मंगलवार, अगस्त 20, 2013

नये कम्पनी कानून के प्रावधान और सामाजिक ज़िम्मेवारियां

नये कम्पनी कानून के प्रावधान और सामाजिक ज़िम्मेवारियां

वीरेन्द्र जैन
      कंपनी अधिनियम 1956 को बदलकर एक नया कंपनी कानून बनाने की कवायद पिछले लगभग दो दशकों से चल रही थी। पिछले 8 अगस्त को राज्य सभा द्वारा कंपनी विधेयक को पारित करने के बाद कंपनी अधिनियम 2013 का रास्ता साफ हो गया है। अन्य महत्वपूर्ण बातों के अलावा इसमें कुल लाभ का दो प्रतिशत सामाजिक दायित्वों के लिए व्यय करने की अनिवार्यता का प्रावधान भी है।
      अभी तक सामाजिक दायित्व दूसरों पर डालने को कानून के दायरे में नहीं रखा गया था क्योंकि इसे सरकार का काम माना जाता था जो जनता से वसूले गये कर से उसका निर्वहन करती थी। सामाजिक संगठन अपनी मर्जी से कुछ समाज हितैषी काम करते थे उसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता था। आयकर की धारा 80 जी के अंतर्गत कुछ चयनित सामाजिक संगठनों को दिये गये दान में कुछ छूट देती थी पर उनके द्वारा किये बताये गये कार्यों का कोई निरीक्षण नहीं करवाती थी जिसके परिणाम स्वरूप कुछ धार्मिक संगठन काले धन को सफेद बनाने के लिए इस सुविधा का लाभ लेते रहे हैं। एक टीवी चैनल द्वारा इस मनी लांड्रिंग को उजागर करने के लिए स्टिंग आपरेशन किया गया था पर बाबाओं, साधुओं के भेष में रहने वाले इन आर्थिक अपराधियों पर किसी कार्यवाही की खबर नहीं है। इसलिए जरूरी हो जाता है कि सामाजिक दायित्वों के लिए किये गये इस प्रावधान के बारे में स्पष्ट दिशा निर्देश ही नहीं हों अपितु उनका सही अनुपालन सुनिश्चित किये जाने के लिए उन पर नियंत्रण की व्यवस्था भी हो।
      हमारा समाज अर्धसामंतवादी अर्धपूंजीवादी समाज है। इसका परिणाम यह है कि पूंजीवाद में जो प्रगतिशीलता होती है उसे सामन्ती सोच निष्क्रिय कर देती है। आज़ादी के बाद देश के पहले दस पूंजीपतियों ने चेरिटी [परोपकार] के नाम पर अनाप शनाप धर्मस्थलों का निर्माण करवाया। आज देश भर के राज्यों की राजधानियों और महानगरों में बिड़ला मन्दिर विधानसभाओं के समानांतर मिल जायेंगे। पिछले दिनों दिवंगत बाबा जयगुरुदेव से लेकर सत्य सांई बाबा तक की अटूट सम्पत्ति सामने आयी है जिसकी विरासत पर उठे मतभेद भी बताते हैं कि उसके संग्रह के पीछे कोई साफ सुथरा स्पष्ट लक्ष्य नहीं था। अगर उसमें से कहीं स्कूल अस्पताल आदि का दिखावा भी किया गया था तो वह भी कुल आय के एक प्रतिशत के बराबर भी नहीं था। समाज में उच्च और मध्यम वर्ग के पास जो सरप्लस [अतिरेक] पैदा होता है उसका बड़ा हिस्सा सामंतवादी मूल्यों से प्रभावित समाज में धार्मिक चेरिटी की ओर चला जाता है। इसका दोहन करने के लिए न केवल परम्परागत विश्वासों को नया रंग रोगन दिया जा रहा है अपितु नयी नयी तकनीक का सहारा लेकर नये नये असंख्य धार्मिक नेता पैदा हो रहे हैं। विडम्बना यह है कि परम्परागत विश्वासों के सहारे धन निकालने वाले ये लोग खुद पूंजीवादी मूल्यों में भरोसा करते हैं और उसी के हथकण्डे अपनाते हुए धन संग्रह करते हैं और उसका निवेश करते हैं। उपरोक्त धर्म गुरुओं के निधन के बाद जो विवाद पैदा हुए उससे इस सत्य का पता चला कि इस संग्रीहत धन को व्यय करने की ना तो कोई घोषित योजना उनके पास होती है और न ही उनके इस संग्रह की कोई पारदर्शिता होती है। धार्मिक स्थलों तक में जब बड़े बड़े हादसे हो जाते हैं तब भी इस संस्थानों से एक पैसे की भी सहायता पीड़ितों को नहीं मिलती और ना ही तीर्थों के पुनुरोद्धार और धार्मिक उत्सवों के लिए कोई धन दिया जाता है। धार्मिक आश्रमों में ऐसे जमा धन के कारण आये दिन चोरियां, गबन से लेकर हत्याएं तक हो रही हैं। पिछले दिनों से दक्षिण के एक शंकराचार्य पर ऐसा ही हत्या का मुकदमा दर्ज़ है जिस पर फैसले को निरंतर विलम्बित कराने की कोशिश चल रही है।
      कार्पोरेट कम्पनियों और स्वैच्छिक संगठनों के बीच पुल का काम करने वाला एक संगठन है जिसका नाम ‘दसरा’ है। गत दिनों गत दिनों मुम्बई के ताज होटल में एक तीन दिवसीय कार्यशाला सम्पन्न हुयी थी। ‘दसरा’ के निर्देशक मानस राठा के अनुसार देश में वैसे तो तीन लाख तीस हजार पंजीकृत स्वयंसेवी संगठन हैं जिसमें से लगभग दो हजार पेशेवर ढंग से सार्थक काम कर रहे हैं। इनमें से 40 संगठनों को पिछले चार साल में कार्पोरेट घरानों ने कुल एकसौ दस करोड़ रुपयों की मदद की है। इसके समानांतर 2013 में धार्मिक संस्थानों को दिये गये कुछ ऐसे दानों को देखें जो किसी तरह समाचारों में आ गये तो अंतर पता चलता है।
7/1/13-- शिर्डी साईं बाबा संस्थान के उपकार्यकारी अधिकारी यशवंत माने ने बताया कि संस्थान को दस दिन में 13 करोड़ का दान चढावे में मिला है।
11/2/13 – नागपट्टनम। भगवान अमिर्थकडेवर के मन्दिर में देवी अबिरामी को पाँच करोड़ रुपये कीमत की नवरत्न अंगिया पहनायी गयी है।
22/6/13—दिल्ली के एक अनाम पेशेवर ने मुगलकालीन सोने के सिक्कों की माला चढाई जिसकी कीमत सोलह लाख रुपये है।
11/7/13—कोलकाता- चैतन्य महाप्रभु की जन्मस्थली मायापुर में विश्व का सबसे बड़ा मन्दिर तैयार हो रहा है जो पाँच लाख वर्गफीट में फैला होगा। इस्कान के इस मन्दिर की लागत लगभग पाँच सौ करोड़ आयेगी। इसके लिए आटोमोबाइल कम्पनी फोर्ड के संस्थापक के प्रपौत्र एलफर्ड फोर्ड डोन ने सौ करोड़ रुपये दान दिये हैं।
28/7/13—अम्बाजी। गुजरात के इस प्रसिद्ध तीर्थ में अहमदाबाद के एक श्रद्धालु ने पाँच किलो सोना दान दिया। अभी तक इस मन्दिर को अड़तीस किलो सोना दान में मिल चुका है।
      इसके विपरीत मध्यप्रदेश की सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत 2007 में ‘फंड ए स्कूल’ योजना शुरू की थी जिसके अनुसार पूंजीपति सरकारी स्कूलों के विकास के लिए दान कर सकते थे लेकिन योजना शुरू होने के बाद से अब तक प्रदेश के किसी पूंजीपति ने इसमें रुचि नहीं ली जबकि इसमें आयकर की धारा 80 बी के अंतर्गत आयकर में पाँच प्रतिशत छूट का प्रावधान भी है। योजना में आयकर लाभ लेते हुए न्यूनतम पचास हजार से लेकर दसलाख तक का दान दिया जा सकता था। इसलिए अगर सरकार अपनी ज़िम्मेवारियों से बच कर कम्पनी कानून के द्वारा लाभ का दो प्रतिशत सामाजिक दायित्वों के लिए उद्योगपतियों को सौंप रही है तो उसे उसका क्षेत्र भी निर्धारित करना चाहिए ताकि उसका सही स्तेमाल हो और जिसका लाभ समाज के सभी वर्गों को किसी जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र आदि के भेदभाव के बिना मिल सके। 
वीरेन्द्र जैन
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