शनिवार, अगस्त 24, 2013

शर्म इनको मगर नहीं आती

शर्म इनको मगर नहीं आती
वीरेन्द्र जैन

       कहा जाता है कि हमारे देश में अधिकांश आत्महत्याएं सामाजिक सम्मान के घटने या घटने के भय से की जाती हैं। यह सामाजिक सम्मान हमारी मूलभूत आवश्यकताओं के समानांतर अनिवार्यता की सूची में आता है। जो लोग अपने स्वार्थों के समक्ष सामाजिक सम्मान का ध्यान नहीं रखते उन्हें बेशर्म कहा जाता है। एक कहावत में ऐसे लोगों की निन्दा यह कह कर की गयी है- सौ सौ जूते खांय तमाशा घुस के देखेंगे।
       भारतीय जनता पार्टी भले ही लोगों को उकसाने के लिए बार बार राष्ट्रीय स्वाभिमान, सांस्कृतिक स्वाभिमान आदि की बातें करती रहती हो किंतु अपने स्वार्थों के लिए बंगारुओं, येदुरप्पाओं की यह पार्टी अपने स्वाभिमान और लोक लाज की जरा भी परवाह नहीं करती। बंगारू को नरेन्द्र मोदी हैदराबाद की आमसभा में मंच पर सादर स्थान देते हैं और येदुरप्पा को पार्टी में वापिस लाने के लिए उनके निहोरे किये जा रहे हैं। भाजपा में प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी के रूप में उछाले जा रहे नरेन्द्र मोदी को अमेरिका ने वीजा देने से इंकार करके उनके बारे में अपना मूल्यांकन बता दिया था पर इसके बाद भी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान उनको वीजा दिये जाने के लिए प्रयास किया था जिसे स्वीकार नहीं किया गया। उन्होंने यह अपेक्षा उन कारणों को दूर किये बिना और उन गलतियों के प्रति प्रायश्चित किये बिना ही की थी जिनके कारण उन्हें वीजा से वंचित किया गया था। पिछले दिनों ब्रिटिश उच्चायुक्त और मोदी की भेंट हुयी थी जिसे भाजपा की ओर से इस तरह प्रचारित किया गया था जैसे सारे पश्चिमी देशों ने उन्हें अच्छे चरित्र का प्रमाण पत्र दे दिया हो। अब ऐसे प्रचार से उपज रही गलतफहमियों को दूर करने के लिए उच्चायुक्त जेम्स बेवेन ने जमिया मिलिया विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम के दौरान स्पष्ट किया है कि नरेन्द्र मोदी से बातचीत का  मतलब उनका समर्थन करना नहीं है। उन्होंने कहा कि हमें भी मानवाधिकार उल्लंघन पर चिंताएं हैं। गुजरात दंगों में हमारे भी तीन नागरिक मारे गये थे और हम भी उनके लिए मुकदमा एवं न्याय चाहते हैं। उन्होंने साफ किया कि ब्रिटिश सरकार की ओर से नरेन्द्र मोदी को ब्रिटेन आने का न्योता नहीं दिया गया है।
       अमिताभ बच्चन गुजरात पर्यटन के ब्रांड एम्बेसडर बनाये गये हैं और वे अपनी लोकप्रियता के सहारे गुजरात के पर्यटन स्थलों और सांस्कृतिक मेलों के लिए पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए अनुबन्धित हैं। पिछले दिनों यू ट्यूब पर जारी किये गये एक फर्जी वीडियो पर अपनी गहरी नाराजी प्रकट की और इसे अपलोड करने वाले के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही की चेतावनी दी है। वे इस वीडियो के माध्यम से नरेन्द्र मोदी को देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में समर्थन करते हुए दिखते हैं। 70 वर्षीय इस वयोवृद्ध कलाकार ने 2007 में ‘लीड इंडिया’ नामक एक अभियान के लिए अपनी आवाज दी थी जिसका बड़ी चालाकी से स्तेमाल करते हुए मोदी का समर्थन करने वाला वीडियो बना लिया है। इस वरिष्ठ कलाकार ने अपने ब्लाग के अलावा ट्विटर पर भी इस फर्जीवाड़े की सूचना दी है। सवाल उठता है कि गुजरात में ब्रान्ड एम्बेसडर की जिम्मेवारियां स्वीकार करने के बाद भी इस बुजुर्ग को मोदी के प्रचार से जुड़ना अपमानजनक क्यों लगता है?  
       गुलशन नन्दा की तरह अपने अंग्रेजी उपन्यासों के लिए लोकप्रिय युवा लेखक चेतन भगत को कुछ व्यावसायिक अखबार स्तम्भकार के रूप में छापते हैं जिनमें वे लगातार मोदी के पक्ष में युवाओं के बीच प्रचार सा करते रहे थे पर गत दिनों उन्होंने भी मोदी की अपने विरोधियों के खिलाफ लगातार आक्रमकता को एक नकारात्मक गुण के रूप में पहचानते हुए सवाल उठाया है कि वे अपने सकारात्मक पक्ष को सामने लेकर क्यों नहीं आते!  क्या उन्हें भी अपना सकारात्मक पक्ष नकली, अधूरा, या ऐसा लगता है जिसमें उनका कोई योगदान नहीं है।
       स्मरणीय है कि कई वर्ष पहले देश के बुजुर्ग स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी के महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत ने अनुपम खेर को संघ का पक्षधर कह दिया था तो इस बेहतरीन कलाकार को इतना बुरा लगा था कि उन्होंने इस वरिष्ठ राष्ट्रीय नेता के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज़ कर दिया था। देश के सर्वाधिक सम्मानीय बुद्धिजीवियों को संघ से जुड़ा होना बताया जाना एक गाली की तरह लगता है पर इसके नेताओं को यह विचार करने की जरूरत महसूस नहीं होती कि स्वय़ं को एक सांस्कृतिक संगठन बताने वाले इस संगठन से देश के सांस्कृतिक कर्मी क्यों दूर रहते हैं। जिन फिल्मी कलाकारों को राज्यसभा आदि में भेजने का लालच देकर ये जोड़ भी लेते हैं उनमें से ज्यादातर इनकी चुनावी सभाओं तक में जाने का मेहनताना वसूलते हैं, या धर्मेन्द्र की तरह अफसोस करते हुए कहते हैं कि इस संगठन ने मुझे बहुत इमोशनली ब्लेकमेल किया।
        औद्योगिक विकास के नाम पर नवधनाड्य वर्ग के नवशिक्षित आधुनिक युवाओं को आकर्षित करने के लिए वे जो प्रयास कर रहे हैं उसको चौरासी कोस की परिक्रमा के बहाने दंगों की भूमिका तैयार करना पसन्द नहीं आ सकता। निकट भविष्य में दोनों में से कोई एक रास्ता पकड़ना होगा जिनमें से कोई अकेला रास्ता मंजिल तक नहीं जाता।
............और दो नावों पर पैर रखने वालों का परिणाम तो सबको पता ही है।       
वीरेन्द्र जैन
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