तो फिर चीन से कौन लड़वाना चाहता है और क्यों?
वीरेन्द्र जैन
आइये 20 सितम्बर के अखबार उठा कर मुखपुष्ठ की खबरें पढें। आजकल प्रकाशन की जो तकनीक है उस कारण कोई सा भी अखबार उठा लें इनमें ज्यादा भेद नहीं होता। मुखपृष्ठ की जो प्रमुख खबर है उसका लब्बो लुआब यह है कि पिछले दिनों अखबारों में जो चीन का हमला शुरू हो गया था वह हमारे प्रधानमंत्री ने शांत कर दिया।
मनमोहन सरकार ने चीनी घुसपैठ की खबर को सिरे से नकारते हुए मीडिया पर ही हमला बोल दिया है। विदेश मंत्रालय, सेना और एनएसए का कहना है कि चीन की ओर से भारत चीन सीमा पर घुसपैठ अथवा अतिक्रमण की घटनाओं में कोई वृद्धि नहीं हुयी है। मीडिया इस मामले को बढा चढा कर प्रस्तुत कर रहा है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम के नारायनन ने कहा है कि चीनी सेना द्वारा अतिक्रमण में कोई वृद्धि नहीं हुयी है और चिंता की कोई बात नहीं है।
विदेश सचिव निरूपमा राव ने कहा कि चीनी घुसपैठ को लेकर छपी खबरें अतिरंजित हैं। हकीकत यह है कि भारत-चीन सीमा पर कई दशकों से शांति कायम है। दोनों देशों के बीच संवाद की कारगर प्रणाली कायम है।
सेना प्रमुख दीपक कपूर ने कहा कि अतिक्रमण की घटनाएं पिछले सालों की अपेक्षा इस साल बढी नहीं हैं। मीडिया को इस मसमले को बढा चढा कर पेश नहीं करना चाहिये।
वहीं इसी तारीख के अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार-
· नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने जम्मू कशमीर, उत्तराखण्ड, एवं सिक्किम में चीन की सेना द्वारा सीमा अतिक्रमण की रिपोर्टों पर चिंता व्यक्त करते हुये कहा है कि केन्द्र सरकार को चीन के साथ दृढता से पेश आना चाहिए। चीन के अतिक्रमण पर लिखे गये संपादकीय में संघ के मुखपत्र आर्गनाइजर ने मनमोहन सरकार को सलाह दी है कि वह पूर्व की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार की विदेश नीति से सबक ले।
· इससे पूर्व आरएसएस के संगठनों ने विभिन्न प्रदेशों की राजधानियों और मीडिया वाले स्थानों पर चीन के खिलाफ प्रर्दशन किये थे व पुतले झन्डे आदि दहन किये थे।
ये घटनाक्रम कोई मामूली घटनाक्रम नहीं है। सवाल उठता है कि जो पार्टी अपनी सरकार के समय बार बार कहती रही है कि रक्षा और विदेश जैसे राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर राजनीति नहीं होना चाहिये वही एक अविश्वसनीय खबर के आधार पर देश का मनोबल और व्यवस्था को कमजोर क्यों करना चाह रही है जबकि 1962 में ऐसे ही दुष्प्रचार से प्रभावित होकर संसद में देश की सरकार पर जो दबाव बना दिया गया था उसके दुष्परिणाम हमने लम्बे समय तक भुगते हैं। जवाहरलाल नेहरू जिस पंचशील के सिद्धांत पर चलकर देश को विकास के रास्ते पर ले जा रहे थे उससे भटक कर हमने अपनी आय का बहुत बड़ा हिस्सा रक्षा उपकरणों के आयात में लगाना शुरू कर दिया था व आज भी हमारा रक्षा बजट दूसरी जरूरी मदों की तुलना में बहुत अधिक है। यद्यपि यह तय है कि पाकिस्तान के अस्थिर शासन और विभिन्न समयों पर शासन करने वाले फौजी शासकों, जो अमरीकी निर्देशों और धन से संचालित होते हैं, से हमें लगातार खतरा बना रहता है। हम लोग हमेशा से जो आरोप लगाते रहते थे और अमरीका जिसे मानता नहीं था कि पाकिस्तान अमरीकी सहायता से मिलने वाली राशि को भारत के खिलाफ स्तेमाल करता रहता है, उसे पिछले दिनों परवेज मुशर्रफ ने स्वीकार करके आइना दिखा दिया है।
1949 की क्रान्ति के बाद का चीन कोई साम्राज्यवादी देश नहीं है। आज का औद्योगिक रूप से विकसित चीन भी अपने सस्ते औद्योगिक उत्पादनों के माध्यम से दुनिया के दूसरे औद्योगिक देशों का बाजार छीन रहा है। चीन के साथ हमारे मतभेद नक्शोंं पर खींची जाने वाली सीमा रेखाओं के मतभेद हैं और दोनों के ही पास पुराने पुराने नक्शे हैं। चार हजार किलोमीटर तक फैली इन सीमा रेखाओं में अधिकांश भाग बरफ से ढकी पहाड़ियों का है व वहाँ घास तक नहीं उगती है। 1962 में भी जब चीन तिब्बत के लिए इस विवादित सीमा रेखा क्षेत्र में मार्ग तैयार कर रहा था तब गलत अमरीकी सूचनाओं से प्रभावित कुछ सांसदों ने इसे हमला बता कर हमें वहाँ अपनी चौकियां स्थापित करने के लिए वातावरण तैयार कर दिया था जहॉ पर ना तो हमारे पास रसद पहुँचाने के मार्ग थे और ना ही हमारे सैनिकों के पास उपयुक्त हथियार व वहाँ के मौसम के अनुकूल कपड़े, टेंट तक थे। हमने सामरिक महत्व के अनुसार जहाँ पहली बार चौकियां स्थापित की थीं उस क्षेत्र को नक्शोंं में चीन अपना क्षेत्र मानता था व हमारी चौकियां स्थापित होने के कारण उसके मार्ग निर्माण में अवरोध आ गया था। माओ के शासन वाली चीन की तत्कालीन सरकार सैनिक बल में हमसे सशक्त थी। तिब्बत से सारी धनदौलत लेकर भागे दलाई लामा को शरण देने के कारण वे हमारी सरकार से असन्तुष्ट भी थे। परिणाम यह हुआ कि चीन ने हमारी नई बनायी गयी चौकियों से हमें काफी दूर तक पीछे खदेड़ दिया जिसमें हमारी जन धन की काफी हानि हुयी व देश का मनोबल टूटा। यह वही समय था जब नवसाम्राज्यवादी अमेरिका को हमारे देश में प्रवेश का अवसर मिला व मुख्य विपक्षी साम्यवादियों का स्थान साम्प्रदायिक राष्ट्रवाद ने लेना प्रारंभ कर दिया। इसके दुष्परिणाम हम आज तक भुगत रहे हैं। हमारे देश को सीमा विवाद में चीन द्वारा हमें अपनी सीमा से पीछे घकेल देना तो याद रहा किंतु इस सत्य को साफ तौर पर रेखांकित नहीं किया गया कि उसके बाद चीन अपने आप ही अपनी सीमा में वापिस लौट गया था व उसके लिए कोई अर्न्तराष्ट्रीय दबाव जिम्मेवार नहीं था। यदि वह कोई साम्राज्यवादी देश होता तो बिना किसी सौदे के जीती हुयी जमीन छोड़ कर नहीं चला जाता। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम के नारायनन द्वारा 19 सितम्बर 2009 को करण थापर के टीवी कार्यक्रम डैविल्स एडवोकेट में साफ साफ कहा कि-
· यह बात गलत है कि चीन दबाव डालने की कोशिश कर रहा है। दोनों राष्ट्र शांति बनाये रखना चाहते हैं।
· मैं नहीं समझ पा रहा हूँ कि मीडिया इसे क्यों बढा चढा कर पेश कर रहा है। मीडिया की हद से ज्यादा प्रतिक्रिया समस्या पैदा कर सकती है इसलिए किसी अवांछित घटना को रोकने के लिए सावधान रहने की जरूरत है। नासमझी में किसी के धैर्य खो देने पर कुछ भी गलत हो सकता है।
· 2009 का भारत 1962 का भारत नहीं है। हम सचेत हैं और मैं सोचता हूँ कि हम ऐसी परिस्तिथि में नहीं पड़ें जिसे हम नहीं चाहते।
· चीनी समकक्ष दाई बिंगूओ के साथ वार्ता के नौ दौर के बाद इस समय एक साल पहले की तुलना में हम ज्यादा सहज हैं।
खेद है कि मिसाइलों और एटमी हथियारों के इस युग में भी देश के लोगों को बरगलाने के लिए वही कहानी फिर से दुहरायी जा रही है। प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख के स्पष्टीकरण के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि देश की सुरक्षा और अस्मिता से जुड़ी इस खतरनाक अफवाह के पीछे कौन सी ताकतें हैं और उनके इरादे क्या हैं। विश्वव्यापी मंदी के समय में हम बहुत ही खतरनाक दौर से गुजर रहे हैं व इतिहास बताता है कि मंदी और युद्धों के बीच कैसे सम्बंध रहे हैं।
यह जाना जाना चाहिये कि आखिर बिना पूरी पुष्टि किये हुये संघ परिवार के लोग इतने सक्रिय क्यों हो गये जबकि उन्होंने अपने संगठन में अनेक सेवानिवृत्त सैनिक अधिकारी भरती कर रखे हैं।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
यानी आप कहना चाहते हैं कि, मीडिया पर संघ का कंट्रोल हो गया है? संघ के कहने पर ही मीडिया यह सब दिखा रहा है? वाह, ये तो अपने-आप में ही एक खबर है… :) जबकि हकीकत ये कि देश के भीतर ही कुछ "संदिग्ध" लोग बैठे हुए हैं, जो मीडिया में संघ विरोधी विचार परोसते रहते हैं… जिन्हें संघ की "रस्सी" भी "साँप" दिखाई देती है… :)
जवाब देंहटाएंनेहरु जी के समय में ब्लॉग नहीं होने का बहुत बड़ा नुक्शान हुआ. काश कि आपका ब्लॉग होता तो नेहरु जी आपकी पोस्ट पढ़ते और चीन के स्वागत में पलक-पावड़े बिछा देते. चीन नाश्ता करके वापस चला जाता. हमें रक्षा पर खर्च नहीं करना पड़ता. हमारा देश विकसित हो जाता.
जवाब देंहटाएंआज खुदा से सवाल करूंगा (भगवान से करूंगा तो आप इसपर भी एक पोस्ट लिख डालेंगे कि ज़रूर मैं संघ का आदमी हूँ जो भगवान से पूछ रहा हूँ) कि ब्लागिंग की शुरुआत १९५८ में ही क्यों नहीं करवाई? क्यों हमारे देश को विकसित नहीं होने दिया?
आप तो चीन के मौन समर्थक निकले। कहीं जवाहर चाचा के नये अवतार तो नहीं हैं?
जवाब देंहटाएंहकीकत यह भी है कि हममे इतना दमख़म नहीं है कि चीन को हम भी कोई घुड़की दे सके ! कल जिस तरह पाकिस्तान के परमाणु बम के जनक के पत्र से खुलासा हुआ कि चीन किस तरह का जाल हमारे इर्द-गिर्द फैला रहा है, हम अगर उसके बाद भी आँखे मूंदे रहे तो भगवान् भरोसे ही रहना होगा ! ज्यादा से ज्यादा अमेरिका की तरफ ताक सकते है उस अमेरिका की तरफ जो कभी नहीं चाहेगा कि भारत एक महा शक्ति के तौर पर कभी उभरे !
जवाब देंहटाएंचीन के सम्बन्ध में मैंने निम्नाकित लेख कहीं पर करीब एक साल पहले लिखा था जो आज भी सार्थक है ;
भारतीयों का चीनी भरम !
०८/०८/०८ यानि आज चीन की राजधानी बेजिंग में २९वे ओलंपिक का उद्घाटन होने जा रहा है ! सियोल के बाद बीजिंग ऐंसा दूसरा एशियाई शहर है जिसे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ ! हालांकि इस बार के ओलंपिक की गूंज उस तरह की नही है जैंसे कि पहले होता आया था ! इस बार कि गूंज लगता है तिब्बत के शोर में दब गई कही शायद !
हम हिन्दुस्तानी, हमारा मीडिया, जब कोई भारत की तुलना चीन से करता है तो इस बात पर बड़ा गर्व महसूस करते है ! लेकिन जमीनी सच्चाई क्या है? शायद आप लोग भी भली भांति जानते होंगे ! दोनों देशो के लोगो के बीच बहुत सी समानताये है जैंसे भ्रष्ट व्यक्तित्व, घृणित आचरण, सेक्स पिपासा और जनसँख्या, मिलावट, कायरता और अविश्वास, सामजिक दुर्दशा इत्यादि, इत्यादि ! उपरोक्त बिन्दुओ पर हम गर्व से कह सकते हैं कि हम हिन्दुस्तानी, चीनियों से कंधे से कन्धा मिला कर चल रहे हैं ! लेकिन अगर आर्थिक और ढांचागत विकास तथा द्रिड इच्छा शक्ति की बात करे तो आप चीन की भले लाख बुराई कर लो लेकिन आप पावोगे कि दोनोंदेशो के बीच जमीन आसमान का फर्क है !
अन्य बातो को छोड़ सिर्फ़ अगर खेल सम्बन्धी बात पर ही गौर करे तो लगभग एक जैंसी आवादी वाले दो देश, एक देश एथेंस ओलंपिक में २८ स्वर्ण पदक लेकर ( अमेरिका के बाद दुसरे नम्बर पर ) घर लौटता है और दूसरा
मात्र एक रजत पदक लेकर !ख़ुद ही फर्क देख लीजिये ! अब आए खेलो के आयोजन पर ! एक ने ओलंपिक जैसे आयोजन के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया और अभी तक के सफर में वह पूर्णतया सफल रहा है ! उसने वो ढांचागत विकास किया है जो अपना देश अगले २० वर्षो में नही सोच सकता ! अभी २०१० में यहाँ पर राष्ट्रमंडल खेल होने है और उसके लिए हमारे नेता लोग जो व्यानबाजी करते है कि हम यह बनायेगे, यह करेंगे........और जो जमीनी हकीकत है उसे देख मैं आते जाते रोज दुनिया भर की गालिया निकाल कर, अपने ब्लड प्रेसर में इजाफा करके अपने मन की भडांस शांत करता हूँ ! हमारी यह दिल्ली की सी एम् बड़े बड़े सपने दिखाती है ! मगर करती कुछ नही क्योंकि उसे भी मालुम है की उस वक्त तक यह कुर्सी उसके पास नही रहेगी अतः सेहरा उसके सिर नही आएगा ! जब मेट्रो का उद्घाटन होना था तो आप को याद होगा कि उसका उद्घाटन मैं करूंगी,के लिए यह एन डी ए से कितना उलझी थी ! एक- डेड साल का वक्त बाकि बचा है और काम की रफ़्तार कछ्वे कि चाल जैंसी है ! परिणाम स्वरुप आख़िर में क्या होगा कि अगली सरकार पर सिमित समय में काम पूरा करने का दबाब होगा, खूब हेरा फेरी होगी, घटिया सामग्री प्रयोग में लायी जायेगी और जो कामचलाऊ ढांचागत विकास किया जाएगा वह कुछ ही सालो में विखर जायगा ! अंत में सार यह है कि बड़े अफसोश के साथ कहना पड़ता है कि कपट और बदमाशी ने हमारे जीवन तंत्र को इस हद तक जकड लिया है कि भगवान् भी नही बचा सकता , हम हिन्दुस्तानी बातें ज्यादा करते हैं , और काम कम ! हर जगह अपना नफा नुक्सान ही देखते है ! और फिर निकल पड़ते हैं असफलता का ठीकरा किसी और के सर फोड़ने के लिए बलि के बकरे कि तलाश में !
हम पहले सुनते थे कि भारत पर चीनी हमले के समय देश के कम्युनिश्ट नेताओं ने कहा था कि अमेरिका की बातों में आकर भारत ने चीन पर हमला किया था. मुझे भरोसा नहीं होता था कि कोई एसी प्रजाति भी हो सकती थी आज देख भी लिया
जवाब देंहटाएंपता चल गया कि हमारा देश इतने सालो तक गुलाम क्यों रहा जब हमारे घर में ही देशद्रोही जैचन्द और मीर जाफर बैठे होंगे तो उसका और हो भी क्या सकता है?
चाचे, ये तो बता कि अखबारों और टीवी पर जो फोटो दिखाये थे वो क्या नकली थे? कौन से कमीने देश के हरामजादे आकर हमारे देश के पत्थरों पर चीनी भाषा में चीन लिख कर चले गये थे?
चीन साम्राज्यवादी नहीं है तो चीन के बकील चाचे बता कि क्यों उसने तिब्बत पर अधिकार किया हुआ है?
पीसी गोदियाल भाई, हमारे बाजुओं में दम नहीं है माना, लेकिन अगर कोई ताकतवर पडौसी आया तो क्या अपनी मां को उस पडौसी के हवाले कर दोगे?
जब कमीने कम्युनिष्ट कुछ बोल नहीं पाते, जबाब नहीं दे पाते तो अपनी पूछ अपने पिछवाड़े में दबा कर हिस्टीरिया की तरह संघी संघी बकबकाते रहते हैं इसलिये चाचे अगर तू हिस्टीरिया का मारा हो तो संघी भी बोल लेना
@ रवि सिंह जी ,
जवाब देंहटाएंलगता है आपने मेरा लेख ठीक से नहीं पढा, मैंने भी एक्साक्ट्ली वही कहा है जो आप कह रहे है !
मेरे प्यारे मित्रो आप लोगों ने जो कुछ लिखा है उससे आपकी समझ और अंदाज़ का आभास हो जाता है मेरा लेख शुद्ध रूप से समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों के आधार पर सवाल उठा रहा है किन्तु आप में से कोई भी उस पर बात करने का तर्क नहीं कर रहे हैं . कुछ मित्र तो सीधे गली गलोज पर उतर आये हैं और कुछ भावनाओं की गीली दुहाई देकर भटकाने की कोशिश कर रहे हैं आप अगर ढीली नेकर काली टोपी लगा कर साखा में ध्वज प्रणाम कर लेते हैं उससे देश सेवा नहीं होती . इस देश में लोकतान्त्रिक तरीके से चुना हुआ प्रधान मंत्री, रक्षा सलाहाकार और सेना का प्रमुख देशभक्त नहीं है और आप है जिनकी देश भक्ति के कारनामे गुजरात से लेकर कंधमाल तक दिख रहे हैं पर आप में से कोई भी मोर्चे पर जाकर लड़ने के लिए तैयार नहीं. एक रिपोर्ट के अनुसार सेना में जाने वाले लोगों में संघ पृष्ठभूमि के दो प्रतिशत लोग भी नहीं होते . प्रशिद्ध शायर मुनव्वर राणा का शेर है - चलो आजाओ मिल जुल कर वतन पर जान देते हैं बहुत आसान है कमरे में बन्दे मातरम कहना
जवाब देंहटाएंबिना लेख पर बात किये किसी को कांग्रसी कम्युनिस्ट गद्दार देशद्रोही बकने लगना ही फासिज्म का तरीका होता है . असल में इसी तरह की नादानीपूर्ण भावुकता ने हमारा पीछे भी बहुत नुकसान कराया है . कृपा करके जनसत्ता दैनिक भास्कर पीपुल्स समाचार आदि में प्रकाशित उक्त समाचारों के आधार पर अपनी बात कहो तो उसका स्वागत है और यही लोकतान्त्रिक तरीका है
कौन सी गाली दी है चाचे?
जवाब देंहटाएं"कौन से कमीने देश के हरामजादे आकर हमारे देश के पत्थरों पर चीनी भाषा में चीन लिख कर चले गये थे? " में दी गई गाली को अपने नाम पर कबूल कर रहा है चाचे. चीन चीन का नाम जपने से क्या खुद को निखालिस चीनी समझन लाग रहा है?
मैंने पहले बोला था कि जब बात का जबाब नहीं होता तो कम्युनुष्ट हिस्टीरिया के मारे संघी सघीं संघी जपन लाग रहता है.
"जबकि 1962 में ऐसे ही दुष्प्रचार से प्रभावित होकर संसद में देश की सरकार पर जो दबाव बना दिया गया था उसके दुष्परिणाम हमने लम्बे समय तक भुगते हैं। जवाहरलाल नेहरू जिस पंचशील के सिद्धांत पर चलकर देश को विकास के रास्ते पर ले जा रहे थे उससे भटक कर हमने अपनी आय का बहुत बड़ा हिस्सा रक्षा उपकरणों के आयात में लगाना शुरू कर दिया था"
कौन से अखबार में लिखा है ये सब चाचे? लोकतांत्रिक तरीका कोन सा है, क्या वही लोकतांत्रिक तरीका जो चीन में होता है? कौन सा लोकतंत्र, लोकतंत्र की तो तुम कम्युनिष्ट लोग पतंग बना कर उड़ान लाग रहे हो.
कोई बोले कि हमला चीन ने नहीं किया तो एसे वतन फरोश को गद्दार नहीं बोलें तो चाचे क्या बोलें?
कंधमाल, गुजरात का नाम का हिस्टीरिया खतम हो जाय तो सिर पर ठंडा पानी डाल कर सोच लीजो चाचे.
मेरी काली निक्कर कहां से देख ली? इस उम्र में जबान छोरों की निक्करें क्यों देखे है चाचे, नबाबी शौक पाल लिये है क्या?
रवि सिंह की भाषा निश्चित रूप से गलत है, लेकिन आपने उनकी इस बात का जवाब नहीं दिया कि हमारी सीमाओं में घुसकर पत्थरों पर लाल रंग से चीनी भाषा में कौन लिख गया? (शायद संघी) न ही आपने इस बात का जवाब दिया कि यदि चीन साम्राज्यवादी नहीं है तो तिब्बत को क्यों दबाये बैठा है? एक बात मेरी तरफ़ से भी, कि विश्व में जहाँ-जहाँ से ऊर्जा स्रोत मिलने की संभावना है, हर जगह चीन, भारत के सामने अड़ंगे लगा रहा है, क्यों? जैन साहब, यदि अखबारी रिपोर्टों के आधार पर ही संघ विरोध प्रदर्शन कर रहा है तब भी आपको इसमें आपत्ति है? और सबसे बड़ी बात ये कि आपके द्वारा, चीन-भारत विवाद में संघ को घसीटने की कोशिश ही बेतुकी थी…
जवाब देंहटाएंरवि सिंह जैसे बहादुर ही अपना परिचय छुपा के रखते हैं . पता नहीं उस नाम से कौन लिख रहा है . बहरहाल यही तो पेच है की जब देश का प्रधानमंत्री सेना प्रमुख और रक्षा सलाहकार खंडन कर रहे हैं तब यह जांच का विषय हो सकता है कि कौन लिख गया . मेरा कहना भी यही है कि जो लोग अब भी उस पर चीख पुकार कर रहे हैं उनके चरित्र को पहचानने कि जरुरत है अगर चीन से उस समय सीमा विवाद नहीं हुआ होता तो देश के विकास कि दशा ही दूसरी होती
जवाब देंहटाएंसर, आपका कहना है कि;
जवाब देंहटाएं"चीन के साथ सीमा-विवाद नहीं होता तो देश के विकास की दिशा दूसरी होती."
सर, क्या यह मान लिया जाय कि सीमा-विवाद की शुरुआत भारत ने की? भारत की सीमा में चीन घुसा या चीन की सीमा में भारत? विवाद भारत ने खड़ा किया या चीन ने? भारत के विकास की दिशा क्या इसी एक घटना की वजह से बिगड़ गई? अगर विवाद भारत ने खड़ा किया होता तो कुछ और बात थी. हम खुद को दोषी मान लेते कि फालतू में विवाद खड़ा कर अपने विकास का सत्यानाश कर लिया हमने. लेकिन सुरक्षा की ज़रुरत तो इतने बड़े देश को पड़ेगी ही. सुरक्षा पर खर्च आएगा ही. ऐसा कोई देश है जो केवल आर्थिक विकास के दम पर अपने बलशाली पड़ोसियों से मुकाबला कर ले? इतिहास में अगर ऐसा कोई उदहारण हो तो ज़रूर बताएं.
सर्रजी, क्या आप अपने घर की सुरक्षा पर कुछ भी खर्च नहीं करते? आपके शालीमार स्टर्लिंग के फ्लैट के चारो ओर वो प्राइवेट सिक्योरिटी के लोग क्यों घूमते हैं? काहे को खर्च करते हो ये सब? इस पैसों को बचा कर घर के आर्थिक विकास में क्यों नहीं लगाते?
जवाब देंहटाएंचाचा नेहरू के पंचशील से हट कर हमने बहुत बड़ा गुनाह किया, वरना अब तक भारत चीन का हिस्सा होता और आपको यह लिखने की जरूरत ही नहीं पड़ती.
जवाब देंहटाएंचीन बेचारा क्या कर रहा है? कुछ भी नहीं. बस भारत का एक बड़ा सा भूभाग दबा रखा, उतने ही और पर अपना दावा कर रहा है. कुछ आतंकी संगठनो को सहायता करता है, भारत में माओ वादी आतंकियों को सहायता करता है, सामरिक दृष्टि से भारत को घेरने की कोशिश में लगा है. उर्जास्रोतों को भारत से छीन रहा है. भारत के लघु उद्योगों को नष्ट कर रहा है. और अन्त में अपने लिए भारतीय भाड़े के टट्टू पाल रहा है, जो उसके पक्ष में लिखते है.
प्यारे मित्रो
जवाब देंहटाएंआपका जोश देख कर अच्छा लगा पर काश यह जोश होश के साथ होता! ऐसे ही जोश को डालरों में रूप्ये मांगने वाले या पैसों को खुदा बताने वाले भुना कर संसद में सवाल पूछने सांसद निधि का व्यापार करने या कबूतरबाजी करने वाले भुना लेते हैं और यह ऊर्जा देश के लिए नहीं लग पाती। मैं सारे मित्रों के जबाब दूंगा सिर्फ घूंघट में रहने वाले रवि सिंह को छोड़ कर जिनके पास सवाल ही नहीं हैं।
1- जिस तरह से हम सिक्किम को अपने में मिलाकर भी साम्राज्यवादी नहीं हुये उसी तरह चीन तिब्बत को मिला कर या रूस अफगानिस्तान में बैठ कर भी नहीं हुआ था। साम्राज्यवाद संसाधनों को अपने देश के लिए लूटने का काम करता है किंतु ऐसा विलय वहाँ के बहुसंख्य लोगों के साथ होने पर ही सम्भव होता है और उस क्षेत्र के लोगों और संसाधनों का अपने लिए शोषण नहीं करता। पर यह भी सच है कि भारत के हित में यह विलय ठीक नहीं हुआ था क्यों कि चीन जैसे ताकतवर देश की सीमाओं के बीच में एक स्प्रिंग समाप्त हो गयी थी।
2- मैंने पहले ही लिखा है कि सीमा क्षेत्र के बारे में विवाद है व दो देशों के बीच में जब ऐसा विवाद होता है तो दोनों के अपने अपने दावे होते हैं। हम मानते हें कि चीन ने हमारे क्षेत्र को दबा रखा है और चीन भी ऐसा ही दावा करता है। बातचीत लगातार जारी रहती है। अभी पिछले ही दिनों अरूणाचल प्रदेश के जिस क्षेत्र पर उसका दावा है उसके बारे में हमने कहा था कि किसी भी समझौते में बसाहट वाली कोई भी जमीन खाली नहीं करेंगे।
3-चीन का बाजार इस ग्लोबलाइजेशन वाले युग में हमारे देश को ही नहीं अपितु पूरी दुनिया को परेशान किये हुये है और इस दिशा में उसने अमेरिका जापान का वर्चस्व समाप्त कर दिया है। इसे भारत के साथ दुश्मनी की जगह विश्व की अर्थ व्यवस्था की समस्याओं की तरह देखना चाहिये।
4- हम अपनी सुरक्षा अवश्य ही रखते हैं किंतु कई बार झूठमूठ के भय और आतंक हमारी सुरक्षा का खर्च बढा देते हैं और इसमें हथियार बेचने वालों को फायदा होता है। हथियार बेचने वाले ऐसे भय पैदा करवाते रहते हैं और देश के अन्दर भी ऐसे भय का वातावरण बनाने वालों को उकसाते रहते हैं। देश के बजट का छत्तीस प्रतिशत तक रक्षा में लगता रहा है।
जवाब देंहटाएं5- चीन की क्रान्ति के तरीके को आर्दश मानने वाले माओवादी जैसे संगठन भारत में काम कर रहे हैं किंतु उन का चीन के साथ कोई सम्बंध कभी सामने नहीं आया। यदि उन्हें भाड़े के टट्टूू पालने होते तो वे रूप्ये की जगह डालर में मांगने वाले, या पैसे को खुदा मानने वाले, या सांसद निधि बेचने, कबूतरबाजी करने, दलबदलुओं आदि को तलाशते&
6-चीन ने चटट्नें रंगने का कोई दावा नहीं किया इसलिए इसकी जाँच होनी चाहिये। साथ ही यह भी नहीं भूलना चाहिये कि जब तक माले गाँव में हिन्दू आतंकवादियों के डेरे से नकली दाढी मूँछें, मुस्लिम पोषाकें, नहीं मिली थीं साध्वी के भेष में रहने वाली आतंकी पकड़ में नहीं आयी थी तब तक सारे बम विष्फोटों के लिए मुस्लिम आतंकी ही जिम्मेवार माने जाते रहे व मुस्लिम युवक ही पकड़े जाते रहे
वीरेन्द्र जैन जी, इस बात का दुःख कल मुझे भी हुआ था, जब कुछ अप्रिय भाषा यहाँ प्रयुक्त की गई थी ! मगर आज आपकी टिपण्णी पढी, बड़े हास्यास्पद तथ्य दिए है है आपने, मुझे उम्मीद नहीं थी(फोटो देखकर ) की एक वरिष्ट लेखक इस तरह के बचकाने तथ्य पेश करेगा ! खैर, आप एक सच्चे कोंग्रेसी हो इससे ज्यादा और क्या सकता हूँ !
जवाब देंहटाएंगोंदियालाजी
जवाब देंहटाएंबचकाने तर्कों को परिपक्व तर्कों से और हास्यास्पद बातों को गंभीर बातों से काटा जा सकता है . मूर्खता करने के लिए कोई उम्र की सीमा नहीं होती वह किसी भी उम्र में की जा सकती है मेरा फोटो देख कर आपके अनुमान गलत भी हो सकते हैं पर यहाँ केवल तथ्यों और तर्कों का क्षेत्र है कितना अच्छा हो अगर हम उसी आधार पर बात करें . अपनी परंपरा में आता है कि "वादे वादे जायते तत्व बोध:" हो सकता है मुझे आप से कुछ सीखने को मिले क्योंकि में सदैव विद्यार्थी बने रहना चाहता हूँ . फतवे जारी करना विशेषण दे देना वैचारिक कमजोरी दर्शाती है