दो यादवों का किस्सा- रामकिशन यादव और लालू यादव
वीरेन्द्र जैन
जब तक बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार के खिलाफ डंका नहीं बोला था और एक अलग पार्टी बनाने की घोषणा नहीं की थी तब तक श्री लालू प्रसाद यादवजी और योगगुरू बाबा रामदेव, दो जिस्म एक जान थे, किंतु अब वे एक दूसरे के आमने सामने हैं।
बाबा रामदेव टीवी कार्यक्रमों से मिली अपनी लोकप्रियता को भुनाने के लिए एक आयुर्वेदिक दवाओं की फैक्ट्री चलाते हैं जिसमें काम करने वाले मजदूरों के अपने मालिकों और प्रबन्धकों के साथ वैसे ही सम्बन्ध हैं जैसे कि किसी भी दूसरे फैक्ट्री मालिक और मजदूर के बीच होते हैं, अर्थात फैक्ट्री मालिक मजदूर से ज्यादा से ज्यादा काम लेकर कम से कम भुगतान करना चाहता है और मजदूर अपने व अपने परिवार के जीवन यापन के लिए तत्कालीन समय में होने वाले व्यय के अनुसार उद्योग जगत की दूसरी इकाइयों के अनुरूप वेतन व भत्ते चाहता है। यह स्थिति ही मालिकों और मजदूरों के बीच टकराव को जन्म देती है। अपने हक़ को पाने के लिए मजदूर यूनियन बनाता है, माँगें रखता है, धरना प्रदर्शन करता है व ज़रूरत पर हड़ताल भी करता है। यह नौबत बाबा रामदेव की फैक्ट्री में भी आयी थी और वहाँ काम करने वाले मज़दूरों ने अपनी माँगें मनवाने के लिए यूनियन बनायी जिसकी सम्बद्धत्ता सीपीएम के मज़दूर संगठन सीटू से बनायी। जब उनकी माँगें नहीं मानी गयीं तब उन्होंने हड़ताल की और मजदूरों को सम्बोधित करने के लिए सीपीएम नेता वृन्दा करात को आमंत्रित किया। इसी दौरान मज़दूरों द्वारा कामरेड वृन्दा करात को बताया गया कि यहाँ बनने वाली औषधियों में से एक में मानव अस्थियों का चूर्ण भी मिलाया जाता है, जबकि उसकी पैकिंग पर ऐसा कोई उल्लेख नहीं होता। राज्य सभा सदस्य वृन्दा करात ने उक्त औषधि खरीदी उसकी पक्की रसीद ली और फिर उसे सम्बन्धित प्रयोगशाला को जाँच के लिए भेज दिया। किंतु जब उसकी रिपोर्ट आयी और उसमें मानव अस्थियों के ऊतकों की पुष्टि की गयी तो न केवल बाबा रामदेव ने हंगामा कर दिया अपितु संघ वालों और अपने प्रशंसकों को टीवी पर उत्तेजित भाषा में उकसा कर सीपीएम के मुख्यालय पर हमला करवा दिया।
जो संघ परिवार के संगठन शाकाहार आदि विषय पर लोगों की भावनाओं को भड़काने में सबसे आगे रहते है वही दवाओं में बिना बताये हुये मानव अस्थियों के ऊतकों की विधिवत रिपोर्ट आ जाने के बाद भी बाबा रामदेव के पक्ष में एक राजनीतिक दल के मुख्यालय पर हिंसा करवा रहे थे।
उस दौरान संघ परिवार के विरोधी दिख कर अपनी राजनीति चलाने वाले लालू प्रसाद यादव भी बाबा राम देव के समर्थन में उतर आये थे जबकि वे सी पी एम के साथ राजनीतिक गठबन्धन में रहे थे और जब उनकी प्रदेश सरकार भंग की जा रही थी तो सीपीएम के हस्तक्षेप से ही बची थी। आश्चर्य से भरे प्रेक्षक जब मामले की तह में गये तो पता चला कि उस समय लालू प्रसाद का जाति प्रेम उमढ पड़ा था। बाबा राम देव का असली नाम राम किशन यादव है तथा इसी आधार पर उन्होंने लालू प्रसाद और मुलायम सिंह जैसे बड़े यादव नेताओं को उनके राजनीतिक गठबन्धन के विपरीत जाने को प्रेरित कर लिया था। उन्होंने रामदेव के समर्थन में उतरते हुये कहा था कि चाहे मानव की हड्डियाँ मिली हों या दानव की मिली हों किंतु रोग ठीक होना चाहिये। लालू जी के इस समर्थन के पीछे प्रमुख कारण ही यह था कि वे यादव हैं, और इस समय लोकप्रिय हैं। चुनावी नेता उनके साथ इसलिए लगे हैं ताकि फिल्म स्टार क्रिकेट खिलाड़ियों की तरह उनकी लोकप्रियता का लाभ उठा सकें। इस अभियान के दौरान रामकिशन यादव जी ने मध्य प्रदेश समेत सभी राज्यों के नेताओं का सहारा लेकर अपने अभियान को बढाया, जिनमें भ्रष्टाचार के आरोपित और आयकर के छापों में सप्रमाण रेखांकित नेता भी सम्मलित है, और प्रचार प्रभावित लोगों को अपनी आयुर्वेदिक दवाओं का ग्राहक बनाया है। जो दवाएं बाज़ार में अपेक्षाकृत सस्ती मिलती हैं वे ही रामदेव जी की फैक्ट्री में मँहगी मिलती हैं, किंतु टीवी कार्यक्रम से सम्मोहित लोग उन्हें ही खरीदते हैं। आज उनके आश्रम से जुड़ी संस्थाओं की सम्पत्ति 750 करोड़ के आस पास तक पहुँच गयी बताई जाती है। देश और विदेश में उनके आश्रम ने ज़मीनों में निवेश किया हुआ है।
राजनीतिज्ञों द्वारा महत्व दिये जाने से उत्साहित बाबा रामदेव स्वयं ही राजनीति में सक्रिय होने को व्याकुल हो उठे और उन्होंने भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाना चाहा, जिसके प्रति पीड़ित जनता सबसे अधिक संवेदनशील है। जहाँ एक ओर उनकी बात का असर हुआ वहीं दूसरी ओर जो लोग उनके समर्थन की सम्भावना से अपनी राजनीति का लाभ देख रहे थे, वे बौखला उठे। एक सभा में लालूप्रसाद् बोले कि “यह ठीक नहीं कि अपने को सही साबित करने के लिए रामदेव प्रत्येक नेता की आलोचना करें, हक़ीक़त यह है कि बाबा बौरा गये हैं, हमने उनसे कहा था कि वे कोई राजनीतिक दल खड़ा न करें। उनके कैंसर को ठीक करने के दावे की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि रिसर्च के इस युग में यह ठीक नहीं है, इस युग में ऐसा करना न केवल धोखाधड़ी है अपितु लोगों को बेबकूफ बनाना है।“
भाजपा के नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी कहा कि मैं बाबा से निवेदन करता हूं कि वे राजनीतिक दल न बनाएं उनकी मांगों को हम भाजपा द्वारा पूरी करवायेंगे।
बाबा रामदेव की यह बात लोगों को हज़म नहीं हो रही है कि बाबा एक ओर तो भ्रष्टाचार के खिलाफ पार्टी बनाने का दावा करें और दूसरी ओर भ्रष्टाचार के प्रामाणिक आरोपों वाले मंत्रियों से सुसज्जित मध्य प्रदेश राज्य जैसे मंत्रिमण्डल के मुख्यमंत्री के साथ गलबहियां करें। वे एक ओर तो अपने आरोपों को हवाई बना कर जनता का भावनात्मक समर्थन पा लेना चाहते हैं वहीं दूसरी ओर किसी व्यक्ति विशेष पर उंगली न उठा कर अपने लक्ष्य को सुविधानुसार घुमाने की नीति अपनाये हुये हैं। इससे ज्यादा अच्छा काम तो पत्रकार कर रहे हैं नाम और प्रमाण के साथ आरोप लगा रहे हैं और स्टिंग आपरेशन कर रहे हैं। बाबा ने अभी तक यह नहीं बताया कि भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए वे वैधानिक तरीका अपनाएंगे या देश के कानून तोड़कर काम करेंगे, और यदि वैधानिक तरीके पर चले तो भ्रष्टाचार का पता लगाने के लिए, प्रमाण जुटाने के लिए और उनके आधार पर इसी न्याय व्यवस्था में शीघ्र और सुनिश्चित दण्ड की व्यवस्था के लिये वे क्या करेंगे। उनके द्वारा इस काम के लिये नियुक्त लोग भारतीय पुलिस, प्रशासनिक अधिकारी, या आयकर अधिकारी की तरह व्यवहार नहीं करने लगेंगे इस बात की क्या गारण्टी होगी?
उनकी इन महात्वाकांक्षाओं से सर्वाधिक नुकसान उस योग का होगा जो अभी उन पर विश्वास होने के कारण लोकप्रिय होता जा रहा था। वे योग गुरू की तरह लोकप्रिय हुये हैं तो उसी काम को बेहतर ढंग से करें यही ज्यादा अच्छा है फिल्म स्टारों और क्रिकेट खिलाड़ियों की तरह लोकप्रियता को उपभोक्ता सामग्री बेचने जैसे कामों में लगाने जैसा काम न करें। उंसे पहले भी कुछ लोग अपनी लोकप्रियता को राजनीति से भुनाने की कोशिश में असफल हो चुके हैं जिनमें फणेशवर नाथ रेणु, गोपाल दास नीरज, नबाब पटौदी, प्रकाश झा, आदि सैकड़ों नाम हैं। भ्रष्टाचार किसी व्यक्ति के बूते का काम नहीं है उसे पूरी व्यवस्था का साथ मिल रहा है और भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए पूरी व्यवस्था बदलनी पड़ेगी जो एक समर्पित संगठन और कार्यक्रम के बिना सम्भव नहीं। यह संगठन और कार्यक्रम तब बनेगा जब उसके लिए ईमानदार इरादा हो और कोई निहित स्वार्थ न हो। बेहतर तो यह होगा कि वे पूरे देश की जगह किसी एक नेता और किसी एक क्षेत्र से शुरुआत करें। दूसरा सन्देश यह भी मिलता है कि नेताओं के बीच जातिवादी प्रेम तभी तक रहता है जब तक वह उसे लाभ दिला रहा हो। समय बतायेगा कि बाबा की महात्वाकाँक्षाएं उन्हें सफल करती हैं या असफल करती हैं।
वीरेन्द्र जैन
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