रविवार, फ़रवरी 28, 2016

गृहमंत्री राजनाथ सिंह के नाम एक खुला खत

गृहमंत्री राजनाथ सिंह के नाम एक खुला खत
वीरेन्द्र जैन

गृहमंत्री जी,
पिछले दिनों लोकसभा में मानव संसाधन के पद पर सुशोभित सुश्री स्मृति ईरानी के उपयुक्त अभिनय के साथ दिये गये बहुचर्चित बयान पर आपने जिस मुग्ध्भाव से उनके बयान को परिपूर्ण बताते हुए कहा था कि उसके बाद आपको कहने के लिए कुछ नहीं रह जाता है, इससे यह स्पष्ट हो गया था कि उनका कथन ही आपका कथन है। प्रधानमंत्री के पद सुशोभित कर रहे श्री नरेन्द्र मोदी ने भी उनके बयान को सुन कर उन्हें ट्वीट करके बधाई दी थी जिससे यह साफ हो गया था कि वे भी उनके बयान को समर्थन दे रहे हैं, अर्थात यह बयान सरकार का बयान बन गया है।
अब जब उस पूरे बयान की धज्जियां उड़ गयी हैं और वह अतिरंजना व सफेद झूठ का एक पुलिन्दा सिद्ध हो गया है, तब क्या आपकी सरकार उसकी उसी तरह सामूहिक जिम्मेवारी लेगी जिस तरह से वह प्रशंसा में सम्मलित हो गयी थी व अन्धभक्त जय जयकार करने लगे थे। इस दौरान देखा गया है कि तथ्यों के गलत सिद्ध होने पर सुश्री मायावती ने उसी सामंती काल की तरह स्मृति ईरानी का सिर मांग लिया जिस फिल्मी अन्दाज़ में उन्होंने कहा था कि अगर मेरे कथन से आप संतुष्ट न हों तो आपके चरणों में सिर काट कर डाल दूंगी। मुझे स्मृति ईरानी से सहानिभूति है क्योंकि उन्होंने सदन में जो भी ड्रामा किया वह उनका मूल भाव है और उसी गुण के कारण वे इस महान देश के इतने बड़े पद पर विराजमान हैं। मोदी उनके आदर्श बन चुके हैं और चरणों में सिर डालने वाली बात वैसी ही थी जैसी कि सौ दिन में काला धन न लाने की स्थिति में उन्होंने फाँसी पर चढा देने की शर्त रखी थी। वैसे भी सिर घुटाने, चने खाने, फर्श पर सोने के सुषमा स्वराज और उमा भारती के इसी श्रेणी के बयान पहले भी आ चुके हों। पालटिकल पार्टी की जगह रामलीला पार्टी।
भाजपा अभिनेता अभिनेत्रियां को हमेशा आमंत्रित करती रही है, और वह इकलौती ऐसी पार्टी है जो सबसे अधिक कलाकारों, खिलाड़ियों, मंच के मसखरों, पूर्व राज परिवार के सदस्यों के सहारे संसद में संख्याबल बनाती रही है। हेमा मालिनी, धर्मेन्द्र, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना, स्मृति ईरानी, दीपिका चिखलिया, अरविन्द त्रिवेदी, दारा सिंह, किरन खेर, अनुपम खेर, परेश रावल, मनोज तिवारी, बाबुल सुप्रियो, कीर्ति आज़ाद, नवजोत सिंह सिद्धु, चेतन चौहान, आदि छोटे बड़े पचास से अधिक गैर राजनीतिक सैलिब्रिटीज का सहारा लेकर विभिन्न समयों में अपना अस्तित्व बनाये रख सकी है और विस्तार कर सकी है। कहने की जरूरत नहीं कि इन सब में स्मृति ईरानी ही वह कलाकार हैं जो राजनीति के साथ रुचिपूर्वक जुड़ी हैं, भले ही कभी कभी शत्रुघ्न सिन्हा और अनुपम खेर अपनी विवादास्पद बातों से चुनाव के बाद भी फुलझड़ी छोड़ कर चर्चा में बने रहे हैं।
स्मृति ईरानी ने मोदी केबिनेट की जिस स्क्रिप्ट पर नथुने फुला, आँखें निकाल, उँगली तान कर, सफल अभिनय करते हुए जो भावुकता की चाशनी में डुबो कर जो भाषण झाड़ा उसका सारा झाग बैठ गया है। कौन नहीं जानता कि प्रत्येक विभाग के मंत्री को अधिकांश सांसद पत्र लिखते हैं, और उनको मिले वीआईपी स्टेटस के अनुसार प्रत्येक सरकार के प्रत्येक विभाग के मंत्री उनको उत्तर देते हैं किंतु मंत्रीजी ने अपने उत्तर को विस्तार देने के लिए एक एक पत्र का जो अहसान सा बताया उसकी निरर्थकता उसी समय स्पष्ट हो गयी थी, क्योंकि विपक्ष की तुलना में सत्तारूढ दल के सांसद अधिक पत्र लिखते हैं जो पक्षपातपूर्ण कामों के लिए होते हैं। बंगारू दत्तात्रेय के पत्र पर जो हैदराबाद विश्वविद्यालय पर तेज गति से आक्रामक पत्र हमला हुआ था वह प्रशासनिक से ज्यादा राजनीतिक था और सत्तारूढ दल के अल्पसंख्यक छात्र संगठन के हित में सरकारी पद का दुरुपयोग अधिक था। रोहित वेमुला की आत्महत्या जो हत्या के समतुल्य मानी गयी है के बारे में बड़े भावुक ढंग से जिस झूठ को बोला गया वह चौबीस घंटे भी नहीं टिक सका जब सम्बन्धित डाक्टर ने कह दिया कि सूचना मिलने के पाँच मिनिट के अन्दर ही वह पहुँच गयी थीं व पुलिस अधिकारियों के साथ उनके फोटो सामने आ गये। भावुकता जगाने के लिए मोदी के लखनऊ में बहाये गये नकली आँसुओं की तरह 28 साल के जिस नौजवान को ‘बेचारा बच्चा’ बताया उसी के बारे में इनके प्रचारक पहले ‘याकूब मेनन की फाँसी को गलत मानने वाला देशद्रोही’ बता रहे थे तथा उसे दलित मानने से इंकार कर रहे थे। पिछले दिनों दिल्ली में उसकी माँ ने साफ कहा कि स्मृति ईरानी पूरी तरह गलत बयानी कर रही हैं।
स्मृति ईरानी ने कहा था कि देश के अधिकांश कुलपति पिछली सरकार के चुने हुए हैं और अगर एक भी कुलपति उनपर संघ का एजेंडा लागू करने का आरोप लगाए तो वे इस्तीफ़ा दे देंगी. शायद वे भूल गईं कि उनकी कार्यप्रणाली के ही ख़िलाफ़ मशहूर परमाणु वैज्ञानिक अनिल काकोदकर आइआइटी मुंबई के अध्यक्ष पद से और शिवगांवकर आइआइटी दिल्ली के निदेशक के पद से इस्तीफ़ा दे चुके हैं। आपको इमरजैंसी के बाद वाला वह वाक्य भी याद होगा कि कुछ लोगों से झुकने के लिए कहा गया तो वो लोग लेट गये।
अगर स्मृति ईरानी के बयान की स्क्रिप्ट मोदी मन्त्रिमण्डल ने नहीं लिखी होती तो उन्हें जे एन यू वाले मामले में महिषासुर की पूजा और दुर्गा के बारे में कथित अपशब्द की चर्चा की कोई जरूरत नहीं थी और आगामी पश्चिम बंगाल में गलतफहमी पैदा करने व उसे पूरे बामपंथियों के ऊपर थोप देने षड़यंत्र नहीं रचा गया होता।
स्मृति ईरानी ने टीवी सीरियलों से मिली लोकप्रियता को अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षाएं भुनाने में देर नहीं की। महत्वपूर्ण लोगों के खिलाफ चुनाव लड़ने से मिलने वाली लोकप्रियता के हर अवसर को भुनाया। भले ही उन्हें चुनावों में कभी सफलता नहीं मिली पर लोकप्रियता में वृद्धि तो हुयी। इसी क्रम में उन्होंने अपने आज के आदर्श नरेन्द्र मोदी को 2004 में अटल बिहारी सरकार को मिली पराजय के लिए जिम्मेवार ठहराया था और उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाने तक आमरण अनशन की घोषणा की थी। अपने इसी प्रयास के कारण उन्हें महत्व मिला और आज वे चुनावों में मिली हार और कम औपचारिक शिक्षा के बाबजूद केन्द्र में मानव संसाधन विकास मंत्री हैं, व मध्यम सवर्ण वर्ग में लोकप्रिय प्रधानमंत्री को वरिष्ठ और अनुभवी लोगों से अधिक प्रिय हैं।
जे एन यू में लगे देश विरोधी नारों के बारे में हाफिज सईद की भूमिका वाले  आपके बयान पर दुनिया काफी हँस चुकी है जिसे आप गोपनीयता के नाम पर छुपा गये हैं। अभी तक उमरखालिद के आठ सौ फोन कालों का सत्य सामने नहीं आ सका है और आशंका है कि भविष्य में कसाव को बिरयानी खिलाने जैसा झूठा न सिद्ध हो। एडवोकेट निकम को पद्मश्री और ज़ी टीवी के आरोपी पत्रकार को एक्स श्रेणी की सुरक्षा भी जुगुप्सा जगाती है।   
महानुभाव, जब सरकार को जनता चुनती है तो सरकार की बदनामी में कहीं उसे चुनने वाली जनता की बदनामी भी छुपी होती है, भले ही आपकी सरकार को इकतीस प्रतिशत जनता का ही समर्थन प्राप्त हो. फिर भी  उसे और ज्यादा शर्मिन्दा होने से बचायें। मारपीट करने वाले आपके प्रिय वकील व आपके ज्ञानदेव आहूजा आपको ही मुबारक हों, ये भविष्य में आपको भी तकलीफ देंगे। आपकी पार्टी भारतीय परम्परा की दुहाइयां देने में सबसे आगे रहती है पर भूलों के लिए क्षमा मांगना भी भारतीय परम्परा ही है। कभी मांग कर देखें, शायद लोग क्षमा कर दें।  
वीरेन्द्र जैन
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