मुनव्वर राणा - एक सच्चे
हिन्दुस्तानी जनप्रिय शायर
वीरेन्द्र जैन
मुनव्वर राणा
को साहित्य अकादमी जैसा सबसे बड़ा सरकारी पुरस्कार मिलने की जितनी खुशी उन्हें हुयी
होगी उससे ज्यादा खुशी उनके बेशुमार चाहने वालों को हुयी है। यही खुशी उनकी
रचनात्मकता की सबसे बड़ी समालोचना है। भले ही उन्हें यह पुरस्कार उर्दू भाषा में
लेखन के नाम पर मिला है पर अगर यह उन्हें हिन्दी श्रेणी में भी मिला होता तो भी
किसी को आश्चर्य नहीं होता क्योंकि वे हिन्दुस्तानी के उन लेखकों में से एक हैं
जहाँ हिन्दी उर्दू का फर्क मिट जाता है। अपने सम्बन्धों को रिश्तों में पहचानने
वाले इस देश में वे इसे माँ और मौसी का रिश्ता बताते हैं।
लिपट जाता
हूं माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में गजल कहता हूं हिंदी मुस्कुराती है।
मैं उर्दू में गजल कहता हूं हिंदी मुस्कुराती है।
मुनव्वर राणा
उन कवियों, शायरों में से एक हैं जिनके कारण जनता का रिश्ता कविता से बचा रह गया
है। हिन्दी कविता को अंतर्र्राष्ट्रीय कविता के समतुल्य बनाने की कोशिश में
पश्चिमी कविता से प्रभावित कुछ कवियों ने सरकारी सम्मानों और विश्वविद्यालयों के
सहारे आम जनता से दूर कर दिया था। उनका काम सतही सम्वेदना वाली फूहड़ मंचीय कविता
ने और आसान कर दिया, क्योंकि कविता की दुनिया को सीधे सीधे दो हिस्सों में बाँट
दिया गया था। पर बच्चन, सुमन, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, बलवीर सिंह ‘रंग’,
मुकुट बिहारी सरोज, नीरज, रमानाथ अवस्थी, धूमिल, बाल स्वरूप राही, रामावतार
त्यागी, दुष्यंत कुमार, कृष्ण बिहारी
‘नूर’ अदम गोंडवी आदि ने हिन्दी में और फैज़ अहमद फैज़, अहमद फराज़, कैफी आज़मी, साहिर
लुधियानवी, हसरत जयपुरी, बशीर बद्र, वसीम वरेलवी, डा. नवाज देववंदी, मुनव्वर राणा,
राहत इन्दौरी आदि ने उर्दू के नाम पर हिन्दुस्तानी में लिख कर जिस भाषायी एकजुटता
का परचम लहराया है उससे ही सन्देश जाता है कि किसी देश की जनता के सुख दुख भाषा और
लिपियों के भेद से बँट नहीं जाते। राष्ट्रीय एकता की बातें केवल थोथे नारों से ही
नहीं की जाती अपितु ये उस दृष्य की स्मृति से सहज रूप से समझी जा सकती हैं जो हर
विश्वास को मानने वालों में साझा है।
हिन्दी में
जो काम नवगीत ने किया है वही काम उर्दू में मुनव्वर राणा जैसे लोगों की शायरी ने
परम्परागत शायरी की विषय वस्तु और कहन में बदलाव लाकर किया है। उनकी शायरी में
बोलचाल की सरल भाषा, आम आदमी की रोजमर्रा ज़िन्दगी से उठाये प्रतीकों से अपनी बात
कहने का गुण वैसा ही लुत्फ देता है जैसा कि भाषा वालों को अपनी बोली का मुहावरा आ
जाने पर मिलता है। उनकी शायरी में जरा गरीबी की शान देखिए-
अमीरे-शहर को रिश्ते
में कोई कुछ नहीं लगता
गरीबी चाँद को भी
अपना मामा मान लेती है
भटकती है हवस दिन
रात जेवर की दुकानों में
गरीबी कान छिदवाती
है तिनका डाल लेती है
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हर
शख्स देखने लगा शक की निगाह से,
मैं पाँच-सौ
के नोट की सूरत हूँ इन दिनों !
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यूँ भी इक फूस के छप्पर की हक़ीक़त क्या थी
अब उन्हें ख़तरा है जो लोग महल वाले हैं
अब उन्हें ख़तरा है जो लोग महल वाले हैं
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राम की बस्ती में जब दंगा होता है
हिन्दू मुस्लिम सब रावन हो जाते हैं
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अपनी अना को बेच के अक्सर, लुक्म-ए-तरकी चाहत में
कैसे-कैसे
सच्चे शायर दरबारी हो जाते हैं
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तुम्हारी आँखों की तौहीन है जरा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है
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उनका
मुजाहिरनामा हो, माँ पर कहे शे’र हों, सोनिया गाँधी पर कही नज़्म हो, सब अपने आप
में इतनी भावपूर्ण हैं कि देश के प्रत्येक नागरिक को अपने देश और देशवासियों से
प्यार उफन आता है। वे दुश्मन देश की नादानियों को दुश्मन की तरह नहीं अपितु उसको किसी
शैतान बच्चे की तरह बता कर अपने देश का बढप्पन दर्शाते हैं और उसकी तुच्छता
दर्शाते हुए उस के सिर चपत लगाते से दिखते हैं-
दिखाता है पड़ोसी मुल्क तो आँखें दिखाने दो
कहीं बच्चे के काटे से भी माँ का गाल कटता है
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कार्यपालिका की नसमझी पर भी वे एक शायर की तरह ही व्यंग्य करके अपनी नाराजी
प्रकट करते हैं-
बदन में दौड़ता सारा लहु ईमान वाला
है
मगर जालिम समझता है कि पाकिस्तान वाला है।
बस इतनी बात पर उसने हमें बलवाई लिक्खा है
हमारे घर के एक बर्तन पर आईएसआई लिक्खा है
अपनी लम्बी नज़्म मुजाहिरनामा में वे
मुजाहिरों का दर्द जिन शब्दों में व्यक्त करते हैं उसका एक नमूना देखिये-
वो जौहर हों, शहीद अशफ़ाक़ हों, चाहे भगत सिंह हों,
हम अपने सब शहीदों को अकेला छोड़ आए हैं।
वो जौहर हों, शहीद अशफ़ाक़ हों, चाहे भगत सिंह हों,
हम अपने सब शहीदों को अकेला छोड़ आए हैं।
मुनव्वर
राणा देशभक्ति के सबसे बड़े शायरों में से एक हैं, जो लिखते हैं कि तेरी गोद में
गंगा मैय्या अच्छा लगता है। उनकी देशभक्ति की शायरी नारों और भजन नुमा कविताओं से
हट कर अपने वतन की मिट्टी से व उसके लोगों से प्यार की हिलोरें उठाती है। यह
सच्चाई उनकी शायरी सुनते हुए चेहरों को पढ कर महसूस की जा सकती है। उन्हें
सम्मानित करना देश की सच्ची राष्ट्रभक्ति को सम्मानित करने की तरह है।
वीरेन्द्र जैन
2 /1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल म.प्र. [462023]
मोबाइल 9425674629
bahut achchha likha hai dada........jab rana sahab mankapur aaye the ...tab maine suna hai .....sachmuch abhibhoot hoon......
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