तीन तलाक, कौन हलाक?
वीरेन्द्र जैन
सुप्रीम कोर्ट से वह फैसला आ गया जिसके
आने पर मुस्लिम समाज से ज्यादा हिन्दू समाज का एक वर्ग ऐसे प्रफुल्लित है जैसे वे
बड़े मानवतावादी हों और मुस्लिम महिलाओं के हितों की चिंता करने वाले समाजसेवी हों,
या इससे उनका बड़ा भला हो गया हो। इनमें से कुछ भी ऐसा नहीं घटा है, किंतु यह खुशी
दूसरे कारणों से है। साम्प्रदायिक सोच की
जड़ें गहरे जमी होती हैं और तरह तरह से प्रकट होती रहती हैं। तीन तलाक का यह फैसला
स्वागत योग्य है किंतु इस पर खुशी मनाने वाले एक वर्ग की खुशी का अतिरेक कुछ भिन्न
संकेत देता है।
1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद दिल्ली
में साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए जन नाट्य मंच ने जगह जगह सैकड़ों नाटक किये जो काफी
प्रभावी थे। राजधानी के मीडिया के माध्यम से दुनिया भर में इस काम की प्रशंसा हुयी
व रक्षात्मक रूप में आ चुकी काँग्रेस सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय ने जन नाट्य
मंच को पुरस्कृत करने का फैसला किया। उनके प्रस्ताव पर सफदर हाशमी ने लिखा कि जन
नाट्य मंच के लड़कों ने जो काम किया है वह प्रशंसनीय है व पुरस्कार के योग्य है
किंतु जो हाथ उन्हें पुरस्कृत करने की बात कर रहे हैं वे इस लायक नहीं हैं कि उनके
हाथों से पुरस्कार लिया जा सके। उल्लेखनीय है कि उस समय सूचना प्रसारण मंत्री
हरकिशन लाल भगत थे जिन पर भी सिखों के खिलाफ हिंसा को उकसाने का गम्भीर आरोप था।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही है किंतु
भाजपा की प्रसन्नता का कारण गलत सोच पर आधारित है। वे इसे मुस्लिम समाज के अन्दर
फूट के रूप में देख कर खुश हो रहे हैं। वे उनकी पराजय के रूप में देख कर अपनी
साम्प्रदायिक भावना को तुष्ट कर रहे हैं। ये मौका उन्हें मौलानाओं की जड़ता ने दिया
है जिन्होंने एक गलत परम्परा को मजहबी कानून की तरह थोप दिया और सुलझे दिमाग से
सोचने की जगह उस पर अड़ गये। अगर वे समय रहते दूसरे 22 इस्लाम को मानने वाले देशों
की तरह समाज के एक वर्ग की आवाज सुनते तो उन्हें ये दिन नहीं देखने पड़ते। जब कोई अमित्र
किसी बुराई को भी दूर करने की बात करता है तो उसके चरित्र को देखते हुए वह अपनी
बुराई को भी अपने आत्म सम्मान से जोड़ने लगता है।
ऐसी ही खुशी मुस्लिम साम्प्रदायिकों को
मण्डल कमीशन घोषित होने के बाद हिन्दुओं के बीच होने वाले सिर फुटव्वल में मिला था
पर वे अपनी खुशी प्रकट करने की स्थिति में नहीं थे इसलिए मन ही मन खुश थे। जब समाज
समय की ओर न देख कर जड़ता में जकड़ा रहता है तब ऐसी ही स्थितियां आती हैं। जब
अम्बेडकर ने पाँच लाख दलितों के साथ नागपुर में बौद्ध धर्म ग्रहण किया था तब भी
कुछ ही वर्ष पहले विभाजन व साम्प्रदायिक दंगे झेल चुका मुस्लिम समाज का साम्प्रदायिक
हिस्सा संतुष्ट हुआ होगा। कहा जाता है कि अगर किसी को कांटा भी चुभ जाता है तो
उसके दुश्मन को खुशी होती है। असली दोष अंग्रेजों की बोई उस वैमनस्यता का है जिसे
अब वोटों के ध्रुवीकरण के लिए और बढाया जा रहा है। एक देश में रहते हुए ये दुश्मनी
चलेगी, तो विकास की सारी ऊर्जा नष्ट हो जायेगी और तब विकास की जगह विनाश लेता
जायेगा। हर त्योहार अब आशंकाएं लाता है और इतनी पुलिस व्यवस्था होती है कि त्योहार
किसी अपराध की तरह लगने लगता है।
मुझे तलाशने के बाद भी वे आंकड़े नहीं मिले
कि मुस्लिम समाज में चल रही इस कुप्रथा से कितने प्रतिशत या कितनी महिलाएं पीड़ित
हुयी हैं, उनमें से कितनों को राहत मिलेगी। अगर अपने हित की यह मांग वे अभी तक खुद
नहीं उठा सकीं हैं तो वे अपनी अन्य पीड़ाएं दूर करने के लिए के लिए मांग उठाने की
हिम्मत कैसे जगाएंगीं? दिये हुए अधिकार और सुविधाएं पीड़ितों के अलावा दूसरों के ही
काम अधिक आती रही हैं, बिना मांग और बिना संघर्ष से मिली सुविधाओं ने बिचौलियों की
ही पौ बारह की है। दहेज कानून या दलित महिला उत्पीड़न के कानूनों से शोषकों के
इशारे पर ब्लेकमेलिंग ही अधिक हुयी है।
गैर मुस्लिम समाज की महिलाओं की रूढियां
और गलत परम्पराएं भी कम नहीं हैं किंतु उनके प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाला
दल उनके प्रति कोई चिंता प्रकट नहीं करता। भाजपा सहित लगभग सभी राजनीतिक दलों ने
समाज सुधार का ऐसा कोई कार्यक्रम हाथ में नहीं लिया है जिसमें महिलाओं की रूढियों
को दूर करने की बात हो, इसके उलट वे इसे परम्परा कह कर बढावा देते रहते हैं।
प्रदेशों के मुख्यमंत्री तक करवा चौथ जैसे आयोजनों में भाग लेते और उसका प्रचार सा
करके बाज़ार का भला करते प्रकट होते हैं। कभी भाजपा की राजमाता विजया राजे सिन्धिया
ने जयपुर में सतीप्रथा का बचाव करने वाली रैली का नेतृत्व किया था। अभी भी जली
कट्टू, गोटेमार और दही हांडी जैसी खतरनाक प्रथाओं को रोकने में व्यवस्था नाकाम है।
अंग्रेजों के शासन काल में जितनी कुप्रथाओं पर रोक लगी उस अनुपात में आज़ादी के बाद
नहीं लगी। अब तो यह हाल हो गया है कि वैज्ञानिक चेतना से जागरूक करने वाले नरेन्द्र
दाभोलकर जैसे समाजसेवी को सरे आम गोली मार दी जाती है और देश का सबसे बड़ा दल उस
कृत्य की आलोचना करने की जगह उसके हत्यारों व उन्हें पैदा करने वाली संस्थाओं का प्रत्यक्ष
या परोक्ष बचाव करता नजर आता है।
ऐसे फैसलों की श्रंखलाएं बन सकें और यह
साम्प्रदायिक हथियार न बने तो और अधिक स्वागतयोग्य बन जायेगा।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग, रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 09425674629
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