सोमवार, जनवरी 17, 2011

क्या माटी कुम्हार को रौंदने लगी है


क्या अब माटी कुम्हार को रौंदने लगी है वीरेन्द्र जैन
कबीरदास ने आज से चार सौ साल पहले ही घोषणा कर दी थी-
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रूंदे मोय
इक दिन ऐसो आयगो, मैं रूंदूंगी तोय
रूपम पाठक नामक महिला ने अपने यौन शोषण के खिलाफ एक बाहुबली विधायक की चाकू मार कर हत्या करके यही चरितार्थ कर दिया है कि जब जुल्म की इंतिहा हो जाती है और कहीं से भी न्याय मिलता नहीं दीखता तो कमजोर से कमजोर इंसान भी अपनी क्षमता के अनुसार प्रतिवार करने को मजबूर हो जाता है। ऐसा ही एक दृष्य नागपुर में देखा गया था जब एक नामी गिरामी गुंडे जिसके ऊपर 26 से अधिक हत्या, बलात्कार और अन्य आरोपों के प्रकरण चल रहे थे और उनसे भी अधिक प्रकरणों में वह कानून की कमजोरियों और अपने आतंक के सहारे मुक्त हो चुका था, को काम करने वाली बाइयों ने सामूहिक हमला कर अदालत के अन्दर ही मार डाला था।
पूर्णिया से जिन भाजपा विधायक राज किशोर केशरी की रूपम पाठक नामक महिला ने हत्या कर दी उसने उन पर यौन शोषण का आरोप लगाया है। यदि मृत विधायक के चरित्र का अध्ययन किया जाये तो गत विधानसभा चुनाव के दौरान ही उनके द्वारा प्रस्तुत किये गये शपथ पत्र से पता चलता है कि उनके ऊपर धारा उन्होंने अपने शपथ पत्र में लिखा है कि वे आईपीसी की दफा 147, 148, 149, 323, 332, 341, 353, 307, 376/43, 379, 426, 427, 504 में अभियुक्त हैं। जो लोग कानून की धाराओं के अर्थ जनना चाहें तो इतना समझ लेना ही काफी है कि आदरणीय विधायकजी पर ये धाराएं कत्ल की कोशिश, चोरी, घूसखोरी, बलात्कार, अपहरण आदि जैसे संगीन आरोपों के लिए लगी थीं। आम तौर पर जब गैर भाजपा शासित राज्यों में धर्म और संस्कृति की ठेकेदार इस पार्टी के नेताओं कार्यकर्ताओं पर कोई आरोप लगता है तो वे कहते हैं कि ये हिन्दुओं के खिलाफ अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण करने वाली पार्टियों का षड़यंत्र है, पर यह जानना रोचक हो सकता है कि उपरोक्त आरोप उक्त विधायकजी पर उनकी पार्टी के ही शासन काल में लगे थे, और वह भी पुलिस को मजबूरी में लगाने पड़े होंगे। इस इतिहास को देखते हुए तो लगता है कि न जाने कितने अपराध तो पुलिस ने दाब धौंस दिखा कर दबा दिये होंगे। सच तो यह है कि रूपम पाठक को इस बात का भी भरोसा नहीं रहा होगा कि जो प्रकरण विधायक जी को स्वयं ही अपने शपथ पत्र में लिखने पड़े हैं, उन पर कोई कार्यवाही हो सकेगी। क्योंकि सरकारी संरक्षण में पल रहे अपराधियों को सजा तब मिलेगी जब अभियोजन अपना पक्ष मजबूती से लड़ेगा और गवाह आतंक और लालच से मुक्त रह सकें। गुजरात में 2002 में सरकारी संरक्षण में मारे दिये गये तीन हजार मुसलमानों के लिए किसी को भी सजा नहीं मिल सकी और बेस्ट बेकरी समेत सारे गवाहों को बदल जाने के लिए मजबूर हो जाना पड़ा। मध्यप्रदेश में टीवी चैनल के सामने प्रोफेसर सब्बरवाल की हत्या होना और टीवी पर ही गवाही देने वाले कालेज के चपरासी को अपना बयान बदलना पड़ा। अपने फैसले में न्यायधीश ने साफ साफ कहा कि अभियोजन ने सही तरीके से अपना पक्ष ही नहीं रखा और गवाहों के बदल जाने के कारण मुझे आरोपियों को छोड़ना पड़ रहा है। चाहे दशहरा पर संघ के शस्त्रपूजन के दौरान एक स्वयं सेवक को गोली मारने का अपराध हो या मुख्यमंत्री के नाबालिग पुत्र द्वारा गोली चलाये जाने का मामला हो, पुलिस अधिकारियों का कहना होता है कि क्या करें गवाह ही नहीं मिलते। जहाँ तक भाजपा नेताओं के चरित्र का सवाल है तो किसी समय दिल्ली में मदनलाल खुराना ने धमकी दी थी कि वे एक महीने बाद भाजपा नेताओं के सच्चे किस्से बता देंगे, पर इस बीच उन्हें मना लिया गया। भाजपा का ही एक कुख्यात मुख्यमंत्री संघ से आये हुये एक संगठन सचिव की अश्लील सीडी बनवा कर उसे पत्रकारों तक पहुँचाता है, तो एक भाई सार्वजनिक रूप से धमकी देता है कि अगर मेंने मुँह खोल दिया तो मेरी बहिन को पंखे से लटक जाना पड़ेगा। मध्यप्रदेश के मंत्रियों के चरित्र और आचरण पर उनकी पार्टी के प्रदेश पभारी खुल कर टिप्पणी करते हैं, और एक मंत्री के कर्मचारी की पत्नी पुलिस में शिकायत करती है कि उसका पति उसे मंत्री के साथ सोने के लिए दबाव बनाता है। दिवंगत विधायक राज किशोर केसरी समेत सबके बारे में हाई कमान को पूरी जानकारी रहती है, पर सवाल है कि फिर उन्हें टिकिट क्यों दिया जाता है? चुनाव जीतने के बाद जब पार्टी दावा करती है कि उन्हें उनके जनहितेषी कार्यों के करण समर्थन मिला है, तो किसी खास को टिकिट देने की विवशता क्या पार्टी के अपने कामों के आधार पर मिलने वाले समर्थन को झूठा साबित नहीं करता, यदि ऐसा होता तो किसी भी सच्चरित्र को दिये गये टिकिट के बाद उसे पार्टी के कामों के आधार पर अपेक्षाकृत अधिक समर्थन मिलने की उम्मीद होनी चाहिए। पर सच्चाई सबको पता है।
ऐसे अपराधियों को प्रश्रय और राजनीतिक मंच देने का अपराध भाजपा समेत अनेक बड़ी पार्टियां कर रही हैं। बीमारू राज्यों अर्थात बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उड़ीसा में यह बीमारी अधिक तेज है और प्रतिरोध का आन्दोलन धीमा है। यही कारण है कि शोषित व्यक्ति का गुस्सा गैरकानूनी तरीकों में प्रकट होने लगता है। चम्बल में पैदा होने वाले बागी भी इसी अन्याय की पैदायश रहे हैं। इन्हें रोकने के लिए जरूरी है कि भ्रष्टाचार विहीन न्यायपूर्ण व्यवस्था की स्थापना के प्रयास तेज हों, अन्यथा रूपम पाठक जैसी महिलाएं तेजी से अस्तित्व में आ सकती हैं। जो लोग इसमें राजनीतिक षड़यंत्र सूंघ रहे हैं उन्हें समझना चाहिए कि अनेक आधुनिक हथियारों से पटे इस दौर के राजनीतिक षड़यंत्र में चाकू जैसे हथियार का प्रयोग नहीं किया जाता। चाकू जैसा हथियार तो कमजोर और मजबूर का क्षणिक उत्तेजना में उठाया गया हथियार होता है।

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

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