गुरुवार, दिसंबर 22, 2016

वाहनों पर विशिष्टता वाले प्रतीक चिन्हों के खतरे

वाहनों पर विशिष्टता वाले प्रतीक चिन्हों के खतरे
वीरेन्द्र जैन

        गत दिनों होशंगाबाद में 43 लाख के नये और पुराने नोटों के साथ एक व्यक्ति पकड़ा गया था जिसकी गाड़ी पर एंटी करप्शन सोसाइटी की प्लेट लगी हुयी थी। जिस दिन दिल्ली निर्भया कांड की तीसरी बर्सी मना रही ठीक उसी दिन एक और गैंग रेप हुआ तथा यह अपराध जिस वाहन से घटित हुआ उस पर गृह मंत्रालय की [नकली] प्लेट लगी हुई थी। अतीत को याद करें तो पटियाला में एक ऐसा अफीम तस्कर पकड़ा गया था जो पंजाब के डिप्टी सीएम का स्टिकर के साथ ही वीआईपी लिखा स्टिकर लगाकर पुलिस को चकमा देता रहा था। उसके पास से से 22 किलो अफीम मिली थी। एसएसपी गुरप्रीत गिल ने बाद में सम्वाददाताओं को बताया था कि पकड़े गये अवतार सिंह का मध्यप्रदेश के रतलाम इलाके में ढाबा है जिसे उसका पुत्र चलाता है। इससे पहले भी पुलिस मध्यप्रदेश में ही उसे 17 किलो अफीम के साथ पकड़ चुकी थी।
दिल्ली में काल सैन्टर में काम करने वाली एक लड़की जिगिशा घोष की हत्या कर दी गयी थी जिसकी जाँच में न केवल जिगिषा के हत्यारे ही पकड़े गये अपितु एक पत्रकार सौम्या विशवनाथन की हत्या का राज भी खुल गया था। दोनों ही हत्याएं उन्ही अपराधियों ने की थीं। जाँच में सबसे उल्लेखनीय बात यह सामने आयी कि अपराधियों के पास से अतिविशिष्ट व्यक्तियों द्वारा प्रयोग के लिए अधिकृत लाल बत्ती, पुलिस विभाग के प्रतीक चिन्ह, जज और प्रैस के स्टिकर, पुलिस महानिदेशक और उपमहानिरीक्षक की गाड़ियों पर लगने वाली नीली प्लेट, पुलिस की वर्दी तथा वायरलैस सैट भी मिले थे। प्रति दिन वांछित अवांछित आलोचना सुनने वाली पुलिस को इस कार्यवाही के लिए साधुवाद देने के साथ वाहनों पर लगाये जाने वाले प्रतीक चिन्हों की उपयोगिताएं आवश्यकताएं और दुरूपयोग की संभावनाओं पर विचार करना जरूरी है।
        आज प्रदेश की राजधानियों में सैकड़ों ऐसे वाहन पुलिस की आंखों के सामने से गुजरते रहते हैं जिनमें नम्बर प्लेट की जगह उस राज्य की सत्तारूढ पार्टी के झन्डे के रंग की प्लेट लगी होती है व उस पर दल के किसी प्रकोष्ठ के पदाधिकारी का नाम लिखा होता है। असल में ऐसी प्लेटें ट्रैफिक पुलिस कर्मचारियों को चेतावनी देने के लिए लगायी गयी होती हैं कि वे ट्रैफिक नियमों को धता बताते हुये उक्त वाहनों को किसी भी तरह की चैकिंग के लिए रोकने का दुस्साहस न करें। अपने भविष्य और सुविधाओं के बारे में सोच कर आम तौर पर पुलिस के लोग ऐसे वाहनों को रोकते भी नहीं हैं व कानून के पालन की ‘गलती’ कर देने पर ‘दण्डित’ भी होते हैं। यही विशेष सुविधा अपराधियों को इन विशिष्ट प्रतीक चिन्हों के दुरूपयोग को प्रोत्साहित करती है। आज सारे बड़े बड़े अपराध इन्हीं विशिष्ट चिन्हों से मण्डित वाहनों के सहारे किये जा रहे हैं। वाहनों पर पुलिस और प्रैस लिखवाने का फैशन चल गया है। अखबार में प्रिटिंग का काम करने से लेकर अखबार बांटने का काम करने वाले हॉकर तक अपनी साइकिलों बाइकों पर प्रैस लिखवाये हुये मिल जाते हैं जबकि यह पहचान अधिक से अधिक केवल डयूटी पर काम के लिए निकले अखबार के संवाददाता तक ही सहनीय होना चाहिये। भोपाल जैसे नगर में सिटी बसों सामान ढोने वाले ट्रकों आटो ही नहीं ट्रैक्टरों तक पर प्रैस लिखा देखा जा सकता है। डाक्टरों और मरीज वाहन को प्राथमिकता देने के लिए अनुशंसित रैडक्रास का निशान भी नर्सों वार्ड ब्वाय कम्पाउण्डरों, लैब तकनीशियनों से लेकर अस्पतालों के सफाईकर्मी तक प्रयोग में लाते हैं। पुलिस के सिपाहियों की साइकिलों पर भी पुलिस लिखा होता है जो परोक्ष रूप से उन चोरों को सावधान करने के लिए लिखवाया जाता है जो साइकिलें चुराते हैं। साइकिल पर अंकित ‘पुलिस’ संदेश देती है कि यह पुलिस वाले की साइकिल है इसे तो मत चुराओ। इतना ही नहीं सांसद विधायक से लेकर गांव के पंच सरपंच तक अपने वाहनों पर अपना पद लिखवाने लगे हैं। सरकारी अधिकारी ही नहीं कर्मचारी तक अपने विभाग का नाम व पद लिखवाते हैं, यहाँ तक कि वकील भी मोटे मोटे अक्षरों में एडवोकेट लिखवा कर रखते हैं। राजनीतिक दलों के पदाधिकारी तो अपना छोटे से छोटा पद बड़े से बड़े अक्षरों में लिखवाना पसंद करते हैं।
1990 के दशक से देश में साम्प्रदायिकता का जो पुर्नजागरण हुआ है उसके बाद से लोगों के हाथों में बंधे कलावों तिलकों अंगूठियों दाढियों चोटियों, गले में पड़े दुपट्टॊं आदि से ही नहीं उनके घरो के दरवाजों और वाहनों पर लिखे जयकारों से उनके धार्मिक विश्वासों का उद्घोष होता रहता है, भले ही उनके आचरण उनके धार्मिक उद्घोषों के विरोधी हों। अधिकांश वाहनों पर बाहर की तरफ जयघोष के साथ साथ उक्त धार्मिक पंथ के प्रतीक चिन्ह और हथियार आदि अंकित रहते हैं। इनका उपयोग केवल इतना भर होता है कि साम्प्रदायिक दंगों के दौरान अपने वालों से ही प्रताड़ित होने से बच सकें। इन चिन्हांकनों से धर्म और पंथ का कितना भला हुआ है इसका कोई प्रमाण कभी नहीं मिला तथा हजारों दुर्घटनाग्रस्त वाहनों को देखने पर पता चलता है कि इन धार्मिक उद्घोषों ने दुर्घटना से कभी कोई रक्षा नहीं की और ना ही वाहनों को चोरी से ही बचाया।
        देश में वाहनों का सड़कों और उनकी दशाओं के अनुपात में बेतुका विस्तार भविष्य में अनेकानेक समस्याओं को जन्म देगा, खास तौर पर तब, जब कि वाहनों के साथ ट्रैफिक नियमों का पालन तो दूर की बात है लोगों को सही तरीके से पार्किंग की भी तमीज नहीं है जिसे किसी भी पार्किंग स्थल पर देखा जा सकता है। इसलिए आवशयकता इस बात की है कि नये नये सस्ते वाहन आने से पहले ट्रैफिक नियमों के कठोर अनुपालन को सुनिश्चित करने की व्यवस्था की जावे जिसके लिए  स्थानीय राजनेताओं के प्रभाव से बचने के लिए उनके अर्न्तराज्यीय और जल्दी स्थानान्तरण की व्यवस्था हो। डयूटी वाले चिकित्सकों पुलिस व प्रशासन के वाहनों, डयूटी वाले मान्यता प्राप्त संवाददाताओं, एम्बुलैंस फायर ब्रिग्रेड आदि आवश्यक सेवाओं को छोड़ कर किसी भी वाहन के बाहर किसी भी प्रतीक चिन्ह को प्रकट करना कठोरता पूर्वक रोका जाये व विशिष्टता वाले वाहनों को उनकी सुरक्षा के नाम पर अनिवार्य रूप से चैक किये जाने की व्यवस्था हो।
जिस तरह मोबाइल आने के बाद अपराधी साधन सम्पन्न हुये हैं उसी तरह वे मोबाइल के रिकार्ड के कारण उसी अनुपात में पकड़ में भी आये हैं। आज के अधिकांश अपराधों में वाहनों का प्रयोग आम हो गया है और अपराधों को पकड़ने में वाहनों की चैकिंग बहुत मदद कर सकती है। वाहन नियमों के किसी भी उल्लंघन के दुहराव पर उसका दण्ड भी दुगना कर देने से ट्रैफिक अपराधों पर अंकुश लग सकता है। एक से अधिक वाहन रखने वाले परिवार पर अतिरिक्त कर लगाने का प्रस्ताव तो पहले से ही विचाराधीन है। सड़क पर वाहनों की पार्किंग को अतिक्रमण माना जाना चाहिये। बेहतर होगा कि हम विदेशों से वाहनों के माडलों की नकल ही न सीखें अपितु उनके यहाँ के ट्रैफिक नियम भी सीखें।
जिगीशा और सौम्या की हत्या करने वाले तथा अपने वाहन पर गृहमंत्रालय की प्लेट लगाने वाले यदि विदेशी आंतकी होते तो सहज ही कल्पना की जा सकती है कि वे कितने 26/11 दुहरा सकते थे।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास  भोपाल मप्र
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