मौलिक मोदी के बेलिबास
बोल
गत दिवस मोरादाबाद में आयोजित परिवर्तन रैली में मोदी का भाषण सुनने के बाद वह
सज्जन भी निराश दिखे जो उन्हें भाजपा और भारत का एक मात्र उद्धारक मानने लगे थे।
उनका कहना था कि असल मोदी और प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी से लेकर प्रधानमंत्री के
रूप में अपनी बात कहने वाले मोदी अलग अलग हैं। चुनावी भाषणों के समय मूल मोदी
सामने आ जाते हैं। सम्बन्धित व्यक्ति की नाराजी उनके उस कथन को लेकर थी जिसमें
उन्होंने जनधन वाले खातों में विमुद्रीकरण के बाद जमा किये गये काले धन को वापिस न
करने का आवाहन किया था। इस सम्बन्ध में मोदी जी ने कहा था कि जिनके खातों में
किन्हीं सम्पन्न लोगों ने अपना काला धन जमा करवाया है वे उसे वापिस न करें। सरकार
उसे कानूनी रूप देकर उसी व्यक्ति का धन बनाने के बारे में दिमाग लगा रही है।
तकनीकी रूप से मोदी का उक्त कथन न केवल गैरकानूनी था अपितु अनैतिक भी था।
सरकार कानूनी कार्यवाही करके अवैध धन को जब्त कर सकती है, सम्बन्धित पर उचित
करारोपण करके दण्ड वसूल सकती है, सजा दे सकती है, किंतु संविधान की शपथ लिए हुये
प्रधानमंत्री जैसा कोई व्यक्ति सार्वजनिक रूप से अमानत में खयानत करने जैसा बयान
नहीं दे सकता। नैतिकता का तकाजा भी यही है कि लिये हुए धन को जिन शर्तों पर लिया
गया हो उसी के अनुसार वापिस किया जाये। जो काम सरकार का है वह सरकार करे।
विमुद्रीकरण योजना घोषित करते समय भी इस बात के लिए सावधान किया गया था कि कोई भी
व्यक्ति यदि दूसरे के धन को अपने खाते में जमा करायेगा तो वह दण्ड का भागी होगा।
यदि किसी ने जानबूझ कर ऐसा किया है तो उसे नियमानुसार दण्डित किया जा सकता है, न
कि उस धन को वापिस न देने की सलाह देकर दबंगों से द्वन्द की सलाह देनी चाहिए।
इसी अवसर पर उन्होंने अपने विरोधियों के आरोपों का उत्तर देने के बजाय अपने
गैर जिम्मेवार होने का प्रमाण यह कहते हुए दिया कि मेरा कोई क्या बिगाड़ सकता है
मैं तो फकीर हूं, अपना थैला लेकर चल पड़ूंगा। किसी देश के जिम्मेवार पद पर पहुँचने
के बाद क्या ऐसी वापिसी सम्भव है? यदि युद्ध के समय कोई सैनिक अपनी नौकरी छोड़ कर
जाने लगे तो क्या उसे जाने दिया जा सकता है। स्मरणीय है कि राजीव गाँधी की हत्या
के बाद बहुत सारे काँग्रेसजनों ने सोनिया गाँधी को काँग्रेस की कमान सम्हालने का
आग्रह किया था किंतु उन्होंने दस साल तक इस जिम्मेवारी को लेने से इंकार किया पर
एक बार जिम्मेवारी लेने के बाद आये अनेक संकटों के बाद भी पीछे नहीं हटीं। इसी तरह
मनमोहन सिंह जो स्वभाव से एक ब्यूरोक्रेट हैं, ने प्रधानमंत्री पद की जिम्मेवारी
सौंप दिये जीने के बाद उसे पूरी ईमानदारी और जिम्मेवारी से निभाया व गठबन्धन के
दबावों और विपक्षियों की आलोचना के परिणाम स्वरूप जन्मी विपरीत परिस्तिथियों में
भी पीछे नहीं हटे, भले ही उनकी गैर जिम्मेवार आलोचना भी की गई।
श्री नरेन्द्र मोदी एक लोकप्रिय वक्ता हैं किंतु यह लोकप्रियता आज के कवि
सम्मेलनों के चुटकलेबाज कवियों की लोकप्रियता जैसी शैली के कारण है। किंतु जब उक्त
शैली में प्रधानमंत्री पद के साथ भाषण देते हैं तो वे पद की गरिमा को गिरा रहे
होते हैं। उल्लेखनीय है कि गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद घटित प्रायोजित
दंगों में उनकी भूमिका पर कई आरोप लगे थे और जब उस समय की उत्तेजना के प्रभाव से
चुनाव को बचाने के लिए तत्कालीन चुनाव आयुक्त लिग्दोह ने चुनावों को स्थगित किया
था तब श्री मोदी ने उनकी जिस भाषा में सार्वजनिक मंचों से आलोचना की थी, वह बहुत असंसदीय
भाषा में थी। अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के लिए विख्यात उस अधिकारी पर
साम्प्रदायिक आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा था कि शायद वे सोनिया गाँधी से चर्च में
मिलते होंगे। स्वयं सोनिया गाँधी पर आरोप लगाते हुए उन्होंने उनके विदेशी मूल पर
सवाल उठाने के लिए जर्सी गाय जैसी उपमा का प्रयोग किया था। इसी दौरान मुसलमानों के
खिलाफ बोलते हुए उन्होंने पाँच बीबियां पच्चीस बच्चे जैसा जुमला उछाला था। गुजरात
के नरसंहार की पक्षधरता करते हुए उन्होंने क्रिया की प्रतिक्रिया जैसा बयान भी दिया
था, क्योंकि उनकी भाषा ही यही रही है।
गुजरात नरसंहार पर अटलबिहारी वाजपेयी द्वारा राजधर्म के पालन का बयान देने के
बाद उनसे उम्मीद की गई थी कि वे केवल सुशासन पर ध्यान देंगे। संयोग से उसके बाद
उनके सामने कोई कठिन चुनौती नहीं आयी इसलिए बयान चर्चा में नहीं रहे, जब तक कि
उन्हें प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी घोषित नहीं कर दिया गया। लोकसभा चुनावों के
दौरान उन्होंने विदेशी मीडिया को दिये इकलौते साक्षात्कार के बाद चुनावी तिथि से
ठीक पहले दिये कुछ फिक्स साक्षात्कारों को छोड़ कर कोई साक्षात्कार नहीं दिया। उक्त
इकलौते साक्षात्कार में उन्होंने 2002 के दंगों की हिंसा में मारे गये लोगों की
तुलना कुत्ते के पिल्ले से कर दी थी।
माना जाता है कि जब वे सहज होकर बोलते हैं तो भाषा और प्रतीकों में आदर्श
मानकों से डिग जाते हैं। पिछले दिनों उन्होंने आमसभाओं में जो कहा उसका नमूना
देखिए-
·
अगर में सौ दिन में काला धन
नहीं लाया तो मुझे फाँसी पर चढा देना
·
मैं इतना बुरा था तो मुझे
थप्पड़ मार लेते
·
अगर मैं वादा तोड़ूं तो मुझे
लात मार देना
·
दलितों को कुछ मत कहो चाहे
मुझे गोली मार दो
·
अगर पचास दिन में सब ठीक
नहीं किया तो मुझे ज़िन्दा जला देना
नोटबन्दी के लिए जो कारण गिनाये गये थे उनमें से
कोई भी पूरा होता दिखाई नहीं दे रहा है तथा समर्थक वर्ग में उनकी छवि खराब हो चुकी
है। वे देश के महत्वपूर्ण पद पर हैं और पार्टी व गठबन्धन में उन्हें कोई चुनौती
देने का साहस नहीं कर पा रहा है।
पाकिस्तानी सीमा पर हो रही गोलीबारी,
और तथा गुर्जर, जाट, पटेल, मराठाओं के आन्दोलनों व उन आन्दोलनों के प्रति सरकार का
रवैया देखते हुए कहा जा सकता है कि देश के लिए यह कठिन समय है।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार
स्टर्लिंग, रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास
भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 09425674629
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