शनिवार, दिसंबर 05, 2009

गज़ल को भाषा की तरह प्रयोग करने वाले दुष्यंत कुमार्

गज़ल को भाषा की तरह प्रयोग करने वाले दुष्यंत कुमार
वीरेन्द्र जैन
दुष्यंत हमारे समय के ऐसे बेहद महत्वपूर्ण कवि शायर हैं जिन्होंने -लीक छोड़ तीनों चलें, शायर सिंह सपूत् वाली कहावत को चरितार्थ करके दिखाया। उनकी लोकप्रिय गज़लों को भले ही उर्दू गज़ल के उस्ताद गज़ल मानने से इंकार करते हों, जिसका आग्रह वे स्वयं भी नहीं करते थे, किंतु यह तय है कि उन्होंने जिस गज़ल को प्रारम्भ किया बाद में उसे हज़ारों लोगों ने आगे बढाया। शेक्सपियर भी कहते थे -आई डू नाट फालो इंगलिश, इंगलिश फालोज मी- इसी तरह दुष्यंत के बारे में भीकह सकते हैं कि वे गज़ल का अनुशरण करते थे अपितु गज़ल ने उनका अनुशरण किया और उनकी दी हुयी शैली में लोग लिखते चले गये।
पिछले दिनों अट्टहास की एक गोष्ठी में श्री लाल शुक्ल जी ने सुनाया था कि एक समय इलाहाबाद में ट्रेश लेखन का चलन चला था और सारे बड़े बड़े लेखक ट्रेश लेखन कर रहे थे। दुष्यंत कुमार ने भी धर्मयुग के होली अंक के लिये ऐसी ही एक गज़ल लिखी थी और फिर धर्मवीर भारती ने भी अपना उत्तर उसी अन्दाज़ में लिखवाया था और वह उत्तर भी उन्हीं से लिखवाया था। दुष्यंत कुमार ने अपनी बात और उनका उत्तर दोनों ही गज़ल के अन्दाज़ में लिखे थे। आप भी उनका अन्दाज़ देखिये और मज़ा लीज़िये।
दुष्यंत का गज़ल पत्र
पत्थर नहीं हैं आप तो पसीजिए हुज़ूर,
संपादकी का हक़ तो अदा कीजिए हुज़ूर,
अब ज़िन्दगी के साथ ज़माना बदल गया,

पारिश्रमिक भी थोड़ा बदल दीजिए हुज़ूर
कल मैक़दे में चेक दिखाया था आपका,

वे हँस के बोले इससे ज़हर पीजिए हुज़ूर,
शायर को सौ रुपए तो मिलें जब गज़ल छपे,

हम ज़िन्दा रहें ऐसी जुगत कीजिए हुज़ूर,
लो हक़ की बात की तो उखड़ने लगे हैं आप,

शी! होंठ सिल के बैठ गये ,लीजिए हुज़ूर॥

धर्म वीर भारती का उत्तर बकलम दुष्यंत कुमार्

जब आपका गज़ल में हमें ख़त मिला हुज़ूर,
पढ़ते ही यक-ब-यक ये कलेजा हिला हुज़ूर,
ये "धर्मयुग" हमारा नहीं सबका पत्र है,

हम् घर के आदमी हैं हमीं से गिला हुज़ूर,
भोपाल इतना महँगा शहर तो नहीं कोई,

महँगी का बाँधते हैं हवा में किला हुज़ूर,
पारिश्रमिक का क्या है बढा देंगे एक दिन

पर तर्क आपका है बहुत पिलपिला हुज़ूर,
शायर को भूख ने ही किया है यहाँ अज़ीम,

हम तो जमा रहे थे यही सिलसिला हुज़ूर...
ये दोनों ही गज़लें धर्मयुग के होली अंक 1975 में प्रकाशित हुयी थीं।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

2 टिप्‍पणियां:

  1. शुरुआत करने वाला हमेशा अपने समय में ठुकराया जाता है ..... पर बाद में दुनिया उसी लीक का पालन करती है ........... बहुत ही सुंदर है दोनो ग़ज़लें ..........

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