डा. धनंजय वर्मा श्रद्धांजलि
डा. धनंजय वर्मा से पहली मुलाकात महेश कटारे के गाँव में कमला प्रसाद जी के नेतृत्व में आयोजित ग्राम यात्रा में सम्मलित होते हुये हुई थी। तब परिचय के समय उन्होंने कहा था कि एक वीरेन्द्र जैन दतिया में भी हैं, और मैंने उन्हें विनम्रता से बताया था कि मैं वही हूं। बाद में भोपाल आने पर शिखर वार्ता में प्रकाशित उनके एक लेख पर मैंने प्रतिकूल टिप्पणी की थी पर उनका व्यवहार सदैव स्नेहिल बना रहा। बाद में तो उनकी अध्यक्षता और मुख्य आतिथ्य में कई कार्यक्रमों में सम्मलित होने का अवसर मिलता रहा। वे सदैव स्पष्टवादी और मुखर रहे, उन्होंने अपने मतभेदों को कभी छुपाया नहीं। प्रदेश में पुरस्कारों की राजनीति पर उन्होंने " मुझको मालूम है जन्नत की हकीकत " नाम से एक पुस्तिका भी लिख डाली थी।
दिल्ली के एक प्रकाशक मेरे मेहमान हुआ करते थे। उन्होंने भोपाल के कुछ प्रतिष्ठित लेखकों से पुस्तकें दिलवाने का अनुरोध किया तो मैंने वर्माजी से सम्पर्क कराया, और उन्होंने मेरा अनुरोध सहर्ष स्वीकार कर लिया।
पिछले कुछ दिनों से श्रद्धेय लोग निरंतर घटते जा रहे हैं, उनमें से एक और प्रतिष्ठित अलोचक का जाना डराता है। विनम्र श्रद्धांजलि
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