खुली आँखों देखा
म,प्र, बन्द
वीरेन्द्र जैन
मध्य
प्रदेश में लगभग एक लाख करोड़ का प्रवेश परीक्षा व नियुक्ति घोटाला हुआ जिसका राज
खुलने से बचाने में घोटालेबाजों द्वारा 47 से अधिक कीमती जानें ली जा चुकी है। इसमें
प्रदेश के पचासों विशिष्ट व्यक्ति आरोपी हैं, आरोपियों सहित दो हजार के करीब छात्र
और उनके अभिभावक जेल में हैं व पाँच सौ आरोपी फरार हैं। इस घोटाले के खिलाफ 16
जुलाई को विपक्षी दल काँग्रेस और बामपंथी पार्टियों द्वारा बन्द आहूत किया गया था।
आरोपियों ने केवल इतना बड़ा आर्थिक घोटाला ही नहीं किया अपितु हजारों सुपात्रों को
उनके अधिकार से वंचित करके कुण्ठित कर दिया व व्यवस्था में गहरी अनास्था पैदा की।
इसमें बड़ी बड़ी राशियों का अवैध लेन देन हुआ जिसे पैदा करने के लिए देने वालों ने
भी अपने पद का दुरुपयोग करते हुए इसे अवैध ढंग से अर्जित किया होगा। मेडिकल में
प्रवेश परीक्षा में अपनी संतति को पास कराने के लिए कई लाख रुपये देने वाले
अधिकारियों और नेताओं ने न जाने कितने जन हितैषी कार्यों में चूना लगाया होगा
जिससे आम जन के लिए घोषित योजनाएं पूरी नहीं हुयी होंगीं या आधी अधूरी और अपने मानक
से पीछे रही होंगीं। व्यापारियों ने टैक्स चोरी की होगी और ठेकेदारों ने मजदूरों
को देय राशि चुरायी होगी। कुल मिला कर ऐसा भ्रष्टाचार अंततः निर्धन और वंचित
मेहनतकश के अधिकारों को ही लूटता है।
इस निर्मम
लूट, जिसे छुपाने के लिए बेरहमी से हत्याएं की गयीं और उन्हें अस्वाभाविक मृत्यु
बता कर भी सक्षम जाँच से बचा गया, के खिलाफ ईमानदारी से जाँच की माँग करते हुए यह
बन्द बुलाया गया था। विभिन्न पक्षधरता वाले सूचना माध्यमों ने इसे सफल या असफल
बताया है। असल में बन्द किसी मुद्दे पर जनता के रुख को मापने का बहुत पुराना और
कमजोर माध्यम है, क्योंकि बन्द को बाजार-बन्द से परखा जाता है, जबकि बाजार का अपना
चरित्र होता है और मनोरंजक कहावतों में कहा जाता है कि व्यापारी जाति का बुजुर्ग
अगर मरते समय भी अपने सारे लड़कों को सामने देखता है तो संतोष की जगह यह चिंता
व्यक्त करता है कि ‘जब तुम सब यहीं हो तो दुकान पर कौन है’। बन्द कराने वालों ने सुबह
का समय चुना जब दुकानें खुलने ही जा रही होती हैं और हलचल देख कर दुकानदार सुरक्षा
की दृष्टि से थोड़ी देर बाद खोलने के लिए मन बना लेता है। दूसरी ओर बन्द का विरोध
करने वाले दोपहर के बाद निकलते हैं जब तक बन्द कराने वाले जा चुके होते हैं। दोनों
पक्षों के समर्थक सूचना माध्यम अपने अपने समय की फोटो प्रकाशित करके अपने अपने
पक्ष की खबरें बना लेते हैं। दोनों ही पक्ष अपने अपने आरामदायक कार्यालयों में
बैठकर अपने अभियान को सफल मान लेते हैं।
असल में बन्द
की यह सफलता असफलता, पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए ही सोचने का विषय है। इस बात को
दोनों ही पक्ष मान रहे हैं कि घोटाला हुआ है और बड़े स्तर पर हुआ है। दोनों ही पक्ष
कह रहे हैं कि जाँच के बाद दोषियों को सजा मिलना चाहिए पर विपक्ष का कहना है कि
आरोप सत्ता पक्ष के अनेक लोगों पर है इसलिए जिन पर आरोप हैं उनके पद पर रहते हुए
सही जाँच नहीं हो सकती जब कि सत्ता पक्ष का कहना है कि जाँच एजेंसियां स्वतंत्र
हैं इसलिए पद से हटने की कोई जरूरत नहीं। विपक्ष इतनी बड़ी घटना का राजनीतिक
स्तेमाल कर रहा है और उसे वैसा करने का अधिकार है किंतु सरकारी पक्ष ने जिस तरह से
इस घोटाले को दबाने और घोटालेबाजों को बचाने की कोशिश की वह सशंकित कर देने वाला
है। बन्द से पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने राजधानी का दौरा किया व स्वयं
सेवकों को जनता के बीच जाने के निर्देश दिये। वहीं दूसरी ओर भाजपा के राष्ट्रीय
अध्यक्ष ने भी प्रदेश का दौरा किया और सरकार से असंतुष्ट कार्यकर्ताओं को सक्रिय
करने के लिए स्थानीय नेताओं को कठोर भाषा में निर्देश दिये व सरकार जाते ही उनकी
सुविधाएं छिन जाने के खतरे से डराया। बन्द के दिन सारे प्रमुख अखबारों को विभिन्न
संगठनों के नाम से पूरे पूरे पृष्ठों के कई विज्ञापन दिये जिनमें पूरे पृष्ठ का एक
विज्ञापन व्यापारी संगठनों के नाम से भी था जो बन्द के आवाहन से असहमति जता रहा
था। लाखों रुपयों का यह विज्ञापन अनावश्यक था। सुधी जन जानते हैं कि बहुत सारे
विज्ञापन बेमतलब होते हैं और अखबारों को पक्षधर बनाने की तय राशि देने का माध्यम
होते हैं। समाचारों में कांटछाँट और कैमरे व रिपोर्टों के दृष्टिकोण भी इन्हीं
विज्ञापनों से प्रभावित होते हैं।
16 जुलाई को
बुलाया गया मध्य प्रदेश बन्द इन अर्थों में सफल रहा कि मुद्दे और इससे जुड़ी “उचित निरीक्षण में
सक्षम एजेंसी द्वारा निष्पक्ष जाँच’ की माँग के प्रति जनता का पूर्ण समर्थन रहा।
सूचना माध्यम में चर्चा व भयभीत सरकार द्वारा सुरक्षा एजेंसियों को जरूरत से
ज्यादा सक्रिय कर देने के कारण मुद्दे पर विमर्श तेज हुआ। इसके साथ ही बन्द इन
अर्थों में असफल भी रहा कि राजनीतिक दलों में कम भरोसे के कारण व्यापारी और दिहाड़ी
मजदूर मुद्दे के नाम पर अपनी एक दिन की रोजी त्यागने को तैयार नहीं हुये। यह इस
बात का भी संकेत था कि सामाजिक संवेदना अब केवल मौखिक रूप से प्रकट होने तक सीमित
होती जा रही है व जहाँ जहाँ उसे कार्यों से प्रकट करने व उसके लिए कुछ त्याग करने
का सवाल आता है वह अपनी सीमाएं प्रकट कर देती है। काँग्रेस और भाजपा नेताओं की
पुराने राजाओं की तरह सवारी तो निकली जिसमें हाथी घोड़े की तरह पीछे विभिन्न तरह के
वाहन सवार और पैदल सिपाही तो साथ थे किंतु मुद्दे से सहमत जनता का साथ नहीं था।
बामपंथी दलों की अपनी सीमाएं हैं और वे पर्व त्योहारों पर निर्वहन किये जाने वाले
कर्मकांडों की निष्फल परम्परा का पालन पूरी आस्था से करते रहते हैं। बसपा समेत
विभिन्न जातिवादी दल जनान्दोलनों की राजनीति में भरोसा नहीं करते। व्यापम घोटाले
की लूट में असल नुकसान दलितों, पिछड़ों और गरीबों में विकसित होने वाली प्रतिभाओं
का ही हुआ है किंतु वोट की राजनीति और उनका व्यापार करने वाले ये दल इतनी बड़ी
घटनाओं पर कभी बयान तक देने की जरूरत नहीं समझते।
वीरेन्द्र जैन
2 /1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल म.प्र. [462023]
मोबाइल 9425674629
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