रविवार, दिसंबर 06, 2009

मेरा 6 दिसम्बर और शुभकामनाओं की दिशा

मस्ज़िद नहीं देश को तोड़ने का दिन
वीरेन्द्र जैन
6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्ज़िद के टूटने से मुझे काफी धक्का लगा था।
मुझे एक पुरानी और बीमार इमारत के टूटने का गम नहीं था क्योंकि ये मन्दिर मस्ज़िद चर्च गुरुद्वारे तो इसी शताब्दी में टूट जाने वाले हैं, किंतु मस्ज़िद के पीछे जो षड़्यंत्रकारी ताकते^ थीं उनके षड़यंत्र के सफल हो जाने और भारत सरकार के लाचार हो जाने का दुख था। एक संविधान विरोधी ताकत ने कानून व्यवस्था को अंगूठा दिखा दिया था और पूरा देश टुकर टुकर देखता रह गया था। मस्ज़िद तोड़ने वालों को न मन्दिर से पहले मतलब था और ना बाद में ही रहा। वे पहले भी केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों में रहे थे पर तब उन्हें इसकी याद तक नहीं आयी थी। वे बाद में भी सत्ता में रहे पर तब भी नहीं आयी। वे जब संसद में कुल दो सीटों पर सिमिट गये तब उन्हें एक नया शगूफा चाहिये था तो उन्हें बाबरी मस्ज़िद का बहाना मिल गया। मुसलमान अगर उन्हें मस्ज़िद दे भी देते तो वे फिर काशी मथुरा और उसके बाद दीगर साढे तीन सौ इमारतें चाहिये थीं। सच तो यह है कि उन्हें साम्प्रादायिक ध्रुवीकरण चाहिये ताकि बहुसंख्यकों के वोट लेकर सत्ता हथिया सकें। उन्हें केवल इस बहाने सीधे सच्चे सरल लोगों को बेबकूफ बनाना था जिससे वे भ्रष्टाचार में डूब सकें सो उन्होंने किया और विचार विहीन, संगठन विहीन धन पिपासु कांग्रेस निरीह सी देखती रह गयी।
यह एक परतंत्रताबोध की बैचेनी थी। लोकतत्र के सारे मूल्यों का ध्वंस और लाठी की ताकत के उदय ने तीखी घृणा को जन्म दिया। तब से लगातार मैंने अपना नये साल का सन्देश कवितानुमा भेजना शुरू किया और लगातार दसियों साल तक ऐसा किया। इन सन्देशों की बानगी देखिये।
1993 का शुभकामना सन्देश
एक मन्दिर से बड़ा है आदमी
एक मस्ज़िद से बड़ा है आदमी
आदमी से है बड़ा कुछ भी नहीं
किसी भी ज़िद से बड़ा है आदमी
धूप कोई भेद है करती नहीं
हवा कोई भेद है करती नहीं
धर्म कोई हो वही औषधि लगे
दवा कोई भेद है करती नहीं
जा रहा परमाणु युग को विश्व जब
हम पुराने जंगली बर्बर न हों
भूख बेकारी अशिक्षा से लड़ें
आपसी संघर्ष से ज़र्ज़र न हों
1994 का शुभकामना सन्देश
आदमी को आदमी से काटती
कोई भी हरकत न हो नव वर्ष में
श्रेष्ठतम उपलब्धियों के शिखर पर
कोई बौना कद न हो नव वर्ष में
पादपों के विकासों को रोकता
एक भी बरगद न हो नव वर्ष में
सत्यता शालीनता हो शांति हो
ज़िन्दगी संसद न हो नव वर्ष में
है यही शुभकामना शुभ काम हों
हर्ष हो “हर्षद”* न हो नव वर्ष में

*{उस वर्ष हर्षद मेहता काण्ड बहुत चर्चा में रहा था
और संयोग से 31 दिसम्बर 1993 की रात में हर्षद नहीं रहा।

जैसे उसने नये वर्ष में न रहने का सन्देश सुन लिया हो}

3 टिप्‍पणियां:

  1. सहमत हूं आपसे सर

    वह एक काला दिन था

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  2. वाह!!!!एक सच्चा देश की एकता के प्रति प्रेम रखनेवाला ब्लोग तो मिला। आपसे सहमत हुं सर। आभार।

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