हाफिज़ सईद के लिए घोषित
इनाम के कई आयाम सम्भव हैं
वीरेन्द्र जैन
काल का अपना महत्व होता है। कोई घटना किस काल
में घटित होती है उससे उसके बहुत सारे अर्थ प्रकट होते हैं। पिछले दिनों सच्ची
घटना पर आधारित बहुचर्चित फिल्म ‘नो वन किल्लड जेसिका’ में बताया गया है कि यदि एक
मीडिया हाउस में किसी बड़ी स्टोरी की गतिविधियां चलती हैं तो बहुत सारी दूसरी खबरें
दबी रह जाती हैं, यदि जेसिका लाल की हत्या का फैसला कारगिल के युद्ध के समय आया
होता तो शायद इतिहास बनाने वाली वह कहानी दबी ही रह जाती। पिछले दिनों सन्युक्त
राज्य अमेरिका ने 26/11/2008 के मुम्बई हमले के मास्टर माइंड हाफिज सईद की सूचना देने
वाले के लिए एक करोड़ डालर अर्थात लगभग पचास करोड़ भारतीय रुपयों के बराबर इनाम
घोषित किया है। घटना के चालीस महीने बाद हुयी इस घोषणा के समय से सवाल उठता है कि
भारत में घटित इस घटना पर यह इनाम अमेरिका ने अब क्यों घोषित किया। स्मरणीय है कि पाकिस्तान
की सार्वभौमिकता का उल्लंघन करते हुए ओसामा बिन लादेन को मारने में सफल हुए
अमेरिका को अपेक्षाकृत एक छोटे आतंकी को मारने के लिए बड़ी इनामी राशि का सहारा
क्यों लेना पड़ रहा है।
किसी
भी आतंकी हमले का कोई न कोई छुपा लक्ष्य रहता है । 26/11 की घटनाओं पर दृष्टि
डालने पर हम पाते हैं कि कसाब से भरपूर पूछताछ के बाद भी अभी तक हम इस हमले के
लक्ष्य का खुलासा नहीं कर सके हैं। यह आतंकी हमला दूसरे हमलों की तरह नहीं था
जिसमें आतंकवादी चोरी छुपे कहीं बम रख कर उसमें विस्फोट कर देते हैं जिससे आम निर्दोष
नागरिकों की म्रत्यु होने से पूरे क्षेत्र में बड़ी अफरा तफरी मच जाती है, जिससे
सरकार के खिलाफ माहौल बन जाता है। इसमें आतंकी भी जहाँ तक सम्भव होता है सुरक्षित
रहता है। किंतु 26/11 का उक्त हमला एक ऐसा हमला था जिसमें एक देश दूसरे देश के
सामारिक मह्त्व के स्थानों को नष्ट करने के लिए करता है और इसमें भाग लेने वाले
जाँबाज अपनी जान की परवाह किये बिना अपना लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं। सामाजिक
शांति भंग करने वाले आतंकी हमले गोपनीय ढंग से ऐसे सार्वजनिक स्थानों पर किये जाते
हैं जहाँ ज्यादा से ज्यादा जनता के लोग मारे जाएं और बदले में वे आपस में ही लड़ने
लगें। पर सम्बन्धित घटना में दस केन्द्रों पर गोली बारी हुयी जिसमें सार्वजनिक
स्थान पर अँधाधुन्ध गोली बारी का क्षेत्र छत्रपति शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन ही
था जिसमें 58 निर्दोष नागरिक मारे गये थे। इसके अलावा पुलिस से हुए सीधे सामने
में, टाइम्स आफ इंडिया बिल्डिंग के पीछे हमलों में 9 पुलिसमैन, कामा हास्पिटल में
किये हमले में 5 पुलिस मैन, मारे गये थे। आतंकियों के काउंटर अटैक में ताज होटल
में एक कमांडो, और नरीमन हाउस में एक कमांडो मारा गया था। दोनों ओर से चली गोलियों
में मेट्रो सिनेमा के पास दस और लेओपेड कैफे के पास दस लोग मारे गये थे। विले
पार्ले के पास कार विस्फोट में एक व्यक्ति मारा गया था व मुम्बई हार्बर में चार बन्दी
बनाये गये लोग मारे गये थे। छत्रपति शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन पर अंधाधुन्ध
हमला शायद लक्ष्यित स्थानों से सुरक्षा बलों का ध्यान भटकाने के लिए किया गया था। इसमें
मरने वाले सभी समुदायों के लोग थे, जिसमें दस मुस्लिम भी थे। इससे ये संकेत मिलते
हैं कि आतंकियों का लक्ष्य कुछ भिन्न था।
मूल
हमला ताज और ओबेराय होटलों तथा इजरायलियों के रहने वाला क्षेत्र नरीमन हाउस था। इस
बात को याद करना जरूरी है कि आतंकियों ने ताज और ओबेराय होटलों में सबसे पहले
बन्दूक की नोक पर विदेशियों और विशेष रूप से अमेरिकियों व ब्रिटिश नागरिकों को अलग
होने के आदेश दिये थे, व इटली के नागरिक को छोड़ दिया था। ताज होटल में तीस, ओबेराय
होटल में तीस और नरीमन हाउस में छह लोग मारे गये थे। मरने वालों में 28 विदेशी थे
जिनमें चार अमेरिकन, दो इजरायली-अमेरिकन, एक ब्रिटिश, और दो इजरायली नागरिक थे। विशेष
रूप से केन्द्रित हमले के कारण यह आशंका निर्मूल नहीं है कि हमलावरों को इनमें किसी
अभियान के सिलसिले में ठहरे अमेरिका और ब्रिट्रेन की गुप्तचर एजेंसियों के सदस्यों
के शामिल होने की उम्मीद हो। स्मरणीय है
कि अमेरिका ने आतंकियों को मारने के अभियान में सबसे आगे बढ कर अपनी सुरक्षा
एजेंसी के सदस्यों को मदद के लिए भेजने की पेशकश की थी जिसे भारत सरकार ने स्वीकार
नहीं किया था। यह सवाल उठना भी स्वाभाविक है कि क्या तब तक अमेरिका को लादेन के
पाकिस्तान में छुपे होने का पता लग चुका था और क्या उसकी सुरक्षा एजेंसियां ताज
होटल मुम्बई को हैड क्वार्टर बना कर इजरायलियों के साथ कोई योजना बना रही थीं जिसकी भनक पाकिस्तान में रह रहे आतंकियों को लग
चुकी हो! स्मरणीय है कि इससे ठीक पहले पाकिस्तान के इस्लामाबाद में विदेशियों के
ठहरने वाले मेरिअट होटल में आत्मघाती बम से विस्फोट और आगजनी हो चुकी थी जिसमें चालीस
जानें गयी थीं और पूरे होटल में आग लग गयी थी। 26/11 के बाद में भी अमेरिका में
स्वतंत्र रूप से जाँच चली जिसमें उन्होंने जेम्स हेडली चेज को गिरफ्तार किया,
पूछ्ताछ की व भारत की पूछ्ताछ पर बड़ी मुश्किल से राजी हुआ।
अमेरिका
द्वारा इतना बड़ा कदम उठाने से ऐसा लगता है कि यह घटना और इसमें मारे गये अमेरिकन
इजरायली और ब्रिटिश नागरिक अमेरिका के लिए कुछ विशेष महत्व रखते थे, अन्यथा कई
दूसरी आतंकी घटनाओं में भी अमेरिकन नागरिक मारे गये हैं। यदि अमेरिका किसी विशेष
अभियान के लिए मुम्बई को हैड क्वार्टर बना कर काम कर रहा था तो क्या यह बात भारत
की जानकारी में थी और उसका खुलासा अब तक क्यों नहीं हुआ? अब जब ओसामा बिन लादेन की
म्रत्यु को भी लगभग एक साल होने को आ रहा है तब अचानक हाफिज सईद की सूचना के लिए
पचास करोड़ रुपयों का इनाम कई सवाल खड़े करता है। हाफिज सईद तो ओसामा की तरह छुप कर
भी नहीं रहता, वह पाकिस्तान में सरे आम बड़ी बड़ी रैलियां करता है व पाकिस्तान के
सत्ता तंत्र व कई राजनीतिक दलों का उसे समर्थन प्राप्त है। मुम्बई हमलों के बाद
पाकिस्तान में उसे गिरफ्तार भी किया गया था पर बाद में बिना कोई केस दर्ज कराये
उसे छोड़ दिया गया था। क्या अमेरिका समझता है कि इस धन के लालच में कोई उसे मार
देने का दुस्साहस करेगा। जबकि यह तय है कि
इस दुस्साहस के बाद पाकिस्तान की सरकार उसे सुरक्षा नहीं दे पायेगी। अमेरिका जो
पाकिस्तान का पुराना दोस्त रहा है वह पाकिस्तान से सीधे सीधे क्यों नहीं कह सकता
कि वह हाफिज सईद को गिरफ्तार करके उस पर मुकदमा चलाये। यह स्पष्ट नहीं कि अमेरिका
इस घोषणा से किसको बहलाना चाहता है? या भारत को यह सन्देश देना चाहता है कि अब वह
पाकिस्तान का मित्र नहीं है और अफगानिस्तान से निकलने के बाद वह उसे पाकिस्तान को
सौंप कर नहीं जाने वाला।
निश्चित
रूप से इस इनाम के गूढार्थ हैं जो बाद में सामने आयेंगे।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन
रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल
[म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
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