श्रद्धांजलि श्री आर
के लक्षमण
न उनकी रीढ कभी झुकी
और न ही उनके आम आदमी की
वीरेन्द्र जैन
कार्टून
कला सामाजिक सरोकारों से सम्बन्ध रखती है और श्री आर के लक्षमण वैसे ही उसके भीष्म
पितामह थे जिस तरह से कि हिन्दी व्यंग्य के भीष्म पितामह श्री हरि शंकर परसाई थे।
श्री लक्षमण के कार्टून में हमेशा टुकुर टुकुर देखता एक आम आदमी होता था जो केवल
दृष्टा था और जो कभी नहीं बोला। यह आम आदमी और उसकी दशा लगातार 60 सालों तक वैसी
ही बनी रही वह हतप्रभ सा सब कुछ होते देखता रहा क्योंकि वह अकेला रहा। आम आदमी को
अकेले अकेले रखा गया है। उसके पास परम्परा की धोती है जिसकी सीमा इतनी है कि टखने
उघड़े रहते हैं, पर उसके पास देह का ऊपरी भाग ढकने के लिए चौखाने वाली वंडी या कोट
है जो बन्द गले का है। इस आम आदमी के पास गाँधीजी जैसा धातु के गोल फ्रेम का चश्मा
है क्योंकि वह देखना चाहता है, साफ साफ देखना चाहता है। इस आम आदमी के पास एक छाता
होता था। छाता धूप और बरसात से रक्षा के लिए होता है बशर्ते वह खुला हुआ हो, पर इस
आम आदमी का यह छाता कभी नहीं खुला। उसने इसे न तो सहारे के लिए कभी छड़ी बनाया और न
ही प्रहार के लिए हथियार की तरह प्रयुक्त किया। इस आम आदमी की रीढ हमेशा सीधी रही
क्योंकि यह आम आदमी कभी झुका नहीं।
श्री
लक्ष्मण भी इसी आम आदमी की तरह रहे न तो उनकी रीढ कभी झुकी और न ही वे कभी झुके।
जिस जे जे स्कूल आफ आर्ट ने यह कह कर उन्हें एडमीशन देने से मना कर दिया था कि आप
में टेलेंट की कमी है उसी में दस साल बाद वे बतौर चीफ गैस्ट बुलाये गये थे।
उन्होंने गाँधी नेहरूजी से लेकर चर्चिल, ख्रुश्चेव और मोदी तक हर सत्ताधीश के
कार्टून बनाये। उन्हीं के शब्दों में कहें तो उन्हें अफसोस इस बात का रहा कि
ज्योति बसु उनके लिए बहुत मनहूस रहे जिन्होंने उन्हें कभी कार्टून बनाने का अवसर
नहीं दिया। 1997 में वे एक प्रदर्शनी के उद्घाटन के लिए भोपाल आये जिसमें तत्कालीन
मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को मुख्य अतिथि होना था। जब उन्होंने उन्हें नाश्ते पर
आमंत्रित किया तो उनका रूखा सा जबाब था कि मैं नाश्ता कर चुका हूं, और फोन रख
दिया। इसके बाद कला और पत्रकारिता जगत का विशेष सम्मान करने वाले मुख्यमंत्री ने
स्वयं ही उनके होटल पहुँच कर उनसे भेंट की और अचानक ही हाईकमान का बुलावा आ जाने
के कारण शाम के कार्यक्रम में न आ पाने के लिए क्षमा मांगी। भोपाल के लोग तब
लक्षमण और उनके कार्टून की ताकत से अभिभूत हुये।
सूक्ष्म
के सहारे विराट का परिचय कराने और उसमें अपनी दृष्टि को डाल देने की जो कला लक्षमण
के पास थी वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। बहुत सारे दूसरे कार्टूनिस्टों के कार्टूनों
में अगर कैप्शन न हों तो उनका व्यंग्य और कथन समझ में ही नहीं आता किंतु लक्षमण के
कार्टूनों में रेखाओं और बिन्दुओं के सहारे न केवल व्यक्तियों की पहचान की जा सकती
है अपितु उनकी प्रवृत्तियों को भी देखा जा सकता है। श्रीमती इन्दिरा गाँधी की
पहचान उनकी लम्बी नाक से थी पर लक्षमन के कार्टूनों में वह और अधिक लम्बी हो जाती
थी क्योंकि श्रीमती गाँधी अपनी नाक हमेशा ऊँची रखने के लिए मशहूर रही हैं। बाबरी
मस्ज़िद ध्वंश के बाद वे कार्टूनों में श्री लाल कृष्ण अडवाणी के सिर पर एक
शिरिस्त्राण नुमा मन्दिर जैसी आकृति बनाते रहे और बताते रहे कि वे ऐसे राजनेता हैं
जिनके सिर पर मन्दिर सवार है। विसंगति की पहचान के लिए समाज हितैषी राजनीति की समझ
और समाज विरोधी तत्वों की जैसी पहचान लक्ष्मण के कार्टूनों में मिलती है उसी के
कारण वे देश के सबसे बड़े मीडिया संस्थानों में से एक के प्रमुख अंग्रेजी अखबार पर
लगातार 60 सालों तक छाये रहे और पूरी दुनिया में रिकार्ड बनाया। उनके कार्टूनों को
दूसरे अनेक अखबार और पत्रिकाएं पुनर्प्रकाशित करते रहे। देश के हजारों लोग केवल
लक्षमन की कार्टून के लिए ही टाइम्स आफ इंडिया खरीदते थे और लाखों लोग इस अखबार
में सबसे पहले उनके कार्टून को देखने से ही अखबार की शुरुआत करते थे। वे निर्भय थे
और कार्टून बनाने में कोई लिहाज नहीं करते थे, पर एक कुशल सर्जन की तरह केवल
रोगग्रस्त भाग पर ही नश्तर चलाते थे। कह सकते हैं कि उनका कार्टून मंत्र की तरह
होता था जिसके सहारे समझ के खजाने को खोला जा सकता था। मुझे चुनावों के दौरान
बनाया गया उनका एक कार्टून याद आता है जिसमें किसी गाँव में किसी पेड़ के सहारे चार
छह ग्रामीण फटेहाल अवस्था में बैठे हैं और कोई सत्तारूढ रहा नेता हाथ में माइक लिए
अपने द्वारा किये कामों को बखान रहा है तो ग्रामीण आपस में कहते हैं कि हमारे लिए
इतना कुछ हो गया और हमें पता ही नहीं चला।
भोपाल
की कला परिषद में एक वर्कशाप के उद्घाटन के लिए जब वे आये थे तो उन्होंने लगभग
फीता काटने जितने समय में उस वर्कशाप का ‘श्री गणेश’, गणेश जी का चित्र बना कर
किया था जिसमें एक बहुत मोटा चूहा लड्डू खाता दिखाया था।‘यू विलीव इन गाड?’ के
जबाब में यह लक्ष्मण ही कह सकते थे कि ‘गाड विलीब्स इन मी’।
जब 1994 में धर्मयुग में प्रकाशित मेरी
व्यंग्य कविताओं का संकलन आया था तब मैंने उसके मुखपृष्ठ पर लक्ष्मन के आम आदमी का
स्कैच छाप कर ही उसकी सार्थकता महसूस की थी। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
वीरेन्द्र जैन
2 /1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
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मोबाइल 9425674629
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