेईमानी है। वे दोनों मित्र थे और निजी बातचीत में हास्य व्यंग्य का पुट चलता ही है। सीएम न बन पाने पर एक देश का पीएम बन जाने जैसी बात में कोई गम्भीरता तलाशना नितांत बचकानापन और बच्चों की लड़ाई में कुछ भी कह देने जैसी बात हो गयी। उल्लेखनीय है कि देश में एक समय खालिस्तान के नाम से एक अलगाववादी आन्दोलन चला था जिसमे लगातार सैकड़ों लो मारे गये और बाद में हरमन्दिर साहब में छुपे आतंकियों को बाहर निकालने के लिए गोले चलाने पड़े जिसके बदले में प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी की हत्या हुयी। फिर देश में सिख विरोधी दंगे हुये जिसमें हजारों सिखों को जान गंवाना पड़ी। बाद में राजीव गाँधी की हत्या के बाद इकलौती राष्ट्रव्यापी पार्टी काँग्रेस नेतृत्व विहीन हो गयी जिस शून्य को भरने के लिए भाजपा जैसी उत्तर भारत की हिन्दूवादी पार्टी हाथ पांव मारने लगी व संगठित आरएसएस के कारण उसे आंशिक सफलता भी मिलती गयी। वह लगातार अपने प्रयास करने और साम्प्रदायिक षड़यंत्र रचने लगी जिससे देश के दूसरे सारे दल आशंकित रहने लगे। भाजपा व्यापक रूप से अस्वीकृत पार्टी रही और 2014 की जुगाड़ से पहले उसे पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने का मौका नहीं मिला।

केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का उदय भी इसी दौरान हुआ और स्थापित पार्टियों के बीच उसने एक उम्मीद व विश्वसनीयता के आधार पर सफलता प्राप्त की। वह कुछ राज्यों में जगह जगह से टूटी फूटी और निरंतर झरती काँग्रेस का विकल्प बन सकती है व मजबूरी में चुनी गयी भाजपा को उसकी मूल स्थिति में पहुंचा सकती है। पंजाब में किसी अलगाववादी आन्दोलन के फिर से उभरने की दूर दूर तक सम्भावना नहीं है और अगर केजरीवाल अपने वोटरों को विश्वास में लिए बिना किसी ऐसी संस्था से सहानिभूति रखेंगे तो वापिस जमीन पर आने में देर न्नहीं लगेगी।

घटना के पाँच साल बाद पंजाब के चुनावों से दो दिन पहले इस मामले को सनसनीखेज तरीके से उठाना उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती है। दूसरी बात यह कि केजरीवाल और कुमार विश्वास को अपनी राजनीति स्पष्ट करना चाहिए। प्रशासनिक सुधारों और लफ्फाजी से कुछ नहीं बदलेगा। मुकुट बिहारी सरोज ने कहा है-

जिनके पांव पराये हैं, जो मन से पास नहीं

घटना बन सकते हैं वे लेकिन इतिहास नहीं

   वीरेन्द्र जैन

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