इस लोकतंत्र के सरकस में कैसे कैसे करतब हैं
वीरेन्द्र जैन
मध्य प्रदेश में नगर निकायों के चुनाव परिणाम घोषित हो गये हैं और ये परिणाम मिले जुले हैं। मध्य प्रदेश के सन्दर्भ में मिले जुले परिणामों का अर्थ होता कि भाजपा और कांग्रेस के बीच का बँटवारा।यहाँ पर अन्य दल होते हुये भी नहीं हैं। नगर निकायों के इन परिणामों पर दोनों ही दल अपने अपने सिद्धांतों की जीत बता कर जनता को बहलाने की हास्यास्पद कोशिश कर रहे हैं।
प्रदेश में ये चुनाव ईवीएम मशीनों की जगह बेलेट पपेर से कराये गये जिसमें अधिकारिओं की मिली भगत से हेर फेर सम्भव है और इसी हेर फेर से बचने के लिये ईवीएम का निर्माण किया गया था। भोपाल जैसे नगर में जहाँ दूसरे छोटे नगरों की तुलना में साक्षरता का प्रतिशत अधिक है 22000 वोट खारिज किये गये जबकि जीत हार कुल 5000 से भी कम मतों से हुयी। कांग्रेस प्रत्याशी ने आरोप भी लगाया था कि मतदान पेटियाँ ला रहा एक ट्रक सात घंटे तक पता नहीं कहाँ भटकता रहा। खारिज किये हुये अधिकांश मत दो जगह मुहर लगने के कारण खारिज हुये। पहचान पत्र की कोई ज़रूरत नहीं समझी गयी। इन पंक्तियों के लेखक ने जब स्वयं हे अपना पहचान पत्र दिखाया तो पीठासीन अधिकारी ने कहा कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। रोचक यह है कि भोपाल नगर निगम क्षेत्र में 22000 मत खारिज़ कराने वाले मतदातों ने इतनी समझदारी भी जतायी कि नगर निगम अध्यक्ष के लिये एक पार्टी को वोट दिया और पार्षद के लिये दूसरी पार्टी को वोट दिया जिससे कांग्रेस के 39 पार्शद चुने गये और भाजपा के27 पार्षद चुने गये। जिन समझदार मतदाताओं ने अध्यक्ष पद के लिये 22000 वोट खारिज़ कराये उन्हीं मतदाताओं ने पार्षद पद के उम्मीद्ववारों को चुनते समय ऐसी गलतियां नहीं कीं। भोपाल नगर निगम क्षेत्र में अधिकांश् मतदाता नौकरी पेशा हैं।
सुप्रसिद्ध हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय वाले सागर नगर में लोग भाजपा और कांग्रेस से इतने नाराज थे कि उन्होंने न केवल किन्नर कमला बाई को 43000 वोटों के अंतर से जिता दिया अपितु कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत तक जप्त करा दी। मजबूरी ये थी कि पार्षद पद के लिये दूसरे किन्नर उम्मीदवार नहीं थे इसलिये उन्हें भाजपा, कांग्रेस बसपा, भाजश और रांकापा आदि को जिता कर काम चलाना पड़ा। भिंड की गोहद नगर पालिका में अद्यक्ष माकपा का जीता है जबकि 18 पार्षदों में से उसका कुल एक ही पार्षद जीत सका है। टीकमगढ में अध्यक्ष निर्दलीय जीता है पर 12 पार्सद कांग्रेस के और 11 पर्षद भाजपा के जीते हैं। ज्यादातर जगहों में अध्यक्ष किसी पार्टी का है और पार्षद किसी दूसरी पार्टी के जीते हैं इससे दोनों ही पार्टियां कह सकती हैं कि हमारी नीतियों की जीत हुयी है।
बढ़िया विश्लेषण किया है ! लेकिन इसमे सच्चाई गायब है!!!
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