बुधवार, जून 02, 2010

एक वाहन नीति की ज़रुरत


एक वाहन नीति की ज़रूरत
वीरेन्द्र जैन
यातायात परिवहन व्यवस्था सुधारने के नाम पर जो कानून बने हैं और उन्हें पालन कराने के लिए पुलिस को जो अधिकार मिले हैं, उनका अक्सर दुरुपयोग ही होता है। ट्रैफिक पुलिस विभाग दुपहिया वाहन चालकों को हेलमेट लगवांने, कार चालकों को बेल्ट बन्धवाने और लाल बत्ती की गाड़ियों को सेल्यूट मारने जैसी कार्यवाहियों में वक्त बिताता रहता है। एक दो नियमों का पालन न करने वालों पर अर्थ दण्ड थोपने और उसके दबाव में अवैध वसूली में ट्रैफिक पुलिस इतनी तल्लीन रहती है कि उसे यातायात व्यवस्थित करने और सड़क दुर्घटनाएं रोकने का समय ही नहीं मिल पाता है।
गत एक दशक में वाहनों की संख्या कई कई गुना बढ गई है और यह संख्या नगरों कस्बों में तो पैदल चलने वालों से भी बहुत अधिक हो गई है। पेट्रोल के मँहगे होने के साथ साथ नये नये इंजनों वाले वाहन बाज़ार में उतारे जाते जो बहुत ही जल्दी स्पीड पकड़ लेते हैं, और तेज चलते हैं। प्राइवेट नगर वाहनों में गला काट प्रतियोगिता है और सवारियाँ पकड़ने के लिए घंटों रुके रहने के अलावा वे कार रेस की तरह वाहन दौड़ा कर आगे निकलने के प्रयास में रहते हैं। नव धनाड्य वर्ग ने अपने लाढ प्यर में किशोर किशोरियों को नये नये तरह के वाहन दिलवा दिये हैं जो उनके मन की ही तरह उड़ते हैं। भारी वाहन भी नगर के मध्य से गुजरते हुये अपनी गति में कोई परिवर्तन नहीं लाते और हाई वे की तरह वाहन दौड़ाते रहते हैं। ट्रैक्टर जिनमें से अधिकांश ने कृषि कार्य के नाम पर रियायती दरों पर रजिस्ट्रेशन कराया होता है नगरों में माल वाहन का काम धड़ल्ले से करते हैं और ईंटें, रेत, सरिया, और सीमेंट ढोते देखे जाते हैं। संकरी सड़कों पर वे सबसे अधिक जगह घेरते हैं और उनके चालक उन्हें उनकी पूरी सम्भव गति से दौड़ाते हैं। इनको ओवरटेक करने के कारण भी बहुत सारी दुर्घटनाएं होती हैं।
वाहन अधिक हो जने के कारण पार्किंग की भी गम्भीर समस्या पैदा हो गयी है जो दिन प्रति दिन बढती जा रही है। निवासों में जगह न होने के कारण बहुत सारे वाहन आम रास्तों पर पार्क किये जाते हैं जो अतिक्रमण कर मार्गों को और संकरा कर देते हैं। सार्वजनिक उपयोग के स्थानों, बाज़ारों, दफ्तरों, बैंकों ट्यूटोरियल क्लासों, आदि के सामने के मार्ग को पार्किंग के लिए प्रयोग किया जाता है जिससे कई बार तो रास्ता ही जाम हो जाता है। कहते हैं कि मुम्बई में जितना अतिक्रमण झुग्गी वालों ने नहीं किया है जितना कि सड़क पर कार पार्किंग करने वालों ने किया है।
महानगर और नगर तेज़ी से फल फूल रहे हैं। इन नगरों में गाँव और कस्बों के लोग निरंतर आकर बसते जा रहे हैं। इन लोगों का ट्रैफिक नियमों के पालन का अभ्यास उस जगह के जैसा होता है जहाँ से पलायन करके ये आये होते हैं, जिससे वे अपनी आदतों के अनुसार वाहन चलाते हुए कहीं से भी ओवरटेक कर जाते हैं और बिना संकेत दिये मुड़ जाते हैं। अधिकांश सार्वजनिक बड़े वाहनों के मालिकों के पास अपने गैरेज नहीं हैं ये लोग भी अपने वाहन सड़कों पर ही खड़े करते हैं, क्रेनें डम्पर आदि सड़कों पर खड़े देखे जाते हैं। लोडिंग वाहनों और टू सीटरों आदि के कोई स्थायी स्टेंड नहीं हैं और वे बस स्टापों के आस पास खड़े रह कर रास्ता जाम कर देते हैं, जबकि बस वाले भी एक दूसरे के समानांतर बसें खड़ी करके प्रतियोगिता करते हैं।
सड़कों की हालत इतनी खराब है कि नियम से चलना चाह रहे वाहन चालक को भी गड्ढा बचाने के लिए मज़बूरीवश अपने वाहन को गलत साइड पर ले जाना पड़ता है, जो कई बार दुर्घटनाओं का कारण बनता है। क्षतिग्रस्त सड़कें लम्बे समय तक सुधारी ही नहीं जातीं और सुधारी भी जाती हैं तो उनकी गुणवत्ता इतनी खराब होती है कि वे हफ्ते भर में ही फिर उखड़ जाती हैं। सड़कों के ठेकेदारों और इंजीनियरों के यहाँ पड़े आयकर छापों में करोड़ों रुपये इसी अनदेखी की बजह से निकलते हैं। क्षतिग्रस्त सड़कों पर इतनी धूल और गन्दगी उड़ती रहती है कि पीछे आने वाले वाहन चालकों की आंखें खराब करने के लिए और उनके अचानक बहक जाने की पूरी सम्भावनाएं रहती हैं।
ट्रैफिक विभाग में ट्रांसफर के लिए सिपाही से लेकर कमिश्नर तक की पोस्टिंग और ट्रांस्फर में जो लाखों का लेन देन चलता है वह आम आदमी की जान लेने वाले ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन और न चलने लायक वाहनों को चलने देने से ही पैदा होता है। किसी भी नगर में चलने वाले सार्वजनिक वाहनों की दशा उस प्रदेश की सरकार पर एक चलित टिप्पणी होती है क्योंकि खतरनाक वाहन तभी चलते हैं जब सरकार के कारिन्दे निहित स्वार्थ में उन्हें चलने देते हैं।
हमारे पास हमारी सड़कों की दशा, ट्रैफिक नियमों के ज्ञान, पेट्रोल डीज़ल की उपयोगिता, प्रदूषण आदि को ध्यान में रखते हुये कोई वाहन नीति नहीं है। कोई भी कभी भी किसी भी तरह का वाहन खरीद सकता है और चाहे जहाँ चला सकता है। राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की मदद के लिए बैंकों से ऋण सुविधा भी उपलब्ध करा दी गयी है जिससे अलाभकारी वाहन भी धड़ल्ले से खरीदे जाने लगे हैं। विकास के दौर में एक समय था जब चीन ने पेट्रोल चलित व्यक्तिगत वाहनों का उपयोग डाक्टरों, और पुलिस अधिकारियों आदि अनिवार्य सेवाओं वाले क्षेत्र तक सीमित किया हुआ था तब लाखों करोड़ों लोग सार्वजंनिक वाहनों या साइकिलों से गुजरते देखे जाते थे। हम आज अपनी गाढी कमाई को अनावश्यक रूप से पेट्रोल आयात करने में फूंक रहे हैं और वातावरण को प्रदूषित कर रहे हैं।, जिसका भुगतान ज़रूरी काम के लिए वाहन प्रयोग करने वाले भुगत रहे हैं।
ज़रूरी है कि राष्ट्रीय स्तर पर कोई वाहन नीति बनायी जाये जो-
· किसी भी वाहन को खरीदे जाने से पूर्व उसके चालक की आवश्यकता को सुनिश्चित करे।
· वाहन चालक के निवास और कार्यस्थल पर वाहन पार्किंग के स्थल होने को सुनिश्चित करे।
· ऊंची कीमत के बड़े वाहनों की खरीद के लिए पेन नम्बर और आय का प्रमाण अनिवार्य हो
· वाहन चालक के आपराधिक इतिहास के बारे में पड़ताल हो
· किसी क्षेत्र में चल सकने वाले वाहनों के संख्या तय हो और एक घर में वाहनों की संख्या उसके आयकर निर्धारण के अनुसार तय हो। नया वाहन खरीदने के पूर्व 15 साल पुराना कोई और वाहन घर में न होने का शपथ पत्र लिया जाये
· अवयस्क किशोर किशोरियों को वाहन का लाइसेंस न दिया जाये और उन्हें सार्वजनिक वाहन से यात्रा को प्रोत्साहित किया जाये
· प्रत्येक जगह स्कूटर स्टेंड बनाया जाये और गलत पार्किंग की शिकायत के लिए पुलिस एम्बुलेंस की तरह टोल फ्री नम्बर हो तथा उस पर तुरंत कार्यवाही हो।
· वाहनों की संख्या के अनुरूप ही सड़कों की गुणवत्ता और त्वरित मरम्मत सुनिश्चित की जाये।
· प्रत्येक वाहन चालक के पास एक चालान रिकार्ड पुस्तिका हो और जिस भूल के लिए पहले चालान कट चुका हो उसे दोहराने पर उसकी राशि दोगुनी करने की व्यवस्था हो।
· ग्राहकों को पार्किंग वाले बाज़ारों और सार्वजनिक स्थलों के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिए विज्ञापनों का सहारा लिया जाये।
· ट्रैफिक पुलिस के काम में अनावश्यक राजनीतिक ह्स्तक्षेप रोका जाये और भ्रष्टाचार में पकड़े जाने वाले कर्मचारियों पर कठोर कार्यवाही की जाये।
वीरेन्द्र जैन
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मो. 9425674629

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