समीक्षा
ज़िन्दगी चैनल का
सीरियल- काश में तेरी बेटी न होती
वीरेन्द्र जैन
जब
भी कोई अच्छी फिल्म या किताब देखने पढने में आती है तो मन होता है कि उसके बारे
में दूसरों को भी बताया जाये। यही इच्छा कोई अच्छा नाटक देखने या टीवी सीरियल
देखने के बाद भी होती है। शायद इसमें किसी दौड़ में प्रथम आने का सुख प्राप्त करने
का प्रयास निहित रहता हो। पिछले दिनों जब मैंने ज़ी टीवी ग्रुप पर शुरू हुये
ज़िन्दगी चैनल और उस पर चलने वाले सीरियल – काश मैं तेरी बेटी न होती- के बारे में
अपने कलात्मक रुचियों वाले मित्रों को बताया तो लगा कि मैं आगे नहीं निकल सका हूं
क्योंकि मेरे सभी मित्र इस चैनल पर आने वाले सीरियल न केवल देख रहे थे अपितु मेरी
ही तरह उन्हें पसन्द भी कर रहे थे।
ज़ी
ग्रुप से यह चैनल तब शुरू हुआ जब मेरी दिलचस्पी हिन्दी टीवी के मनोरंजक प्रोग्रामों
और समाचारों को रबर की तरह खींचते समाचार चैनलों से पूरी तरह से हट चुकी थी किंतु
ज़िन्दगी चैनल और एनडीटीवी के प्राइम टाइम ने दुबारा पैदा कर दी। पड़ौसी देशों के
टीवी चैनलों पर दिखाये गये सीरियलों और कहानियों के नाम से पाँच महीने पहले शुरू
हुये इस ज़िन्दगी चैनल पर अभी पाकिस्तान की कहानियां और सीरियल दिखाये गये
जिन्होंने कहानियों की मौलिकता, ज़िन्दगी में घटने वाली घटनाओं के अलग अलग आयाम,
चरित्रों का वैविध्य, कलाकारों का भूमिका के अनुसार सटीक चयन व उसी के अनुसार उनका
कुशल अभिनय, संगीत आदि ने शायद लाखों उन
टीवी दर्शकों को भी बाँध लिया जो गत बीस साल में आने वाले हिन्दी के सीरियलों से
ऊब कर सीरियल देखना छोड़ चुके थे। सीरियलों की भाषा, कहानियों के मध्य व उच्च
वर्गीय पात्रों का रहन सहन खान पान, अच्छी बुरी आदतें, सामाजिक दोष, पीढीगत टकराव
आदि कुछ भी ऐसा नहीं था जिससे ऐसा लगता कि हम किसी दूसरे देश के सीरियल देख रहे
हैं। इसके विपरीत हमें अपने ही देश के उत्तरपूर्व और दक्षिण के सीरियल या फिल्में हिन्दी
जगत से कुछ भिन्न लगते रहे हैं। मैं स्वीकार करता हूं कि ये सीरियल देखने के पहले
मुझे पाकिस्तान इतने करीब नहीं लगता रहा। कलाओं से जन्मी संवेदना देशों की दीवारें
तोड़ती हैं और लोगों को पास लाने व मित्रता बढाने में सर्वाधिक योगदान कर सकती हैं।
इन्हें देख कर जहाँ दूरदर्शन के पुराने सीरियल बुनियाद, हमलोग, तमस, आदि की याद
ताज़ा हो गयी, वहीं हमारे यहाँ वर्षों से चलने वाले सास-बहू नुमा सीरियल और ज्यादा कमजोर,
नकली, फूहड़ व निरर्थक लगने लगे।
इस चैनल पर सबसे लम्बा चलने वाला सीरियल
-काश मैं तेरी बेटी न होती- लगभग एक सौ
साठ एपीसोडों के बाद समाप्त हुआ है। इस में न केवल सामंती मूल्यों के शेष बच गये
लोगों से नये बन रहे समाज के लोगों के साथ होने वाला टकराव ही दिखाया गया है अपितु
पाकिस्तान की पुलिस. प्रशासन, न्याय, धर्म और राजनीति भी पुराने सामंतों व धनिकों
की इच्छा और निर्देश पर चलती हुयी दिखा कर स्वस्थ राजनीतिक आलोचना करने का साहस
किया गया है। पाकिस्तान में भी अखबार बेचने, कारों के शीशे साफ करने और घरेलू नौकर
का काम करने वाले का परिवार अपनी दुखद गाथा अखबार में नहीं छपवा सकता भले ही
स्टोरी की तलाश में रहने वाला टीवी किसी खबर को कभी कभी दिखा देता हो। सीरियल से
पता चलता है कि मासूमों और अबलाओं को दबोचने के लिए आतुर दरिन्दे, पैसों के बदले
में अपराध करने वाले मवाली और अपने स्वार्थ के लिए निर्धनों व कमजोरों को पशु से
पतित मानने वाले धनिक पाकिस्तान में भी हिन्दुस्तान जैसे ही हैं। वहाँ भी रूढियों
और सामाजिक बुराइयों के साथ पढी लिखी युवा पीढी की ज़ंग जारी है। वहाँ भी उच्च और
मध्यम वर्ग बाज़ारवाद का शिकार होकर साम्राज्यवादी देशों की चकाचौंध से चौंधिया रहा
है।
काश मैं तेरी बेटी न होती नामक सीरियल में
इतने मोड़ हैं कि सीरियल देखते हुए आगे की कहानी के बारे में लगातार जिज्ञासा बनी
रहती थी। एक हाकर के मेहनतकश परिवार में तीन बच्चों समेत पाँच सदस्य हैं जिनमें से
तीन की कमाई के बाबजूद भी न घर ठीक से चल पा रहा है और ना ही मकान का किराया समय
से चुक पा रहा है। गृहणी खुद को और बच्चों को भूखा रख कर जब मेहनत करने वाले पति
को उपलब्ध चावल खिलाने के लिए झूठ बोलती है कि सबने खा लिया तो वह बच्चों के चेहरे
पढ लेता है और आँसुओं के नमक के साथ सभी को एक एक कौर चावल खिला कर ही सोता है।
किराया चुकाने के लिए गुर्दा बेचता है तो वहाँ भी उसका शोषण होता है और ज़िन्दगी भर
के लिए अपंग होकर रह जाता है। पति की बीमारी से और बढ चुके संकट से निबटने के लिए
एक शादी कराने वाली औरत गृहणी को उसकी बड़ी बेटी का अस्थायी विवाह एक प्रभावशाली
ज़मींदार परिवार में कराने का प्रस्ताव रखती है जिसे बच्चा चाहिए होता है क्योंकि
उसकी बहू बच्चा पैदा करने में असमर्थ है। विवाह के सौदे की शर्त यह भी है कि बच्चा
होने के बाद वह उसे तलाक दे देगा व इस सौदे के लिए बीस लाख रुपयों का भुगतान होगा।
यह विवाह लड़की को सौदे के बारे में अँधेरे में रख कर किया जाता है और उससे कहा
जाता है कि बचपन में कभी पड़ोस में रहने वाले लड़के से ही उसकी शादी हो रही है जिससे
शादी करने का सपना वह देखती रही थी, पर जिसे उसने पिछले पन्द्रह साल में देखा ही
नहीं था। इस पेंचदार कहानी में परिस्थितियां नितप्रति नये नये गुल खिलाती हैं, जिसमें
दो दर्ज़न से ज्यादा चरित्र पूरे पाकिस्तान की संस्कृति अर्थ व्यवस्था, सामाजिक और
प्रशासनिक व्यवस्था का पोस्टमार्टम करती चलती हैं। उच्च मध्यम वर्ग से लेकर
मेहनतकश वर्ग तक के रहन सहन और सोच के दर्शन होते हैं। पुलिस, न्याय व्यवस्था,
डाक्टर, से लेकर पागलखाने के इंचार्ज तक पैसों पर बिकते नजर आते हैं। धोखे और पैसे
से सरोगेट मदर खरीदी जा सकती है. डाक्टरों से मनचाही रिपोर्टें ली जा सकती हैं,
पत्नी की हत्या के मामले को दबाया जा सकता है, किसी को भी पागल ठहराकर उसे शाक
दिलाया जा सकता है। वहाँ भी बोगस एनजीओ चलते हैं जो अमीरों के मनरंजन और देश विदेश
की यात्राओं का बहाना होते हैं। अमीरों में कुत्ते गरीबों से ज्यादा ध्यान रखने
वाले प्राणी होते हैं। अमीरों के लिए बड़े बड़े माल हैं, कारें हैं, बगीचे हैं,
अच्छे अच्छे भवन हैं, सड़कें हैं, आज्ञाकारी सेवक हैं। इसके विपरीत गरीबों के लिए
अभाव हैं, तनाव हैं और बीमारियां हैं। अशिक्षा है अज्ञान है, रूढियां हैं। बुर्का
निम्न वर्ग की महिलाएं ही पहिनती हैं, और उच्च मध्यमवर्ग की महिलाएं अपने पहनावे
में आधुनिक हो चुकी हैं। कुल मिलाकर बिना स्थूल शब्दों के प्रयोग के पूरे सीरियल
में एक वर्गीय दृष्टि साफ झलकती है।
कहीं
कहीं प्रयुक्त पंजाबी सिन्धी के समझ में आने वाले शब्दो के साथ साथ पूरी भाषा
हिन्दुस्तानी है जिसमें बोलचाल की उर्दू का प्रयोग है। पाकिस्तान में हिन्दी
फिल्मों के लोकप्रिय गाने वैसे ही रोजाना की बातचीत में मुहावरे की तरह प्रयोग में
आते रहते हैं जैसे कि हिन्दोस्तान में। हमारे यहाँ के सीरियलों में जो कहानी खो
गयी है वह वहाँ मौजूद है, ऐसा इन सीरियलों को देख कर लगता है। जिन लोगों ने भी
पाकिस्तान की फिल्म –खुदा के लिए- और –बोल- देखी है वे इस सीरियल को उन फिल्मों के
समकक्ष रख सकते हैं। इस चैनल के दूसरे सीरियलों और कहानियों में भी अलग अलग मुद्दे
उभारे गये हैं जैसे कि एक सीरियल में बड़ी उम्र में माँ बनने पर परिवार के बड़े
बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव की कहानी कहे गयी है। एक कामेडी सीरियल में बिना महिला
वाले परिवार में बड़ी हुयी लड़की और बिना पुरुष वाले परिवार में बड़े हुये लड़के के
विवाह के बाद उत्पन्न समस्या का मनोरंजक चित्रण है। यह चैनल हिन्दी चैनलों के घुटन
भरे माहौल में ताज़ा हवा के झौंके की तरह आया है।
वीरेन्द्र जैन
2 /1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल म.प्र. [462023]
मोबाइल 9425674629
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