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भाजपा की कलाबाजियों से खुलती कलई
वीरेन्द्र जैन
भाजपा को पिछले दो एक महीने से अपने मुद्दों में से सबसे प्रमुख मुद्दे को छोड़ देना पड़ा है और अब उसके लिए आतंकवाद देश की प्रमुख समस्या नहीं रह गयी है और ना ही कुछ दिनों से अफजल को फांसी देना ही जनता को भावनात्मक उद्वेलन और साम्प्रदायिक विभाजन के हथियार के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। सभी जानते हैं कि विभिन्न एजेंसियों की जाँच और गिरफ्त में आये लोगों के मजिस्ट्रेट के सामने दिये गये इकबालिया बयानों से जो नतीजे निकल कर आ रहे हैं उनके अनुसार संघ परिवार से जुड़े लोग न केवल विभिन्न आतंकी घटनाओं के लिए जिम्मेवार ही हैं अपितु उनके द्वारा अपने ही साथियों की निर्ममता से हत्याएं भी की जाती रहीं हैं। सूत्र मिल रहे हैं कि सन्देह होने पर वे अपने ही वरिष्ठ साथियों की हत्या करने की भी योजनाएं बनाने से नहीं चूकते हैं। दूसरी ओर सत्ता में रहने पर वे न केवल खूंखार आतंकवादियों को जेल से निकाल कर कन्धार तक छोड़ने जाते हैं अपितु सौदा करके प्रतिबन्धित संगठनों के कैदियों की सजा भी माफ कर देने से नहीं चूकते। बाहर निकल कर आ रही खबरों के अनुसार वे आतंकी काम किसी क्रांतिकारिता की तरह से नहीं करते अपितु चोरों की तरह अपराध करने के बाद साधु बने घूमते हैं, और दूसरे समुदाय के लोगों पर सन्देह पैदा करने के लिए ऐसे सबूत पैदा करने की कोशिश करते हैं जिससे सन्देह उन पर हो और भ्रमित लोगों के आक्रोश को साम्प्रदायिक संघर्षों में बदला जा सके। इस तरह वे एक ओर तो देश में दंगों का वातावरण पैदा करने की कोशिश करते हैं और दूसरी ओर अपने समुदाय के लोगों को ही धोखा दे, खुद पीछे हो कर उन्हें दंगों की आग में झोंकने का षड़यंत्र रचते हैं। बम विस्फोटों के बाद साध्वी के भेष में रहने वाली महिला आतंकी अपने लोगों से पूछती है कि इतने कम लोग क्यों मरे! इससे दो बातें प्रकट होती हैं, पहली तो यह कि वे यह मानने लगे हैं कि समाज में भेदभाव पैदा करने वाली उनकी दैनिन्दन अपीलों का वांछित प्रभाव नहीं पड़ता, दूसरी यह कि वे अपने समुदाय के लोगों को भी केवल ईन्धन समझते हैं जिन्हें धोखे से झौंक कर वे सत्ता पा सकें। इसीलिए वे हिन्दुओं को बार बार कायर या सोयी हुयी कौम कह कर उकसाते हैं।
सत्ता पाने के बाद वे क्या करते हैं यह विभिन्न जाँच एजेंसियों की जाँचों और आयकर विभाग के छापों से प्रकट होता है।
भाजपा कांग्रेस की विरोधी पार्टी नहीं है अपितु सत्ता हथियाने के मामले में उसकी प्रतियोगी पार्टी है। सत्ता में आने पर वे कांग्रेस के द्वारा लागू किसी भी नीति या प्रशासनिक ढांचे में फेर बदल नहीं करना चाहते अपितु अपने हथकंडों से कांग्रेस को हटा कर वैसे ही सत्ता के सुख भोगना चाहते हैं। विपक्ष में रहते हुए वे कांग्रेस पर जो भी आरोप लगाते हैं सत्ता में आने के बाद वे उनमें से किसी की भी बात करने या जाँच कराने की स्तिथि में नहीं होते। जहाँ कहीं गलती भी होती है तो उसे भी वे इसलिए नहीं छेड़ना चाहते क्योंकि वही गलती करने के लिए ही तो वे भी सत्ता पाना चाह्ते रहे हैं। स्मरणीय है कि कांग्रेस के बाद जब जब जहाँ जहाँ भाजपा सत्ता में आयी है वहाँ आज तक पूर्व सत्ता नशीनों में से किसी को भी सता पाने के पूर्व लगाये गये आरोपों के अनुसार कोई सजा नहीं दिला सकी है।
सत्ता में आने के लिए और कांग्रेस का विकल्प बनने के लिए वे ज्यादा वोटों वाले बहुसंख्यक हिन्दू समाज को बरगलाते हैं। हमारा समाज बहुलतावादी समाज है जो सम्प्रदायिकता में भरोसा नहीं रखता इसलिए उन्हें उनके बीच अनुपस्थित साम्प्रदायिकता की भावना को कुटिल षड़यंत्रों द्वारा पैदा करना पड़ता है। साम्प्रदायिकता पैदा करने के लिए उन्हें कुछ झूठ गढने पड़ते हैं, और इतिहास को विकृत करके उसकी साम्प्रदायिक व्याख्या करना होती है। उनके द्वारा दैनिक घटनाओं में साम्प्रदायिक कोण तलाशा जाता है। पक्ष में काम आने वाले पुराणों को इतिहास की तरह प्रचारित किया जाता है और उन पुराणों पर लोक आस्था का लाभ उठाया जाता है। अपने षड़यन्त्रों को छुपाने के लिए धार्मिक आस्था और राष्ट्रवाद का मुखौटा लगाया जाता है।
ये सारे षड़यंत्र उनके अन्दर एक अपराधबोध और अपने साथी के प्रति सन्देह की भावना निरंतर बनाये रखते हैं जिससे सदा सचेत बने रहने के कारण वे हमेशा तनाव में रहते हैं। स्वय़ं पर सांस्कृतिक संगठन का मुखौटा लगाने वाले ये लोग न तो उदारता से हँस सकते हैं, न गा सकते हैं, न नाच सकते हैं। वे हमेशा एक कठोर चेहरा धारण किये रहते हैं।
संघ परिवार राजनीति में भारतीय जनता पार्टी के नाम से काम करती है जिसका पूर्वनाम जनसंघ था। संघ के किसी नेता ने आजादी की लड़ाई में भाग नहीं लिया अपितु उस दौरान देश में साम्प्रदायिकता को फैला कर आजादी के आन्दोलन की एकजुटता को कमजोर करने की कोशिश जरूर की। हमारी आजादी जो विभाजन का अभिशाप लेकर आयी थी वह इनके लिए वरदान बन गया और नवनिर्मित पाकिस्तान वाले इलाकों से जिन लोगों को अपनी जमीनें मकान और रोजगार छोड़कर आना पड़ा उनका गुस्सा और नफरत इनके विकास के लिए खाद बना। राजनीति में कांग्रेस का विकल्प बनने के लिए इनके पास इसी नफरत और विभाजन की पूंजी थी जिसका ये निरंतर विकास करते रहे हैं। अब वे ऐसे सारे काम करते हैं जिससे साम्प्रदायिकता फैल सकती हो। हाल ही में कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने के उनके अभियान का एकमात्र उद्देश्य वहाँ बन रहे शांतिपूर्ण वातावरण को कश्मीरियों की पराजय की तरह प्रस्तुत करके खराब करना था। किसी दुर्घटना की स्तिथि में वे पूरे देश में साम्प्रदायिक दंगे कराने का वातावरण बना सकते थे। उल्लेखनीय है कि एनडीए के सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी जेडी[यू] ने भी उनके इस प्रयास को पसन्द नहीं किया।
झंडारोहण के इसी कार्यक्रम को, अगर वे चाहते तो, अपने जेबी संगठन राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के माध्यम से भी करा सकते थे, जिसके द्वारा अभी उन्होंने इन्द्रेश कुमार को सजा से बचाने के नाम पर अजमेर में ख्वाजा की दरगाह पर चादर चढवाई थी। अगर राष्ट्रीय मुस्लिम मंच लाल चौक पर झंडा फहराने का यह काम करता तो साम्प्रदायिक भावना से बचा जा सकता था, पर वे खुद ही ऐसा नहीं चाहते थे। जनसंघ से लेकर भाजपा तक वे घटनाओं को व्यक्तियों के धर्म के आधार पर आंकते हैं ताकि किसी व्यक्ति के अपराधों के आधार पर पूरे समाज को अपराधी ठहरा साम्प्रदायिकता फैला सकें, वहीं दूसरी ओर वे अपने समुदाय के बड़े से बड़े अपराधी को सरंक्षण देने के प्रयास में निरंतर कुतर्कों का प्रयोग करते हैं। पुलिस ही नहीं, सीबीआई, विशेष जाँच एजेंसियां, मानव अधिकार आयोग के साथ न्याय व्यवस्था भी इनकी निन्दा के पात्र बनते हैं अगर वे इनके कारनामे उजागर करते हैं। हिन्दुओं में भी जो उनके साथ नहीं है वह गद्दार है। सारे कांग्रेसी, कम्युनिष्ट, बहुजन, और समाजवादी आदि इनके लिए गैर-हिन्दू हैं या देशद्रोही हैं। टू जी प्रकरण में हाल ही में हुयी मजेस्ट्रेटियल की जांच रिपोर्ट में गड़बड़ी का प्रारम्भ एनडीए शाशन काल में प्रारम्भ हुआ था। इसी तरह विदेश में जमा धन और भ्रष्टाचार के मामले में भी जब उनके लोगों के नाम आयेंगे तब वे येदुरप्पा या मध्य प्रदेश के मंत्रियों की तरह दाएँ बाएँ करने लगेंगे जिससे भ्रष्टाचार के खिलाफ बना जनाक्रोश निरर्थक हो जायेगा।
उनकी कलाबाजियों से उनकी कलई खुलती जा रही है, और उनसे उम्मीद बाँधने वाले लोगों का उत्साह ठंडा होता जा रहा है, जिसका प्रमाण इस बात से मिलता है कि जब गत दिनों कानपुर में आयोजित इनकी रैली में बमुश्किल पाँच हजार लोग जुट सके तो इनके बड़े नेता लखनऊ से ही वापिस लौट गये।
वीरेन्द्र जैन
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