मंगलवार, नवंबर 17, 2009

बाल ठाकरे और सचिन के बीच चुनाव हो

बाल ठाकरे को सचिन के विरुद्ध चुनाव लड़ने का साहस करना चाहिये
वीरेन्द्र जैन
मुम्बई के कुछ माफिया गिरोहों के खिलाफ कांग्रेस सरकार द्वारा पाले गये एक गुंडे ने अपनी राजनीतिक पार्टी बना ली और उगाही की गयी राशि से जो गिरोह जोड़ा उसकी दम पर अपने आप को नेता समझ रहा है। जब इस गिरोह के आमात्य रहे व्यक्ति ने अपना अलग गिरोह बना लिया तो यह गुंडा बौखला गया है और सन्निपात में अनाप शनाप बकने लगा है। जब पिछले दिनों कोर्ट ने उसे सज़ा सुनायी थी तब उसने अपनी वृद्धावस्था की दुहाई देते हुये क्षमा याचना की थी और सज़ा में माफी पायी थी। पर अब लग रहा है कि उसकी माफ की गयी सज़ा पर भी पुनर्विचार होना चाहिये। जिसे देश और प्रांत की प्राथमिकताओं का ज्ञान नहीं है उसके साथ वैसा ही व्यवहार होना चाहिये जैसा कि भिन्डरावाले,के साथ हुआ था या जम्मू कश्मीर या उत्तर पूर्व के अलगाववादियों के साथ हो रहा है। खेद तो यह है कि स्वयँ को राष्ट्रवादी होने का ढिंढोरा पीटने वाली भ्रष्ट भाजपा और संघ के प्रवक्ता अपने चुनावी लाभ के लिये मुंह में दही जमा कर बैठ गये हैं। अगर आज अटल बिहारी बोल सकने सक्षम होते तो बहुत सम्भव था कि वे उचित ज़बाब देते। अटलजी ने इन्दिरा गान्धी द्वारा अमेरिका के सातवें बेड़े से डरे बिना जब बांगला देश के स्वतंत्रता अभियान में अग्रणी भूमिका निभायी थी तब उन्हें दुर्गा कहा था। इसे कहते हैं राष्ट्र भक्ति। खेद है कि अब केवल दलाल ही दलाल अपनी तूती बज़ाने में लगे हैं। यदि बाल ठाकरे को स्वयं के राजनीति में होने का भ्रम है तो उसे सचिन् के खिलाफ देश के किसी भी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव में उतरने की चुनौती देना चाहिये उससे पता चल जायेगा कि इस देश में किसकी राजनीति और कैसी राजनीति स्वीकार है। केन्द्र की यूपीए सरकार केवल गरीब आन्दोलनकारियों पर ही लाठी चार्ज कर पाती है तथा बाल ठाकरों और शाही इमामों के चरण चूमती है।

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