भाजपा के थिंक
टैंकों में उबाल
वीरेन्द्र जैन
सत्ता की
रिसन से प्यास बुझाने की तमन्ना रखने वाले हजारों जयजयकारी समर्थकों के विपरीत जब किसी
दल के विचारवान लोगों की खनकती आवाज उभरती है तो वह सत्ताधीशों के कानों में सायरन
की तरह गूँजने लगती है। यह आवाज जितनी निस्वार्थ होती है, इस की धार उतनी ही पैनी
होती है। भाजपा के मोदी युग का एक वर्ष पूरा होने के पूर्व ही बफादार चापलूसों की
भीड़ के बीच कुछ ऐसे वरिष्ठ लोगों के स्वर गूंजने लगे हैं जिन्हें भाजपा का थिंक
टैंक माना जाता रहा है। इन लोगों ने अपने विचारों, तर्कों, और व्याख्याओं से भाजपा
को न केवल एक हिन्दूवादी, साम्प्रदायिक, व्यापारियों की उत्तर भारतीय पार्टी की
छवि से बाहर निकलने में योगदान दिया है अपितु उसे मध्यम वर्ग की पार्टी के रूप में
प्रस्तुत करके कार्पोरेट घरानों और उद्योगपतियों के बीच बिठा दिया है, जहाँ से
मिला सहयोग ही उन्हें देश में सत्तारूढ कराये हुये है।
गोबिन्दाचार्य उन लोगों में हैं जिनकी
योजना ने ही 1984 में दो सीटों तक सिमिट गयी भाजपा को दो सौ सीटों तक पहुँचा दिया
था और देश भर में सामान्य जन के बीच राम भक्ति और भाजपा को एक कर दिया था। अयोध्या
के रामजन्मभूमि मन्दिर निर्माण के माध्यम से सदन में संख्या वृद्धि के बाद
उन्होंने स्वदेशी के नाम से जो आन्दोलन छेड़ा था वह एक ओर तो भाजपा संस्कृति के
अनुकूल था वहीं देश को आत्मनिर्भर बनाने की ओर ले जा सकता था। प्रारम्भ में अपनाने
के बाद जैसे ही भाजपा ने स्वदेशी आन्दोलन से किनारा किया था वैसे ही उन्होंने
भाजपा से किनारा कर लिया था जिसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा का नेतृत्व आज मोदी के
हाथों में है और एक बार स्तीफा देकर वापिस लेने को मजबूर हुये अडवाणी व मुरली
मनोहर जोशी जैसे लोग मार्गदर्शक मंडल में बैठ कर अपना रस्ता देख रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि अपनी अध्यक्षता के दम्भ में जब नितिन गडकरी ने बयान दे दिया था कि
पार्टी से बाहर हुए लोगों को वापिस लेने के बारे में वे उदारता से विचार करेंगे तो
गोबिन्दाचार्य ने तल्खी के साथ कहा था कि उन्हें दल ने नहीं निकाला था अपितु वे
खुद ही अध्ययन अवकाश पर गये थे व बाद में उन्होंने अपनी सदस्यता का नवीनीकरण नहीं
कराया था। गडकरी अपनी जानकारी ठीक कर लें। यही गोबिन्दाचार्य अब कह रहे हैं कि
मोदी सरकार की दिशा और नीतियां स्पष्ट नहीं हैं। देश के गरीबों, ग्रामीण जनता के लिए
अच्छे दिन नहीं आये हैं। उन्होंने कहा कि मोदी की सरकार दूसरी सरकारों की तुलना
में अलग नहीं दिख रही है। गत महीने अन्ना के नेतृत्व में भूमि अधिग्रहण विधेयक के
विरोध में हुयी पद यात्रा में उन्होंने एकता परिषद के साथ किसानों की रैली के एक
हिस्से का नेतृत्व भी किया था। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के लिए विकास की नीति
का मतलब केवल बुलेट ट्रेन, स्मार्ट सिटी, तक रह गया है। मेक इन इंडिया के बारे में
स्पष्ट रूप रेखा सामने नहीं आयी है, जबकि स्मार्ट सिटी एक ज़ुमला भर है। हो सकता है
कि जीडीपी कुछ बढ जाये, कुछ कम्पनियों को फायदा हो पर समाज के अंतिम पायदान पर
बैठे लोगों को फायदा नहीं होगा। काले धन के बारे में गम्भीर प्रयास नहीं हो रहे
हैं। उन्होंने कहा कि इस सरकार में संवाद की मानसिकता का अभाव है, जबकि इस सरकार
की तुलना में तो अटल बिहारी की सरकार संवाद के लिहाज से बेहतर थी।
राम जेठमलानी देश के उन कुछ कद्दावर वकीलों
में से हैं जिन्हें राजनीतिक दल अपना उम्मीदवार बना कर गौरवान्वित होते हैं।
उन्हें भाजपा ने राज्यसभा में भेजा था किंतु उनकी मुखरता के कारण ही उन्हें
सदस्यता से निलम्बित भी कर दिया था। कभी अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ काँग्रेस की
ओर से चुनाव लड़ने वाले जेठमलानी,
प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी चयन के समय मोदी के पक्ष में खड़े थे किंतु एक साल पूरा
होने से पहले ही वे उनकी सरकार के कटु आलोचक बन गये। विदेशों में जमा काले धन के
खिलाफ उन्होंने ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की हुयी थी। राष्ट्रीय न्यायिक
नियुक्ति आयोग की वैधानिकता पर उन्होंने कटुता से कहा कि मोदी सरकार न्यायिक
नियुक्तियों का राजनीतिकरण कर रही है। उनका कहना था कि भ्रष्ट सरकार को ही भ्रष्ट
न्यायपालिका की जरूरत होती है। गत दिनों संसद में उन्होंने विदेशों से काला धन
वपिस लाने के सरकारी प्रयासों की गम्भीर आलोचना करते हुए कहा कि काले धन पर सरकार
सिर्फ हाय तौबा मचा रही है। जैटली के वित्तमंत्री रहते कालाधन नहीं आ सकता। जैटली
लोगों को बेबकूफ बना रहे हैं। उनका कहना था कि उन्होंने दो ड्राफ्ट प्रधानमंत्री
को दिये थे उनमें जो महत्वपूर्ण और सख्त क्लाज थे वे जैटली ने हटा दिये। सरकार कुछ
लोगों को सेफ पैसेज देना चाहती है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बारे में तो
उन्होंने कहा कि 15 लाख रुपया प्रत्येक के खाते में जमा कराने के बयान को जुमला
बताने वाले शाह पर तो चीटिंग का केस दर्ज़ होना चाहिए।
अटल
बिहारी मंत्रिमण्डल में विनिवेश मंत्रालय जैसा अभूतपूर्व मंत्रालय सम्हालने वाले
अरुण शौरी ने तो मोदी सरकार के कामकाज के तरीकों पर गम्भीर सवाल उठाते हुए एक टीवी
चैनल को दिये इंटरव्यू में कहा कि भाजपा को मोदी, अमित शाह और जैटली की तिकड़ी चला
रही है। ये लोग देश की अर्थव्यवस्था को ठीक से नहीं चला पा रहे हैं। विकास की दर
को दो अंकों तक ले जाने की कल्पना को उन्होंने अतिशयोक्ति बताया। शौरी ने तो ओबामा
दौरे के समय उपहार में मिले मँहगे सूट को पहिनने और अल्पसंख्यकों के खिलाफ
हिन्दुत्ववादियोंके बयानों पर चुप्पी साधने के लिए भी नरेन्द्र मोदी की कटु आलोचना
की। उनकी अलोचना के बाद निरुत्तर भाजपा प्रवक्ताओं ने इसे पद न मिलने के कारण
कुंठित नेता का बयान तक कह डाला।
सुब्रम्यम
स्वामी तो राजनेताओं की कमजोर नस दबाने में माहिर रहे हैं और स्वयं को सर्वज्ञ
मानते हुए पार्टी अनुशासन से निरपेक्ष रह कर हर महत्वपूर्ण बात में अपनी दखलन्दाजी
करते रहते हैं। जब मोदी फ्रांस के दौरे पर थे और राफेल विमानों की खरीद पर बात कर
रहे थे तब ही उन्होंने राफेल विमानों की निरर्थकता बताते हुए इस सौदे को सन्देह के
घेरे में ला दिया। वे जानते हैं कि मोदी आसाराम बापू से नाराज हैं और भाजपा के
बहुत सारे उपकृत नेता उनके साथ होते हुए भी वे मोदी की नाराजी के कारण ही आज जेल
में हैं, पर फिर भी उन्होंने आसाराम का केस लड़ने की घोषणा करते हुए मोदी के खिलाफ परोक्ष
सन्देश दे दिया। पुराने भाजपा नेता उनके ऐसे ही गुणों के कारण उनको भाजपा में
प्रवेश नहीं दे रहे थे पर विरोधियों के खिलाफ उनकी मुखरता का लाभ लेने के लालच में
मोदी ने उन्हें प्रवेश दिला दिया था। इसका नुकसान उन्हें उठाना ही पड़ेगा क्योंकि
वे जो कुछ भी कहते हैं उसका कोई वैधानिक आधार तो होता ही है। जयललिता के केस में
भी वे ही फरियादी हैं और एआईडीएमके के रिश्ते भाजपा से सुधरने न सुधरने में श्री
स्वामी के व्यवहार की बड़ी भूमिका हो सकती है। अब न तो संजय जोशी की तरह उन्हें
पार्टी से बाहर किया जा सकता है और न ही चुप किया जा सकता है।
पिछले
दिनों मोदी के प्रवक्ताओं ने एक साल की सबसे बड़ी उपलब्धि भ्रष्टाचार का कोई बड़ा
स्केंडल सामने न आना बताया था पर उक्त थिंक टैंकों के बयानों से यह भी प्रकट हो
जाता है कि होना और प्रकाश में न आ पाना दो अलग अलग चीजें हैं। लोकायुक्त, चीफ
विजीलेंस आफीसर, वरिष्ठ न्यायाधीशों आदि की नियुक्ति के बिना किसी स्केन्डल के
होने या न होने का पता कैसे चलेगा। काले धन के बारे में जेठमलानी, और राफेल सौदे
के बारे में सुब्रम्यम स्वामी जो कुछ कह रहे हैं उससे कई सवाल तो खड़े होते ही हैं।
भक्तों, प्रवक्ताओं, की बातों का तो कोई भरोसा नहीं करता किंतु थिंक टैंकों की
आलोचना नींव का खोखलापन बताती है। इसे सुधारने के लिए जनसम्पर्क विभागों द्वारा
पानी की तरह पैसा बहा कर के भी विश्वसनीयता नहीं बन पाती है।
वीरेन्द्र जैन
2 /1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल म.प्र. [462023]
मोबाइल 9425674629
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें