आज़ादी के बाद के आन्दोलन,
और भ्रष्टाचार
वीरेन्द्र जैन
हमने पिछले कुछ वर्षों में जन आन्दोलनों से उभरे समूहों को पार्टी में बदलते,
दिवा स्वप्न देख कर चुनावों में भाग लेते और फिर असफल होते देखा है। इनकी संख्या
बहुत है किंतु तात्कालिक रूप से बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी इसकी ताजा
शिकार दिखायी दे रही हैं।
आज़ादी के बाद पंचवर्षीय योजनायें बनायी गयीं और क्षमतानुसार विकास से जुड़े
असंख्य कार्य हुये। देश की आज़ादी से पहले स्वास्थ सेवाओं का यह हाल था कि हैजा,
प्लेग. चेचक आदि महामारियों में हजारों लोग एक साथ मारे जाते थे, और इन्हें दैवीय
प्रकोप माना जाता था। उल्लेखनीय है कि उस दौरान मिशनरी अस्पतालों ने अपने सेवा
कार्यों से लाखों जिन्दगियां बचायी हैं, क्योंकि ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित
अस्पताल न तो सवर्ण व दलितों में कोई भेद मानते थे और न ही हिन्दू मुसलमान में भेद
मान कर चलते थे। धर्म का आदेश मान कर इस दिशा में जो काम ईसाई मिशनरियों ने किया
है वह हिन्दू मुसलमान किसी धर्म समाज ने नहीं किया क्योंकि नियति या कर्मफल मानने
के करण उनके यहाँ पीड़ित मानवता की सेवा का कोई विचार ही नहीं था। आज़ादी के आन्दोलन
के दौरान गाँधीजी ने, जो दक्षिण अफ्रीका से रेडक्रास में काम करने का अनुभव लेकर
आये थे, दलितों और कुष्ट रोगियों के लिए अपने आन्दोलन के साथियों को लगाया, दूसरी
ओर अपनी साम्प्रदायिक प्रतियोगिया से प्रेरित होकर आर्य समाज आदि ने शिक्षा के
क्षेत्र में कुछ अलग काम किया। आज़ादी के बाद स्वप्नदर्शी कहे जाने वाले
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देश की क्षमता के अनुरूप तेजी से विकास योजनाएं
बनायीं, और देश के मूलभूत ढाँचे को स्थापित करने का काम किया। इसी परम्परा को बाद
में शास्त्री जी, जिन्हें कम समय मिला और बाद में इन्दिरा गाँधी ने आगे बढाया। बिना
मांग के किये गये इसी विकास के साथ साथ भ्रष्टाचार का भी विकास होता गया जो सुविधा
शुल्क से बढ कर कमीशनखोरी, हिस्सेदारी और अंत में बिना काम किये हुए ही भुगतान तक
पहुँच गया। भ्रष्टाचार के इसी विकास ने आम जन को व्यथित किया और आज़ादी के बाद कई बड़े
राष्ट्रव्यापी आन्दोलन भ्रष्टाचार के सवाल पर ही खड़े हुए व जनता की उम्मीदों का
समर्थन पाकर सत्ता में भी बदलाव हुआ।
1974 में चिमन भाई पटेल की गुजरात सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ छात्रों का
आन्दोलन प्रारम्भ हुआ जिसे देख कर खुद को रिटायर्ड मान चुके जय प्रकाश नारायण फिर
से मैदान में कूद पड़े और सम्पूर्ण क्रांति के नारे के साथ जो आन्दोलन प्रारम्भ हुआ
उसकी परिणिति पहले इमरजैंसी और बाद में जनता पार्टी के गठन व उसकी सरकार बनने तक
जा पहुँची। अपनी सारी ऊर्जा सरकार बनाने में लगा देने के कारण जनता पार्टी
भ्रष्टाचार उन्मूलन का लक्ष्य ही भूल गयी। 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भी
रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार के नाम पर ही काँग्रेस छोड़ी व कम्युनिष्टों और भाजपा
दोनों से बाहरी समर्थन ले कर सरकार बनायी। काँग्रेस और भाजपा के बीच झूलती सरकारों
के बीच विरोध का नहीं अपितु प्रतियोगिता का रिश्ता रहा है और उनके बीच आलोचना का
प्रमुख मुद्दा भ्रष्टाचार ही रहा है। अटल बिहारी सरकार से लेकर मनमोहन सिंह के
कार्यकाल की दोनों सरकारों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये हैं, पर दोनों
ने ही नई आर्थिक नीतियों का समर्थन किया है। उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्री के रूप
में जब मनमोहन सिंह नई आर्थिक नीति लेकर आये थे तब भाजपा ने कहा था कि इन्होंने
हमारी नीति का अपहरण कर लिया है।
2010 के बाद अरविंद केजरीवाल ‘इंडिया अगेंस्ट करप्पशन’ आन्दोलन लेकर आये और
महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन करके कुछ मंत्रियों को हटवाने वाले अन्ना
हजारे को आगे कर दिया था। अन्ना हजारे भावनात्मक अधिक और बौद्धिक कम थे, इसलिए
भाजपा के चंगुल में फँस गये, जिन्होंने आन्दोलन के दौरान अनेक तरह की व्यवस्थाएं
की थीं। बाद में इसी आन्दोलन से निकल कर किरन बेदी व जनरल वी के सिंह, भाजपा में
शामिल हो गये, अरविन्द केजरीवाल ने अलग पार्टी बना ली और दिल्ली के मुख्यमंत्री बन
गये। इसी दौरान रामदेव ने भारतीय स्वाभिमान पार्टी भी बना ली थी और इंडिया अगैंस्ट
करप्पशन को भी हड़प लेना चाहा पर उनकी सन्दिग्ध गतिविधियों के कारण उन्हें आन्दोलन
में प्रवेश नहीं दिया गया। परिणाम स्वरूप उन्होंने अलग से आन्दोलन किया जिसमें वे
असफल रहे और अलग पार्टी का विचार छोड़ भाजपा के शरणागत हो गये।
काँग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार के विरोध के आधार पर ही भाजपा ने 2014 का आम
चुनाव लड़ा और कामन वैल्थ, टूजी, थ्रीजी की रिपोर्टों के साथ जमीनों के सौदे आदि के
साथ पुराने नेताओं को छोड़ कर मोदी को प्रत्याशी बनाया गया जो 2002 के गुजरात
नरसंहार के साथ ऐसी राज्य सरकार चलाने के लिए भी जाने जाते रहे थे, जिस पर आर्थिक
भ्रष्टाचार का कोई बड़ा आरोप नहीं था। साम्प्रदायिक हिंसा के गम्भीर आरोपों के बाद
भी उन्हें प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी इसी छवि के कारण से बनाया गया था।
कम्युनिष्ट पार्टियां भ्रष्टाचार को पूंजीवाद की अनिवार्य बुराई मान कर चलती
हैं व उनका मानना है कि यह रोग पूंजीवाद के साथ ही जायेगा इसलिए जड़ पर प्रहार करना
ही इसका हल है। विभिन्न सरकारें बदलने पर भी भ्रष्टाचार का बने रहना उनकी बात के
पक्ष में जाता है। यही कारण है कि भले ही वे खुद ईमानदार रहे हों किंतु उन्होंने
स्थापित सत्ता का विरोध करने के लिए भ्रष्टाचार को इकलौता मुद्दा नहीं बनाया। यह
अलग बात है कि उनके वर्ग शत्रु द्वारा भ्रष्टाचार से अर्जित संसाधनों के कारण वे
अपनी आवाज को जनता तक पहुंचाने व संघर्ष में पिछड़ते रहे हों।
हाल ही में जब अरविन्द केजरीवाल ने अपनी पार्टी की औकात से अधिक सपने देखे और
सीधे सीधे मोदी सरकार को चुनौती दी तो उसने उनकी सरकार को गिराने के लिए हर सम्भव
उपाय शुरू कर दिये। उपराज्यपाल, पुलिस कमिश्नर, का दुरुपयोग, विधायकों की
त्रुटियों से लेकर उनकी पारिवारिक कमजोरियों तक से भी जब बात नहीं बनी तो उनकी
ईमानदार छवि के मूल आधार पर ही हमला करा दिया। मीडिया को पहले ही अपने अधिकार में
कर चुके थे।
हम कह सकते हैं कि आज़ादी के बाद देश की केन्द्र व राज्य सरकारों को बदलने के
जो आन्दोलन हुये हैं वे भ्रष्टाचार के आसपास ही घूमते रहे हैं। मजदूरों, किसानों,
दलितों, पिछड़ों, महिलाओं, आदि द्वारा सत्ता बदलवाने वाला राष्ट्रव्यापी कोई बड़ा
आन्दोलन नहीं हुआ। मोदी के नियंत्रण व नेतृत्व वाली भाजपा की राज्य सरकारों में
व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार है किंतु केन्द्र सरकार की छवि पर कोई सीधा दाग नहीं
लगा। यही छवि मोदी को अगले दो साल तक बनाये रहेगी, भले ही उतार चढाव बने रहेंगे।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग, रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 09425674629
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