शुक्रवार, मार्च 10, 2023

डा. ज्ञान चतुर्वेदी को व्यास समान

 


डा. ज्ञान चतुर्वेदी को व्यास समान

वीरेन्द्र जैन

हिन्दी व्यंग्य के शिखर लेखक डा. ज्ञान चतुर्वेदी को देश के सबसे बड़े सम्मानों में से एक के. के. बिरला फाउंडेशन के व्यास सम्मान मिलने की खबर से सचमुच खुशी हुयी। आम तौर पर पुरस्कार सम्मानों की खबरें मुझे प्रभावित नहीं करतीं किंतु राजेश जोशी, उदय प्रकाश, और ज्ञान चतुर्वेदी जैसे साहित्यकारों को मिलने वाले पुरस्कार सम्मान से इसलिए खुशी मिलती है क्योंकि ये सम्मान उनके हजारों, लाखों पाठकों का सम्मान भी होता है जो उनके लिखे को पसन्द करते हैं। ये पाठक उनको मिले पुरस्कार या उसकी राशि से प्रभावित होकर अपने लेखक को पसन्द नहीं करते हैं अपितु उनके रचनाकर्म से प्रभावित होकर उन्हें पसन्द करते हैं और पुरस्कार सम्मान उनकी पसन्दगी का सम्मान भी होता है। उन्हें भी लगता है कि वे सही हैं।

ज्ञान चतुर्वेदी इस काल के व्यंग्य लेखकों में निरंतर श्रेष्ठ पत्रिकाओं में नियमित लिखने वाले, श्रेष्ठ प्रकाशकों द्वारा पुस्तकाकार रूप से सामने आने वाले, और पाठकों, समीक्षकों द्वारा पसन्द किये जाने वाले लेखकों में से एक हैं। वे एक अच्छे चिकित्सिक के रूप में अपना सर्वोत्तम देते हुए अपना लेखन कर रहे हैं, क्योंकि वे सहित्येतर गतिविधियों में नहीं उलझते। वे ऐसे समारोहों में अपना समय नहीं गंवाते जहाँ से और अधिक ज्ञान सम्पन्न होने की सम्भावना न हो। वे समकालीन साहित्य से परिचित भी रहते हैं और वह सब कुछ भी पढते रहते हैं जो साहित्य के केन्द्र में रहने वालों द्वारा पढा जाना चाहिए।

जो लोग ज्ञान चतुर्वेदी के लेखन से कम परिचित हैं, उन्हें यह घोषणा चौंका सकती है क्योंकि इससे पूर्व यह पुरस्कार जिन लोगों को मिला है उनमें व्यंग्य से जुड़े दो नाम हैं, एक श्रीलाल शुक्ल और दूसरे नरेन्द्र कोहली किंतु इन्हें जिन पुस्तकों के लिए मिला है वे व्यंग्य उपन्यास नहीं थे। जिन अन्य लोगों को यह सम्मान मिले है, उनमें शामिल हैं डा. राम विलास शर्ना, शिव प्रसाद सिंह, गिरजा कुमार माथुर, धर्मवीर भारती, कुंवर नारायण, केदार नाथ सिंह, गोविन्द मिश्र, गिरिराज किशोर, रमेश चन्द्र शाह, परमानन्द श्रीवास्तव, कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी, अमरकांत, विश्वनाथ त्रिपाठी, ममता कालिया, लीलाधर जगूड़ी, नासिरा शर्मा, असगर वजाहत आदि। इनमें से ज्यादातर लोग भाषा के अध्यापन या सम्पादन से जुड़े रहे हैं। चिकित्सा के पेशे से आकर यह सम्मान पाने वाले ज्ञान चतुर्वेदी विरले लोगों में से एक होंगे।

उन्हें मिले पुरस्कारों की विविधता भी कुछ कहती है कि उनके लेखन को चतुर्दिक मान्यता मिली है। भारत सरकार ने 1915 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया तो दिल्ली अकादमी ने व्यंग्य का अकादमी सम्मान दिया। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ कृति का सम्मान दिया तो मध्य प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान दिया। 1992 में अट्टहास युवा सम्मान मिला तो 2014 में अट्टहास शिखर सम्मान मिला। गोयनका व्यंग्यभूषण सम्मान मिला तो लन्दन का इन्दु शर्मा सम्मान मिला। पागलखाना के लिए ही प्रिंट श्रेणी में [उपन्यास] 2018 का शब्द सम्मान मिला तो वैली आफ वर्ड्स की ओर से सम्मान मिला।

ज्ञान चतुर्वेदी ने प्रारम्भ में पत्रिकाओं के कलेवर के अनुरूप व्यंग्य लिखे और वे उसमें हास्य के उचित अनुपात को बनाये रखने का ध्यान रखते थे। फिर शायद राग दरबारी से प्रभावित होकर वे उपन्यास की ओर झुके और नरक यात्रा से शुरू करके बारामासी की सफलता से प्रोत्साहित होकर उन्होंने उपन्यासों की झड़ी लगा दी। ये उपन्यास जीवन की समीक्षा करने के साथ पाठकों की रुचि के लिए रोचकता का भी ध्यान रखते थे। वे श्रीलाल शुक्ल, शरद जोशी, रवीन्द्रनाथ त्यागी और मुश्ताक अहमद यूसुफी के अन्दाज से भी प्रभावित नजर आते हैं।

जिस उपन्यास ‘पागलखाना’ के लिए उन्हें यह सम्मान मिला है उसके बारे में मेरा विश्वास है कि इसकी सिनोप्सिस तैयार करने से पहले उन्होंने अपने मित्र प्रभु जोशी से जरूर विमर्श किया होगा। प्रभु जोशी हिन्दी के बहुत समर्थ लेखक और विचारक थे। उनकी भाषा से मैं बहुत प्रभावित था। ‘पागलखाना’ की प्रशंसा में उन्होंने जो लिखा था उससे मेरी बात और स्पष्ट हो सकेगी।

"पागलखाना ग़्य़ान चतुर्वेदी का पांचवां उपन्यास है। बाजारवाद तथा भूमण्डलीकरण की सांस्कृतिक चपेट में आ चुके भारतीय उप-महाद्वीप का दारुण यथार्थ को वृहद औपन्यासिक कृति के रूप में कदाचित किसी भी भारतीय भाषा में पहली बार प्रस्तुत करते हुए, ज्ञान चतुर्वेदी अपने प्रस्तुत उपन्यास में इस नये निर्मम यथार्थ के मायावी खेल की एक अप्रतिम फेंटेसी रचते हैं और उस फेंतेसी के विचित्र पात्रों के जरिये बाज़ारवाद  को विजयोल्लास के साथ ली जाने वाली परिसंघटना का जो छद्म है, उसे बहुत सूक्ष्म लेखकीय विवेक के साथ पर्त दर पर्त इस तरह खोलते हैं कि पाठक उपन्यास के प्रसंगों तथा पात्रों की विक्षिप्तता में भी संरचनात्मक तर्किकता तथा पाठ की लय के मध्य सुलगते सवालों का एक श्रंखलाबद्ध  विस्फोट  और अंतः विस्फोट देखता है कि बाजारवाद कैसे आम नागरिक को मात्र एक मार्केट फ्रेन्डली इंडीविजुअल बना कर छोड़ दिया है, जहाँ वह अपने देशकाल और स्थान से जुड़ी सापेक्षता और लोक से नालबद्ध भाषा और संस्कृति को अपनी ही आँखों के समक्ष स्वाहा होते देखने को बाध्य है। वह एक नये किस्म के सांस्कृतिक अनाथ में तब्दील कर दिया गया है । पागलखाना उपन्यास कुछ ऐसे ही पात्रों से भरी भटकती आकाश गंगा है जो निर्धारित विनष्टीकरण के विषम वलय में फंस गई है और वह बाजारवाद विचारहीन विचार के विराट जाल से निकलने के लिए छटपटा रही है। "हैप्पी -इकोनमिक्स " के जुलाहों की संगठित धूर्तता जो एक रेडीमेड आशावाद का नया अन्धत्व और दासत्व  एक मोहक नेपथ्य के पीछे बुन रही है, ये सच्चाई वे पात्र पहचान गये हैं। वे इस बाजारवाद से छूट कर भाग निकलने के लिए समांतर फैंटेसी को "कैमोफ्लेज्ड युक्तियों से एक नई दुनिया रचने की जद्दोजहद लिए हुये हैं।

यह उपन्यास आधुनिक क्लेसिक है। ज्ञान चतुर्वेदी अपने लेखन में प्रोलिफिक भी हैं और सर्वोत्कृष्ट भी। एक लेखक में ये दोनों चीजें एक साथ होना अलभ्य है। बहरहाल विश्व साहित्य में उत्कृष्टता जो गुण और प्रतिमान स्वीकृत हैं, वे सब के सब बहुलता के साथ ज्ञान के लेखन में सर्वत्र उपस्थित हैं । " पागलखाना" इसका उपयुक्त उदहरण है। - प्रभु जोशी  

वीरेन्द्र जैन

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