रविवार, अगस्त 01, 2010

उमा भारती को वापिस लेने की मजबूरी क्या है?


उमाभारती को वापिस लेने की मजबूरी क्या है?
वीरेन्द्र जैन
साध्वी के चोले में रहने वाली लोधी जाति की भूतपूर्व भाजपा नेत्री उमाश्री भारती के भाजपा में पुनर्प्रवेश की सम्भावनाओं पर पार्टी में आपस में तलवारें खिंच गयीं हैं। भाजपा में पद का सुख भोग रहा कोई नेता उमा को वपिस नहीं चाहता, वहीं पद से वंचित या अपने पद से असंतुष्ट नेता उमा के वापिसी का समर्थन करके अपने नेतृत्व को ब्लेकमेल करना चाह रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर अब उमा भारती की वापिसी क्यों जरूरी मानी जा रही है और क्या उमा भारती भी भाजपा नेतृत्व को ब्लेकमेल कर रही हैं? यदि ऐसा है तो वह कौन सी कमजोरी है जिस के आधार पर वे संघ परिवार पर दबाव बनाने में सफल हुयी हैं?
गत दिनों भाजपा से बाहर आकर उन्होंने न केवल अपनी ताकत का ही आकलन कर लिया अपितु भाजपा ने भी उनकी ताकत का आकलन करके यह जान लिया है कि उनका जनाधार थोड़ा सा साध्वी भेषभूषा से भ्रमित धर्मान्ध लोगों, कुछ लोधी जाति के जातिवादी वोटों और बहुत सारा भाजपा में टिकिट या पदों से वंचित रह जाने के कारण असंतुष्ट रह गये लोगों से निर्मित है। यह जनाधार भी केवल मध्य प्रदेश या उत्तर प्रदेश के कुछ लोधी बहुल चुनाव क्षेत्रों तक ही सीमित है। उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह लोधियों के अपेक्षाकृत बड़े और स्थानीय नेता हैं और उनकी तुलना में उमा भारती को महत्व नहीं मिल सकता। उत्तर प्रदेश के गत विधान सभा चुनावों में उन्होंने अपने उम्मीदवारों की सम्भावनाओं का आँकलन करने के बाद अपने सारे उम्मीदवार वापिस ले लिये थे। [ वैसे मुँह छुपाने के लिए उन्होंने हिन्दू वोटों के बँटवारे का बहाना लिया था पर यह बात उन्हें सारे उम्मीदवारों के फार्म भरवाने के बाद ही क्यों नजर आयी थी और अगर इसे सच भी मान लिया जाये तो उनके नेतृत्व की क्षमता पर सवालिया निशान लगता है।] यही काम उन्होंने गुजरात के विधांसभा चुनावों के समय भी किया था जहाँ उम्मीदवारी वापिसी का फैसला फार्म भरवाने के बाद लेने के कारण उन्हें अपमानित भी होना पढा था। इस समय भी उन्होंने फार्म वापिसी का कारण अपने गुरु की आज्ञा को बताया था जिससे पुनः उनकी नेतृत्व क्षमता का सार समझ में आ गया था । मध्य प्रदेश में जो उन्हें बारह लाख वोट मिले थे वे भी भाजपा के असंतुष्टों को अपनी पार्टी से टिकट देने के कारण मिले थे जो अभी भी असंतुष्ट ही हैं, और अब वे उमा भारती द्वारा चोरी छुपे भाजपा में सेंध लगाने और उन्हें धोखे में रखने के कारण उनसे भी असंतुष्ट चल रहे हैं। उमा भारती के राजनीतिक गुरू गोबिन्दाचार्य न तो उनके इस कदम से खुश हैं और ना ही वे अपनी बौद्धिक छवि के कारण उन प्रश्नों को सुलझाये बिना वापिस जा सकते हैं जिन्हें आगे रख कर वे भाजपा से बाहर आये थे। गत दिनों भाजपा अध्यक्ष गडकरी को बुरी तरह डाँट देने के कारण उनके पुनर्प्रवेश की सारी सम्भावनाएं लगभग समाप्त हो चुकी हैं। महिला आरक्षण विधेयक में पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए अलग से सीट आरक्षण के सवाल पर भी उनके भाजपा की नीति से मतभेद हैं और अगर वे इस पर समझौता करेंगी तो लोधी वोट बैंक उनसे बिल्कुल खिसक जायेगा।
दूसरी ओर लोकसभा में भाजपा और प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज उमा के प्रवेश के खिलाफ हैं, राज्य सभा में भाजपा और प्रतिपक्ष के नेता अरुण जैटली उमा के खिलाफ हैं, भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और अडवाणी के हनुमान वैंक्य्या नायडू, जिन्हें उमा के कारण ही बीच में अपना पद त्यागना पड़ा था, उमा के खिलाफ हैं, मध्य प्रदेश राज्य के अध्यक्ष प्रभात झा संघ में अपने संरक्षक सुरेश सोनी के इशारे पर उमा के प्रवेश के खिलाफ हैं, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान जिन पर उमा भारती ने उनकी हत्या करवाने का षड़यंत्र करवाने का आरोप लगाया था, अपने संरक्षक सुन्दरलाल पटवा के आदेशानुसार उनके प्रवेश पर अंगद का पैर अड़ाये हुये हैं। इनके अलावा भी धन बल और मुख्यमंत्री काल में मिले प्रैस कवरेज से उपजी गलत फहमी में उमा भारती ने उनका साथ न देने वाले सभी महत्वपूर्ण लोगों से व्यक्तिगत दुश्मनी पाल ली थी और ऐसा कुछ भी नया नहीं हुआ है कि वे लोग उसे भूल जायें। ये सारे तथ्य आडवाणी समेत सघ के सभी लोग जानते हैं किंतु फिर भी वे उमा को प्रवेश दिलाने के लिए सबको मनाने में जुटे हैं। इससे स्पष्ट है कि कहीं कुछ तो ऐसा है कि अपने किसी कार्य, बयान, या किये गये नुकसान की माफी माँगे बिना ही एक ओर से उमा भारती को प्रवेश दिलाने के प्रयत्न किये जा रहे हैं जबकि उनके प्रवेश से मध्य प्रदेश में संगठन में दो गुटों का उभरना तय माना जा रहा है जिसके संकेत मिलने लगे हैं। यदि उन्हें उत्तर प्रदेश तक सीमित रखने की शर्त पर भी प्रवेश दिया गया तो एक ओर तो यह कदम भाजपा को बहुत ही हास्यास्पद स्तिथि में छोड़ेगा और दूसरी ओर यह भी तय नहीं कि वे उस शर्त का उल्लंघन नहीं करेंगी। यदि इस आधार पर उन्हें दुबारा निकालने की जरूरत पड़ी तो भी भाजपा का बड़ा नुकसान होना तय है। उमा के प्रवेश की एक मजबूरी बाबरी मस्जिद ध्वंस के अपराध में उनके वायदा माफ गवाह बन जाने की भी हो सकती है। कहा तो यह भी जा रहा है कि आडवाणीजी को दूरदृष्टि के आधार पर ही सदन में विपक्ष के नेता पद से अलग रखा गया है जबकि परोक्ष में सारी चाबी उन्हीं के पास हैं। उमाकी वापिसी को लटका कर रखना भी एक रणनीति हो सकती है ताकि वे इस बीच अपना मुँह बन्द रखें और कोई पक्ष नहीं ले सकें। बहरहाल उमा भारती की वापिसी अभी भी एक पहेली बनी हुयी है।


वीरेन्द्र जैन
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