बुधवार, फ़रवरी 06, 2013

चुनावों के लिए भोजशाला को अयोध्या बनाने की तैयारी


चुनावों के लिए भोजशाला को अयोध्या बनाने की तैयारियां
वीरेन्द्र जैन
                प्रतिदिन मिल रही सूचनाओं के कारण मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथ पाँव फूल रहे हैं और वे सरकारी धन के सहारे न केवल ताबड़तोड़ पंचायतें, किसान सम्मेलन आदि ही कर रहे हैं अपितु अपने कार्यकर्ता सम्मेलनों में साफ साफ कह भी रहे हैं कि विपक्षी चुनौती के आगे हैट्रिक आसान नहीं है। पिछले दिनों गडकरी को दुबारा अध्यक्ष न बनने देने की योजनाओं में अडवाणीजी भी ‘अनैकिताओं के प्रति शून्य सहनशीलता’ का नारा उछाल बैठे जबकि गुजरात को छोड़ कर भाजपा की कोई सरकार ऐसी नहीं है जिसके मंत्रिमण्डल का बहुमत सुस्पष्ट बड़े भ्रष्टाचार में लिप्त होने की चर्चाओं में न हो। ये लोग कानून के रन्ध्रों और न्याय को अनिश्चित काल तक विलम्बित रखे जाने के दोषों के कारण ही पद का सुख भोग पा रहे हैं। गुजरात के भाजपा नेता हिंसा और अपराधों के मामलों में या तो जेल में हैं या अदालतों या जाँच आयोगों को भटकाने के प्रयासों में लगे हैं। ऐसे में अडवाणीजी का नारा या तो एक बड़ा मजाक बन जायेगा या मध्य प्रदेश में चुनावों तक मंत्रिमण्डल के कुछ सदस्यों को पिछली बार की तरह थोड़ा छुपा कर रखा जायेगा। स्मरणीय है कि आयकर से सम्बन्धित छापों की बदनामियों से बचने के लिए दो मंत्रियों को प्रारम्भ में मंत्रिमण्डल में नहीं लिया गया था, पर लोकसभा चुनाव निबटते ही उन्हें न केवल मंत्रिमण्डल में ही सम्मलित कर लिया अपितु भरपूर मलाईदार विभागों से लाद दिया गया। उक्त मंत्रियों के भ्रष्टाचार के ताजा किस्से प्रदेश भर में चर्चित हैं जिसके नुकसान से बचने के लिए उन्होंने अभी से अपने चुनाव क्षेत्र में हर मुखर व्यक्ति के लिए खैरातों की बाढ ला दी है। सम्मेलनों और पंचायतों के नाम पर जिस तरह से आरामदायक बसों में बारातियों की तरह से सत्कार करते हुए भीड़ जुटायी जाती है वह अपूर्व है, किंतु फिर भी बसों में स्थान खाली रह जाते हैं, भाषणों पर स्वतःस्फूर्त तालियां नहीं बजतीं और न ही नारों में दम दिखायी देती है। छुटभैए नेता कहते सुने जाते हैं कि साले नमक खा कर भी नमकहरामी कर रहे हैं।
       गुजरात के चुनावों में मिली सफलता के बाद भाजपा की नीति बनती जा रही है कि एक ओर विकास का भ्रम पैदा किया जाये और दूसरी ओर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण में तेजी लायी जाये। मध्यप्रदेश में पिछले वर्षों में दर्जनों साम्प्रदायिक घटनाएं हो चुकी हैं और विभिन्न जाँच समितियों ने पाया कि ये घटनाएं प्रायोजित की गयी थीं, तथा पुलिस को जाने समझे तरीके से पक्षपात करने के इशारे थे ताकि हिन्दू साम्प्रदायिकता का आत्मविश्वास बढे और वह आक्रामक हो। इन घटनाओं में ध्रुवीकरण की स्थानीयता होती है इसलिए अब प्रदेश के विधानसभा चुनावों को देखते हुए अयोध्या के जन्मभूमि मन्दिर की तरह धार की भोजशाला में साम्प्रदायिकता के बीजों को पकाया जा रहा है। कभी सरस्वती का मन्दिर रहे इस स्थान पर स्थापित मूर्ति गत दो शताब्दियों से इंगलेंड के म्यूजियम की शोभा है और कुछ पुरातत्व शास्त्रियों का मानना है कि वह बाग्देवी की प्रतिमा न होकर किसी जैन देवी की मूर्ति है। देश में 1998 से 2004 तक भाजपा के नेतृत्व में केन्द्र की सरकार रही वे इससे पहले भी जनसंघ के नेता 1977 से 1979 तक जनता पार्टी में मंत्रिमण्डल के प्रमुख पदों पर रहे। इस दौरन इन्हें उस मूर्ति को वापिस भारत लाने का खयाल नहीं आया और न ही इनके अनुषांगिक संगठनों ने इसकी वापिसी के लिए कोई आन्दोलन ही किया। पर 2003 के चुनाव आते ही जब इन्होंने अपने उन 350 उन स्थानों की सूची को खंगाला जिनमें हिन्दुओं का मुसलमानों के साथ कोई विवाद है तो भोजशाला इन्हें बहुत ही आसान मुद्दा लगा जिसे तुरंत उभार कर सुर्खियों में ला दिया गया। वहाँ हिंसक घटनाएं की गयीं और मालवा में जगह जगह फैले प्रचारकों व स्रस्वती शिशु मन्दिरों में भरे संघ के कार्यकर्ताओं के द्वारा विषाक्त वातावरण तैयार कर दिया गया। प्रदेश के सारे प्रमुख नेताओं को पीछे करते हुए साध्वी के भेष में रहने वाली एक नेता को मुख्यमंत्री पद प्रत्याषी घोषित करके उतारा गया। अब यह इतिहास में दर्ज है कि ऐसे ही ढेर सारे तरीकों से विधानसभा का वह चुनाव जीत लिया गया। गत दस वर्षों तक इन्होंने प्रदेश को किस तरह से लूटा तथा संघ के अनुषांगिक संगठनों समेत प्रमुख कार्पोरेट घरानों को किस तरह से भूमि भवन आवंटित किये वह दुखद गाथा है जो देश भर की समाचार पत्रिकाओं में भरी पड़ी है। इस अति भोज और चुनावों में जनता का सामना करने की भयाकुलता ने एक बार फिर से उनके सामने भोजशाला के सोये मुद्दे को उभारने की जरूरत पैदा कर दी है यही कारण है कि मध्य प्रदेश में संघपरिवार के शकुनियों की भीड़ लगनी शुरू हो गयी है।
       स्मरणीय है कि अयोध्या में रामजन्मभूमि –बाबरी मस्जिद का मुद्दा भी 1984 तक एक सुषुप्त मामला था जिसे चुनावों में उपयोगिता की दृष्टि से साम्प्रदायिक वातावरण बनाने के लिए ही उभारा गया था, तथा चुनावी लाभ उठाने के बाद दरी के नीचे दबा दिया गया था। अब मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों की दृष्टि से भोजशाला को भड़काने की तैयारी शुरू कर दी गयी है। तोगड़िया और आचार्य धर्मेन्द्र जैसे लोगों की ‘धर्म सभाएं’ प्ररम्भ कर दी गयी हैं। 20 जनवरी को बैरसिया में संघ में प्रमुख हैसियत रखने वाले दत्तात्रय हौसबोले की अध्यक्षता में भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद, विद्यार्थी परिषद, मजदूर संघ समेत अनेक आनुषांगिक संगठनों की बैठक की गयी जिसके बारे में प्रैस को बतया गया कि विवेकानन्द की 150वीं जयंती मनाने से सम्बन्धित थी। 22 जनवरी को धार के नाथ मन्दिर में ‘धर्मसभा’ रखी गयी जिसमें विहिप के आचार्य धर्मेन्द्र, गोबिन्दाचार्य, और हिन्दू जनजागृति समिति के डा. चारुदत्त पिंगले ने भाग लिया। सरस्वती जन्मोत्सव समिति के मार्गदर्शक नवल किशोर शर्माने इस बार [चुनाव वर्ष] भोजशाला में केवल यज्ञ और पूजा की अनुमति देने की मांग की, और कहा कि नमाज के लिए प्रशासन अन्य जगह मुहैया कराये। 22 जनवरी को भोजशाला के सामने संरक्षित क्षेत्र में विवादित निर्माण व मलबे को प्रशासन ने अतिक्रमण मान कर हटा दिया। पूर्व भाजपा नेता गोबिन्दाचार्य ने कहा कि भोजशाला में पंचमी पर पूजन हिन्दुओं का संवैधानिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि अतिवादी ज़िद्दी तत्वों के आगे सरकार न झुके। 25 जनवरी को दमोह में तोगड़िया ने कहा कि अगर मैं देश का प्रधानमंत्री बना तो मुसलमानों से मताधिकार छीन लूंगा। 27 जनवरी को तोगड़िया ने भोपाल में कहा कि हिन्दुओं को संगठित होकर राजसत्ता पर नियंत्रण करना होगा। भारत हिन्दू राष्ट्र है और इसका संविधान बनाने के लिए जनमानस तैयार करें। इसी दिन विद्यार्थी परिषद के कार्यालय में पत्रकारों से कहा कि भोजशाला हिन्दुओं की है इससे किसी दूसरे समुदाय का कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने कहा कि हिन्दू गौमाँस भक्षकों को बगल में भी नहीं बैठायेंगे।
       भोपाल से लेकर इन्दौर धार और पूरे मालवा क्षेत्र में भोजशाला के मुद्दे को भड़काया जा रहा है ताकि चुनावों तक इतने दंगे हो जायें जिससे किसी तरह भाजपा को सम्भावित नुकसान की भरपाई हो सके। भाजपा दुष्प्रचार में कुशल है वही उसका विपक्ष उसकी तरह सुगठित और संगठित नहीं है जिसका नुकसान हमेशा की तरह आम आदमी को भुगतना पड़ेगा। सबसे गरीब आदमी सबसे अधिक असुरक्षित होता है व लाशों के आधार पर वोट बटोरने वाली राजनीति करने वालों को केवल लाशें ही चाहिए होती हैं।           
वीरेन्द्र जैन
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1 टिप्पणी:

  1. 10 saal se satta me he tab saraswati ke liye kuchh nahi kiya hinduo ko pitwane ke alawa kuchh nahi krte rajnath singh ne bhopal me saraswati ki puja jute pahan kar hi kar di [patrika me photo chhpa tha] kitna samman karte he ye koi aur karta to mudda bana lete dhongi
    aur dogle he[

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