क्या ये जनअस्वीकृति के संदेशों को बहकाने के प्रयास हैं
वीरेन्द्र जैन
भाजपा जो राजग का नेतृत्व कर रही थी वह लोकसभा के चुनावों में न केवल मतों की संख्या व प्रतिशत में अपितु सीटों की संख्या में भी जनता द्वारा बुरी तरह नकार दी गयी है जबकि उसके राजग सहयोगियों को उतना नुकसान नहीं हुआ है। इन चुनावों में प्रमुख घटक जनता दल(यू) ने न केवल अपने समर्थन में ही वृद्धि की है अपितु भाजपा की गिरावट को भी थोड़ा टेका दिया है। स्मरणीय है कि चुनावों के दौरान ही आत्मविश्वास से भरे नीतीश कुमार ने राजग गठबंधन व खासतौर पर भाजपा की नीतियों से असहमतियां व्यक्त की थीं व उनके दूसरे मोर्चों के साथ गठबंधन करने की अफवाहें भी फैली थीं। कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने तो सार्वजनिक सभा में उनकी प्रशंसा करके उन्हें अपने गठबंधन के साथ जुड़ने का आवाहन भी किया था।
इस पराजय के बाद पराजय पर विचार किया जाना स्वाभाविक था जो बाल आप्टे के नेतृत्व में गठित समिति के द्वारा किया गया। उसकी रिपोर्ट भी सोंपी गयी तथा जिसके कुछ निष्कर्ष प्रैस को लीक भी किये गये थे किंतु पिछले दिनों पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने ऐसी किसी समिति और रिपोर्ट से ही इंकार कर दिया। उल्लेखनीय यह है कि भाजपा की पराजय के लिए उसके कुछ वरिष्ठ और बहुचर्चित नेताओं को जिम्मेवार ठहराने की खबरें बहुत तेजी से फैलायी गयी हैं तथा भाजपा के ही कुछ नेताओं ने सार्वजनिक बयान देकर, पार्टी के हार के लिए कुछ ऐसे वरिष्ठ नेताओं पर उंगली उठायी है जो स्वयं ही रिटायर होने जा रहे थे। स्मरणीय है कि 2006 में आडवाणीजी ने भाजपा कार्यकर्ताओं की एक सभा में कहा था कि अगला चुनाव आपको अटल आडवाणी के बिना ही लड़ना होगा। पूरे देश में यह हवा बनायी गयी कि भाजपा अपनी गलत और जनविरोधी नीतियों के कारण जनता द्वारा नहीं नकारी गयी अपितु वह तो लालकृष्ण आडवाणी राजनाथ सिंह अरूण जेटली आदि की गलत चुनावी रणनीतियों के कारण हारी। उनके इस कुटिलता भरे प्रयास को प्रायोजित मीडिया और भेड़चाल मीडिया ने फैला दिया जबकि सच यह है कि जनता के बीच भाजपा की साम्प्रदायिक और षड़यंत्रकारी राजनीति की पहचान के कारण हार हुयी है। उनके मुँह से नकाब उठाने का काम धर्मनिरपेक्षता के लिए काम करने वाले दलों और संगठनों ने लगातार किया तथा पिछली यूपीए सरकार का गठन भी इसी आधार पर हुआ था।
यह एक पुरानी कूटनीति है कि अपनी राजनीति के विरोध को एक नेता पर केन्द्रित कर के कुछ दिनों के लिए उसे दल या नेतृत्व से अलग कर दो ताकि जनता का विरोध भी उसके साथ ही चला जाये तथा संगठन बचा रहे। यह ऐसा ही है जैसे कि किसी नगर में बड़ी दुर्घटना हो जाने पर वहाँ के कलैक्टर, एसपी का ट्रांसफर कर दिया जाता है ताकि जनता का तात्कालिक गुस्सा शांत हो सके, जबकि वह कलैक्टर एसपी आदि उसके लिए दूर दूर तक जिम्मेवार नहीं होते। स्मरणीय है कि अस्सी के दशक में जब मध्यप्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेन्द्र कुमार सखलेचा पर भ्रष्टाचार के तीखे आरोप लगे थे तब उन आरोपों को और अधिक हवा देकर ठीक चुनावों से पहले उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था जिससे पूरी पार्टी भ्रष्टाचार के आरोपों से बच गयी थी जबकि सच यह था कि उन कारनामों के लिए सखलेचा जी अकेले जिम्मेवार नहीं थे।
गत दिनों आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद ने जोरशोर से कहा कि भाजपा को हिंदुत्व व राम मंदिर आन्दोलन से दूर जाने के कारण जनता ने हराया। उनके ये बयान बेहद अतार्किक और भ्रामक हैं। ऐसा तब माना जा सकता था जब भाजपा के वोटरों ने भाजपा को वोट न देकर हिंदूमहासभा या शिवसेना को वोट दिया होता। यह कैसे हो सकता है कि हिंदुत्व और राम मंदिर आन्दोलन में पिछड़ने पर जनता उस भाजपा की जगह, जो अब भी दबे छुपे ढंग से इन आंदोलनों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करती रहती है, नाराज होकर डंके की चोट पर धर्मनिरपेक्षता की पक्षधर पार्टियों को वोट दे दे। भाजपा का घटा हुआ वोट कांग्रेस व दूसरी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के पक्ष में गया है न कि किसी दूसरे हिन्दूवादी दल के पक्ष में गया है।
गत दिनों भाजपा ने ईवीएम मशीनों में संभावित दुरूप्योग की शिकायत जोर शोर से करने के प्रयास किये। इससे पहले मध्यप्रदेश में भी विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने ऐसे ही आरोप लगाकर भाजपा शासन को घेरे में लेने के प्रयास किये थे। ऐसा लगता है कि ईवीएम मशीनों में तकनीकी गड़बड़ियों के बारे में भाजपा की जानकारियां किसी भी दूसरे से अधिक हैं अथवा वह अपनी गलत नीतियों को आरोपों के घेरे में आने से रोकने के लिए यहाँ वहाँ हमले कर रही है। इस कोशिश में वे यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि अपनी नीतियों के दोष को कहाँ पर थोपें- मशीन पर, हिंदुत्व से दूरी पर, या नेताओं पर!
आडवाणीजी संघ के वरिष्ठ प्रचारक से जनसंघ गठन के लिए भेजे गये पुराने नेता हैं तथा उन्होंने अपना पूरा जीवन संघ की विचारधारा के हित में लगाया है। वे उम्र दराज हो गये हैं व राजनीति से रिटायर होने के लिए तैयार हैं। उन्होंने बेहद चतुराई भरे कारनामों से भाजपा को चुनावों में सफलताएं दिलायी हैं तथा भाजपा को दो से दो सौ तक ले जाने में उनके (अनैतिक) योगदान को नकारना संघ परिवार की कृत्धनता होगी। इन चुनावों में भी उन्होंने सारे हथकंडे अपनाये थे पर भाजपा से जनता की नाराजी अधिक होने के कारण वे अटूट धन व साधनों का प्रवाह करने के बाद भी उसे सत्ता नहीं दिला सके। यह अवसर भाजपा को अपनी जनविरोधी नीतियों पर पुर्नविचार करने का अवसर है न कि अपने प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी पर ठीकरा फोड़ कर उसे अपमानजनक ढंग से बाहर निकाल देने का है। यह समय है कि जब भाजपा एक रामलीला पार्टी से एक राजनीतिक दल के रूप में प्रकट होने के बारे में सोच सकता है व आरएसएस से अपना पीछा छुड़ा सकती है। यदि वह अपना आकार बनाये रख सका तो भी उसे तत्कालीन सत्तारूढ दलों से असंतोष होने पर नकारात्मक वोटों का लाभ मिलता रह सकता है, अन्यथा उसका हश्र समाजवादियों की तरह होगा।
वीरेन्द्र जैन
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वीरेन्द्र जैन जी
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
आपसे बात करने में वैसे भी आनन्द आता है । मैं यह कहने से बाज नहीं आऊंगा कि आपके व्यंग्य बड़े चुटकिले तो होते ही है किन्तु आपकी बातें उससे भी ज्यादा चुटकीली होती है । ऐसा लगता है हरिशंकर परसाई के सामने बैठे है और वे हमको सम्बोधित कर रहे हैं। आनेवाला समय अवश्य ही आपका होगा । आपके व्यंग्य राजनैतिक और सामाजिक कटाक्ष भरे होते हैं । समूचा मानव समुदाय आज के उत्तर आधुनिक कुण्ठाओं से पीड़ित हो रहा है और ऐसे समय में आपके विचार समाज को एक नया मार्ग बताता है । फिर यह समाज उसे माने या न मारें । यदि वह सड़क पर गिरे हुए बच्चे को नहीं संभाल सकता तो स्वयं को भी कैसे संभाल सकेगा,यह उसका भविष्य बताएगा ।
साधुवाद,
कृष्णशंकर सोनाने
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