शनिवार, जनवरी 31, 2015

नोटा के प्रयोग से वंचित मतदाता


नोटा के प्रयोग से वंचित मतदाता  

वीरेन्द्र जैन
       भोपाल के नगर निगम चुनाव में मेयर और पार्षद के लिए एक साथ मतदान हो रहा था। जब में अपने वार्ड के पार्षद को चुनने के लिए मतदान करने मतदान केन्द्र पहुँचा तो बताया गया कि पार्षद के लिए मतदान नहीं हो रहा है क्योंकि इस वार्ड से केवल दो ही प्रत्याशियों ने फार्म भरा था पर आखिरी समय में एक प्रत्याशी ने अपना नाम वापिस ले लिया था इसलिए इस वार्ड से इकलौते प्रत्याशी को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया। जब मैंने पीठाधीन अधिकारी से अपने नोटा अधिकार के बारे में पूछा तो वह ऐसे हँस दिया जैसे कि मैंने कोई मजाक किया हो। जब मैंने उनसे कहा कि मैं यह अनुरोध गम्भीरता से कर रहा हूं तो उन्होंने इस सम्बन्ध में नियमों से अनभिज्ञता प्रकट की।
       पिछले दिनों मध्य प्रदेश के नगरीय निकाय चुनावों में समुचित संख्या में पार्षदों के चुनाव निर्विरोध हुये हैं। जब मैंने वर्षों से नगरीय निकायों के चुनाव लड़ने की तैयारी करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा नाम वापिस ले लेने की खबरों के बाद उनके निकटतम लोगों से बात की थी तो कहानी ही दूसरी समझ में आयी थी। उन्होंने बताया कि नगरीय निकाय चुनावों में भाग लेने वाले अस्सी प्रतिशत से अधिक प्रत्याशी केवल कमाई करने और भविष्य में बड़े चुनाव की भूमि तैयार करने के लिए ही सक्रिय होते हैं। इस कमाई की प्रत्याशा में लागत भी लगानी पड़ती है और न जीत पाने की दशा में वह लागत डूब जाती है या कहें कि व्यापारिक घाटा हो जाता है। इस घाटे का लाभ पैसे लेकर वोट देने वाले मतदाताओं को मिलता है। चुना गया व्यक्ति न केवल अपनी लागत ही वसूलता है अपितु अगले चुनाव में बड़ी लागत लगाने और सम्भावित घाटे की पूर्ति के अनुसार कमाई करता है। यही कारण है कि लगभग सभी स्थानों के नगर निकाय अपने तयशुदा कार्यों की जगह छुटभैये नेताओं के व्यापार केन्द्रों में बदल चुके हैं और कमजोर वर्गों की सफाई, स्वास्थ व शिक्षा सुविधाओं को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। इसी कारण से प्रधानमंत्री की सफाई की अपील खोखली ही नजर आने वाली है। इस बार अनेक स्थानों पर विभिन्न दलों के प्रत्याशियों ने ठेकेदारों की तरह पूल बना लिया था और न केवल दोनों ही लागत लगाने से बच गये अपितु प्रत्याशित कमाई का हिस्सा दूसरे कमजोर प्रत्याशी को देकर उससे नाम वापिस करवा दिया गया और निर्विरोध निर्वाचित हो गये। पंचायतों के चुनावों में भी दर्ज़नों स्थानों पर मन्दिर बनवाने के नाम पर एक मुश्त राशि देकर निर्विरोध निर्वाचन के समाचार छाये रहे हैं। स्मरणीय है कि लोकसभा क्षेत्र भिंड-दतिया और नोएडा में भी काँग्रेस प्रत्याशियों का ठीक चुनाव के मध्य हृदय परिवर्तित होते देखा गया था और ऐसे परिवर्तनों ने एक ही पार्टी को पूर्ण बहुमत दिलाने में बहुत योगदान दिया था।
       यद्यपि मैं प्रयास के बाद भी स्वयं नियम तो नहीं तलाश सका किंतु राज्य निर्वाचन आयोग के एक अधिकारी ने फोन पर बताया कि नोटा का अधिकार केवल सविरोध निर्वाचन की स्थिति में ही है और इकलौता प्रत्याशी होने की दशा में निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि नियमानुसार अगर नोटा के वोट सबसे अधिक भी हों तो भी विजयी दूसरे नम्बर पर वोट लाने वाले को ही घोषित किया जायेगा।   
       ऐसा नियम मतदाताओं को नोटा का अधिकार देने के उद्देश्य को नुकसान पहुँचा रहा है। जिस क्षेत्र से कोई प्रतिनिधि निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया जाता है तो उसका मतलब यह प्रकट होता है कि उस व्यक्ति या उस पार्टी का कोई विरोध वहाँ नहीं है जबकि यथार्थ में स्थिति यह होती है कि यह चुनावी प्रबन्धन का कमाल होता है। देखा गया है कि ऐसे निर्विरोध निर्वाचन हमेशा ही सत्तारूढ राजनीतिक दल के पक्ष में ही होते हैं। भय या लालच के सहारे अगर किसी को सत्तारूढ दल के प्रत्याशी के खिलाफ उम्मीदवार बनने से रोक दिया जाता है तो नोटा के वोट उस ज्यादती के संकेत दे सकते हैं। नोटा के वोट क्षेत्र में लोकतंत्र के प्रति सचेत और सक्रिय किंतु विकल्पहीनता भोग रहे मतदाताओं का पता भी देते हैं। गत लोकसभा चुनाव में पहली बार नोटा का विकल्प दिया गया था और इस के पक्ष में साठ लाख से अधिक वोट पड़े थे। छह राष्ट्रीय दल व 64 राज्यस्तरीय दलों के बीच इसका क्रम अठारहवां था।          
       मैंने भी नोटा का अधिकार पाने के लिए अपने स्तर पर योगदान किया था किंतु आज नोटा का अधिकार होते हुए भी मुझे अपने मतको व्यक्त करने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है।
वीरेन्द्र जैन                                                                           
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