मंगलवार, जून 25, 2013

आखिर कब मुँह खोलेंगे नितिश कुमार जी

आखिर मुँह कब खोलेंगे नितीश कुमार जी
वीरेन्द्र जैन

       आज़ादी के बाद की सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री रही श्रीमती इन्दिरा गान्धी की सबसे बड़ी आलोचना इस बात के लिए की गयी कि उन्होंने देश में इमरजेंसी लगायी थी जिसमें अभिव्यक्ति की आज़ादी पर नियंत्रण करने की व्यवस्था है। भले ही बाद के टिप्पणीकारों ने अपनी समीक्षा में कहा कि इमरजेंसी में जब झुकने के लिए कहा गया तो वे स्वतः लेट गये। पर इमरजैंसी हटने के बाद अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा को ही मुख्य मुद्दा बनाया गया था व दुबारा सत्ता में लौटने के बाद श्रीमती गान्धी ने स्वयं भी कहा था कि अब वे कभी इमरजैंसी नहीं लगायेंगीं। यह भी सच है कि बाद में अनेक सरकारें केन्द्र की सत्ता में रहीं पर विषम से विषम परिस्तिथियों में भी किसी ने इमरजैंसी लगाने के बारे में नहीं सोचा।
       भले ही अभिव्यक्ति की आज़ादी को रोकने के लिए कोई इमरजैंसी नहीं लगायी गयी हो और शायद भविष्य में भी ऐसा दुस्साहस कोई सत्तारूढ दल न कर सके पर जरूरी नहीं कि अभिव्यक्ति की आज़ादी को दबाने के लिए हमेशा इमरजैन्सी ही लगाना पड़े। लोगों के स्वार्थ, अपराधबोध और भय भी उन्हें मुँह नहीं खोलने देते अन्यथा आज हमारे देश में जो षड़यंत्रकारी राजनीति चल रही है उसका कहीं न कहीं खुलासा होता रहता और दोषियों को सजा मिलती रहती। अभी हाल ही में जेडी[यू] ने नरेन्द्र मोदी को प्रचार अभियान का चेयरमैन बनाये जाने पर भाजपा को बिहार सरकार से अलग कर दिया और गठबन्धन तोड़ दिया। इस चोट से आहत भाजपा के नेता जब जेडी[यू] पर तरह से तरह से अपशब्दों की बौछारें करने लगे तो नितीश कुमार को कहना पड़ा कि अगर मैंने मुँह खोल दिया तो भाजपा के कई नेता संकट में होंगे। उनके इस कथन से स्पष्ट है कि उनके पास भाजपा के ऐसे कई राज दफन हैं जिन्हें वे दबाये हुये हैं। यह राजदारी भले ही भाजपा नेताओं के हित में हो किंतु देश के हित में तो नहीं है। तो फिर क्या कारण है कि नितीश कुमार इन राजों को दबाये हुये हैं और भाजपा से भी अपना मुँह बन्द रखने की धमकियां दे रहे हैं। यह वैसा ही है कि न तुम हमारी कहो और न मैं तुम्हारी कहूं।
       स्मरणीय है कि अभी कुछ ही दिन पहले जब सुप्रसिद्ध वकील रामजेठमलानी को भाजपा से निकालना पड़ा था तब उन्होंने भी इसी भाषा का स्तेमाल किया था। उन्होंने भाजपा नेताओं को याद दिलाया था कि उन्होंने उन्हें भाजपा में वापिस आने के लिए खुद ही हाथ जोड़े थे, तब वे भाजपा में सम्मलित हुये थे। जेठमलानीजी भाजपा के सबसे प्रमुख और लोकप्रिय नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं और उन जैसे वकील को हाथ जोड़ कर पार्टी में वापिस लाने का मतलब यही होता है कि किसी प्रकरण में उनकी वकालत अपरिहार्य समझी गयी होगी। उल्लेखनीय है कि अपनी मुखरता के लिए मशहूर श्री जेठमलानी ने भाजपा में वापिस आने के बाद सदैव ही मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाये जाने का समर्थन किया व मोदी ने भी उन की अनुशासनहीनता के खिलाफ कभी एक शब्द भी नहीं कहा। जेठमलानी ने कहा कि मौजूदा यूपीए सरकार को हटाना अगर उनका मिशन नहीं होता तो वे भाजपा के आला भ्रष्ट नेताओं की पोल पट्टी खोल कर देश को बता देते। अर्थात वे भी भाजपा के आला नेताओं के भ्रष्टाचार के राजदार हैं किंतु यूपीए सरकार को हटाने के नाम पर अपने मुँह से सचाई नहीं बखानना चाहते। क्या ऐसे नेताओं को इमरजैंसी का विरोध करने और उसे अभिव्यक्ति की आज़ादी का हनन बताने का हक़ है? रोचक यह है कि मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भाजपाई और समाजवादी इमरजैंसी में जेल में रहने की अवधि के आधार पर पेंशन के रूप में अच्छी खासी रकम प्राप्त कर रहे हैं और समाजवादियों को माफी माँग कर बाहर आने वाले भाजपाइयों के साथ पेंशन लेने में किसी तरह की शर्म महसूस नहीं होती।
       भाजपा में तो पार्टी से बाहर जाने वाला हर नेता राज खोल देने की धमकी देता है और फिर धमकी का सौदा करके चुप लगा जाता है। मदनलाल खुराना, कल्याण सिंह, केशूभाई पटेल, उमाभारती, से लेकर तमाम नेता ऐसी ही धमकियां दे दे कर चुप्पी साध चुके हैं। अमर सिंह भी मुलायम सिंह के खिलाफ ऐसी ही बातें कह कर चुप हो गये हैं। हमारे देश में कोई विक्कीलीक्स नहीं होता जो राजनीति के अन्दर पल रही सड़ाँध पर से ढक्कन हटाने का काम करे। इमरजैंसी में अभिव्यक्ति की आज़ादी का झंडा उठाने वाले जय प्रकाश नारायण के चेले होने का दावा करने वाले क्यों केवल मुँह खोलने को धमकी की तरह स्तेमाल करते हैं। हिन्दी के प्रसिद्ध कवि उदय प्रकाश की एक कविता है-
मर जाने के बाद आदमी कुछ नहीं सोचता
मर जाने के बाद आदमी कुछ नहीं बोलता
कुछ नहीं सोचने
और कुछ नहीं बोलने पर आदमी मर जाता है।
वीरेन्द्र जैन
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