डा. सुरेश तन्मय का
नया कविता संकलन -शेष कुशल है
वीरेन्द्र जैन
सुपरिचित
कवि गीतकार सुरेश तन्मय के पाँचवें कविता संकलन-शेष कुशल है- का विमोचन जबलपुर में
होने जा रहा है। वे साहित्य के प्रति समर्पित कवि हैं जो खड़ी बोली हिन्दी के साथ
साथ निमाड़ी में भी रचना करते हैं, और निमाड़ी के शिखर के कवियों में गिने जाते हैं।
इस
नये संकलन में ‘गाँव से बड़े भाई की चिट्ठी’ नामक लम्बी कविता के अलावा अठारह अन्य
कविताएं हैं। संकलन में सम्मलित ज्यादातर कविताएं रिश्तों के बारे में हैं। ‘गाँव
से बड़े भाई की चिट्ठी’ में जहाँ भाई भाभी और अन्य रिश्ते नाते दारों, गाँव वालों
समेत गाँव की स्मृतियों को समेटा गया है वहीं नगरों के रिश्तों विहीन सम्बन्धों की
शुष्कता पर दुख भी है। यह विस्थापन का समय है और पूरे देश में कहीं शिक्षा के नाम
पर, नौकरी के नाम पर, कहीं बाँध के नाम पर, कहीं रेलमार्ग, हाईवे, उद्योग विकास के
नाम पर तो कहीं धार्मिक टकरावों के चलते तो कहीं जातिवादी शोषण के कारण, तो कहीं
डकैतों, दबंगों के कारण करोड़ों लोग अपने मूल स्थान को छोड़ कर विस्थापित हुये हैं
और अपनी जड़ों से कट गये हैं। न उन्हें गाँवों में चैन था और न ही नगरों में सुकून
मिल पा रहा है। कुँवर बेचैन के एक गीत की पंक्तियां हैं-
जब धागा था तो सुई न
थी, जब सुई मिली तो डोर नहीं,
ना जाने कैसी स्थिति
तक हम फटी कमीजें आ पहुँचीं
इसी
तकलीफ से प्रभावित जब कैलाश गौतम का नायक गाँव पहुँचता है तो उन्हें लिखना पड़ता
है-
गाँव गया था गाँव से भागा.......
रामराज का हाल देखकर
पंचायत की चाल देखकर
आँगन में दीवाल देखकर
सिर पर आती डाल देखकर
नदी का पानी लाल देखकर
और आँख में बाल देखकर
गाँव गया था गाँव से भागा।
रामराज का हाल देखकर
पंचायत की चाल देखकर
आँगन में दीवाल देखकर
सिर पर आती डाल देखकर
नदी का पानी लाल देखकर
और आँख में बाल देखकर
गाँव गया था गाँव से भागा।
श्री
तन्मय भी समय के इसी दर्द को पहचानने की कोशिश करते हैं जिससे आदमी की विवशताओं की
कई पर्तें खुलती हैं। आखिरकार संकलन की अंतिम नुक्कड़ कविता- जाग जमूरे में उन्हें
कहना ही पड़ता है-
चोर चोर मौसेरे भाई- हाँ उस्ताद
चोर चोर मौसेरे भाई- हाँ उस्ताद
डाकिन है घर की ही
दाई- हाँ उस्ताद
खेत में तूने फसल
उगाई- हाँ उस्ताद
और दबन्गों ने
कटवाई- हाँ उस्ताद
उठा दरांती भिड़ जा
इनसे
ये कायर जायेंगे भाग
जाग जमूरे अब तो जाग
संकलन
में पिता, माँ, बेटियां, बहू, मित्र, के साथ साथ आत्मस्थ, और वृद्धराग जैसी
कविताएं हैं जो सम्बन्धों की पुरानी आँच और उनमें आ रहे बदलावों को पहिचानने की
कोशिश करती हैं। डा. तन्मय एक सिद्धहस्त रचनाकार हैं और ऐसा लगता है कि विषय का
चुनाव करने के बाद उस पर रचना लिख डालने में उन्हें अधिक समय नहीं लगता होगा। उनकी
भाषा और विम्ब सरल है, व किसी व्याख्या के मोहताज नहीं हैं। नीचे दी जा रही
पंक्तियां उसका प्रमाण हैं।
किसमें कितनी पोल
जमूरे
तोल मोल कर बोल
जमूरे
*******
हाथ मिलाये हैं
फसलों ने खरपतवारों से
मठों आश्रमों ने
राजा के दरबारों से
विद्या ने वैभव से
मिलकर जुगत भिड़ाई
और कलम ने लफ्फाजों
से प्रीति बढाई
*******
जो नहीं कुछ भी
बोलते होंगे
दिल तो उनके भी
खौलते होंगे
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मौन मन का मीत
मौन परम सखा है
..... बाँटने को
व्यग्र हम
जो गांठ में बाँधे
रखा है
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पाया जो जग से अब तक
लौटाने की है बारी
देखें कर्ज चुकाने
की क्या की हमने तैयारी
सींचें उन्हें और
जिनसे जीवन रसधार बही है
*******
तन्मय
जी का रचना कर्म निरंतर जारी है और उनकी प्रत्येक नई रचना एक पायदान ऊपर की ओर
जाती महसूस होती है। आशा की जाना चाहिए कि उनके अगले संकलन इसी क्रम में नई
ऊँचाइयां स्पर्श करते जायेंगे।
वीरेन्द्र जैन
2 /1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल म.प्र. [462023]
मोबाइल 9425674629
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