गुरुवार, सितंबर 22, 2011

खण्डित विश्वास को सम्हालने की चुनौती

                 खण्डित विश्वास को सम्हालने की चुनौती
                                                            वीरेन्द्र जैन 


      राज्य सभा सदस्य अमर सिंह जी जेल में हैं। भाजपा के लोकसभा सदस्यों ने परमाणु विधेयक पर हुए मतदान के दौरान उनको खरीदे जाने के लिए दिये गये नोटों के बंडलों को सदन में लहराते हुए उन्हें अमर सिंह द्वारा दिया गया बताया था। भाजपा द्वारा एक टीवी चैनल से इसका स्टिंग आपरेशन भी करवाया गया था, पर उस चैनल ने कतिपय कारणों से उसे दिखाना स्थगित कर दिया था। जिस समय इस दृष्य का टीवी पर सीधा प्रसारण चल रहा था उस समय देश के चालीस लाख शिक्षित और राजनीति में रुचि रखने वाले लोग इसे देख रहे थे। अमर सिंह जी इस लेनदेन में अपनी भूमिका से इंकार कर रहे हैं पर परिस्तिथिजन्य साक्ष्य उनकी ओर इशारा करते हैं। देश के लब्ध प्रतिष्ठित वकील श्री राम जेठमलानी, जिन्होंने भाजपा के शिखर पुरुष श्री अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़ा था, पर गुजरात के चर्चित मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की वकालत करने की शर्त पर भाजपा ने उन्हें राज्य सभा के लिए चुनवाया था, अब अमर सिंह के वकील हैं, और उन्होंने कोर्ट में अमर सिंह की ओर से कहा कि यह पैसा भाजपा का हो सकता है क्योंकि श्री लाल कृष्ण अडवाणी ने कहा है कि स्टिंग आपरेशन और सदन में धन का यह प्रदर्शन उनकी सलाह से किया गया था इसलिए मुझे भी गिरफ्तार करो। वैसे पूर्व उपप्रधानमंत्री श्री अडवाणीजी के निजी सचिव रहे सुधीर्ण कुलकर्णी से भी पुलिस ने पूछताछ की थी और वे जेल में हैं। उन्होंने पुलिस को क्या बयान दिया है यह अभी रहस्य बना हुआ है, पर इस बीच अचानक ही अडवाणीजी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी रथयात्रा निकालने की घोषणा कर दी है और यह भी बताया कि इस यात्रा के लिए उन्होंने अपने पार्टी अध्यक्ष से अनुमति ली है, पर पार्टी अध्यक्ष इस विषय पर मौन हैं। दूसरी बार श्री जेठमलानी ने धन के लेन देन का आरोप कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य श्री अहमद पटेल पर लगा दिया।
      अमर सिंह की घनिष्ठ मित्र और लोक सभा सदस्य जया प्रदा ने अमर सिंह के स्वास्थ की दुहाई देते हुए बयान दिया कि अगर उन्होंने मुँह खोल दिया तो बहुत सारे लोग मुश्किल में पड़ जायेंगे, जिसका मतलब है कि या तो श्री अमर सिंह पर लगे आरोप सही हैं या वे सच्चाई छुपाने के लिए मुँह बन्द किये हुए हैं, और उन लोगों से मुँह बन्द रखने का सौदा करना चाहते हैं जो उनके मुँह खोल देने से मुश्किल में पड़ सकते हैं। जिन मुलायम सिंह ने अमर सिंह को अपनी पार्टी से निकाल दिया था और उसके बाद से निरंतर उनकी अशालीन आलोचना झेल रहे थे, उनके पक्ष में बयान देकर कहा है कि वे निर्दोष हैं। नरेन्द्र मोदी के राज्य गुजरात के ब्रांड एम्बेसडर अमिताभ बच्चन जो कभी कांग्रेस के सांसद रहे थे और जिनकी पत्नी पिछले दिनों तक समाजवादी पार्टी की सांसद थीं, अमर सिंह से मिलने एम्स पहुँचे और अपने कीमती वक्त में से दो घण्टे साथ बिताये। अमर सिंह जी की भाजपा नेता अरुण जैटलीजी से गोपनीय मुलाकातें अखबारों की सुर्खियां बनती रही हैं।
      इस घटनाक्रम में सभी प्रमुख दल कहीं न कहीं जुड़े हुए हैं और अनेक दलों के सदस्यों ने अपनी पार्टी के निर्देश के खिलाफ मतदान किया था। सीपीएम जैसी अनुशासित पार्टी के सदस्य सोमनाथ चटर्जी ने, जो लोकसभा के अध्यक्ष पद को सुशोभित कर रहे थे अपनी पार्टी के निर्देश को न मानते हुए अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने से इंकार कर दिया था जिस की वजह से पहले मतदान होने और सदस्यों की पक्षधरता का राज उजागर होने से रह गया था।
      उपरोक्त घटना के लिए गठित की गयी जेपीसी [संयुक्त संसदीय समिति] भी किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुँच पायी थी तब इस प्रकरण की जाँच को पुलिस को देने का फैसला हुआ था। हाई प्रोफाइल लोगों से जुड़ा होने के कारण दिल्ली पुलिस ने इसे ठंडे बस्ते में डालकर रख दिया था, पर एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को लताड़ पिलायी और समय बद्ध ढंग से जाँच करके दोषियों पर प्रकरण दर्ज करने के कठोर आदेश दिये तब ही वे आगे बड़े और सम्बन्धितों से पूछताछ की।
      जब सदन में नोट लहराये जा रहे थे उस दौरान ही राजद के श्री लालू प्रसाद ने जो उस समय देश के रेल मंत्री थे, सम्बन्धितों का नार्को टेस्ट कराने का सुझाव दिया था जिसे उनकी छवि के कारण एक मजाकिया सुझाव समझा गया था जबकि वे यह बात गम्भीरता से कह रहे थे। पूरा सदन, मीडिया ही नहीं अपितु देश के चालीस लाख लोगों ने जिस दृश्य को देखा उसके बारे में हमारी जाँच एजेंसियां अब तक यह पता नहीं लगा पायी हैं कि ये पैसा कहाँ से आया था और किस कारण से इस इतनी बड़ी रकम को इतनी उदारता से दिया गया था। अगर यह देश का ही था और लेनदेन में लग रहा था तो यह काला धन ही रहा होगा, अतः देशहित में इसका पता लगना चाहिए कि इस  काली राशि को किस काले तरीके से अर्जित किया गया था। पर यदि विदेशी पैसे से सांसदों के ईमान को खरीदा जा रहा था तो देश के लोकतंत्र और सुरक्षा को कितना बड़ा खतरा है, यह विचारणीय है।
      एक प्रदेश की मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री के साथ विदेश यात्रा पर जाने से मना कर देती हैं क्योंकि उनके अनुसार एक नदी के पानी के बँटवारे पर वे सहमत नहीं हैं जिससे देश के प्रधानमंत्री की किरकरी होती है और उस देश से कुछ बहुत जरूरी समझौते नहीं हो पाते। जनसंहार के आरोपों से घिरे एक प्रदेश के मुख्य मंत्री उस समय सद्भावना के लिए उपवास करते हैं जब उनका मामला सुप्रीम कोर्ट लोअर कोर्ट को यह कह कर भेज देता है कि उसकी निगरानी की जरूरत नहीं है, इन्हीं मुख्यमंत्री को अदालत ने तड़ीपार करने के आदेश दिये हुए हैं और एक महिला मंत्री सहित कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जेल की हवा खा रहे हैं। एक प्रदेश के मंत्री एक नर्स के गायब होने के आरोपों से घिरे हैं।
      देश की सबसे आदरणीय संस्था के तीन सौ सदस्य करोड़पति हैं और 139 सदस्यों पर गम्भीर आरोपों के प्रकरण दर्ज हैं। सभी प्रमुख दलों के कतिपय सदस्य किन्हीं न किन्हीं कारणों से जेल की हवा खाने को मजबूर हो रहे हैं और यह तब हो सका है जब उनके जेल जाने से बचने के सारे हथकण्डे आजमाये जा चुके होते हैं। इनमें मंत्रिमण्डल के सदस्य भी हैं। कभी मंत्रिमण्डल में रहे एक सदस्य को आजीवन कारावास की सजा भी हो चुकी है और ये सजाएं किसी राजनीतिक आन्दोलन के लिए नहीं दी गयी हैं। देश के जनप्रतिनिधियों और उनके निकट के रिश्तेदारों की सम्पत्ति में तेजी से वृद्धि देखी जा रही है। जब आयकर विभाग के छापे पड़ते हैं तो इन रिश्तेदारों, उनके विभाग से जुड़े अधिकारियों के घरों से बरामद नोटों को गिनने के लिए नोट गिनने की मशीनें लगानी पड़ती हैं।
      जो भी कोई भ्रष्टाचार का विरोध करता नजर आता है उसकी जय जय कार होने लगती है चाहे वह बाबा भेषधारी उद्योगपति ही क्यों न हो। पर जब इन भ्रष्टाचार का विरोध करने वालों की पोल खुलती है तो जनता की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं। ऐसे में जब सरकारी रिपोर्ट में पता चलता है कि देश की 74% आबादी बीस रुपये रोज पर गुजर करने को मजबूर है और उसमे से भी 39% की आमदनी तो कुल नौ रुपये रोज है, देश में दो लाख किसान प्रतिवर्ष आत्महत्या कर लेने को मजबूर हैं तब सहज सम्भव है कि आदमी सौ दो सौ रुपयों में अपना वोट बेच दे ताकि उसे इसके बदले में उधार के आश्वासनों की जगह कुछ तो नगद मिले। जब लोकतंत्र बिके हुए वोटों के बहुमत और गठबन्धन की मजबूरियों से चलता है तो ऐसे में अगर जनता का भरोसा टूट रहा है तो यह सहज सम्भव है। इस खण्डित विश्वास को सम्हालना ही आज सबसे बड़ी चुनौती है।
वीरेन्द्र जैन
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