जाँच से पहले सन्देही की राजनीतिक पक्षधरता के खतरे
वीरेन्द्र जैन
भाजपा और गैर भाजपा राजनीति में एक अंतर यह
भी है कि अपनी पार्टी के किसी राजनेता की अनियमितताओं का खुलासा होने पर भाजपा के
नेता अपने कुतर्कों से उसका बचाव करने लगते हैं, और कहीं न कहीं उसमें खुद भी
संलग्न नजर आने लगते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भाजपा की राजनीति भावनाओं और
छवियों के सहारे चुनाव जीतने की राजनीति है। वे न तो कठोर यथार्थ को सहन कर पाते
हैं और न ही अपने उपयोग के लोगों की छवि पर आये छींटों को ही सहन कर पाते हैं।
भूल किसी से भी हो सकती है और पूंजीवादी समाज
के इस फिसलन भरे धरातल पर कोई भी फिसल सकता है। अपनी भूल के लिए उसे दण्ड मिलना ही
चाहिए ताकि वह भविष्य में वैसी भूल न दुहराये व दूसरे उसको मिले दण्ड से सबक ले
सकें। किसी को दण्ड देने वाली व्यवस्था परोक्ष में अपने आप को भी दण्डित करती है
कि उसकी लापरवाही के कारण सम्बन्धित व्यक्ति और गलती की पहचान वे उचित समय पर नहीं
कर सकी। गत दिनों भोपाल में शेहला मसूद नामक आर टी आई कार्यकर्ता की दिन दहाड़े
हत्या कर दी गयी और हत्यारे इतने निर्भय थे कि यह काम उन्होंने सुबह के दस बजे नगर
की एक सम्भ्रांत कालोनी में किया इससे लगता है कि उन्हें अपने संरक्षण का पूरा
भरोसा रहा होगा। घटना के कई दिन बाद जब मृतक के मोबाइल के काल डिटेल निकाले गये तो
पता चला कि घटना से एक घंटे पहले ही उसने भाजपा के सांसद तरुण विजय से काफी देर
बात की थी। आगे की जाँच में यह भी पता चला कि उक्त सांसद से मृतक की गहरी मित्रता
रही है व सांसद द्वारा भाजपा शासित राज्यों से अर्जित सहायता से कई परियोजनाएं हाथ
में ली गयी थीं जिनका इवेंट मैनेजमेंट शहला द्वारा किया गया था। कहा जाता है कि
सरकारी कार्यक्रमों में होने वाले घपले घोटालों से ये कार्यक्रम भी अछूते नहीं थे
और शहला के तरुण विजय के साथ वित्तीय सम्बन्ध भी थे। उन्होंने उसके साथ पिछले
दिनों स्वित्जरलेंड की यात्रा भी की थी जहाँ के स्विस बैंक और उनमें जमा भारतीयों
की अवैध धनराशि इन दिनों देश को आन्दोलित किये हुए है। आर के करंजिया के ब्लिट्ज़
से पत्रकारिता का पाठ पढे तरुण विजय ने दो दशक पहले ही कुल छह हजार रुपये मासिक
वेतन पर पाँच्यजन्य की सम्पादकी सम्हाली थी पर गत वर्ष राज्य सभा के लिए पर्चा
भरते समय उन्होंने जो अपनी सम्पत्ति घोषित की वह चालीस लाख की सीमा छूती है। इतनी
घनिष्ठ मित्र की हत्या के बाद भी उन्होंने संवेदना के दो शब्द कहना और उसके
घरवालों को सांत्वना देना जरूरी नहीं समझा। वे जाँच से जनित सूचनाओं के सामने आने
तक गुप्त बने रहे। आगे की बहुत सारी बातें एक हत्या के प्रकरण में विस्तृत जाँच का
विषय हैं किंतु इस बीच मध्य प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष प्रभात झा का यह कहना कि “तरुण विजय भाजपा के प्रवक्ता
होने के साथ साथ लेखक भी हैं और जिनकी हत्या हुयी है वे इवेंट मैनेजर भी थीं। इसी
सिलसिले में बात हुयी होगी।“
घटना
को हल्का करने का यह प्रयास तब और भी गम्भीर मालूम देता है जबकि उनको पूरा ज्ञान
रहा होगा कि शेहला ने भाजपा के ही राज्य सभा सदस्य अनिल दवे, जो अविवाहित हैं, और
जिनकी कुल घोषित सम्पत्ति दो लाख से भी कम है, से सम्बन्धित एक आर टी आई याचिका
लगायी थी जिससे वे नर्मदा नदी से सम्बन्धित परियोजना के लिए उन्हें मिले अनुदान
में हुयी सम्भावित गड़बड़ियों को खँगालना चाहती थीं। कहा जा रहा है कि इस जानकारी के
दबाव में श्री तरुण विजय मध्यप्रदेश सरकार से अपनी योजनाओं हेतु बड़ी अनुदान राशि स्वीकृत
कराना चाहते थे। क्या श्री झा पुलिस या सीबीआई की रिपोर्ट आने तक अपने बयान से रुक
नहीं सकते थे! रोचक यह है कि श्री तरुण विजय अब स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए
शेहला से घनिष्ठ मित्रता की बात स्वीकार कर चुके हैं।
यही हाल प्रज्ञा सिंह और दया नन्द पाण्डे आदि
से जुड़े खुलासों में भी हुआ। जब निरंतर आतंकवाद के खिलाफ आन्दोलन खड़ा करने के नाम
एक वर्ग विशेष के खिलाफ उत्तेजना फैलाने का काम किया जा रहा था तब प्राप्त ठोस
संकेतों और सबूतों के आधार पर साधु, साध्वी का भेष धारण किये हुए लोग पकड़ में आये
तो भाजपा ने उनके बचाव में उनके बाने को आधार बना कर गफलत फैलाने की कोशिश की।
भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष उनसे मिलने गये और भाजपा में सम्मलित होने के लिए
प्रतीक्षारत उमा भारती को भी उनसे जेल में मिलने को भेजा। इससे सरकार को कहने को
हो गया कि जब हम आतंकवादियों के खिलाफ काम
करते हैं तब वे ही लोग उनके बचाव में आकर जाँच को भटकाने लगते हैं। यदि आरोपी
निर्दोष हैं तो क्या अदालत उन्हें सजा दे देगी, जबकि देश में न्याय इस सिद्धांत पर
काम कर रहा है कि चाहे निन्नानवे दोषी छूट जायें लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं
होना चाहिए। संयोग यह भी रहा कि इसके बाद देश में आतंकी घटनाएं थम गयीं।
गुजरात में 2002 के नरसंहार से सम्बन्धित
जाँचों के बारे में भी ऐसे ही भटकाव पैदा किये गये। नरसंहार के समानांतर गुजरात के
औद्योगिक विकास आदि की बातें उछाली गयीं, अडवाणीजी ने उन्हीं दिनों मोदी को देश का
सर्वोत्तम मुख्यमंत्री घोषित किया। एक ही समुदाय के तीन हजार लोगों की नृशंश हत्या
के बाद जिस सरकार पर मानव अधिकार आयोग, महिला आयोग, अल्पसंख्यक आयोग ने गम्भीर
आरोप लगाये व सुप्रीम कोर्ट ने बहुत प्रतिकूल टिप्पणी की, जिस मुख्य मंत्री को
अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने वीजा देने से इंकार कर दिया, उसके पक्ष में
भाजपा के नेता लाज शर्म छोड़ खुल कर बयान दे रहे थे।
स्वयं अडवाणी पर जब हवाला काण्ड के आरोप लगे
थे, जिसमें बाद में वे सबूतों के अभाव में दोष मुक्त हो गये थे, तब अटल बिहारी
वाजपेयी का ये कहना कि अडवाणी जी ने अगर कोई राशि ली होगी तो पार्टी के लिए ली
होगी, इतने वरिष्ठ नेता का एक असामायिक और अस्पष्ट बयान था। ऐसा ही बयान उन्होंने
दिवंगत प्रमोद महाजन के पुत्र राहुल महाजन द्वारा अपने पिता की हत्या के कुछ ही
दिन बाद नार्कोटिक्स के सेवन से जुड़े आरोप के बाद दिया था जिसमें प्रमोद महाजन के
पूर्व सचिव की मृत्यु भी हो गयी थी। उन्होंने कहा था कि जवानी में ऐसी भूल हो ही
जाती है।
विश्व हिन्दू परिषद के नेता दारा सिंह द्वारा
एक आस्ट्रेलियन ईसाई मिशनरी फादर स्टेंस को उसके दो मासूम बच्चों के साथ जिन्दा
जला देने के मामले में भी संघ परिवार का कोई हाथ न होने की घोषणा तत्कालीन गृह
मंत्री अडवाणीजी द्वारा तुरंत कर दी गयी थी जबकि उसके संघ परिवार से जुड़े होने की
पुष्टि भी हुयी और बाद में अदालत ने उसे दोषी पाया और सजा दी। दारा सिंह को बचाने
के लिए जिन जूदेव ने जी जान एक कर दिया था उन्हें बाद में राज्यसभा के लिए टिकिट
देकर नवाजा गया था जबकि इससे पूर्व वे पैसा खुदा तो नहीं पर खुदा से कम भी नहीं है
के डायलाग के साथ कैमरे में कैद हो चुके थे।
कोई दल बिना पूरी जाँच के अगर अपने दल के
किसी आरोपी को बचाने की कोशिश करता है तो वो परोक्ष में पूरे दल को ही उस के घेरे
में ला देता है। भाजपा को यह बात कब समझ में आयेगी!
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल
[म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें