स्मरण – अंजनी चौहान
वीरेन्द्र जैन
अंजनी चौहान उन बिरले लेखकों में थे जो लिखने, प्रकाशित होने, सम्मानित होने, पुरस्कृत होने के लालच से मुक्त थे । वे सत्तर के दशक में जब रीवा मेडिकल कालेज में पढते थे, तब से धर्मयुग और कादम्बिनी आदि में छपने लगे थे। ज्ञान चतुर्वेदी जैसे प्रथम श्रेणी के पढाकू छात्र और लेखन के शौकीन जब मेडिकल कालेज में उनके साथ जुड़े तो उन्होंने उनकी ढाल बन कर उन्हें पढने में पूरा ध्यान लगाने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया। उन दिनों रीवा जैसे मेडिकल कालेज में पढने के लिए अनेक भव बाधाओं का सामना भी करना होता था। छात्र ज्ञान चतुर्वेदी के गोल्ड मेडलिस्ट होने में और निरंतर आगे बढने में अंजनी चौहान द्वारा दिये गये संरक्षण की भी महती भूमिका रही है, ऐसा अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत कुशल चिकित्सिक पद्मश्री डा. ज्ञान चतुर्वेदी ने स्वयं स्वीकारा है।
अंजनी दुस्साहसी, मुँहफट होने तक मुखर, और बहुत साफ साफ बोलने वाले रहे। व्यवहारिक समझौते उन्हें नहीं भाते थे। मुख्य मंत्री अर्जुन सिंह हों, दिग्विजय सिंह हों, गृहमंत्री चरण दास महंत हों, या उमा भारती हों, कमलेश्वर हों या कमला प्रसाद हों, वे जो कहना चाहते थे, उसे आमने सामने कहने से कभी नहीं चूके। स्वास्थ विभाग के एक अधिकारी जब उनसे अपने मेडिकल बिलों को वेरीफाई कराने आये तो उन्होंने उनकी जेब में हाथ डाल कर डाक्टरों के लिए पैसे निकाल लिये। अधिकारी के यह कहने पर कि यह आप क्या कर रहे है उन्होंने उन अधिकारी से कहा कि क्या आप हमारे डाक्टरों से उनके विधिवत काम के लिए पैसे नहीं लेते? यदि हमारे डाक्टर झूठ बोल रहे हों तो बताइए, मैं आपके पैसे वापिस करा दूंगा। वे अधिकारी इस मामले में बदनाम थे इसलिए चुपचाप चले गये।
डाक्टरों में से ही कुछ को चिकित्सा के अलावा कुछ प्रशासनिक काम भी देखने होते हैं। अंजनी की सक्रियता को देखते हुए स्वास्थ विभाग ने उनको ज्यादातर समय गैर चिकित्सकीय काम ही सौंपे, जिन्हें उन्होंने बड़े शौक से पूरे किये। जब वे जेपी अस्पताल भोपाल में कुल प्रबन्धन पर निगाह रखने का काम देख रहे थे, उन्हीं दिनों मैं किसी डाक्टर को दिखाने के लिए परचा बनवाने की लाइन में लगा। उन्होंने सीसीटीवी कैमरे पर देखा तो अन्दर से चल कर हाल तक आये और मेरा पर्चा बनवा कर विशेषज्ञ डाक्टर के पास ले गये दिखाया और छोड़ने के लिए बाहर तक आये। मुझे स्कूटर पर आया देख कर नाराजगी व्यक्त की और लगभग निर्देश देते हुए कहा कि आगे से आप स्कूटर से नहीं चलेंगे, अगर किसी ने टक्कर मार दी तो बुढापे में परेशान हो जायेंगे।
उनके दुस्साहस पूर्ण किस्सों पर तो ज्ञान चतुर्वेदी पूरी किताब लिख चुके हैं। उन्हें दुहराना तो ठीक नहीं पर विषम पारिवारिक परिस्तिथियों में भी उन्होंने बेटे को इतना काबिल बनाया कि जुकरवर्ग तक ने उसके काम की सराहना की है। पिछले दिनों व्हाट्स एप्प पर उनके छड़ी लेकर चलने के वीडियो देखे तो लगा कि यह उनके मजाक का कोई नया अन्दाज होगा, फिर भी उनसे सीधे पूछने की जगह ज्ञानजी को फोन लगाया किंतु वह काल नहीं लग सकी। ज्ञानजी की बहुआयामी व्यस्तता को देखते हुए मैं उन्हें अनावश्यक परेशान करना ठीक नहीं समझता। सो बात आयी गयी हो गई। अंजनी की मृत्यु का समाचार मिलने के बाद जब ज्ञानजी को दो तीन काल किये तब पता लगा कि अंजनी जी सचमुच गम्भीर रूप से बीमार थे।
फिर मुनीर नियाजी की पंक्तियां याद आयीं- हमेशा देर कर देता हूं मैं। विनम्र श्रद्दांजलि।
वीरेन्द्र जैन
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