सोमवार, अप्रैल 20, 2009

ब्लेक मनी स्विस बेंक और अडवानी

स्विस बैंकों में जमा ब्लैकमनी पर चुनावी उथलपुथल
वीरेन्द्र जैन
गत दिनों जब देशा के सारे अखबार चुनावों को मुद्दाविहीन घोषित कर रहे थे तब अचानक ही भाजपा के प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी लालकृष्ण आडवाणी स्विस बैंकों में जमा भारतीयों की ब्लैकमनी के सवाल पर ऐसे उछल पड़े जैसे कभी सापेक्षिकता का सिद्धांत हाथ लग जाने पर आर्कमिडीज 'यूरेका यूरेका' चिल्लाता हुआ दौड़ पड़ा होगा।
1991 में जब तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहनसिंह ने नई आर्थिकनीति घोषित की थी तब सदन में भाजपा का कहना था कि इन्होंने हमारी आर्थिक नीति को 'हाईजैक' कर लिया है किंतु इन चुनावों के दौरान स्विस बैंकों में जमा धन के खिलाफ चुनावी मुहिम छेड़ने और संसाधनों की विपुलता की दम पर उसे अपना मुद्दा बनाते समय उन्हें यह ध्यान में नहीं आया कि उनसे पहले मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी और उनके गठबंधन सहयोगी जेडी (यू) ने पहले ही अपने घोषणा पत्रों में इसके खिलाफ कार्यवाही का कार्यक्रम घोषित किया हुआ है। फिर भी देर आयद दुरूस्त आयद की तरह कोई भी पार्टी यह नहीं कह सकती कि यह धन वापिस देशा में नहीं लाया जाना चाहिये। इसमें बाधा केवल वे नेता ही बनना चाहेंगे जिनका स्वयं का और उनको पोषित करने वाले समर्थकों का धन स्विस बैंकों में जमा है।
हाल ही में जारी अर्जुनसेन गुप्ता की रिपोर्ट के अनुसार देश में लगभग सत्तर करोड़ लोग ऐसे हैें जो बीस रूपये रोज पर गुजर करने को मजबूर हैं। तय है कि इनमें से कोई या ऐसे लोगों के हितो की सच्ची पक्षधर पार्टी के किसी नेता या समर्थक का स्विस बैंकों में कोई खाता नहीं हो सकता। ऐसा खाता उन्हीं लोगों का होगा जिनके पास या तो बेईमानी कमीशनखोरी रिशवतखोरी से प्राप्त धन है जिसे वे अपनी आय में नहीं दिखा सकते या जिनके पास इतनी अधिक आय है कि उस पर टैक्स देना उन्हें कठिन लगता है। ऐसे लोगों की संख्या इस देश में इतनी अधिक नहीं हो सकती कि उनकी पहचान न की जा सके। जिन लोगों को यह पता है कि स्विस बैंकों में कितनी राशि जमा है उन्हें यह भी अन्दाज होगा कि ऐसे कौन कौन से संभावित लोग हैं जिनकी राशि स्विस बैंकों में हो सकती है।
जो पार्टियां चुनाव के इस दौर में स्विस बैंकों में जमा धन को वापिस लाने की मुहिम छेड़ रही हैं उनके द्वारा उम्मीदवारों के चयन व उन उम्मीदवारों द्वारा घोषित सम्पत्ति के ब्योरे देखना रोचक हो सकता है। इन पार्टियों द्वारा घोषित उम्मीदवारों में से अनेक उम्मीदवारों का सक्रिय राजनीति में भागीदारी व जनसेवा का कोई इतिहास नहीं मिलता पर फिर भी उन्हें पुराने कार्यकर्ताओं की तुलना में वरीयता देकर पार्टी के टिकिट दिये गये हैं। भाजपा का कार्यकर्ता आमतौर पर ऐसे बाहरी लोगों को पुराने कार्यकर्ता पर वरीयता देने के खिलाफ आक्रोश में है जिसका प्रमाण गत दिनों श्री आडवाणी जी पर चप्पल फेंक कर एक कार्यकर्ता दे भी चुका है। पूर्व में सदन तक पहुँचे ऐसे चुने गये लोगों की सदन में उपस्थिति बहुत कम पायी गयी है और जब कभी उपस्थित भी होते हैं तो सदन की कार्यवाही में सक्रिय भागीदारी नहीं करते।
सवाल उठता है कि जब ना तो उन्हें सदन में जाने में और ना ही उसकी कार्यवाही सहित अन्य राजनीतिक कामों में कोई रूचि है तो फिर ऐसे लोग क्यों संसद में जाना चाहते हैं? इसका उत्तर भी साफ है कि ये लोग सांसदों को मिले विशेष अधिकारों को, अपने काले कारनामों के खिलाफ हो सकने वाली संभावित कानूनी कार्यवाही से बचत के लिये पाना चाहते हैं। इसलिए आवशयक यह हो गया है कि चुने हुये प्रत्येक उम्मीदवार के बारे में शपथ ग्रहण से पूर्व आर्थिक अपराध अनुसंधान विभाग से रिपोर्ट मंगायी जाये व किसी फास्ट ट्रैक कोर्ट से जाँच के बाद ही उसे शपथ ग्रहण का अवसर दिया जाये। जो व्यक्ति कानून बनाने के लिए जिम्मेवार है उसे कानून भंजक नहीं होना चाहिये।
स्विस बैंको में जमाराशि को वापिस लाने के लिए भाजपा सबसे तेज प्रचार अभियान चला रही है और आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे देश में परेशाान नागरिकों का ध्यान भी आकर्षित कर रही है। पर यह अभियान चलाने से पहले भाजपा को यह बताना होगा कि ऐसा विचार उसे केवल 2009 के चुनावों के दौरान ही क्यों कौंधा जबकि स्विस बैंकों में जमा काले धन का मामला नया नहीं है। भाजपा एक बार नहीं अपितु तीन बार केन्द्र की सरकार में हिस्सेदार बन चुकी है तथा गत लोकसभा के कार्यकाल में तो पूरे समय उन्हीं के नेतृत्व में सरकार चल चुकी है जिसे वे शाइनिंग इन्डिया की तरह विज्ञापित कर चुके हेैं। तब इन्हें स्विस बैंकों में जमा राशि को वापिस लाने का ध्यान क्यों नहीं आया। चुनाव के दौरान इस अभियान को संचालित करते समय क्या उन्होंने सुनिशचित कर लिया है कि
• उनके प्रत्याशियों और समर्थकों में कोई ऐसा नहीं है जिसका पैसा स्विस बैंकों में जमा हो।
• क्या भाजपा जिसने सबसे अधिक फिल्म स्टार बटोरे हैं टीवी स्टार जुटाये हेैं तथा क्रिकेट खिलाड़ियों, को टिकिट दिये हेैं उनकी छानबीन कर ली है?
• भाजपा के ही सबसे अधिक लोग सांसद निधि बेचने के मामले में पकड़े गये हेैं तथा ऐसा ही धन स्विस बैंक में जाने लायक होता है। सवाल पूछने के मामले में भी सबसे अधिक सांसद रिशवत लेते हुये कैमरे में कैद किये गये थे क्या राम मंदिर बनाने का दावा करने वाली इस पार्टी ने ऐसे सांसदों की धनसम्पत्ति की जाँच करा ली है।
• कबूतरबाजी के आरोप में जिन सांसदों का शुभनाम आया है क्या उनकी जाँच हो चुकी है?
• परमाणु करार के समय धन का लेनदेन करने में सफल और असफल रहने वाले दोनों ही तरह के सांसद भाजपा से ही सर्वाधिक थे।
• भाजपा के जिन राष्ट्रीय अध्यक्ष को नोटों की गिड्डियाँ दराज में डालते और डालरों में मांगते कैद किया गया था तथा बाद में उनका टिकिट काट कर उनकी पत्नी को टिकिट दिया गया था, उनके बारे में तथा अन्य चंदा खोरों के बारे में पता चला लिया गया है?
• क्या सैन्टूर होटल डील, वाल्को आदि के साथ जिन सरकारी कम्पनियों को विनिवेशीीकरण के नाम पर औने पौने बेच दिया गया था उसके सौदों की जाँच पूरी हो चुकी है।
• क्या इस सवाल पर पूरी भाजपा एकमत है!
माननीय आडवाणीजी को चुनाव क्षेत्रों से आ रही खराब खबरों से घबराकर बदहवासी में बयान नहीं देना चाहिये क्योंकि कई बार अपने ही पैर अपने ही गले में फॅंस जाते हैं। कहीं ऐसा न हो कि भोपाल अधिवेशन की तरह कहीं से अटलबिहारी वाजपेयी का कोई पत्र फिर से सामने आ जाये जिसमें लिखा हो कि मैं शीघ्र स्वास्थ लाभ करके नेतृत्व के लिए आ रहा हूँ। पर यदि आप सचमुच गंभीर हैं तो क्या देश को इस बात के लिये आशवस्त कर सकते हैं कि सरकार न बनने की दशा में भी स्विस बैंक में जमा धन की वापिसी के लिए वैसा ही आंदोलन छेड़ेंगे जैसा कि कभी राम मंदिर, रामसेतु आदि के लिए छेड़ चुके हैं!
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

शनिवार, अप्रैल 11, 2009

क्योंकि उनका नाम नईम था

श्रद्धांजलि
क्योंकि उनका नाम नईम था
वीरेन्द्र जैन
नईम जी नहीं रहे। उनकी मृत्यु अप्रत्यािश नहीं थी अपितु प्रतीक्षित थी।
प्रसिद्ध युवा व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी जिन्होंने अपना व्यंग्य उपन्यास उन्हें ही समर्पित किया था व लिखा था 'पिता तुल्य नईमजी को सादर'। ज्ञान एक अच्छे साहित्यकार ही नहीं अच्छे डाक्टर भी हैं और ह्रदय रोग विशोषज्ञ हैं। मैंने जब नईमजी की बीमारी और उनके अस्पताल में भरती होने की खबर पढी तो सबसे पहला हाथ मेरा टेलीफोन पर ही गया तथा ज्ञान चतुर्वेदी को फोन लगा कर पूछा तो जैसा कि विशवास था उन्हें न केवल पूरी जानकारी ही थी अपितु उनकी पल पल की खबर वे रख रहे थे। उस समय भी ज्ञान का कहना था कि अब वे जिस दशा में हेैं उसमें उन्हें कोई चमत्कार ही बचा सकता है अगर अस्पताल से ठीक होकर वापिस भी आ गये तो भी जीवन निर्जीव सा ही रहेगा। ज्ञान अपने चिकित्सकीय पेशे में भावुक नहीं होते अपितु यथार्थ को बहुत साफ साफ कहते हेैं। वे कम ही लोगों को सम्मान दते हैं पर नईमजी को पिता के समान सम्मान देते थे जिसका मैं प्रत्यक्ष गवाह हूँ। पर उस यथार्थ का वे भी क्या करते जो सामने था और उनकी मेडिकल साइंस में साफ दिख रहा था।
एक दूसरे कवि मित्र राम मेश्राम जो मध्यप्रदेश शासन से एक वरिष्ठ अधिकारी के रूप में सेवानिवृत्त हो चुके हैं व अपने सहकर्मी- अधिकारियों के स्वभाव के विपरीत अपनी ईमानदारी, निष्पक्षता, भावुकता और दूसरों की नि:स्वार्थ सहायता के लिए लगभग बदनाम हैं, को फोन लगाया तो पता चला कि खबर उन्हें भी पहले से ही है व संस्कृति सचिव से मिल कर उनकी सहायता के लिए आवेदन भिजवा चुके हैं व उन्हें उम्मीद है कि सहायता स्वीकृत भी हो जायेगी।
एक तीसरे व वरिष्ठ अधिकारी मित्र को फोन लगाकर सूचना दी और जानना चाहा कि यदि आजकल में उनका इंदौर का दौरा होने वाला हो तो मैं उनके साथ इंदौर तक की लिफ्ट लेकर नईमजी को देख आना चाहता हूँ। उनका उत्तर था कि वे परसों ही होकर आये हैें व उनकी दशा अच्छी नहीं कही जा सकती। ये कुछ उदाहरण हिन्दी के िशिखरतम नवगीतकार नईमजी की लोकप्रियता और रिशतों के हैं। मैं स्वयं अपने को उनके निकट मानता था पर अगर सूची बनायी जाये तो यह कई हजार तक जा सकती है व इस पंक्ति में कौन कहाँ खड़ा होगा यह कहना बहुत कठिन है।
इस बीच में खबर आती है कि श्री राम मेश्राम के प्रयास सफल हुये हैं व शासन ने नईमजी की स्वास्थ सहायता के लिए एक लाख रूपये की रािश स्वीकृत कर दी है। इस खबर आने के अगले ही दिन बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा नईमजी को देखने जाने व वहीं उक्त रािश विधिवत घोषित होने की खबर आती है जिससे संतोष मिलता है कि प्रति दिन हजारों रूप्यों में होने वाले खर्च से कुछ तो राहत मिलेगी। चारण किस्म के कुछ संस्थाबाज अपने आयोजनों में मुख्यमंत्री, संस्कृतिमंत्री और संस्कृति सचिव की जयजयकार करने लगते हैं।
पर यह संतोष का भाव ज्यादा दिन नहीं ठहरता क्योंकि आठ दस दिन बाद ही खबर आती है कि सहायता नहीं पहुँची और उसे आचार संहिता लगने तक विलंबित किया गया व बाद में आचारसंहिता का बहाना बना लिया गया। मध्यप्रदेश में इन दिनों जो सरकार है उससे ऐसी हरकत की ही उम्मीद की जा सकती थी। और हो भी क्यों न क्योंकि नईमजी जिस लेखन के लिए देश भर में जाने जाते थे वह किसी फासिस्ट सरकार को हजम होने वाली चीज नहीं है। उनके गीतों की कुछ पंक्तियों से यह स्पष्ट हो जायेगा-
1
वो तो ये है कि अबोदाना है
बरना ये घर कसाई खाना है
आप झटका, हलाल के कायल
जान तो लोगो मेरी जाना है
2
काशी साधे नहीं सध रही
चलो कबीरा मगहर साधो
सौदा सुलफ कर लिया हो तो
उठ कर अपनी गठरी बांधो
इस बस्ती के बािशिंदे हम
लेकिन सब के सब अनिवासी
फिर चाहे राजे रानी हों
या फिर चाहे हों दासी
कै दिन की लकड़ी की हांड़ी
क्योंकर इसमें खिचड़ी रांधो

राजे बेईमान
बजीरा बे पेंदी के लोटे
छाये हुये चलन में सिक्के
बड़े ठाठ से खोटे
ठगी पिंडारी के मारे सब
सौदागर हो गये हताहत
चलो कबीरा
ठगुये तस्कर साधो
काशाी साधे नहीं सध रही
चलो कबीरा मगहर साधो
3
प्यासे को पानी
भूखे को दो रोटी
मौला दे! दाता दे
आसमान की बात न जानूँ
जनगण भाग्य विधाता दे

धरती और आकाश न मांगूं
या ईशवरीय प्रकाश न मांगूं
मांगे हूँ दो गज जमीन बस
मैं शााही आवास न मांगूं
पावों को पनहीं
परधनियां मोंटी सोंटी
सिर को साफा छाता दे
4
चिटठी पत्री खातोकिताब
रब्बा जाने!
सही इबादत के मौसम
कब फिर आयेंगे
रब्बा जाने!
चेहरे झुलस गये कौमों के लू लपटों में
गंध चिरायंध की आती छपती रपटों में
युद्धक्षेत्र से क्या कम है ये मुल्क हमारा
इससे बदतर
किसी कयामत के मौसम
कब फिर आयेंगे
रब्बा जाने!

अब आप ही बताइये कि ऐसे गीत लिखने वाले नईम साहब को इलाज कराने के लिए वह सरकार क्यों आगे आयेगी जो अपना सारा ध्यान समाज को बांटने में लगाना चाहती है जिसने अरबों रूप्यों की जमीन उन स्कूलों और संस्थाओं को दी है जो नफरत फैलाने के उद्योग चला रही हैं व जिसकी सारी राजनीति ही समाज को बांटने पर टिकी हुयी है। ढीलाढाला पापलीन का पाजामा कुर्ता पहिनने वाले नईम साहब किसी दुकान के बनिये से नजर आते थे भले ही वे कालेज के प्राचार्य रह चुके हों, उनके सारे ही गीत विशूुद्ध हिंदी के गीत हों और जो अपने छूट गये बुन्देलखण्ड की याद को मालवा की धरती पर भी भुला न पाये हों। जिनको अपने सगे रिशतों से भी बढ कर सम्मान देने वालों में देश के वे बड़े से बड़े साहित्यकार हों जो जिनका जन्म गैर मुस्लिम परिवार में हुआ हो। सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार शारदजोशीी जिनके सगे साढू भाई हों और साम्प्रदायिक मुसलमान इसलिए तक नाराज हो जाते हों कि उनकी लड़की बिन्दी क्यों लगाती है। जो काष्ठशािल्प की मूर्तियां गढता हो तथा दुनिया भर के प्रगतिशीील जनवादी उसे अपना बुजुर्ग मानते हों। और फिर उसका नाम भी नईम हो तो वो स्वाभाविक रूप से इस सरकार के लिए खतरनाक हो सकता है। भले ही प्रचारक अधिकारी ने सस्ती लोकप्रियता के लिए मुख्यमंत्री से घोषणा करवा दी हो पर इस सरकार की असली चाबी तो कहीं और रहती है जब तक वहाँ से अनुमति नहीं मिल जाती तब तक क्या हो सकता है!
वैसे भी सरकारों की कही कितनी बातें सच होती हैं।
वीरेन्द्र जैन
21 शाालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629